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ट्रम्प का 50% दर्द, भारत का 100% लाभ

04:00 AM Aug 13, 2025 IST | Prabhu Chawla
ट्रम्प का 50  दर्द  भारत का 100  लाभ

इस तूफान में भारत के पास अपनी तकदीर को फिर से आकार देने का मौका है-ऐसे साहसिक सुधारों के साथ जो मांग को प्रज्ज्वलित करें, निवेश आकर्षित करें और चीन की विनिर्माण क्षमता को टक्कर दें। शक्ति का विरोधाभास यह है कि यह उन लोगों के हाथ जला देती है जो जनादेश को जलती हुई तलवार समझ बैठते हैं। जब डोनाल्ड ट्रम्प जैसे लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नेता अपने जनादेश को भरोसे की तरह नहीं, बल्कि एक डंडे की तरह इस्तेमाल करते हैं, ‘अमेरिका फर्स्ट’ के चमकते भ्रम को सहारा देने के लिए व्यापक टैरिफ लगाकर तो वे सिर्फ़ प्रतिद्वंद्वियों को नहीं हिलाते, बल्कि अपने ही विकृत आर्थिक सपने की नींव में आग लगा देते हैं।
ट्रम्प के भारी-भरकम टैरिफ भारत की आर्थिक धड़कन पर सीधा वार हैं। फ़ार्मास्युटिकल्स (12.2 अरब डॉलर), वस्त्र (8 अरब डॉलर), इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटोमोबाइल -जो भारत के 74 अरब डॉलर के अमेरिकी निर्यात के अहम स्तंभ हैं, पर 50% शुल्क का प्रावधान है जो विभिन्न आंकलनों के अनुसार जीडीपी से 0.50% से अधिक की गिरावट ला सकता है। 87.95 रुपये प्रति डॉलर पर लड़खड़ाती मुद्रा, भारत के 40 करोड़ मजबूत मध्य वर्ग के लिए दर्द को और बढ़ाती है, जिनकी क्रय शक्ति 50% खपत को चलाती है लेकिन इसी तूफ़ान में भारत के पास अपनी आर्थिक दिशा को पलटने का मौका है, ऐसा मॉडल अपनाकर जो मांग को प्राथमिकता दे। दरअसल, अत्यधिक आपूर्ति से मांग आनुपातिक रूप से नहीं बढ़ी है।
मांग को बढ़ाने के लिए भारत के मध्य वर्ग-जो 15 लाख रुपये से अधिक की आय पर 30-40% आयकर के बोझ तले दबा है,को तुरंत राहत चाहिए। 15 लाख रुपये से कम आय पर कर दर को 15% करने से एनआईटीआई आयोग के 2024 के अनुमान के अनुसार, 12-15% तक अतिरिक्त आय उपलब्ध होगी जिससे 50 अरब डॉलर की नई खपत खुलेगी। ग्रामीण भारत में जहां 2024 में खपत वृद्धि सिर्फ़ 4.5% रही, जबकि शहरों में 6.2% सीधी नकद सहायता आवश्यक है। पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना के 2 लाख करोड़ रुपये के कोष को बढ़ाकर 10 करोड़ ग्रामीण परिवारों को हर महीने 5,000 रुपये देने से ग्रामीण मांग में 10% का उछाल आ सकता है जिससे जीडीपी में 0.5% की बढ़ाैतरी होगी। यह नीचे से ऊपर जाने वाली रणनीति होगी, जो 2019 से अब तक 1.45 लाख करोड़ रुपये की कॉर्पोरेट टैक्स कटौती वाले असफल ‘ट्रिकल-डाउन’ मॉडल की जगह लेगी, जिसने नौकरियां पैदा करने में बहुत कम योगदान दिया है।
रोजगार सबसे पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। रक्षा, ग्रामीण अवसंरचना, स्वच्छता, जल संरक्षण और सड़क परिवहन में 100% एफडीआई की अनुमति देकर और तकनीकी हस्तांतरण को अनिवार्य बनाकर रोजगार परिदृश्य बदला जा सकता है। भारत का 81 अरब डॉलर का रक्षा बाजार जो सालाना 8% की दर से बढ़ रहा है, 2030 तक 12 लाख नौकरियां पैदा कर सकता है। सड़क परिवहन जो भारत की 3.5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, को 1 लाख किमी नई हाईवे के लिए 500 अरब डॉलर की जरूरत है। भूमि अधिग्रहण को आसान बनाकर और 20 साल के कर-मुक्ति प्रावधान से एफडीआई प्रवाह में 30% की वृद्धि हो सकती है, जैसे वियतनाम को टैरिफ के बाद लाभ मिला।
तकनीक भारत का गुप्त हथियार है। ट्रम्प की H-1B वीज़ा पाबंदियां 250 अरब डॉलर के आईटी सैक्टर के लिए खतरा हैं जो 54 लाख लोगों को रोजगार देता है। भारत को अंदर की ओर मुड़कर टीसीएस और इंफोसिस जैसी कंपनियों को एआई, ब्लॉकचेन और 6जी समाधानों के विकास के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। 2024 के नैसकॉम रिपोर्ट के अनुसार टेक आर एंड डी में 1 अरब डॉलर का निवेश 10,000 नौकरियां देता है, 10 अरब डॉलर का निवेश 2028 तक 1 लाख नौकरियां पैदा कर सकता है। कंपनियों को अपने राजस्व का 2% आर एंड डी में लगाना अनिवार्य किया जाए जो अभी 0.7% है। भारत की 25% कॉर्पोरेट टैक्स दर नई विनिर्माण इकाइयों के लिए प्रतिस्पर्धी है। अब समय आ गया है कि अमेरिकी रेटिंग्स की बादशाहत को खत्म किया जाए। एक ऐसा सिस्टम बने जो 1.4 अरब भारतीयों की सेवा करे, न कि वॉल स्ट्रीट की मनमानी। मूडीज, एस एंड पी और फिच लगातार भारत की क्षमता को कम आंकते हैं, जबकि चीन जिसकी वृद्धि दर सिर्फ़ 4.6% है, को A1 रेटिंग मिलती है।
