फिर चर्चा में हलाल सर्टिफिकेशन
उत्तर प्रदेश में हलाल सर्टिफिकेशन एक बार फिर चर्चा में है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्य में हलाल-प्रमाणित उत्पादों की बिक्री और खरीद पर हाल ही में लगे प्रतिबंध का पुरजोर बचाव किया है। उन्होंने आरोप लगाया कि ऐसे प्रमाणन से जुटाई गई राशि का आतंकवाद, लव जिहाद और धर्मांतरण के लिए दुरुपयोग" किया जा रहा था। आरएसएस शताब्दी समारोह में बोलते हुए आदित्यनाथ ने कहा कि हलाल प्रमाणन सरकारी नियंत्रण से बाहर एक समानांतर, अनियंत्रित प्रणाली बन गई थी। यूपी में हलाल सर्टिफिकेशन को पूरी तरह बंद कर दिया गया है। मुख्यमंत्री के बयान के बाद हलाल सर्टिफिकेट पर राजनीति गरमा गई है। विपक्षी दलों ने निशाना साधा है। ज्ञात हो कि नवंबर 2023 में उत्तर प्रदेश सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर हलाल प्रमाणन वाले खाद्य उत्पादों के उत्पादन, भंडारण, वितरण और बिक्री पर रोक लगा दी थी, जबकि निर्यात के लिए निर्मित उत्पादों को छूट दी गई थी। हलाल सर्टिफिकेशन के खिलाफ लखनऊ में देश का पहला केस दर्ज किया गया था। इसमें 4 के खिलाफ चार्जशीट भी दाखिल की गई थी। हलाल एक अरबी शब्द है, जिसका अर्थ होता है वैध या अनुमति प्राप्त। आमतौर पर यह शब्द मांस के संदर्भ में प्रयोग किया जाता है। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, हलाल तरीके से मांस तैयार करने में जानवर को झटके से नहीं काटा जाता, बल्कि धीरे-धीरे उसकी गर्दन से खून निकाला जाता है। इससे शरीर में ब्लड क्लॉटिंग नहीं होती और पूरा खून बाहर निकल जाता है।
ऐसे मांस को इस्लाम में ‘जिबह’ कहा जाता है और इसी मांस को खाना जायज माना गया है। हालांकि, अब हलाल शब्द सिर्फ मांस तक सीमित नहीं रहा। आजकल खाने-पीने, कॉस्मेटिक और दवाओं तक में यह सर्टिफिकेशन दिया जाता है ताकि यह साबित हो सके कि उनमें कोई हराम तत्व (वर्जित चीज) नहीं है। यानी कि हलाल सर्टिफिकेशन एक तरह का ‘पवित्रता प्रमाणपत्र’ है जो बताता है कि उत्पाद इस्लामिक मान्यताओं के अनुरूप है और सभी धर्मों के लोग इसे बेझिझक इस्तेमाल कर सकते हैं। मुस्लिम धर्मगुरुओं के अनुसार, हलाल सर्टिफिकेशन सिर्फ मांस ही नहीं, बल्कि खाने-पीने, दवाओं और कॉस्मेटिक उत्पादों से भी जुड़ा है। भारत में हलाल सर्टिफिकेशन अनिवार्य नहीं है, बल्कि यह एक स्वैच्छिक प्रक्रिया है, यानी खाद्य निर्माता को इसे लेना आवश्यक नहीं है। भारत में हलाल सर्टिफिकेशन को सरकार द्वारा राष्ट्रीय मानक के रूप में नियंत्रित नहीं किया गया है। भारत में हलाल सर्टिफिकेट जारी करने का कोई सरकारी तंत्र नहीं है। भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफ.एस.एस.ए.आई) केवल खाद्य सुरक्षा से संबंधित मानक तय करता है लेकिन हलाल सर्टिफिकेट नहीं देता। देश में ‘हलाल सर्टिफिकेशन’ की सिर्फ 4 संस्थाएं हैं। चारों इस्लामी हैं।भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय ने ही इन निजी संस्थाओं को ‘हलाल सर्टिफिकेशन’ के लिए अधिकृत किया है। हालांकि इन एजेंसियों की प्रक्रिया को लेकर विवाद भी खड़ा हुआ।
आरोप है कि कई कंपनियां बिना जांच के पैसे देकर सर्टिफिकेट हासिल कर लेती हैं। उत्तर प्रदेश में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां फर्जी हलाल सर्टिफिकेशन के जरिए लोगों को गुमराह किया गया। इसी के बाद सरकार ने इस पर सख्त रुख अपनाते हुए इसे प्रतिबंधित करने का निर्णय लिया। सवाल किया जा सकता है कि ऐसा क्यों? जबकि ‘हलाल सर्टिफिकेशन’ सिर्फ मांस तक ही सीमित नहीं है। हालांकि इस सर्टिफिकेशन का चलन 1974 में मांस के लिए ही हुआ था लेकिन 1993 में अन्य उत्पादों पर भी लागू कर दिया गया। अब दूध, दही, पनीर जैसे डेयरी उत्पाद, बिस्कुट, चिप्स, कोल्ड ड्रिंक, मसाले, तेल सरीखे शाकाहारी उत्पाद, फलियां, मेवे, अनाज और चीनी आदि भी ‘‘हलाल सर्टिफिकेशन’ के दायरे में हैं। यह दलील दी जाती रही है कि उत्पादों में ‘हराम’ अथवा निषिद्ध सामग्री (सूअर का मांस और शराब आदि) का उपयोग तो नहीं किया गया, उसके लिए ‘हलाल प्रमाणन’ अनिवार्य है। बेहद अहम सवाल है कि माचिस, चाय की प्याली, सरिया, सीमेंट, फ्लैट आदि में गैर-इस्लामी सामग्री का कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है? लेकिन उन पर भी यह प्रमाणन अनिवार्य है।
