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फिर चंडीगढ़ का बखेड़ा

पंजाब के लिए राजधानी चंडीगढ़ और सतलुज-यमुना लिंक नहर के पानी का मसला काफी भावनात्मक रहा है।

01:28 AM Apr 04, 2022 IST | Aditya Chopra

पंजाब के लिए राजधानी चंडीगढ़ और सतलुज-यमुना लिंक नहर के पानी का मसला काफी भावनात्मक रहा है।

फिर चंडीगढ़ का बखेड़ा
पंजाब के लिए राजधानी चंडीगढ़ और सतलुज-यमुना लिंक नहर के पानी का मसला काफी भावनात्मक रहा है। सूखी पड़ी सतलुज-यमुना लिंक नहर को लेकर कई बार बवाल उठ चुका है और अब पंजाब में आप सरकार के सत्ता में आने के बाद चंडीगढ़ पंजाब को देने का मसला फिर उठ चुका है। भगवंत मान सरकार ने पंजाब विधानसभा में चंडीगढ़ तत्काल पंजाब को हस्तांतरित करने की मांग संबंधी प्रस्ताव पारित कराया है। इस ​विधेयक को भाजपा ने छोड़ कर सभी दलों ने समर्थन किया है। चंडीगढ़ का मुद्दा उछालने के पीछे एक कारण यह भी है कि पंजाब में मान सरकार बनते ही गृहमंत्री अमित शाह ने घोषणा कर दी कि केन्द्र शासित चंडीगढ़ के सभी कर्मचारियों-अधिकारियों को केन्द्र सरकार की सेवा नियमों के तहत लाया जाएगा। अभी इन कर्मचारियों और अधिकारियों पर पंजाब सर्विस रूल लागू होता है। यदि ड्यूटी पर केन्द्रीय सेना के नियम लागू होते हैं तो कर्मचारियों का काफी फायदा होता है। यह घोषणा आप सरकार को नागवार गुजरी और उसने राजधानी चंडीगढ़ का मुद्दा उछाल दिया। हरियाणा के बनने के समय से ही राजधानी चंडीगढ़ का मसला लटका हुआ है। जहां तक पंजाब विधानसभा में प्रस्ताव पारित किए जाने का सवाल है, इसका कोई खास महत्व नहीं है।
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पंजाब​ विधानसभा द्वारा अब तक सात प्रस्ताव पारित किए जा चुुके हैं। 18 मई 1967 को आचार्य पृथ्वी सिंह आजाद एक प्रस्ताव लेकर आए थे। चौधरी बलवीर सिंह 19 जनवरी, 1970 को एक प्रस्ताव लेकर आए जबकि सुखदेव सिंह ढिल्लों ने 7 सितम्बर, 1978 को प्रकाश सिंह बादल की सरकार के दौरान प्रस्ताव लाया गया था। बलदेव सिंह मान द्वारा 31 अक्तूबर, 1985 को सुरजीत सिंह बरनाला की सरकार के दौरान एक समान प्रस्ताव लाया गया था। ओम प्रकाश गुप्ता द्वारा 6 मार्च, 1986 काे प्रस्ताव लाया गया। 23 दिसम्बर 2014 को गुरदेव सिंह झूलन द्वारा बादल की सरकार के दौरान यह प्रस्ताव लाया गया था। बीते शुक्रवार (1 अप्रैल) को भगवंत मान साठ साल के अंतराल के बाद यह संकल्प लेकर आए। एक नवम्बर 1966 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की कलम से पंजाब पुनर्गठन अधिनियम के जरिये हरियाणा राज्य अस्तित्व में आया। पंजाब के पहाड़ी क्षेत्र हिमाचल में मिला दिए गए। केन्द्र ने चंडीगढ़ को केन्द्र शासित प्रदेश घोषित किया। इस तरह चंडीगढ़ पंजाब और  हरियाणा दोनों ही राजधानी बन गई और वहां की सम्पत्ति को राज्यों के बीच 60-40 अनुपात में बांटा गया था। इंदिरा गांधी ने घोषणा की थी​ कि हरियाणा को अपनी राजधानी मिलेगी। 29 जनवरी, 1970 को केन्द्र ने घोषणा की थी कि चंडीगढ़ राजधानी परियोजना क्षेत्र समग्र रूप से पंजाब को मिलना चाहिए। तब पंजाबी सूबा आंदोलन के नेता संत फतेह ​सिंह ने चंडीगढ़ पंजाब को देने के लिए आंदोलन चलाया। जब उन्होंने आत्मदाह की धमकी दी तो इंदिरा गांधी ने फैसला लेते हुए कहा कि हरियाणा पांच साल तक चंडीगढ़ में दफ्तर और आवासों को प्रयोग करें, इस दौरान वह अपनी राजधानी बना लें। केन्द्र ने हरियाणा को 10 करोड़ की ग्रांट भी दी थी। जब इस दिशा में कुछ नहीं हुआ तो अकाली दल ने पंजाब पुनर्गठन पर असंतोष जताते हुए आंदोलन शुरू किया। अकालियों ने चंडीगढ़ पंजाब को देने, सतलुज-यमुना का पानी देने समेत राज्य को और अधिक अधिकार देने की मांग को लेकर आंदोलन छेड़ा।  