ट्रम्प ने दिया पुतिन का साथ
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प चौंकाने के लिए जाने जाते हैं…
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प चौंकाने के लिए जाने जाते हैं। अमेरिका और रूस के संबंध कभी नीम तो कभी शहद जैसे रहे। कभी दुनिया दो खेमों में बंटी हुई नजर आती रही है। दोनों देशों में कोल्ड वॉर की स्थिति दशकों से बनी हुई है। कोल्ड वॉर वो स्थिति होती है जिसमें देश एक-दूसरे पर सीधा हमला नहीं करते लेकिन तनाव बना रहता है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद तत्कालीन सोवियत संघ (अब रूस) और अमेरिका के बीच तनाव बढ़ गया था। इसकी वजह राजनीतिक, आर्थिक विचारधारा थी। अमेरिका पूंजीवाद पर यकीन करता था, जबकि सोवियत संघ कम्यूनिस्ट विचारधारा पर विश्वास करता था।
वॉर के बाद सोवियत संघ और अमेरिका सबसे ताकतवर देश बचे थे। दोनों ही बाकी दुनिया को अपनी तरह से चलाने की कोशिश करने लगे। यहां तक कि ब्रिटेन, जिसे दोनों ही देश पहले साम्राज्यवादी मानते थे, अमेरिका ने उससे हाथ मिला लिया और ब्रिटेन, यूरोप के साथ मिलकर नाटो बना लिया। दूसरी तरफ सोवियत संघ ने ईस्टर्न यूरोप के साथ वॉरसा समझौता कर लिया। इससे दुनिया बिना युद्ध के ही दो खेमों में बंट गई। कुछ सालों के भीतर अमेरिका सुपर पावर बन गया, वहीं रूस अपनी पुरानी ताकत की परछाई था। पुतिन के लौटने के बाद रूस एक बार फिर ग्लोबल कैनवास पर बड़ी जगह घेरता दिखा। साल 2017 में अमेरिका में ट्रम्प के आने के बाद इसमें और रंग भरा। ट्रम्प ने अपने पहले ही टर्म में पुतिन के लिए नर्म रुख दिखाया। याद दिला दें कि ट्रम्प की पहली जीत को लेकर रूस पर आरोप लगा था कि उसने इलेक्शन में दखल दिया है। ट्रम्प ने इसे खारिज तो किया लेकिन पुतिन की तारीफ करने से भी नहीं चूके। दोनों ने चार सालों में कुल पांच आधिकारिक मुलाकातें कीं। इसके अलावा कई इंटरनेशनल बैठकों में भी बातचीत हुई।
ट्रम्प ने अपनी दूसरी पारी की शुरूआत करते ही बहुत कुछ ऐसा किया जिससे ऐसा लग रहा है कि ग्लोबल पॉवर डायनेमिक्स में बड़े बदलाव होने वाले हैं। क्या अमेरिका और रूस के संबंधों में बर्फ पिघलने वाली है? क्या ट्रम्प और पुतिन एक साथ एक मंच पर खड़े दिखाई देंगे? चौंकाने वाला घटनाक्रम उस समय सामने आया जब यूरोपीय संघ और यूक्रेन की ओर से संयुक्त राष्ट्र में रूस के हमले की निंदा से जुड़ा प्रस्ताव पेश किया गया और अमेरिका ने इस प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया। अमेरिका का यह रुख वैश्विक राजनीति में हो रहे बदलाव का संकेत देता है। अमेरिका रूस के साथ खड़ा दिखाई दिया और यूक्रेन देखता रह गया। यह ट्रम्प के यूरोप के साथ बढ़ते मतभेद और पुतिन के साथ करीबी को दिखाता है। अमेरिका, रूस, बेलारूस और उत्तर कोरिया ने यूरोपीय संघ के प्रस्ताव के विरोध में मतदान किया। डोनाल्ड ट्रम्प के चुनाव जीतने के बाद यह अमेरिकी नीति में बड़ा बदलाव दिखाता है। इस प्रस्ताव का समर्थन न करना दिखाता है कि ट्रम्प रूसी राष्ट्रपति को हमले की जिम्मेदारी से आजाद करते हैं।