मैक्किंजी, ईवाई और पीडब्ल्यूसी जैसी अमेरिकी कंसल्टेंसी कंपनियां जिन पर हितों के टकराव के लिए 641 मिलियन डॉलर के अमेरिकी समझौते हो चुके हैं, भारत की 70% ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए अनुपयुक्त सलाह देती हैं। इनकी सलाह नौकरशाही के बोझ को बढ़ाती है और इनके लिए अंतहीन परामर्श के रास्ते खोलती है। भारत को आईआईटी और आईआईएम स्नातकों से सुसज्जित एक राष्ट्रीय नीति अनुसंधान संस्थान बनाना चाहिए जो देश विशेष के सुधार तैयार करे। उदाहरण के लिए, तेलंगाना में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में ब्लॉकचेन से भूमि रिकॉर्ड डिजिटाइज करना, हर साल विवादों में 5 अरब डॉलर बचा सकता है। जीएसटी और कंपनी कानून के छोटे उल्लंघनों को अपराधमुक्त करने से 15 अरब डॉलर की पूंजी मुक्त होगी जिससे छोटे व्यवसायों को बढ़ावा मिलेगा। महिंद्रा समूह के चेयरमैन आनंद महिंद्रा की पुकार “ईज ऑफ डूइंग बिज़नेस ही टैरिफ के ख़िलाफ हमारी ढाल है” पर अमल करना होगा। वर्ल्ड बैंक के ईज ऑफ डूइंग बिजनेस इंडेक्स में भारत की 63वीं रैंक वियतनाम की 70वीं रैंक से पीछे है। सिंगल विंडो क्लियरेंस भारत को शीर्ष 50 में पहुंचा सकता है जिससे 2030 तक 100 अरब डॉलर का एफडीआई आ सकता है। भारत को “भारत के लिए संस्थान निर्माण” का मंत्र अपनाना चाहिए।
By Trump and for Trum नियम नहीं हो सकता। भारत पर 50% टैरिफ और ​िब्रक्स पर 100% टैरिफ की धमकी जो डि-डॉलराइज़ेशन की ओर बढ़ रहा है, अमेरिका के बहुध्रुवीय दुनिया से डर को दिखाता है। दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में भारत को ​िब्रक्स का नेतृत्व करना चाहिए, वैश्विक व्यापार को पुनर्परिभाषित करने, डॉलर को किनारे करने और अमेरिकी आर्थिक राष्ट्रवाद को रोकने के लिए। डॉलर, जो 88% वैश्विक व्यापार को स्विफट के जरिए नियंत्रित करता है, अमेरिका की वित्तीय पकड़ है। रूस के साथ भारत का 2024 में 10 अरब डॉलर का रुपये-रूबल व्यापार जो 2023 से 20% ज़्यादा है, दिखाता है कि स्थानीय मुद्राएं काम करती हैं। ​िब्रक्स के 26 ट्रिलियन डॉलर जीडीपी में इसे फैलाने से 20 अरब डॉलर की बचत हो सकती है। चीन की तरह CIPS से ​स्विफ्ट को सीमित करना, व्यापार को अमेरिकी प्रतिबंधों से बचाएगा। भारत को ​िब्रक्स समर्थित ट्रेडिंग मुद्रा का समर्थन करना चाहिए, जिसे न्यू डेवलपमेंट बैंक का बैकअप मिले।
2024 में ​िब्रक्स सदस्यों के साथ भारत का 250 अरब डॉलर का व्यापार 15% बढ़ा, लेकिन ऊंचे टैरिफ इसकी क्षमता को सीमित करते हैं। सीआईआई के अनुसार, 5% औसत टैरिफ वाले ​िब्रक्स मुक्त व्यापार समझौते से 2030 तक भारत के निर्यात में 60 अरब डॉलर की वृद्धि हो सकती है। 2026 में ​िब्रक्स व्यापार शिखर सम्मेलन की मेजबानी भारत की वैश्विक शक्ति को मजबूत करेगी। एफटी के मुताबिक, ट्रम्प के टैरिफ आपूर्ति शृंखलाओं को बदल देंगे। ऐसे में अमेरिका के स्मार्टफोन आयात में भारत की 44% हिस्सेदारी से 50 अरब डॉलर का निर्यात हो सकता है। ईयू, यूके और आसियान (2024 में 200 अरब डॉलर का व्यापार) के साथ व्यापार समझौते भारत को “विश्वगुरु” की भूमिका दिला सकते हैं। आरपीजी समूह के चेयरमैन हर्ष गोयंका ने कहा, “ट्रम्प की अराजकता भारत के चमकने का मौका है।”
भारत को नेतृत्व करना चाहिए, पीछा नहीं और विपरीत परिस्थितियों को शानदार विजय में बदलना चाहिए। ट्रम्प के टैरिफ अत्याचार भारत को ऐतिहासिक सफलता का अवसर दे रहे हैं। करों में कटौती, एफडीआई खोलने और तकनीक का लाभ उठाकर भारत एक प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था बना सकता है। आनंद महिंद्रा के युद्धघोष को दोहराते हुए “यह भारत के सामर्थ्य को खोलने का क्षण है।” मेक इंडिया ग्रेट साहस और चमक के साथ-अभी से शुरू करें।

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Prabhu Chawla

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