ट्रम्प आ गया....
डोनाल्ड ट्रंप की वापसी का भुगतान केवल अमेरिका को नहीं…
डोनाल्ड ट्रंप की वापसी का भुगतान केवल अमेरिका को नहीं बल्कि पूरी दुनिया को करना पड़ सकता है। यह अब, केवल अमेरिका की समस्या नहीं बनी रह गयी है, बल्कि हर उस देश की भी है जिससे अमेरिका का कोई ताल्लुक है, या नहीं भी है। यह उन देशों के बारे में भी है जो अमेरिका के साथ व्यापार कर रहे हैं या भविष्य में ऐसा करने की योजना बना रहे हैं। यह ग्रीनलैंड के बारे में है, यह मैक्सिको के बारे में है, यह चीन और भारत के बारे में है।
यही कारण है कि किसी अन्य देश के राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण ने उतनी दिलचस्पी नहीं िदखायी जितनी ट्रंप के सत्ता में आने ने। भारतीयों की बात करें तो, पहले भी कुछ ऐसे मौके आए जब यह सवाल िक ‘कौन जीतेगा’ चर्चा का विषय बना, लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद यह दिलचस्पी भी खत्म हो गई। उदाहरण के लिए, जब बराक ओबामा अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिए खड़े हुए, तब कई भारतीय उनकी जीत की कामना कर रहे थे। उनकी जीत के बाद का भाषण Yes We Can (हां ! हम कर सकते हैं) भारतीयों के लिए एक आकर्षण बन गया। लाखों भारतीय टीवी स्क्रीन से चिपके रहे, यह देखने और सुनने के लिए कि अमेरिका का पहला अफ्रीकी-अमेरिकी राष्ट्रपति ‘स्पष्ट रूप से कहें तो एक ‘ब्लैक’ राष्ट्रपति क्या कह रहा है। जब उन्होंने लगभग 2,40,000 लोगों की उत्साहित भीड़ को संबोधित किया, तो उन्होंने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने मुख्य मुद्दों और ‘हमारे भविष्य’ की बात की। लेकिन सबसे जादुई बात थी उनके तीन शब्द ‘Yes We Can’ उन लोगों के लिए एक जवाब, जिन्होंने कहा कि ‘हम ऐसा नहीं कर सकते।’
दूसरी बार, जब अमेरिका के चुनाव ने भारत में रुचि पैदा की, तो वह तब था जब कमला हैरिस उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ रही थीं। तब चर्चा कमला हैरिस से ज़्यादा इस बात की थी कि एक भारतीय मूल की महिला अमेरिका के दूसरे सर्वोच्च पद तक पहुंच रही है। हालांकि, यह एक अलग मुद्दा है कि उन्होंने अपनी भारतीय जड़ों को दिखाने के बावजूद भारत के लिए कुछ खास नहीं किया। इस बार, जब अमेरिका अपना 47वां राष्ट्रपति चुनने जा रहा था, तो रुचि कुछ ठंडी पड़ी हुई थी। वास्तव में, यह ट्रंप, उनके व्यक्तित्व और उनकी अप्रत्याशितता के बारे में ज्यादा था, बजाय इसके कि वह देश के सर्वोच्च पद के लिए चुनाव लड़ रहे थे। यह उस हत्या के प्रयास के बारे में ज्यादा था, जिसे कई लोगों ने नाटक करार दिया, बजाय इसके कि वह क्या कह रहे थे या क्या वादे कर रहे थे। यह उनकी नौटंकी और ड्रामेबाजी के बारे में ज्यादा था, बजाय उनके मुद्दों और योजनाओं के।
डोनाल्ड ट्रंप की वापसी के साथ, चुनाव से पहले वह सब कुछ देखने को मिला जो आमतौर पर होता है -अवैध प्रवासियों और व्यापार शुल्क पर बयानबाजी, और इसके साथ मेक अमेरिका ग्रेट अगेन (MAGA) का नारा। भारतीय इस पूर्व-चुनाव बयानबाजी को लेकर सतर्क थे, लेकिन यह भी समझते थे कि ये ज्यादातर घरेलू राजनीति के लिए होती हैं और इसका अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता लेकिन ट्रंप तो ट्रंप हैं। पदभार संभालने के कुछ ही घंटों में उन्होंने 20 से अधिक कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर किए -जो किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति ने पहले दिन में नहीं किए थे।
