आज अमर शहीद लाला जी का शहीदी दिवस है
आज भी इस दिन को याद कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। मेरी शादी को अभी 3 साल हुए थे, मैं पढ़ भी रही थी। उन्हीं 3 सालों में मैंने लाला जी यानी दादा ससुर जी से 3000 साल जितना स्नेह और आशीर्वाद पा लिया था। उनको सुबह 4 बजे मेरे हाथ की बनी चाय और शाम को मेरे हाथ के बने पकौड़े-समोसे पसंद थे। बहुत लाड़-प्यार करते थे, अपने अनुशासन और असूलों के पक्के थे। बड़े न्याय प्रिय निष्पक्ष, निडर, निर्भीक थे जो कहते थे वो खुद भी करके दिखाते थे, जब तक वे जीवित रहे 3 पीढि़यां एक ही घर में एक ही रसोई, एक ही छत के नीचे रही। अगर घर के बड़े अच्छे और मजबूत हों तो ही संयुक्त परिवार वाले घर चलते हैं।
8 सितम्बर को शाम को मैं खुद कार चलाकर उन्हें घर वापस लाई क्योंकि उन्होंने सुबह-सुबह जाना था, पर होनी को कोई नहीं टाल सकता। 9 सितम्बर को सुबह मैंने अपने हाथों से उनको आलू-मटर की सब्जी और परांठे बनाकर दिये और वो पटियाला के लिए रवाना हो गए। शाम को जब मैं और अश्विनी जी किसी कार्यक्रम में जाने को तैयार हो रहे थे तो अचानक से तहलका मच गया। लाला जी को गोली मार दी...। अश्विनी जी और रोमेश जी तो फटाफट कार चलाकर रफ्तार से चले गए और मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि लाला जी को किसने और क्यों गोली मार दी? क्योंकि मैं एक सामान्य परिवार से थी ऐसा कुछ मैंने देखा नहीं था, हालांकि हमारा परिवार भी क्रांतिकारी परिवार था परंतु यह सब हमारे पैदा होने से पहले की बातें थीं, मैं इतना डर गई कि मैं बता नहीं सकती। उसके बाद मैंने कार चलानी भी छोड़ दी।
मैं लाला जी की इकलौती पौत्रवधू थी जिसको उनका आशीर्वाद प्राप्त हुआ। कहते हैं मूल से ब्याज बहुत ज्यादा प्यारा होता है। यानी मैं लाला जी के सबसे बड़े और चहेते पौत्र अश्विनी जी की पत्नी थी। लाला जी के और भी तीन पौत्र थे जिन्हें वह प्यार करते थे परंतु अश्विनी जी के प्रति उनका लगाव व स्नेह कुछ अलग ही था। यही कारण था कि वह अश्विनी जी को अपने सारे शेयर देकर गए। वो बहुत दूरदर्शी थे। उन्हें मालूम था कि अश्विनी जी एक जन्मजात पत्रकार हैं।
लाला जी दहेज प्रथा के बिल्कुल खिलाफ थे इसलिए उन्होंने अपने दोनों बेटों की और अपने पौत्र अश्विनी, मेरी शादी मंदिर में एक रुपए से की। उनकी इसी परम्परा को कायम रखते हुए मैंने भी अपने तीनों पुत्रों की शादी आर्य समाज मंदिर में 1 रुपए से ही की। सचमुच लाला जी एक आदर्श, देशभक्त थे जिन्होंने सच्चाई पर चलते हुए देश की आजादी के लिए 16 साल जेल काटी फिर देश की एकता के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। लाला जी की बहुत इच्छा थी कि देश में बुजुर्गों के लिए कुछ होना चाहिए।
उन्होंने अपने अंतिम समय में ‘‘जीवन की संध्या नामक’’ सीरीज लिखी क्योंकि वो अक्सर कहते थे जीवन की संध्या यानी बुढ़ापा बहुत ही मुश्किल है। इसमें अच्छे घरों के लोग अकेलेपन और डिप्रेशन का शिकार होते हैं और जो जरूरतमंद घरों के बुजुर्ग हैं उनको तो फिजीकल, (शरीर में तकलीफें शुरू हो जाती हैं) सामाजिक और आर्थिक रूप में सहायता की बहुत जरूरत है, खासकर जिनके बच्चे महंगाई के कारण उनसे मुंह मोड़ लेते हैं और उन्हें बोझ समझने लगते हैं।इसलिए वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब की स्थापना लाला जगत नारायण जी और उनके पुत्र रमेश चंद्र जी की याद में वृद्ध केसरी रोमेश चंद्र ट्रस्ट के अंतर्गत की गई। इसका मुख्य उद्देश्य बुजुर्गों में अकेलापन और अवहेलना जैसी भावनाओं को दूर करना, उन्हें आत्मविश्वास और सुरक्षा की अनुभूति दिलाना, स्वास्थ्य जागरूकता बढ़ाना और जरूरतमंदों को आर्थिक या चिकित्सा सहायता प्रदान करना, यह क्लब एक ऐसा प्लेटफार्म है जहां वे अपनत्व और सम्मान के साथ समय बिता सकें। बुजुर्गों के लिए सांस्कृतिक और बौद्धिक विकास के लिए प्रतियोगिताएं हास्य भाव, धार्मिक आयोजन, महामृत्युंजय पाठ आदि होते हैं।
उन्हीं की प्रेरणा से दुनिया में पहली बार एडोप्शन सिस्टम इसी क्लब द्वारा बनाया गया है जिसमें अब तक हजारों की संख्या में बुजुर्ग एडोप्ट किये जा चुके हैं। एडोप्ट किए गए बुजुर्ग को घर लेकर नहीं जाना होता है, बल्कि एडोप्ट किए गए सदस्य की दवाई और मूलभूत जरूरतों का खर्च वहन करना होता है ताकि वो अपने बच्चों और पौत्र-पौत्रियों के साथ रह कर अपने ही घर में सुकून के पल बिता सकें। वृद्ध आश्रम छत-रोटी तो दे सकते हैं अपनापन नहीं, सम्मान और मानसिक सुरक्षा भी नहीं मिल पाती है।
वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब में उनकी जरूरत का सामान उनके मन पसंद खाने खिलाये जाते हैं। इस क्लब की शाखाएं पूरे देश में फैली हैं जिसका लाभ लाखों में वरिष्ठ नागरिक उठा रहे हैं। इसकी एक झलक अगर आप पाना चाहें तो 9 सितम्बर को आमंत्रित हैं। बड़ा सुकून मिलता है जब हम इनकी अंगुली पकड़ते हैं जिन्होंने हमें चलना सिखाया। यह कदमों की धूल नहीं माथे की शान हैं। यही सच्ची सेवा और श्रद्धांजलि है। आज उनके शहीदी दिवस पर मेरे तीनों बेटे-बहुएं, पौत्र और सारे पंजाब केसरी के कर्मचारी उनको भावपूर्ण श्रद्धांजलि देते हुए बहुत याद करेंगे क्योंकि जब पिता का साया सिर से उठ जाता है तो बच्चे अपने दादा-परदादा के प्यार के सहारे को ढूंढते हैं।