Top NewsindiaWorldViral News
Other States | Delhi NCRHaryanaUttar PradeshBiharRajasthanPunjabjammu & KashmirMadhya Pradeshuttarakhand
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariBusinessHealth & LifestyleVastu TipsViral News
Advertisement

पूरा जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग

जम्मू-कश्मीर राज्य भारत का अभिन्न अंग उसी दिन बन गया था जिस दिन…

11:04 AM Apr 18, 2025 IST | Rakesh Kapoor

जम्मू-कश्मीर राज्य भारत का अभिन्न अंग उसी दिन बन गया था जिस दिन…

जम्मू-कश्मीर राज्य भारत का अभिन्न अंग उसी दिन बन गया था जिस दिन 26 अक्टूबर 1947 को इस रियासत के महाराजा हरि सिंह ने इसका विलय भारतीय संघ में कर दिया था। बेशक 15 अगस्त 1947 को यह रियासत एक स्वतन्त्र देशी रियासत थी मगर 26 अक्टूबर 1947 को यह भारतीय संघ में सम्मिलित हो गई थी। अंग्रेज जब देश छोड़ कर गये तो वे भारत की उन 570 से अधिक रियासतों को यह अधिकार देकर गये थे कि वे भारत औऱ पाकिस्तान में से किसी एक देश में अपना विलय कर सकते हैं और चाहे तो स्वतन्त्र रह सकते हैं। अंग्रेजों के समय में भारत के दो क्षेत्र थे। एक तो वह जिन पर अंग्रेजों का सीधा राज था और दूसरा वह जहां देशी रजवाड़े राज करते थे। इनके साथ ब्रिटिश सरकार की सन्धि थी। अंग्रेज इतने चालाक थे कि उन्होंने ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा देशी रजवाड़ों के साथ की गई सन्धियों को मान्यता प्रदान की और जाते हुए शासन उन्हीं के हाथ में सौंप दिया। जबकि अपने सीधे नियन्त्रण में चल रहे भारतीय क्षेत्र को कांग्रेस पार्टी के नेताओं के हाथ में सौंप दिया।

अब कई रियासतों में बंटे हिन्दोस्तान को एक रखने की जम्मेदारी कांग्रेस पार्टी पर आ गई थी। सत्ता हस्तांतरण से पहले अंग्रेजों ने भारत में एक राष्ट्रीय अन्तरिम सरकार बनवाई जिसके मुखिया प. जवाहर लाल नेहरू थे। पं. नेहरू की सरकार में सरदार वल्लभ भाई पटेल उपप्रधानमन्त्री व गृहमन्त्री थे। अतः देशी रियासतों के भारतीय संघ में विलय की जिम्मेदारी उनके कन्धे पर आयी और इसे उन्होंने 15 अगस्त 1947 तक अंजाम भी दे दिया। बड़ी रियासतों में कश्मीर, हैदराबाद और भोपाल एेसी रियासतें थीं जो विलय के विरोध में खड़ी हुई थीं। इनमें से भोपाल व हैदराबाद पाकिस्तान में विलय की इच्छुक थीं। सरदार पटेल के रहते उनकी इच्छा पूरी नहीं हो सकी और 1949 में भोपाल व हैदराबाद दोनों का भारतीय संघ में विलय हो गया जबकि कश्मीर का विलय अक्टूबर 1947 में ही हो गया था। मगर कश्मीर का विलय महाराजा हरि सिंह ने तब किया जब पाकिस्तानी फौजों ने कबायलियों के छद्म वेष मेें कश्मीर पर हमला किया और उसकी फौजें श्रीनगर तक पहुंच गईं। तब महाराजा ने भारत से मदद मांगी और अपनी रियासत का विलय भारतीय संघ में कर दिया।

भारत के साथ जो विलयपत्र लिखा गया उस पर महाराजा हरि सिंह के अलावा जम्मू-कश्मीर राज्य की जनता में तब लोकप्रिय नेता शेख मुहम्मद अब्दुल्ला के दस्तखत भी कराये गये। मगर महाराजा ने इससे पूर्व पाकिस्तान के साथ यथा स्थिति बरकरार रखने का स्टैंड स्टिल समझौता भी किया जिसे पाकिस्तान अभी तक उद्घृत करता रहता है। भारत ने एेसे समझौते पर दस्तखत करने से साफ इन्कार कर दिया था। महाराजा चाहते थे कि 15 अगस्त 47 के बाद भी उनकी रियासत एक स्वतन्त्र देश के रूप में भारत व पाकिस्तान के बीच बनी रहे। मगर पाकिस्तान ने ही उनकी इस मंशा को उन पर हमला बोल कर धराशायी कर दिया जिससे बचने के लिए महाराजा ने भारत की मदद ली।