यही वह क्षण था जब भारतीयों का ध्यान इस ओर गया। जब तक उन्होंने विवादित आदेश जारी नहीं किए थे, भारत व्यापार शुल्क और एक ऐसे प्रशासन से निपटने को लेकर चिंतित था जो अपनी बात मनवाने पर अड़ा था। भारत में यह चिंता भी थी कि अमेरिका में भारतीयों का प्रवास कठिन हो सकता है और एच-1बी वीज़ा के नियमों को सख्त करके कुशल श्रमिकों को वापस भेजने की संभावना बढ़ सकती है। लेकिन जिस चीज़ की किसी ने उम्मीद नहीं की थी, वह था जन्म सिद्ध नागरिकता (Birthright Citizenship) को खत्म करने का आदेश। इसने भारत, लैटिन अमेरिका और खुद अमेरिका में भी झटके पैदा कर दिए।
अगर ये बदलाव लागू होते हैं, तो टेक कर्मचारियों से लेकर छात्रों तक, सैकड़ों और हजारों भारतीय परिवारों के भविष्य पर अनिश्चितता के बादल छा जाएंगे। अमेरिका में सबसे तेजी से बढ़ने वाले समुदायों में से एक, भारतीय-अमेरिकी आबादी लगभग 5.4 मिलियन है। अब तक, जन्मसिद्ध नागरिकता के तहत अमेरिका में जन्म लेने वाले किसी भी बच्चे को नागरिकता का अधिकार प्राप्त था, भले ही उसके माता-पिता की स्थिति कुछ भी हो। इससे उन माता-पिता के बच्चों को लाभ हुआ जो अमेरिका को अपना घर बनाना चाहते थे।
लेकिन ट्रंप की सख्ती का सीधा असर उन भारतीय बच्चों पर पड़ेगा जिनके माता-पिता अस्थायी वर्क वीज़ा, जैसे एच-1बी, पर हैं या ग्रीन कार्ड के लिए कतार में हैं। इसका प्रभाव उन भारतीय और मैक्सिकन माता-पिता पर भी पड़ेगा, जो विशेष रूप से अपने बच्चों को अमेरिकी नागरिकता दिलाने के लिए अमेरिका में जन्म देते हैं।
ट्रंप जिस तरह अपनी राष्ट्रपति पद की नीतियां चला रहे हैं, वह साफ तौर पर जल्दी में हैं और अपनी ‘मैंने जो कहा, वो किया’ छवि को मजबूत करना चाहते हैं। उनकी हालिया नीतियां उनके मेक अमेरिका ग्रेट अगेन नारे के अनुरूप हैं, जो यह सुनिश्चित करती हैं कि अमेरिकी नागरिकों का उनकी भूमि और संसाधनों पर पहला अधिकार हो, बजाय गैर-अमेरिकियों के। हालांकि, कार्यकारी आदेश कानूनी जांच के दायरे में आते हैं। जैसे ही ट्रंप ने जन्मसिद्ध नागरिकता को पलटने का आदेश दिया, प्रवासी अधिकारों के पैरोकारों ने उनकी सरकार पर मुकदमा दायर कर दिया।
अवैध प्रवासियों के मामले में ट्रंप को शायद ही रोका जा सके। खासकर लैटिन अमेरिका से आए प्रवासियों को उनके देशों में वापस भेजा जा सकता है। जहां तक भारतीयों का सवाल है, लगभग 18,000 से अधिक लोग जल्द ही भारत लौट सकते हैं, क्योंकि भारत सरकार ने उन्हें वापस लेने की प्रतिबद्धता जताई है। फिर भी, भारतीय सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती ट्रंप की व्यापार शुल्क नीति है। इस पर, भारत अभी कनाडा और मैक्सिको जैसे देशों की तरह ट्रंप के निशाने पर नहीं है, लेकिन खतरा बना हुआ है। यह कहना गलत होगा कि भारत और भारतीयों के खिलाफ माहौल है, चाहे वह प्रवास, नागरिकता अधिकार या व्यापार शुल्क का मामला हो। लेकिन यह भी सच है कि भारत-अमेरिका संबंधों के लिए यह अनिश्चित और चिंताजनक समय है। भारत को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सम्बन्ध काम करेंगे।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर भले ही अमेरिका को ‘ऐसा साझेदार जिसे साथ मिलकर काम किया जा सके’ कहें, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप अपने-अपने देशों के हितों को प्राथमिकता देंगे। फिलहाल, यह कहना जल्दबाजी होगी कि ट्रंप की वापसी पर जश्न मनाया जाए या यह निष्कर्ष निकाला जाए कि भारत के लिए कठिन समय आने वाला है। यह कहना बेहतर होगा कि आगे का रास्ता कठिन होगा, लेकिन यह ऐसा भी नहीं है, जिस पर भारत चल न सके।
– कुमकुम चड्ढा