93 देशों ने यूरोप के प्रस्ताव का समर्थन किया, जबकि 18 देशों ने इसका विरोध किया। भारत ने इस दौरान मतदान से परहेज किया। प्रस्ताव में रूस को एक आक्रामक देश बताया गया और उसे यूक्रेन से अपने सैनिकों को हटाने का आह्वान किया गया। यह मतदान तब हुआ जब ट्रम्प ने सोमवार को व्हाइट हाउस में इमैनुएल मैक्रों से मुलाकात की। दोनों ने जी-7 नेताओं के साथ युद्ध खत्म करने के लिए शांति वार्ता की संभावनाओं और नाटो गठबंधन के भविष्य पर अमेरिका-यूरोप के बढ़ते मतभेदों पर चर्चा की। यूक्रेन की ओर से पेश किए गए प्रस्ताव में रूसी सेना की वापसी की मांग की गई है, जिसे संशोधन के बाद पेश किया गया था। भारत शांति का समर्थन करने की नीति पर चलता है। उसने इस प्रस्ताव से दूरी बनाई। 65 देशों ने मतदान से परहेज किया। पहले भी रूस विरोधी प्रस्तावों पर भारत का यही रुख रहा है। भारत दोनों पक्षों के बीच संवाद और कूटनीति को फिर से शुरू करने की वकालत करता है लेकिन ट्रम्प प्रशासन रूस के साथ सीधे बात कर रहा है। हाल ही में सऊदी अरब में रूस और अमेरिका के बीच बैठक हुई, जिसमें यूक्रेन को आमंत्रित नहीं किया गया।
अमेरिका के बदले रुख से साफ है कि रूस युद्ध जीत गया है। यूक्रेन-रूस युद्ध को तीन साल पूरे हो चुके हैं। यूक्रेन की अर्थव्यवस्था बर्बाद हो चुकी है और वह दुनिया के सामने मदद की भीख मांग रहा है। युद्ध खत्म करने के लिए सऊदी अरब में अमेरिका और रूस के विदेश मंत्रियों ने बैठक की लेकिन इस बैठक में यूक्रेन को बुलाया ही नहीं गया। ट्रम्प ने यूक्रेन को हथियारों की मदद देने से साफ इंकार कर दिया है। उन्होंने साफ कह दिया है कि अमेरिका ने यूक्रेन को अरबों डॉलर की मदद दी है लेकिन वह अब हर मदद की कीमत वसूलेंगे। ट्रम्प की नजर यूक्रेन के दुर्लभ खजाने पर है क्योंकि उसकी जमीन में अरबों डॉलर की गैस, कोयला और दुर्लभ खनिज दबे हैं। ट्रम्प इस खजाने को लेने के लिए डील चाहते हैं। रूसी राष्ट्रपति पुतिन युद्ध लेकर जो चाहते थे वही हो रहा है। यद्यपि रूस-अमेरिका संबंध एकदम सुधरने मुश्किल हैं लेकिन ट्रम्प के रुख से बर्फ पिघल सकती है। अगर ट्रम्प और पुतिन की दोस्ती होती है तो वैश्विक परिदृश्य ही बदल सकता है। तब नाटो बेअसर हो जाएगा और यूरोपीय देशों को सुरक्षा के लिए अपनी व्यवस्था करनी होगी। सांप और नेवला साथ आ जाएं तो बहुत कुछ बदलेगा। इससे सबसे ज्यादा परेशानी चीन को होगी। चीन यूरोपीय संघ के साथ जा सकता है। देखना होगा वैश्विक राजनीति में क्या फेरबदल होता है।