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ये वादियां ये ​फिजाएं बुला रही है...

मैं 1981 में आखिरी बार कश्मीर गई थी। उससे पहले हर साल अपने माता-पिता के साथ गर्मी की छुट्टियों में कश्मीर और वैष्णो माता देवी के दर्शन करने जाती थी

01:38 AM Sep 10, 2023 IST | Kiran Chopra

मैं 1981 में आखिरी बार कश्मीर गई थी। उससे पहले हर साल अपने माता-पिता के साथ गर्मी की छुट्टियों में कश्मीर और वैष्णो माता देवी के दर्शन करने जाती थी

मैं 1981 में आखिरी बार कश्मीर गई थी। उससे पहले हर साल अपने माता-पिता के साथ गर्मी की छुट्टियों में कश्मीर और वैष्णो माता देवी के दर्शन करने जाती थी परन्तु शादी के बाद अश्विनी जी और अपने सास-ससुर के साथ अगस्त 1981 में मैं अमरनाथ यात्रा और कश्मीर गई। बहुत यादगार यात्रा थी।  शंकराचार्य मंदिर भी गए और मैं मन्नत भी मांग कर आई परन्तु उसके बाद पंजाब में आतंकवाद, लाला जी और रमेश जी का शहीद होना, फिर कश्मीर में आतंकवाद, पत्थरबाजी। मैं सोच ही नहीं सकती थी कि अब मैं कभी कश्मीर जाऊंगी और हमेशा दिल में रहता था कि आदित्य की मन्नत भी उतारनी है। मुझे बहुत बार बुलावा आया वहां के विजयधर और उनकी पत्नी जो मुझे अपनी बहन मानते हैं, जो वहां डीपीएस स्कूल चलाते हैं और अब उन्होंने थियेटर भी बनाया है। उन्होंने बहुत बार आमं​त्रित किया, क्योंकि वो ऐसे शख्स हैं जो वहां से कभी भी नहीं हिले। चाहे कश्मीर में कितने भी हालात बिगड़े। यही नहीं वहां की स्टेट टैक्स कमिश्नर रश्मि सिंह भी मेरी मित्र हैं। उन्होंने भी कई बार निमंत्रण दिया कि कश्मीर में सब ठीक-ठाक है, आप जरूर आओ परन्तु कहते हैं न हर बात का समय लिखा होता है।
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मेरे राखी भाई कुलभूषण आहूजा और उनकी पत्नी ने वहां पांच दिन का प्रोग्राम बनाया जो मेरे लिए मुश्किल था परन्तु अपनी प्यारी सहेली ज्योत्सना सूरी के साथ 2 दिन के लिए उनके साथ शामिल हुई। वहां पहुंचते ही जो वहां का नजारा देखा सारा डर गायब हो गया। इतनी शांति और खूबसूरती देखने लायक थी। मैं ललित होटल में ज्योत्सना के साथ उसी की मेहमान थी। उनके पूजा हट में उनके साथ ठहरी उनकी मेहमान नवाजी की मैं हमेशा कायल हूं। ज्योत्सना सूरी अपने आप में महिला सशक्तिकरण की मिसाल हैं, जिन्होंने अपने पति के बाद उन्हीं के नाम पर 6 से 16 होटल बनाए। यही नहीं वह स्पेशल चिल्ड्रन के लिए बहुत काम करती हैं। उन्हें आत्मनिर्भर बना रही है, वो अपने आप में चलता-फिरता (संस्थान) इंस्टिट्यूशन है।
क्या खूबसूरत होटल है। यह पहले राजा गुलाब सिंह का महल था। फिर ओबेराय होटल बना। फिर मुझे याद है 1998 में ललित सूरी जी ने इसे लिया परन्तु इस पर जो मेहनत ज्योत्सना सूूरी जी ने की है वो देखने लायक है। उन्होंने हैरीटेज यानी पुरानी वस्तुओं की अवधारणा पर कई स्थानों पर लकड़ी के फर्श को सम्भाल कर संजोया है और उसको नए आधुनिक तरीके के साथ सैट किया है, देखने लायक है। वहां पर कई ऐसे स्थान हैं जहां बड़ी मशहूर फिल्मों की ​शूटिंग हुई है। वहां शम्मी कपूर का लगाया हुआ वृक्ष भी है, वो स्थान भी है जहां या हूं चाहे कोई मुझे जंगली कहे (जंगली फिल्म) की शूटिंग हुई। इसी होटल में सिलसिला फिल्म की शूटिंग, कभी-कभी और बहुत सी पुरानी फिल्मों की शूटिंग हुई है। क्योंकि मेरी नजर में ऐसा कोई दूसरा होटल कश्मीर में नहीं जिसमें सब कुछ है। सेब, चीड़, चेरी के वृक्ष हैं। मंगोलिया ट्री हैं, कमरे प्रेजीडेंट क्वीन स्यूट के साथ-साथ कई विला बनी हुई हैं, जिसमें ठहरना एक अलग ही स्वर्ग जैसा अनुभव है। ज्योत्सना जी की नजर में होटल की एक-एक चीज है। सबसे बड़ी बात खाना बड़ा स्वादिष्ट है। उन्होंने हमें कश्मीरी खाना भी खिलाया। वहां का स्टाफ और मेहमान नवाजी लाजवाब है।
