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समूची मानवता को गुरु नानक के मार्ग पर चलना चाहिए

सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी ने सभी धर्मों का सम्मान करते हुए धर्म जाति-पात से ऊपर उठकर, ऊंच-नीच के भेदभाव को मिटाने, स्त्री जाति को पुरूषों के बराबर अधिकार देने की बात लोगों को समझाई

09:44 AM Nov 13, 2024 IST | Editorial

सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी ने सभी धर्मों का सम्मान करते हुए धर्म जाति-पात से ऊपर उठकर, ऊंच-नीच के भेदभाव को मिटाने, स्त्री जाति को पुरूषों के बराबर अधिकार देने की बात लोगों को समझाई

समूची मानवता को गुरु नानक के मार्ग पर चलना चाहिए

सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी ने सभी धर्मों का सम्मान करते हुए धर्म जाति-पात से ऊपर उठकर, ऊंच-नीच के भेदभाव को मिटाने, स्त्री जाति को पुरूषों के बराबर अधिकार देने की बात लोगों को समझाई। गुरु जी ने कहा परमात्मा एक है। इक ओंकार। गुरु नानक देव जी ने जो बात आज से 555 वर्ष पूर्व इस संसार के लोगो से कही आज वैज्ञानिक भी उन्हें सही मानने लगे हैं। गुरु नानक देव जी का बचपन से ही ध्यान प्रभु भक्ति में अधिक रहता। उन्हें जब पढ़ने के लिए भेजा गया तो वह मास्टर को ही ज्ञान दे आए। पिता ने उन्हें सौदा करने हेतु, 20 रुपये देकर भेजा तो उन पैसों से वह भूखे साधुओं को भोजन करवा आए। दुकान पर व्यापार सीखने को लगाया तो तेरा-तेरा करके लोगों को राशन बांटने लगे।

गुरु नानक देव जी के साथ भाई बाला और भाई मरदाना हमेशा रहा करते। गुरु नानक देव जी ने अफगानिस्तान, चीन, मक्का मदीना, नेपाल, बंगाल सहित संसार के अनेक देशों में जाकर भूले-भटके लोगों को रास्ता दिखाया, समाज में फैली कुरीतियों को दूर करते हुए उनका उद्धार किया। भाई मरदाना जी रबाब बजाया करते और भाई बाला जी, गुरु नानक देव जी के संग शब्द गायन किया करते। मगर धर्म के ठेकेदारों को भाई बाला जी का नाम गुरु नानक जी के साथ जुड़ना रास नहीं आ रहा। इसलिए साजिश के तहत इतिहास के पन्नों से भाई बाला जी का नाम धीरे धीरे गायब किया जाने लगा है। दिल्ली के गुरुद्वारा बंगला साहिब में भाई वीर सिंह साहित्य सदन के सहयोग से लगी प्रदर्शनी में भी जो चित्र लगाए गए उनमें भी गुरु नानक देव जी के साथ केवल मरदाना जी ही दिखाई पड़ रहे हैं। पूछे जाने पर तर्क दिया गया कि बाला जी सदा गुरु नानक देव जी के साथ नहीं रहे। गुरु नानक देव जी ने सदैव सरब सांझीवालता का संदेश दिया। आज संसार भर में जिस तरह से अराजकता फैल रही है उसे अगर समाप्त करना है तो संसार के लोगों को गुरु नानक के मार्ग पर चलना होगा और सबसे पहले अपने स्वभाव में विनम्रता लानी होगी।

सिख महिलाओं द्वारा योगी आदित्यनाथ के फैसले का स्वागत

उ.प्र. के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के द्वारा महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु एक कदम उठाया गया जिसमें उन्होंनेे राज्य में महिलाओं के कपड़े सिलने हेतु लिये जाने वाला माप केवल महिला दर्जियों को ही लेने का अधिकार दिया है वहीं सैलून, पार्लर, जिम आदि में भी महिलाओं को केवल महिला स्टाफ ही डील कर सकेंगे। इस फैसले का सिख महिलाओं के द्वारा खासतौर पर स्वागत किया जा रहा है। करोलबाग से पूर्व निगम पार्षद एवं शिरोमणि अकाली दल महिला विंग की वरिष्ठ नेता मनदीप कौर बख्शी ने इस फैसले को समूचे देश में लागू किए जाने की बात करते हुए महिलाओं के मामलों पर सख्त कानून बनाने की गुहार देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लगाई है। वैसे देखा जाए तो इस देश में सख्त कानून ना होने के चलते महिलाओं पर आए दिन अत्याचार होते रहते हैं और तो और मासूम बच्चियों को भी नहीं बख्शा जाता।

