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यह नया कश्मीर है

नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी को लेकर देशभर में हुई हिंसा में कई लोगों के मारे जाने के बीच जम्मू-कश्मीर से आई खबर दिल को सकून दे गई।

04:05 AM Dec 24, 2019 IST | Ashwini Chopra

नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी को लेकर देशभर में हुई हिंसा में कई लोगों के मारे जाने के बीच जम्मू-कश्मीर से आई खबर दिल को सकून दे गई।

नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी को लेकर देशभर में हुई हिंसा में कई लोगों के मारे जाने के बीच जम्मू-कश्मीर से आई खबर दिल को सकून दे गई। जो कश्मीर घाटी आतंकवादी वारदातों के लिए बदनाम रही, वहां शांति की बयार बहने लगी है। पूरे देश में जब हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर राजनीति की जा रही हो, उस समय घाटी का अवाम अमन चैन की जिन्दगी को जीने का पैगाम दे रहा है। 
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घाटी के लोग धर्म के नाम पर लड़ने-लड़ाने की बजाए विकास को प्राथमिकता दे रहे हैं। श्रीनगर के कमरवारी को नूरबाग से जोड़ने के लिए पुल का निर्माण किया जाना है। इस परियोजना को 2002 में मंजूरी दी गई थी। इस परियोजना के तहत झेलम नदी पर दस करोड़ की लागत से 166 मीटर लम्बा डबल लेन पुल बनाया जाना था लेकिन इस कार्य में 18 बाधायें थीं। परियोजना के मार्ग में फायर स्टेशन, 16 आवासीय और व्यावसायिक भवन और 40 वर्ष पुरानी अबु नुराव मस्जिद तथा ऐतिहासिक गुरुद्वारा आ रहा था। 
पुल निर्माण के लिए इन सभी को राजी करना एक बड़ा काम था। प्रशासन की तरफ से बातचीत की जा रही थी। इसी माह परियोजना पर काम शुरू किया गया तो 72 वर्ष पुराने गुरुद्वारे दमदमा साहिब को हटाने पर सहमति बन गई थी। अब पुल निर्माण के लिए मुस्लिम समाज भी पुरानी मस्जिद हटाने को सहमत हो गया है। श्रीनगर के उपायुक्त डा. शाहिद इकबाल चौधरी लगातार मस्जिद हटाने के लिए प्रबंधन समिति के सदस्यों से बातचीत कर रहे थे। अंततः उन्हें सफलता मिल ही गई। 
झेलम नदी पर पुल निर्माण न हो पाने से लोग कई वर्षों से परेशानी झेल रहे थे। धर्म कोई भी हो हर धर्म में आम लोगों की सहूलियत और उनकी तरक्की को ही सबसे अधिक अहमियत दी जाती है। धर्म को विकास की राह में आना भी नहीं चाहिए। सबसे बड़ी इबादत खुदा के बंदों की सेवा है। मानव सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है। मस्जिद कमेटी ने पुल निर्माण के ​लिए मस्जिद की जमीन देने पर सहमति प्रकट कर दी है। 
पु​ल निर्माण के साथ-साथ दरिया के दोनों किनारों पर बाढ़ ​संरक्षण और सौन्दर्यीकरण के काम पूरे किए जाएंगे। सटे बाजारों की सड़कों की मरम्मत की जाएगी और पूरे इलाके में स्मार्ट स्ट्रीट लाइटें लगाई जाएंगी, जिसमें आम लोगों को सुविधा होगी साथ ही पूरा क्षेत्र स्मार्ट एरिया में तबदील हो जाएगा। राजमार्ग के विस्तार में गुरुद्वारा दमदमा साहिब भी था। गुरुद्वारा का मामला 2015 में कोर्ट में गया था लेकिन अब सिख समाज भी गुरुद्वारे की जमीन देने को तैयार हो चुका है। 
जम्मू-कश्मीर में ​सिख और मुस्लिम समाज ने यह फैसला कर व केवल कश्मीरियत की मिसाल पेश की है और पूरे देश को संदेश दिया है कि विकास के लिए धर्मस्थल कोई बाधा नहीं बनेंगे। प्रशासन मस्जिद और गुरुद्वारे के लिए वैकल्पिक जमीन देगा और पुनर्निर्माण के लिए मदद भी करेगा। इससे यह भी सिद्ध हुआ है कि प्रशासनिक कौशल से की गई बातचीत से छोटी-बड़ी समस्याओं का समाधान हो सकता है। केवल सूझबूझ से लोगों को विश्वास में लिया जा सकता है।
मुस्लिम देशों में भी विकास के लिए मस्जिदों को हटाया जाता है। दुुबई के शेख राशिद ने सन् 1975-1980 के मध्य राशिद अस्पताल का विस्तार करने के लिए उसके निकट स्थित जामा मस्जिद के मैदान को मस्जिद सहित हटाकर लगभग एक किलोमीटर दूर पहुंचा दिया था। सउदी अरब में सामाजिक आवश्यकताओं के लिए मस्जिदों को खोदा जाता रहा है। सौ फीसदी मुस्लिम हुकूमत वाले सउदी अरब में मस्जिदें ही नहीं खोदी जाती, बल्कि पुरानी कब्रों को खोद कर उनका स्थानांतरण भी किया जाता है। 
पाकिस्तान में तो पाकिस्तान सरकार ने सिन्ध प्रान्त के सक्कूर जिला की पन्नो आकिल तहसील के 300 गांवों की लगभग 300 मस्जिदों को एक विशाल सैनिक छावनी बनाने के लिए ध्वस्त कर दिया था। भारत में अयोध्या मसले पर हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर की गई सियासत के चलते मुकद्दमे 70 वर्षों तक अदालतों में भटकते रहे। दंगों में कितने ही लोगों की जान चली गई। 2019 में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद मामले का निपटारा हुआ है। काश इस फैसले का समाधान मिल-बैठकर बहुत पहले कर लिया जाता तो इतना विलम्ब होता ही नहीं। 
मुस्लिम समाज को चाहिए कि वह सरकार से फैसले के मुताबिक जमीन लेकर मस्जिद के साथ-साथ अस्पताल और स्कूल भी बनवाये ताकि सामुदायिक सेवा की जा सके। हिन्दू धर्माचार्य भी धर्म स्थानों को सामुदायिक सेवा केन्द्रों के रूप में परिवर्तित करें तो यही सबसे बड़ी भगवान की सेवा होगी। नए कश्मीर से मिला संदेश विकास और सद्भाव के ​लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
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