लंदन की यात्रा
आप सबसे रूबरू हुए 20 दिन हो गए। क्योंकि फरीदाबाद के फंक्शन के बाद अगली सुबह ही मुझे लंदन जाना था। मुझे मालूम है सभी सदस्यों के फोन हैल्पलाइन पर आ रहे थे कि इस बार व्यस्त रहने के लिए कोई होमवर्क नहीं दिया। इसलिए सभी सदस्यों और पाठकों के साथ अपनी लंदन यात्रा के कुछ पल शेयर कर रही हूं। मैं बहुत स्थानों पर घूमी। मेरी बहनें और भांजियां भी वहां पर हैं परन्तु इस बार अश्विनी जी के बिना वहां जाना बहुत ही भावुकता भरा था। एक-एक पल में उनकी याद थी। दरअसल मैं अकेली कभी विदेश यात्रा पर नहीं गई। पहले हमेशा अश्विनी जी के साथ, फिर उनके बाद बच्चों के साथ ही जाना हुआ।
वहां घूमने की बात तो अलग थी, जो इस बार मैंने अपने भारतीयों के मन में भारतीयता देखी, अपने देश और देश के लोगों के लिए प्यार देखा वो अलग ही तरह का था। सबसे पहले मैं अपनी भतीजी निशा के घर गई, वहां उसका सारा काम संगरूर से आई ममता सम्भाल रही थी। ममता कैसे अपने बच्चों और भारत में रह रहे परिवार को देख रही थी, बहुत ही अच्छा लगा। निशा ने बताया कि वो घर की सहायता के लिए भारतीय लड़की को ही प्रैफर करती हैं। क्योंकि वो चाहती है उसके बच्चे हिन्दी, पंजाबी भी सीखें और वो एक परिवार की तरह है। वो मुझे हैरोल्ड लेकर गई वहां लंच करवाया।
उसके बाद मैं अपनी चहेती भांजी साक्षी के घर गई। दोनों पति-पत्नी सुमित और साक्षी ने अपना बहुत ही सुन्दर घर बना रखा है। दोनों बहुत ही पढ़े-लिखे सैल्फ मेड कपल हैं। उनके घर भी उनकी सहायता के लिए गुजराती और एक पंजाबी हैं। उसने कहा कि इंग्लिश लोगों की हैल्प भी मिलती है परन्तु जो अपनापन अपने भारत देश के लोगों में है वो उनमें नहीं। एक दिन उसके घर मूली के पराठें खाये और दूसरे दिन खांडवी थेपले खाये। सबसे बड़ी बात जो उनकी सहायता करने वाली हैं दोनों ही बहुत ही पढ़ी-लिखी हैं, क्योंकि वहां किसी भी काम को छोटा नहीं माना जाता। चाहे ड्राइवर, इलेक्ट्रिशियन, पलम्बर घर की हैल्पर हो उनकी उतनी ही रिस्पैक्ट है जितनी एक बड़े बिजनेसमैन की। साक्षी हम सब बहनों को घुमाने लवेन्डर गार्डन लेकर गई, जहां अक्सर शूटिंग होती है।
उसके बाद मैं नोटिंघम गई जहां मेरी बहन वीना शर्मा हिन्दू मंदिर की सचिव हैं और उसका बेटा अभी प्रेजिडेंट बना है। वहां के पंडित जी बहुत सम्पन्न हैं, जो दिल्ली से गए हुए है। उस मंदिर में आरएसएस की शाखा भी लगती है और हर हिन्दू धर्म की पूजा होती है। मेरी बहन मंदिर कमेटी समिति मैम्बर के साथ मिलकर सारा काम सम्भालती है। उस मंदिर में खुशी और गम को मनाने के लिए सारी व्यवस्था होती है। यानि जन्मदिन, शादी की साल गिरह या किसी की क्रिया सभी काम होते हैं। यही नहीं बाबा बालक नाथ, गुरु जी, माता रानी, शिवरात्रि और हर शुक्रवार को सीनियर सिटीजन के लिए फ्री लंच होता है। वहां उनका एक बेटा बैरिस्टर है। एक आईटी कम्पनी में है। वहां तो कभी कोई आमंत्रित कर रहा था कभी कोई। मेरे पास समय