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ये जो सिक्किम के ‘सुपर सीएम’ हैं

रंग बदलती सियासत को अब नौकरशाहों ने भी अपनी अंगुलियों पर नचाना सीख..

10:15 AM Apr 19, 2025 IST | त्रिदीब रमण

रंग बदलती सियासत को अब नौकरशाहों ने भी अपनी अंगुलियों पर नचाना सीख..

ये जो सिक्किम के ‘सुपर सीएम’ हैं

’कस कर मुट्ठियों में जकड़ लो इस सूरज को, किरणें इसकी शरारतें करने लगी हैं

कभी तेरी अक्स थी परछाईयां, अब देखो कैसे यह तेरे कद से भी लंबी होने लगी हैं’

रंग बदलती सियासत को अब नौकरशाहों ने भी अपनी अंगुलियों पर नचाना सीख लिया है। कभी सिक्किम के चीफ सैक्रेटरी रहे वरिष्ठ आईएएस अफसर विजय भूषण पाठक अपने रिटायरमेंट के बाद भी राज्य के ‘सुपर सीएम’ की तरह एक्ट करते नज़र आते हैं। इनके बारे में माना जाता है कि इनके इशारे के बगैर राज्य में एक पत्ता भी नहीं हिलता। राज्य के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग की तो इनमें जैसे जान ही बसती है, सो पिछले वर्ष 26 अगस्त को सीएम तमांग जब पीएम मोदी से मिलने दिल्ली पहुंचे तो मुलाकात का एजेंडा था कि राज्य के 50वें स्थापना दिवस पर प्रधानमंत्री को गंगटोक आमंत्रित करने का। कहते हैं पीएम मोदी ने भी इस साल मई में आहूत होने वाले सिक्किम के 50वें स्थापना दिवस समारोह में उपस्थित रहने की हामी भर दी थी, पर तब मुख्यमंत्री जी का पीएम से विशेष आग्रह इस बात को लेकर था कि ’उनके तत्कालीन चीफ सैक्रेटरी को एक साल का एक्सटेंशन दे दिया जाए ताकि 50वें स्थापना दिवस समारोह को भव्य तरीके से मनाया जा सके।’ आदत के अनुरूप पीएम ने सीएम साहब से कोई पक्का वादा तो नहीं किया बस इतना कह दिया कि ’देखेंगे’। इसके बाद दिल्ली ने सीएम साहब को इत्तला भेजी कि पाठक को तीन महीने का एक्सटेंशन दिया जा रहा है। सीएम निराश थे, पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी, उन्होंने एक नई जुगत भिड़ा दी। सीएम साहब ने पाठक जी के लिए एक नई पोस्ट सृजित कर दी ’एडमिनिस्ट्रेटिव अफसर’ की और उन्हें भारत सरकार के कैबिनेट सैक्रेटरी के बराबर का दर्जा दे दिया गया (सनद रहे कि यह एक तरह से कैबिनेट मंत्री का दर्जा है)। सो आनन-फानन में राज्य के नौकरशाहों में भी यह संदेश चला गया कि ’जो भी अहम निर्णय लेने हैं, वह पाठक जी से पूछ कर ही लेने हैं।’

सूत्र बताते हैं कि राज्य के मौजूदा चीफ सैक्रेटरी भी पाठक जी से कई साल जूनियर हैं, सो उन्हें भी ’सुपर सीएम’ साहब से आदेश लेने में कोई गुरेज नहीं। वैसे राज्य में इस बात के चर्चे अब भी होते हैं कि पाठक जी के राज्य के मुख्य सचिव रहते ही सिक्किम ऊर्जा लिमिटेड के विनिवेश के 15 हजार करोड़ के स्कैम का मामला भी खूब उछला था। पर सीएम साहब अपने इस दुलारे अफसर पर आज भी आंखें बंद कर उतना ही भरोसा करते हैं जो भरोसा उन्हें इन पर कल था।

क्या चिराग को चुनौती देंगे यशराज?

चिराग पासवान की मोहिनी राजनीति को अब उनके चचेरे भाई यशराज पासवान से चुनौती मिल सकती है। यशराज चिराग के चाचा पशुपति पारस के बेटे हैं, यश अभी-अभी विदेश से अपनी पढ़ाई पूरी कर स्वदेश लौटे हैं। चिराग की तरह वे भी एक आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी हैं, तोल-मोल के बोलते हैं, अच्छी व समझदार भाषा बोलते हैं, यकीनन यह बात उनके सजातीय पासवान वोटरों को लुभाने के लिए काफी है। राष्ट्रीय लोजपा प्रमुख पशुपति पारस ने ही हालिया दिनों में एनडीए से कुट्टी करने का ऐलान कर दिया है, मुमकिन है अब उनके कदम भी इंडिया गठबंधन में शामिल होने की ओर बढ़ जाएं। पशुपति पारस भी अब अपनी उम्र की उस ढलान पर पहुंच गए हैं जहां वे अपनी राजनीतिक विरासत अपने पुत्र यशराज को सौंपने की जल्दबाजी में दिख रहे हैं। कहा यह भी जा रहा है कि इस दफे के बिहार विधानसभा का चुनाव यशराज अपने पिता की अलौली सीट से लड़ सकते हैं। पारस यहां से 7 बार विधायक रह चुके हैं। यह भी कहा जा रहा है कि पिछले काफी समय से वे अपने पुत्र के लिए अलौली सीट तैयार करने में जुटे थे, क्या यशराज चिराग के लिए एक खतरे की घंटी हो सकते हैं?