गुरु नानक का सिख खालिस्तान का समर्थक नहीं हो सकता

सिख समाज जो हमेशा मानवता की भलाई की बात करता है, दूसरों के दुख दर्द को समझता है। सिख दिन में जितनी बार भी अरदास करता है स्वयं के साथ-साथ समूची कायनात की चढ़दीकला मांगता है ऐसे में वह किसी धर्म का अपमान या फिर उसके धार्मिक स्थलों को नुकसान पहुंचाने की सोच भी नहीं सकता। इतिहास में इस बात का भी जिक्र आता है कि पुरातन समय में अयोध्या के राम मन्दिर जहां भगवान राम का जन्म हुआ था उस स्थान पर जबरन मुगलों ने कब्जा कर लिया तो उसे खाली करवाने के लिए हिन्दु भाईचारे के लोगों ने गुरु गोबिन्द सिंह जी से गुहार लगाई तो उस समय गुरु जी ने निहंग सिखों की फौज भेजकर उस स्थान को खाली करवाया और वहां हिन्दु भाईचारे द्वारा पूजा-अर्चना की जाने लगी। अयोध्या में राम मन्दिर के निर्माण और उद्घाटन के समय में भी सिख भाईचारे द्वारा लंगर लगाए गये। देश-विदेश से सिख समाज के लोग मन्दिर दर्शनों को भी जाते हैं। मगर हाल ही में कनाडा की धरती पर बैठकर खालिस्तानी समर्थक गुरपतवंत पन्नू द्वारा अयोध्या में बने राम मन्दिर को नुकसान पहुंचाने वाला बयान दिया गया ताकि हिन्दू-सिख भाईचारे में दूरी बनाई जाए। हालांकि भारत में बैठे सिख समाज के लोगों द्वारा इसकी कड़े शब्दों में निंदा की गई और की भी जानी चाहिए। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग चेयरमैन इकबाल सिंह लालपुरा ने कहा सिख मन्दिर बनवा तो सकता है मगर मन्दिर को तोड़ने या नुकसान पहुंचाने की सोच भी नहीं सकता और जो ऐसा सोचे वह सिख नहीं हो सकता। इतिहास गवाह भी है कि सिख राजाओं के द्वारा हिन्दू मन्दिरों का निर्माण करवाया जाता रहा है। खालसा राज के समय काशी विश्वनाथ मन्दिर के लिए महाराजा रणजीत सिंह ने दरबार साहिब के बराबर का सोना भेंट किया। सवाल यह भी बनता है कि पन्नू जैसे मुठ्ठी भर लोग विदेशों में रहकर ही इस तरह के बयान देते हैं मगर शायद उनमें इतनी हिम्मत नहीं कि वह भारत में आकर खालिस्तान की मांग कर सकें क्योंकि भारत में रहता कोई भी सिख खालिस्तान का समर्थन नहीं करता। भाजपा सिख सैल नेता रविन्दर सिंह रेहन्सी का मानना है कि अगर सिखों को खालिस्तान ही लेना होता तो 1947 देश की आजादी के समय ही ले लिया होता मगर सिखों का हिन्दुओं के साथ नाखून मांस का रिश्ता है जिसे कोई भी अलग नहीं कर सकता।

नगर कीर्तनों को जुलूस ना बनाया जाये

आमतौर पर देखा जाता है कि गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व को सिख समाज ही नहीं बल्कि हिन्दू भाईचारा और खास तौर पर सिन्धी समाज के लोग भी बढ़चढ़ कर मनाते हैं। प्रकाश पर्व के सम्बन्ध में नगर कीर्तन दिल्ली के गुरुद्वारा शीशगंज साहिब से गुरुद्वारा नानक प्याऊ साहिब तक निकाला जाता है जिसमें गुरु महाराज की पालकी के दर्शनों के लिए उतनी संगत दिखाई नहीं पड़ती जितनी की नगर कीर्तन में लगने वाले स्टालों पर दिखती है। संगत भी सेवा के नाम पर बेतहाशा स्टाल लगाने लगे हैं जिसमें पीजा, बर्गर, से लेकर ना जाने कितनी तरह के व्यंजनों के स्टाल लगते हैं जिनमें लोग खाते कम और बर्बाद ज्यादा करते हैं। संगत की मंशा अगर वाक्य में ही अपने गुरु के दिखाए मार्ग पर चलते हुए भूखों का पेट भरने की है तो एक ही दिन अनगिनत स्टाल लगाने के बजाए पूरा साल अलग अलग जगहों पर स्टाल लगाए जायें ताकि रोजाना जरुरतमंदों का पेट भर सके। इतना ही नहीं मेन नगर कीर्तन के बाद हर कालोनी, गली मौहल्लों में नगर कीर्तन निकाले जाने लगे हैं जो केवल नगर कीर्तन के नाम पर सिखों का मजाक ही बनता दिखाई पड़ता है।

गुरु साहिब की पालकी को पीछे अकेला छोड़ बाकी नगर कीर्तन दूसरे छोर तक पहुंच जाता है। बीच में गतका पार्टियां अपना खेल दिखा रही होती हैं। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी धर्म प्रचार के मुखी जसप्रीत सिंह करमसर का मानना है कि सिख संगत को चाहिए कि नगर कीर्तनों में लगने वाले स्टाल पर खर्च कम कर उसे जरुरतमंद बच्चों की शिक्षा पर लगाना चाहिए क्योंकि आज भी हमारे समाज में बहुत से ऐसे परिवार हैं जो पैसों के अभाव के चलते अपने बच्चों को उच्च शिक्षा नहीं दे पाते।

नगर कीर्तनों में लगे स्टाल से प्रशाद खाकर लोग अगले दिन भूल जाते हैं मगर यही पैसा अगर बच्चों को पढ़ाने पर खर्च होगा तो ना जाने कितने बच्चे उच्च शिक्षा लेकर अपने परिवार का पालन पोषण तो करेंगे ही साथ ही उच्च पदों पर बैठकर समूचे कौम की आवाज भी बनेंगे।

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