थोड़ा था। फिर वहां पर क्रिकेट मैच किया गया, जो बहुत ही सफलतापूर्ण रहा। वहां मुझे उन्होंने चीफ गैस्ट बनाया। मेरे हाथों से ट्राफी दिलवाई गई। मुझे वैसे ही क्रिकेट से लगाव है। क्योंकि अश्विनी जी क्रिकेट प्लेयर थे। उसके बाद मुझे न्यूकैस्टल जाना हुआ, वहां मेरी भांजी तनीशा बढेरा रहती है, वहां उसकी बहुत ही प्यारी सुन्दर सी सासू मां शशि बढेरा का जन्मदिन था। उन्होंने केक काटा, बहुत ही अच्छा लगा। उनके घर में मेरी एक भतीजी और एक भांजी की शादी हुई है। सारे परिवार के साथ मिलकर बहुत ही अच्छा लगा, बहुत सुन्दर घर बना रखा है।
वहां की प्रसिद्ध बिजनेस टाइकून प्रोमिला सहगल जी ने अपने घर लंच पर बुलाया। उनका नाम मैंने अपनी जालंधर की रूबी सहगल और बेटी मित्रों से बहुत सुना हुआ था परन्तु जितना मैंने सुना था वो उससे भी बहुत अच्छी निकली। वहां पंजाब, दिल्ली से बहुत लोग मिले। जो वहां 50 साल से ज्यादा समय से रह रहे हैं। मुझे वहां जाकर समझ लगी। उन्होंने बहुत से रिश्तेदारों को वहां सैट किया और साथ दिया। वाकय ही इस जमाने में ऐसे रिश्तेदार होना बड़ी किस्मत की बात है। तनीशा के ससुर अनिल जी ने बताया कि सबसे पहले उनके बड़े भाई साहब आए थे। उन्होंने बिजनेस शुरू किया। फिर उन्होंने अपने सभी भाई-बहनों को यहां बारी-बारी से बुलाकर सैट किया। वो उनको बड़े दिल से याद कर रहे थे, तब उन्होंने अपनी शादी की वीडियो टीवी पर दिखाई। ऐसे लग रहा था कि पुरानी कोई पिक्चर देख रहे हैं। कैसे 50 साल पहले की रिसेप्शन थी, कैसे अनिल जी और शशि बढेरा ने पहले डांस की ट्रेनिंग ली, फिर रिसेप्शन में डांस किया।
तनीशा बढेरा की एक चाइनीज मित्र ने लंच पर बुलाया, वो भी बहुत मेहनती है। उसने एक होटल खोला, अब 4 रेस्टोरेंट खोल लिए। तनीशा ने बहुत ही घुमाया। नार्थ शील्ड बीच पर लेकर गई। ऐसा सुन्दर बीच मैंने नहीं देखा होगा। वहां से तनीशा मुझे मेरी बहन और एक और भांजी को स्कॉटलैंड लेकर गई, जिसका बहुत इतिहास है। वहां हमने केसल (किला) देखा और डिशोम में खाना खाया तथा आर्ट गैलरी देखी।
उसके बाद मैं फिर नाटिंघम आई। जहां मेरी बहन वीना शर्मा के समधियों का दिल्ली बॉम्बे के नाम से मशहूर होटल में लंदन ही नहीं बल्कि दुनियाभर के लोग यहां खाना खाने आते हैं। मेरी बहन वीना शर्मा और उसकी बहुओं ने बहुत सेवा की। उसके पोते ऋषि का जन्मदिन मनाया और फिर बड़ी बहन मुझे लंदन एयरपोर्ट छोडऩे आई। इतनी प्यारी बहन जो मां जैसी है जिसने एक-एक पल मेरा ध्यान रखा। मैं वहां से बड़ी मीठी यादें लेकर लौटी, पर हर पल अश्विनी जी मेरे साथ रहे। उनको याद कर कई बार अन्दर से आंसू भी निकले, पर बहनों, भांजियों ने इतना व्यस्त रखा कि आंसू पी गई। ईश्वर सबको ऐेसा परिवार दे। कुल मिलाकर लंदन यात्रा से यह समझ लगी कि वहां बसे 50-60 साल से भारतीयों के दिल में अभी भी भारतीयता और संस्कार जीवित हैं। जैसे सब लोग वहां काम करते हैं वैसे ही भारत में हो तो क्या बात है।