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तोमर का किसानों को सन्देश

केन्द्रीय कृषि मन्त्री श्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने आज किसानों से प्रत्यक्ष रूप से अपील की है कि वे सरकार द्वारा भेजे गये प्रस्तावों पर पुनः विचार करें और बातचीत के रास्ते को बन्द न होने दें।

02:33 AM Dec 11, 2020 IST | Aditya Chopra

केन्द्रीय कृषि मन्त्री श्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने आज किसानों से प्रत्यक्ष रूप से अपील की है कि वे सरकार द्वारा भेजे गये प्रस्तावों पर पुनः विचार करें और बातचीत के रास्ते को बन्द न होने दें।

तोमर का किसानों को सन्देश
केन्द्रीय कृषि मन्त्री श्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने आज किसानों से प्रत्यक्ष रूप से अपील की है कि वे सरकार द्वारा भेजे गये प्रस्तावों पर पुनः विचार करें और बातचीत के रास्ते को बन्द न होने दें। वास्तव में सरकार आन्दोलनकारी किसानों की तरफ एक कदम आगे बढ़ी है और उसने अपना रुख ढीला किया है क्योंकि किसानों ने विगत 7 दिसम्बर को गृह मन्त्री श्री अमित शाह के साथ जो वार्तालाप किया था उसके प्रतिफल में ही सरकार की तरफ से प्रस्ताव दिया गया था कि वह नये कृषि कानूनों में कुछ ऐसे संशोधन करने को तैयार है जिससे किसानों की आशंकाओं का निवारण हो सके।
सबसे बड़ी आशंका न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर थी और उपज व्यापार में निजी पूंजीपतियों के बिना किसी नियमन के व्यापार करने की थी। सरकार ने प्रस्ताव किया कि न्यूनतम समर्थन मूल्य को चालू रखने के लिए वह लिखित आश्वासन देने को तैयार है और कृषि उपज के अधिसूचित मंडियों से बाहर किये जाने वाले व्यापार पर भी मंडियों के समान ही कर लगाने के अधिकार राज्य सरकारों को देने के लिए तैयार है, किसान चाहते हैं पहले इन्हें तीनों कानूनों को रद्द किया जाये और बाद में किसान संगठनों से सलाह-मशविरा करके नये कानून बनाये जायें।
कृषि मन्त्री मूलतः ग्रामीण पृष्ठभूमि के हैं और वे किसानों की समस्याओं से अवगत न हों, यह नहीं माना जा सकता। यही वजह है कि वह विगत 14 अक्तूबर से अब तक किसान संगठनों के साथ पांच बार बातचीत कर चुके हैं और उनकी समस्याओं व आशंकाओं से अवगत हो चुके हैं।
इसके साथ यह भी एक तथ्य है कि कृषि क्षेत्र में सुधारों की तरफ पिछले एक दशक से ही सरकारी स्तर पर विभिन्न समितियों और कार्यदलों का गठन करके सुझाव मांगे जा चुके हैं। खेती में ठेका प्रथा जारी करने तक के बारे में विभिन्न समितियों ने कारगर सुझाव दिये थे। इसमें सबसे महत्वपूर्ण यह था कि किसानों की फसलों का विविधीकरण हो और उन्हें सीधे उद्योग से जोड़ा जाये मगर यह कार्य इस तरह हो कि किसान की भूमि और उसके मालिकाना हकों पर किसी प्रकार का अतिक्रमण न हो सके।
श्री तोमर किसानों की इस चिन्ता को भी कानूनी रूप से सुरक्षित रखने का वचन देते हुए आज नजर आये। इससे स्पष्ट है कि सरकार किसान आन्दोलन का विस्तार नहीं देखना चाहती है और मौजूदा कानूनों के अन्तर्गत ही किसानों की समस्याओं का समाधान करना चाहती है। यह कार्य थोड़ा मुश्किल इसलिए लगता है कि केन्द्र सरकार ने जो नये तीन कानून बनाये हैं वे मूलतः राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
कृषि विशिष्ट तौर पर राज्य सूची का मामला है मगर केन्द्र ने समवर्ती सूची से वाणिज्य और व्यापार विषय के अन्तर्गत अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए ये तीनों नये कानून बनाये हैं जिसकी वजह से भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है। यह भ्रम तभी टूट सकता है जब राज्य सरकारें और केन्द्र सरकार आपस में बैठ कर किसी ऐसे सर्वसम्मत निर्णय पर पहुंचें जिससे किसानों की कृषि उपज के विपणन के बारे में एक राय कायम हो सके।
इस सन्दर्भ में हमें यह विचार करना होगा कि उत्तर प्रदेश या पंजाब के किसान की समस्या तमिलनाडु के किसान से अलग हो सकती है।  राजधानी दिल्ली जन्तर-मन्तर के वे दृश्य अभी तक नहीं भूली है कि किस प्रकार तमिलनाडु के किसान यहां लगातार 141 दिन तक आंदोलन करके गए थे मगर इस बार किसान संगठनों ने समूची कृषि नीति के बारे में अपना आन्दोलन चलाया है।
कृषि उपज के विपणन के क्षेत्र में बड़े औद्योगिक व पूंजी घरानों के आने के डर से वे न्यूनतम समर्थन मूल्य के कानूनीकरण की मांग कर रहे हैं। न्यूनतम समर्थन मूल्य को किसान कानूनी हक के तौर पर लेना चाहते हैं। वैसे लोकतन्त्र का एक सिद्धांत यह भी होता है कि इस प्रणाली के अन्तर्गत चीजें धीरे चलती हैं और कोई भी सुविधा दया के रूप में नहीं मिलती बल्कि देर से बेशक मिलती है मगर कानूनी हक के तौर पर मिलती है।
अतः कृषि मन्त्री के प्रयासों को सकारात्मक रूप से लिया जाना चाहिए और विचार किया जाना चाहिए कि किस प्रकार किसानों और कृषि क्षेत्र की अधिकाधिक सुरक्षा की जा सकती है।
इस मामले में हमें विशुद्ध देशी व भारतीय सांचे में समाधान खोजने होंगे क्योंकि भारत की कृषि प्रणाली यदि पचास के दशक में सोवियत संघ की तर्ज पर नहीं चल सकती थी तो 2020 में अमेरिका की तर्ज पर भी नहीं चल सकती है, इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि अमेरिका में जहां बामुश्किल दस प्रतिशत लोग भी खेती पर निर्भर नहीं हैं वहां भारत में साठ प्रतिशत लोगों की रोजी-रोटी कृषि क्षेत्र से ही चलती है।
कोरोना काल में हमने प्रमाण देखा है कि हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था ने किस तरह दुश्वारियों से जूझते हुए आगे बढ़ने का हौंसला कायम रखा है।  यह मैं नहीं कह रहा हूं बल्कि रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्ति कान्त दास ने कहा था। अतः इस क्षेत्र को ऊर्जावान रखना सबसे बड़ा धर्म है।
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Aditya Chopra

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