For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

सत्यपथिक को श्रद्धांजलि

05:50 AM May 12, 2024 IST | Aditya Chopra
सत्यपथिक को  श्रद्धांजलि

‘‘है नमन उनको कि देह को अमृतत्व देकर
इस जगत में शौर्य की जीवित कहानी हो गए हैं।
है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गए।’’
12 मई आज मेरे परम पूज्य दादा जी श्री रमेश चन्द्र जी का शहादत दिवस है। जैसे शाह को मूल से ज्यादा ब्याज प्यारा होता है उसी तरह हर दादा को बेटे से ज्यादा पौत्र प्यारा होता है। इसे विधि की विडम्बना कहिये या नीति का खेल। मैं और मेरे अनुज दादा जी के स्नेह से वंचित रहे। मेरे बचपन में ही नियति के क्रूर हाथों ने दादा जी को हमसे छीन लिया। जब भी मैं अपनी मां किरण को देखता हूं, उनकी जान मेरे बच्चों में बसती है। जब मेरे बच्चे उन्हें दादी-दादी कहते मिलते हैं तो मुझे अपने जीवन में इस प्यार की बहुत कमी महसूस होती है। उनके बारे में मेरे पिता स्वर्गीय श्री अश्विनी कुमार ने जो बताया उससे ही मुझे इस बात का गर्व होता है कि मैं उस परिवार का अंश मात्र हूं जिनके दो-दो पूर्वजों ने देश की एकता और अखंडता के लिए अपना बलिदान दिया। पूजनीय दादा रमेश चन्द्र जी से पहले मेरे परदादा लाला जगतनारायण जी ने भी अपनी शहादत दी।
आतंकवादियों ने दोनों को गोलियों का निशाना बनाया। यह हत्याएं लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ प्रैस को कुचलने के लिए ही की गई थी। मैंने स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास पढ़ा है, कितने ही सम्पादकों को अंग्रेज सरकार ने मौत के घाट उतारा, उन्हें यातनाएं दी गईं। स्वराज समाचार पत्र के 8 सम्पादकों को काला पानी की सजा हुई। जब एक सम्पादक को काला पानी (अंडमान निकोबार) भेजा जाता तो स्वराज में विज्ञापन छपता है।


‘‘स्वराज को चाहिए एक सम्पादक :
वेतन-दो सूखी रोटियां और एक गिलास ठंडा पानी और हर सम्पादकीय के​ लिए दस वर्ष की कैद।’’
दादा जी पंजाब के विधायक भी रहे। वे चाहते तो राजपथ का मार्ग अपना सकते थे लेकिन उन्होंने राजपथ की बजाय सत्यपथ पर चलने को प्राथमिकता दी। सत्यपथ अग्निपथ के समान होता है। रमेश चन्द्र जी जो कुछ भी लिखते अर्थपूर्ण लिखते थे, जो भी कहते उसका कुछ अर्थ होता था। पंजाब में पत्रकारिता को​ निडर एवं साहस बनाने का श्रेय उन्हीं को जाता है। उनकी दूरदर्शिता, जनहित को समर्पित लेखनी​ विलक्षण थी। सादा जीवन, पक्षपात से दूर और क्रोधरहित भाव रखना बहुत कम लोगों के वश की बात होती है। असत्य से नाता जोड़ना उन्हें कतई पसंद नहीं था। 16 वर्ष की आयु में जिस व्यक्ति ने अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया हो तो वे असत्य से नाता कैसे जोड़ सकते थे। रमेश जी ने अपने लेखों में आतंकवाद के खिलाफ समाज को जागृत करने का काम किया। वहीं वे लगातार राजनीतिज्ञों को अपनी लेखनी के माध्यम से चेतावनी देते रहते थे। आग और खून का खेल खेलने वाले यह भूल गए ​िक यह आग जो वो जाने-अनजाने में लगा रहे हैं एक दिन उनके घरों तक भी पहुंच जाएगी।
‘‘भाषा एक ऐसा वस्त्र है जिसको यदि शालीनता से नहीं पहना तो सम्पूर्ण व्यक्ति ही निर्वस्त्र हो जाता है।’’ दादा जी की भाषा बहुत शालीन थी। वे बहुत शांत रहते थे लेकिन उनके विचार बहुत गम्भीर थे। उन्होंने कहा ‘‘असत्य के साथ समझौते से तो अच्छा है कि उस मृत्यु का वरण कर लिया जाए जो राष्ट्र की अस्मिता को समर्पित हो। अन्याय मुझे विवश कैसे कर लेगा? मैं आर्य पुत्र हूं। सत्य लिखना मेरा धर्म है, कलम मेरा ईमान है। मैं सत्यपथ का पथिक हूं। आगे जो मेरा प्रारब्ध, मुझे स्वीकार।’’
मेरे पिताश्री ने पत्रकारिता की वर्णमाला दादा और परदादा जी से सीखी। उनके नक्शेकदम पर चलकर ही मैं लगातार लिख रहा हूं। मेरी मां किरण चोपड़ा जी लगातार सामाजिक विषयों पर लिख रही हैं। मैंने कभी ‘पोषित सत्य’ को लांघने की चेष्ठा नहीं की। पत्रकारिता दोहरे मापदंडों पर नहीं चल सकती। उसे यज्ञ की पवित्र अग्नि की तरह प्रज्ज्वलित रहना होगा जो नित्य नये सरोकारों में भविष्य प्राप्त करती है और अपनी गौरव गरिमा को बनाए रखती है। हमारे लिए पत्रकारिता ऐसा न्यायपूर्ण अस्त्र है जो अन्याय और असत्य का विरोध करते हुए सामाजिक जीवन में मानवतावादी मूल्यों का पक्षधर है। मेरा लेखन ही सत्यपथिक को सच्ची श्रद्धांजलि है। कलम के महान सिपाही को नमन।

Advertisement
Advertisement
Author Image

Aditya Chopra

View all posts

Aditya Chopra is well known for his phenomenal viral articles.

Advertisement
×