हास्यास्पद है कि स्कूल, अस्पताल और अर्थव्यवस्था को भी ‘हलाल’ करार देने की कोशिशें जारी हैं। कुछ कामयाब भी रही हैं। केंद्र में कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार के दौरान भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने यह विचार दिया था कि बैंकिंग क्षेत्र को भी ‘हलाल सर्टिफिकेशन’ के दायरे में लाया जाए। यह दीगर है कि ऐसा राजनीतिक तौर पर संभव नहीं हो सका। कई दवाएं और सौन्दर्य प्रसाधन के उत्पाद ‘हलाल’ की निगरानी में हो सकते हैं, क्योंकि उनमें गैर-इस्लामी, निषिद्ध सामग्री इस्तेमाल की जाती रही है। यह सार्वजनिक मान्यता भी है। भारत में करीब 3200 उत्पाद ‘हलाल’ के ठप्पे के साथ बिकते हैं। ‘हलाल प्रमाणन’ की अर्थव्यवस्था ही करीब 8 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच चुकी है। कंपनियां इस प्रमाणन के लिए करीब 66,000 करोड़ रुपए खर्च करती हैं। क्या इस पूरी अर्थव्यवस्था का कोई अधिकृत ऑडिट कराया जाता है? इस पूरे प्रसंग में दो अहम सवाल प्रासंगिक हैं। एक, भारत सरकार के पास जांच का सम्यक आधारभूत ढांचा है तो ऐसा सर्टिफिकेशन सरकार या उसकी एजेंसियां क्यों नहीं जारी कर सकतीं? दूसरे, यह लाइसेंस ‘जमीयत उलेमा-ए-हिन्द’, ‘हलाल इंडिया प्रा. लिमि.’, ‘जमीयत उलेमा ए महाराष्ट्र’ और ‘हलाल सर्टिफिकेशन सर्विसेज इंडिया प्रा. लिमि.’ इन चार संस्थाओं को ही क्यों दिए गए? क्या इनके पास ‘हलाल’ जांचने और तय करने की तमाम कसौटियां उपलब्ध हैं? किसी गैर-इस्लामी संस्था को यह लाइसेंस क्यों नहीं दिया जा सकता? वह ज्यादा तटस्थ और ईमानदार साबित हो सकती है।
यह इस्लामी चक्रव्यूह रचा गया है, क्योंकि ओआईसी के अधिकतर इस्लामी देश ‘हलाल सर्टिफिकेशन’ के बिना उत्पाद कबूल ही नहीं करते हैं। ऐसा ईसाइयों, यहूदियों, जैन, बौद्ध, सिख समुदायों के लिए तो विशेष प्रावधान नहीं किए गए हैं। सूअर का तो क्या, शाकाहारी समुदाय किसी भी प्राणी का वध करके उसका मांस नहीं खाते हैं। उनके लिए तो उत्पादों पर विशेष संकेत छपने चाहिए। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि हलाल प्रमाणन नेटवर्क ने बिना किसी केंद्रीय या राज्य सरकार के प्राधिकरण की मान्यता के लगभग 25 हजार रुपये कमाए हैं। उन्होंने दावा किया, 'इस सारे पैसे का दुरुपयोग आतंकवाद, लव जिहाद और धर्मांतरण के लिए किया जाता है।' सीएम योगी ने कहा कि बलरामपुर में मतांतरण में लिप्त छांगुर नाम के व्यक्ति विदेशों से फंड लेने के साथ ही हलाल सर्टिफिकेशन के नाम पर मिले धन का उपयोग अनैतिक कार्यों में कर रहा था। मुख्यमंत्री सार्वजनिक मंच से बयान दे रहे हैं तो उनके तर्क के पीछे ठोस कारण भी होंगे। हालांकि विपक्ष ने उनके इस दावे पर सवाल भी उठाए हैं। संभल के समाजवादी पार्टी के सांसद जियाउर्रहमान बर्क ने मुख्यमंत्री के बयान हलाल सर्टिफिकेशन के जरिए करीब 25 हजार करोड़ रुपये कमाए गए और उस धन का इस्तेमाल आतंकवाद, लव जिहाद और धर्मांतरण में किया गया। सांसद बर्क ने मुख्यमंत्री से इस दावे के सबूत मांगे हैं। मुख्यमंत्री योगी ने गंभीर विषय की ओर देश का ध्यान आकर्षित किया है। राजनीति और बयानबाजी से इतर एक बात साफ है जो कार्य कानून सम्मत न हो उस पर प्रतिबंध लगना चाहिए। वहीं आतंकवाद, लव जिहाद और धर्मांतरण में लिप्त लोगों और देश की सुरक्षा, शांति और सौहार्द को नष्ट करने वालों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई और दण्ड की व्यवस्था होनी चाहिए।