For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

ये बौने कद के महाबली...

सत्ता में बौने कद के नेताओं की दास्तान…

05:00 AM Jun 23, 2025 IST | Dr. Chander Trikha

सत्ता में बौने कद के नेताओं की दास्तान…

ये बौने कद के महाबली

अमानुल्लाह अली खामेनेई, पुतिन, नेतन्याहू, अमेरिकी महाबली ट्रम्प, इन में से किसी को भी मानवीय मूल्यों, संवेदनशीलता, कल्चर, सभ्य समाज के तकाजे, इन बातों से कुछ लेना-देना नहीं। इन सबको लगता है वे महाबली हैं। अपराजेय हैं। अमर हैं, अजर हैं। मगर सबका अतीत अदना सा रहा है। खामेनेई के पूर्वज भारतीय नगर बाराबंकी के मौलवी परिवार से संबंध रखते हैं। एक बार मक्का-मदीना गए थे, वहीं से लौटते हुए ईरान के ही एक खमैनी नामक शहर में बस गए थे, तब से बाराबंकी का यह मौलवी परिवार सुर्खियों में आने लगा था। शुरूआती दौर में व स्वयं सार्वजनिक रूप से कबूल कर चुके थे कि वह न तो इस्लामी सिद्धांतों के बहुत बड़े विद्वान हैं और न ही पर्याप्त रूप से ईरान के बहुत योग्य ‘सेमेनेरियन’ ही हैं।

मगर जब ईरान के शहंशाह आर्यमेहर रजा पहलवी के विरुद्ध जन-विद्रोह हुआ तो वर्ष 1989 में यह शख्स खामेनेई अपने तीखे बगावती तेवरों और इस्लामी पैरोकार होने की वजह से एकाएक प्रथम पंक्ति में खड़ा हो गया और तब से लेकर अब तक इस शख्स को पहली पंक्ति से हटाने वाली कोई चुनौती नहीं मिली। रूसी राष्ट्रपति पुतिन का अतीत भी कोई विशेष उजला नहीं रहा। रूस में जार-शाही के खिलाफ विद्रोह के दिनों में उनका जन्म एक ऐसे ट्रक में हुआ था जिसमें युद्धभूमि से मृतकों की लाशों व गंभीर रूप से घायल लोगों को लाया जा रहा था। शवों के बीच उसकी घायल मां ने जिस बच्चे को जन्म दिया था उसे जन्म घुट्टी के रूप में ही चीखोपुकार का माहौल मिला।

बाद में उसकी परवरिश भी वैसे ही माहौल में हुई। टालस्टाय, गोर्की, तुर्गनेव और दास्त्यावस्की के देश का यह मामूली फौजी धीरे-धीरे अपने देश के गुप्तचर संगठन का मुखिया बन गया और फिर देश का मुखिया बनने के बाद अपनी सत्ता को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए उसने अपने एक-एक विरोधी को मारा या मरवा डाला। अब उसे फिलहाल कोई चुनौती नहीं है मगर छोटे से देश यूक्रेन से उलझा तो पता चला कि वह भी विश्वविजेता नहीं है। यूक्रेन के एक-एक बड़े अस्पताल व एक-एक विश्वविद्यालय को भले ही पुतिन ने नेस्तनाबूद कर डाला, मगर यूक्रेन के जेलेंस्की के हौसले के आगे पुतिन की दाल अभी भी नहीं गल पा रही। यूक्रेन भी कभी रूस के पुराने अवतार सोवियत संघ का ही एक हिस्सा था मगर अब वही देश सबसे बड़ी चुनौती है।

यही स्थिति नेतन्याहू की है। शुरूआत एक अदना यहूदी नेता के रूप में और अब वह लगभग पूरे इस्लामिक-विश्व के लिए अपने बौने कद के बावजूद एक खतरनाक चुनौती बना हुआ है। भौगोलिक आकार में सबसे छोटा देश होने के बावजूद उसने अरब देशों की चूलें अतीत में भी हिला दी थी और अब भी वह सबसे खतरनाक चुनौती बना हुआ था। अमेरिकी महाबली ट्रम्प ने बार-बार यह सिद्ध किया है कि वह एक चतुर व्यापारी है और उसकी किसी भी बात पर भरोसा नहीं किया जा सकता। विश्व में उसके दर्जनों ‘टॉवर’ हैं। भारत में भी गुरुग्राम व पुणे में उनकी सम्पत्तियां हैं। अब भी वह कभी इजराइल के साथ एक अभिन्न मित्र की तरह खड़ा होता है तो कभी अचानक पांव पीछे खींच लेता है। कभी पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष को लंच पर बुलाता है तो कभी भारतीय प्रधानमंत्री को निमंत्रण भेजने लगता है।

अपने ही देश में वह महामानव की भूमिका भी निभाता है और खलनायक की भी भूमिका निभा लेता है। यानी कमोबेश पूरा विश्व ऐसे अदने व बौने लिलीपुटियन नेताओं से घिरा है जो अपने अदनेपन और छोटी सोच के बावजूद इस समय गुलिवर बने हुए हैं। इनमें से किसी को भी इस बात की चिंता नहीं है कि आने वाले इतिहास में उनका नाम काले अक्षरों या खूनी इबारत में दर्ज होगा या स्वर्णिम अक्षरों में। उन्हें इस बात का भय भी सताने लगा है जिस पल भी वे कमजोर दिखाई दिए, मारे जाएंगे। यह भी आशंका है कि उनके अपने ही लोग उनके कातिल बन खड़े हों।

ऐसे माहौल में हम कला, साहित्य, संगीत, संस्कृति व जीवन-मूल्यों के परचम कहां फहरा पाएंगे? लोक कल्याण, दया, करुणा भाव, ज्ञान-विज्ञान इन सबके लिए खामेनेई, पुतिन, नेतन्याहू या ट्रम्प के दिलोदिमाग में कोई भी कोना नहीं है। हम भारत के लोग इन अर्थों में भाग्यशाली हैं कि अपने संस्कारों, कलाओं व करुणा के ज्योति पुंजों को याद तो कर लेते हैं। मगर चुनौतियां, शोरोगुल, अनैतिक आचरण व कड़ुवाहटें हमारे यहां भी कम नहीं हैं। कभी-कभी हम भी खामेनेई, पुतिन, नेतन्याहू, ट्रम्प की नक्लें उतारने लगते हैं मगर हमारे अतीत के संस्कारों की जड़ें इतनी गहरी हैं कि हम ज्यादा समय भटकाव में नहीं जा सकते।

हमारे लिए पर्यावरण, प्रगति, विकास व ज्ञान-विज्ञान की बातें भी कम महत्वपूर्ण नहीं हैं। मगर वर्तमान विश्व संस्कृति के प्रदूषण से हम कहां तक व कब तक बच पाएंगे, यह अभी अस्पष्ट है। हमें मौजूदा विश्व संस्कृति से थोड़ा हटकर भी चलना होगा और बचकर भी। इसके लिए सबसे पहली चुनौती पड़ाेस से किन्हीं सुखद आवाजों की है। यह कैसे होगा? कब होगा? कुछ तय नहीं है।

Advertisement
Advertisement
Author Image

Dr. Chander Trikha

View all posts

Advertisement
×