आंदोलन अकालियों के हाथ से निकलता गया और आंदोलन की कमान उग्रवादियों के हाथों में पहुंच गई। पहले ऐसा लगता था कि यह मांगें केवल अकालियों की हैं। तब मेरे पूजनीय परदादा लाला जगत नारायण ने अकाली नेतृत्व से कहा था कि वह अपनी मांगों को अकालियों की नहीं बल्कि समग्र पंजाबियों की मांगें बनाएं क्योंकि उनकी मांगों में कुछ ऐसी मांगें थीं जो उनके पंथक एजैंडे से जुड़ी हुई थीं। जब आंदोलन उग्र रूप धारण कर गया तो लाला जी चुप नहीं बैठे और उन्होंने आतंकवादी ताकतों का डटकर विरोध करना शुरू कर दिया। इसी कारण लाला जी और ​फिर बाद में पूजनीय दादा जी रमेश चन्द्र जी को शहादत देनी पड़ी।  1982 में अकाली नेतृत्व ने 1973 के आनंदपुर साहिब प्रस्ताव लागू करने के मकसद से जरनैल सिंह भिंडरावाला काे साथ लेकर धर्म युद्ध मोर्चा लगाया। तमाम मुद्दों को हरियाणा और ​हिमाचल के पंजाबी भाषी क्षेत्र पंजाब को सौंपने आैर चंडीगढ़ को केवल पंजाब की राजधानी बनाने की मांग की। पंजाब में आतंकवाद का बोलबाला हो गया। एक ही समुदाय के लोगों की नृशंसा हत्याएं की जाने लगीं। खालिस्तान की मांग ने उछाल ले लिया। समय बदलता गया, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 24 जुलाई, 1985 को अकाली नेता संत हरचंद सिंह लौंगोवाल से पंजाब समझौता किया। उस समझौते में भी चंडीगढ़ पंजाब को देने पर सहमति हुई।
26 जनवरी,1986 को चंडीगढ़ पंजाब को हस्तांरित करने की तारीख भी तय हो चुकी थी लेकिन कुछ दिनों  में आतंकवादियों द्वारा संत हरचंद सिंह लौंगोवाल की हत्या कर दी गई थी। वादों के बावजूद चंडीगढ़ पंजाब को नहीं सौंपा गया। पंजाब ने आतंकवाद के काफी काले​ दिन देखे हैं, दो दशक तक संघर्ष करने के बाद पंजाब में शांति स्थापित हुई। इसके लिए  हजारों लोगों को जानें गंवानी पड़ी। अब फिर चंडीगढ़ ​मसले पर पंजाब और हरियाणा आमने-सामने है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का कहना है कि चंडीगढ़ पंजाब और हरियाणा की राजधानी रहेगी। हरियाणा सरकार ने इस मुद्दे पर विशेष सत्र बुला लिया है। केन्द्र द्वारा भाखड़ा-व्यास प्रबंधन बोर्ड में होने वाली नियुक्तियों में भी फेरबदल किया है। पहले इसमें पंजाब और हरियाणा की नियुक्तियां होती थी। इस बोर्ड ने अब भर्तियों को अपने हाथ में ले लिया  है। पंजाब सरकार को यह कदम अपने अधिकारियों पर कुठाराघात लगा। अब सवाल यह भी है कि आप पार्टी भविष्य में जब हरियाणा विधानसभा चुनावों में उतरेगी तब उसका चंडीगढ़ को लेकर स्टैंड क्या होगा? चंडीगढ़ और एसवाईएल के गड़े मुद्दों को उखाड़ कर उछालना क्या उचित या अनुचित है, इसका फैसला करना आसान नहीं है। फिलहाल जरूरत है कि फिर से तनाव न पैदा किया जाए बल्कि राज्य और केन्द्र समन्वय बना कर काम करें। मुठभेड़ की राजनीति से कोई फायदा नहीं होता। सीमांत राज्य होने के कारण पंजाब हमेशा ही संवेदनशील रहा है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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