सहनी सह नहीं पा रहे भाजपा को

जब से इंडिया गठबंधन ने बिहार के आने वाले चुनाव के मद्देनज़र वहां अपने कोऑर्डिनेशन कमेटी का मुखिया तेजस्वी यादव को बनाया है राज्य की सियासत नए सिरे से कदमताल करने लगी है। ताजा मामला वीआईपी यानी विकासशील इंसान पार्टी से जुड़ा है, जिसके लीडर मुकेश सहनी पर भाजपा नेता लगातार डोरे डाल रहे हैं। सहनी बिहार के मल्लाह वोटरों की रहनुमाई के झंडाबरदार रहे हैं, पिछले दफे वे भले ही अपना चुनाव हार गए हों, पर उनकी पार्टी के 4 उम्मीदवार चुनाव जीत गए थे। एक बदले घटनाक्रम में इन 4 में से उनके 3 विधायकों को भाजपा ने तोड़ लिया था, (एक विधायक की अचानक मौत हो गई थी) सहनी अपनी इस पुरानी टीस से अब भी उबर नहीं पाए हैं, सो उन्होंने काफी पहले से ही इंडिया गठबंधन के साथ जाने के संकेत दे दिए थे। पिछले विधानसभा चुनाव में सहनी भाजपा-जदयू गठबंधन के साथ मिल कर चुनाव लड़े थे तब उन्हें गठबंधन धर्म के तहत 11 सीटें मिली थीं, जिसमें से 4 पर उनके उम्मीदवार विजयी रहे, पर सहनी जब खुद अपना चुनाव हार गए तो उन्हें विधान परिषद के रास्ते सदन पहुंचना पड़ा था। पहंुचे और वे सरकार में मंत्री भी बन गए थे, पर चूंकि उनकी विधान परिषद की मियाद महज डेढ़ वर्ष की थी तो उन्हें मंत्रिपरिषद छोड़ना पड़ा। भाजपा की वह पुरानी दगा उनके दिल में अब भी नासूर बन कर चुभ रही है। इस दफे के चुनाव में लगभग तय है कि राजद, कांग्रेस, लेफ्ट के साथ सहनी व पारस भी इंडिया गठबंधन के पक्ष में कदमताल कर सकते हैं। सहनी का मुजफ्फरपुर, दरभंगा, खगड़िया, मोतिहारी व झंझारपुर जिलों में खासा दबदबा है, सहनी के साथ कुछ बड़े मुस्लिम लीडर उनकी पार्टी में आ गए हैं। माना जाता है कि सहनी की पार्टी इस दफे तेजस्वी से दर्जन भर सीटें ले पाने में कामयाब रहेगी। स्वयं तेजस्वी की राजद 115-120 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है और कांग्रेस के खाते में 45-50 सीटें जा सकती हैं। कुल मिला कर इस दफे इंडिया गठबंधन भाजपा-जदयू के समक्ष एक महत्ती चुनौती पेश कर सकता है।

कितने पानी में महारानी

’कुछ तो बात है जो हस्ती मिटती नहीं हमारी’ भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की लाख उपेक्षाओं के बावजूद राजस्थान की राजनीति में भगवा महारानी वसुंधरा राजे सिंधिया का सिक्का अब भी चल रहा है। पिछले दिनों वसुंधरा अपने निर्वाचन क्षेत्र झालावाड़ के दौरे पर थी, तब अचानक वहां अधिकारियों पर उनका गुस्सा फूट पड़ा। इसकी शुरुआत वसुंधरा ने अपने एक सोशल मीडिया पोस्ट से कर दी थी। झालावाड़ जिले में बढ़ते जल संकट को लेकर वसुंधरा ने राज्य की अपनी सरकार को ही कटघड़े में खड़ा कर दिया था। इस पोस्ट में वसुंधरा अपनी ही सरकार से जानना चाहती थी कि ’जल राशि के मद में खर्च होने वाले 42 हजार करोड़ रुपयों की योजना में आखिरकार झालावाड़ का हिस्सा कहां चला गया? झालावाड़ के हिस्से की राशि आखिर खर्च कहां हुई?’ वसुंधरा के इस सोशल मीडिया पोस्ट के बाद राज्य के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा फौरन हरकत में आ गए और उन्होंने उच्च अधिकारियों से इस बाबत वसुंधरा को ब्रीफ देने को कहा।

हालांकि झालावाड़ के उस रोज के कार्यक्रम में स्वयं मुख्यमंत्री शर्मा को भी उपस्थित रहना था, पर उन्होंने अपनी व्यस्तताओं का हवाला देकर वहां आने में असमर्थता जता दी। इसके बाद वहां मौजूद अधिकारियों ने वसुंधरा को बताया कि सीएम तो नहीं आ रहे हैं, पर हां महारानी साहिबा आ रही हैं।’ वसुंधरा ने तल्खी से पूछा-’कौन महारानी?’ जवाब मिला-’महारानी दीया कुमारी जी, राज्य की उप मुख्यमंत्री।’ ऐसे में वसुंधरा का भड़क जाना स्वाभाविक ही था, नहीं तो एक म्यान में दो तलवारें, एक जंगल में दो शेर और एक राज्य में दो महारानियों का जलवा कैसे बरकरार रह सकता है।

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त्रिदीब रमण

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