अतः कश्मीर के मामले में पाकिस्तान एक आक्रमणकारी देश है जिसे उसने राष्ट्रसंघ में भी 1949 में स्वीकार किया। 26 अक्टूबर 1947 को विलय पत्र पर हस्ताक्षर होने के बाद भारतीय सेनाओं ने पाकिस्तानी फौजों का जवाब देना शुरू किया और उन्हें पीछे धकेलती गई। मगर पाकिस्तान की इस हरकत के खिलाफ पं. नेहरू राष्ट्रसंघ में चले गये और राष्ट्रसंघ ने युद्ध विराम का आदेश दे दिया जिसकी वजह से भारतीय फौजें पाक की फौजों को उसकी हदों के भीतर तक नहीं पहुंचा सकीं। पूरे मामले में यह स्पष्ट हो चुका है कि कश्मीर में पाकिस्तान एक आक्रमणकारी देश बन कर आया था। मगर राष्ट्रसंघ ने एक यह भी फैसला किया था कि पूरे जम्मू-कश्मीर में जनमत संग्रह कराया जाये और जनता की राय के मुताबिक कश्मीर के भाग्य का फैसला किया जाये। मगर यह फैसला भारत को मंजूर नहीं था क्योंकि भारत के पक्ष में महाराजा का लिखा हुआ विलय पत्र था जिस पर आम कश्मीरी की भी सहमति शेख अब्दुल्ला के मार्फत थी। राष्ट्रसंघ ने कहा कि जनमत संग्रह से पहले पाकिस्तान अपने कब्जे वाले कशमीर से अपनी फौजे हटाये और भारत को आवश्यक प्रशासनिक अमला रखने की छूट दे जिससे राज्य में निष्पक्ष रायशुमारी हो सके।

खैर अब यह भूतकाल की बात हो चुकी है और इसके बाद 1972 में भारत-पाक के बीच शिमला समझौता भी हो चुका है जिसके अनुसार कश्मीर मसले को दोनों देश आपस में बैठ कर शान्तिपूर्ण तरीके से सुलझायेंगे। मगर पाकिस्तान का राग कश्मीर बदस्तूर जारी है। यहां के हुक्मरानों ने कश्मीर विवाद को जिन्दा रखने की हरचन्द कोशिश की है और इसे हिन्दू-मुसलमान की समस्या में भी तब्दील करने का प्रयास किया है। इसी सन्दर्भ में पाकिस्तानी फौजी जनरल मुनीर ने यह कहा है कि कश्मीर पाकिस्तान के गले की नस है। दरअसल पाकिस्तान की सियासत ही हिन्दू विरोध और कश्मीर पर चलती है। जनरल मुनीर को शायद यह नहीं पता कि 1971 में उन्हीं की फौज के एक लाख सैनिकों ने घुटने के बल बैठ कर भारत के सैनिक कमांडरों से अपनी जान की भीख मांगी थी।

जनरल मुनीर को यह भी पता होना चाहिए कि भारत की नीयत में जरा भी खोट शुरू से नहीं रहा है और वह पाकिस्तान के साथ दोस्ती चाहता है मगर पाकिस्तान आतंकवाद की खेती करके भारत को डराना चाहता है। उसके सभी दांव-पेच भारतीय सेनाओं के आगे फीके पड़ जाते हैं। जहां तक पाक अधिकृत कश्मीर का सवाल है तो पाक के हुक्मरानों ने इस क्षेत्र की जन सांख्यिकी ही बदल डाली है और खुद मूल रूप से कश्मीरी कम हो गये हैं। इसके बावजूद इस इलाके के लोग पाकिस्तानी हुक्मरानों के खिलाफ आन्दोलन करते रहते हैं। इसकी वजह यह है कि जब यहां के लोग भारत के कश्मीर के बारे में सुनते, देखते या पढ़ते हैं तो उनकी आंखें खुली की खुली रह जाती हैं क्योंकि आम कश्मीरी भारतीय संविधान के तहत अब वे सभी सुविधाएं प्राप्त कर रहे हैं जो किसी अन्य भारतीय राज्य के नागरिक को मिलती हैं।

जनरल मुनीर ने एक समारोह में जिस तरह हिन्दुओं के खिलाफ जहर उगला है वह केवल पाकिस्तान जैसे नामुराद और नाजायज मुल्क के सिपहसालार के लिए ही संभव है। हमारी फौज पूरी तरह अनुशासित फौज है जिसका ध्यान हमेशा अपने कर्तव्य पालन पर ही रहता है। लेकिन लगता है कि जनरल मुनीर को अब यह खतरा साफ दिखाई देने लगा है कि भारत अब उसके कब्जे वाले कश्मीर को उससे खाली कराने के लिए दबाव बना सकता है।

Advertisement
Advertisement
Next Article