यही नहीं कुलभूषण भाई साहब ने जो हमें दिखाया वो तो देश के सारे बिजनेसमैन के लिए एक उदाहरण है। यानी महिला सशक्तिकरण का उदाहरण है। उन्होंने वहां लगभग 5000 महिलाओं को काम दिया है, जो हाथ से शालों की कढ़ाई करती हैं और उन्हें रोजगार मिल रहा है। हम उस गांव में गए जहां उन्होंने व्यवस्था की है। महिलाओं को काम करते देखा, उनसे बातचीत की। वो इतनी खुश थीं कि उनको रोजगार मिला है और वो अपने परिवार को पाल रही हैं, बच्चों को पढ़ा रही हैं।
हमारे साथ विमल पान मसाले वाले थे, जो वहां पर अमरनाथ मंदिर की तरह मंदिर बनवा रहे हैं। गर्ग साहब बात-बात पर कविता बना देते थे और उनकी प्यारी सी पत्नी  मंजू गर्ग अमरनाथ की ट्रस्टी हैं। यही नहीं मैनकाइंड के मालिक दोनों पति-पत्नी हमारे साथ थे। क्या पुराने गीत गाते हैं। जुनेजा जी बड़े-बड़े सिंगर को मात देते हैं। उनकी सुन्दर सी पत्नी पूनम का जन्मदिन हमने वहां पर डोगे (मोटरबोट) मनाया, क्या नजारा था। वहां पर भी ललित होटल की व्यवस्था थी। खाना बहुत मजेदार था। यशोदा हास्पिटल के प्रेम अरोड़ा आैर उनकी पत्नी उपासना वर्षा गोयल और वरिन्द्र गोयल, अनिल और मीना, मनोज और अलका अरोड़ा ने क्या रौनक लगाई।
कुल मिलाकर मेरे लिखने का भाव है कि वहां जिन्दगी नार्मल है, शांति है, प्यार मोहब्बत की खुशबू है। वहां के लोग खुश हैं कि रोजगार मिल रहा है। टूरिस्ट आ रहे हैं। लोगों को रोजगार मिल रहा है। यहां तक कि मैं और ज्योत्सना सुबह-सुबह उठकर शंकराचार्य मंदिर के दर्शन कर आए। मैंने अपनी मन्नत उतार ली। 250 के लगभग सीढ़ियां जो मुझे मुश्किल लग रही थीं परन्तु ज्योत्सना जो मेरी सहेली तो है ही परन्तु बड़ी बहन की तरह बहुत ख्याल रखती हैं। 20 सीढ़ी चढ़े, ​फिर 5 मिनट आराम, फिर ऐसे करते मालूम ही नहीं पड़ा कैसे दर्शन हो गए। ज्योत्सना तो हर बार जाती हैं। मेरे लिए मुश्किल था परन्तु उसने और उसके स्टाफ विशेषकर निखिल चन्द्रा व शुक्ला जी ने मेरे लिए बहुत आसान कर दिया।
फिर शाम को बारी आई उस शख्स से मिलने की जिनके कारण या यूं कह लो जिसकी मेहनत, सूझबूझ से कश्मीर में शांति बहाल है, जो निडर, निर्भीक और देश को पूरी तरह समर्पित हैं, वो हैं वहां के शानदार व्यक्तित्व वाले उपराज्यपाल श्री मनोज सिन्हा जो एक सिविल इंजीनियर हैं, ​जिन्होंने वाराणसी से बी-टेक और एम-टेक आईआईटी (बीएचयू) से की है। यूपी से 3 बार एमपी रहे। अब उन्होंने शानदार तिरंगा यात्रा ​निकाली। उनकी दृढ़ शक्ति और इच्छा वहां महसूस होती है। उनसे मैंने पूछा कि इतने गवर्नर आए पर जो काम आपने कर दिखाया उसे लोग सदियों तक याद करेंगे कि देश की एकता और अखंडता की तरफ कोई आंख उठाकर नहीं देख सकता, तो उन्होंने झट से जवाब दिया यह कोई राकेट साइंस नहीं है वो सारा श्रेय प्रधानमंत्री मोदी जी की दृढ़शक्ति को देते हैं। उन्हीं के दिशा-निर्देश और मजबूती से सारा काम हो रहा है। फैसले और नीतियां उनकी हैं और वो उसको जमीन पर उतार रहे हैं। पत्थरबाजी खत्म हुई है। युवकों को सही दिशा में लाया जा रहा है। 
मैं नतमस्तक हुई गवर्नर और उनकी अदम्य इच्छाशक्ति पर, उनकी मेहनत, दृढ़ शक्ति पर की उन्होंने कश्मीर में अमन-शांति बहाल की, न तो वहां कोई आतंकवाद, न पत्थरबाजी है और उन्होंने बहुत सी बातें बताईं की बड़े-बड़े अस्पताल आ रहे हैं। कारखाने लग रहे हैं। उन्होंने लोकल व्यापारियों को प्रमोट किया। ज्यादा से ज्यादा नौकरियों को सर्जित किया। सुरक्षा बलों का और स्थानीय लोगों का हौंसला बढ़ाया। लोगों को रोजगार मिलेगा जो अमन-शांति के लिए नींव का पत्थर है। काश! देश का हर गवर्नर ऐसा हो।
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