ट्रम्प का चीन विरोधी रुख
डोनाल्ड ट्रम्प 20 जनवरी को दूसरी बार राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे…
डोनाल्ड ट्रम्प 20 जनवरी को दूसरी बार राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे और शपथ लेने के बाद व्हाइट हाऊस में पहले ही दिन उनके पास करने के लिए बहुत कुछ है। ट्रम्प के पहले राष्ट्रपति कार्यकाल में कूटनीति और व्यापार जैसे क्षेत्रों में अमेरिकी नेतृत्व के पिछले दृष्टिकोणों में एक बहुत बड़ा बदलाव आया था। ट्रम्प शपथ लेने से पहले ही एक्शन में हैं। ट्रम्प के एजैंडे में प्रवासियों का बड़े पैमाने पर निर्वासित करना, गुप्त रूप से उनके खिलाफ काम कर रहे हजारों सैंकड़ों कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाना और 2021 के कैपिटल हिल्स दंगों में गिफ्तार लोगों को क्षमादान देना शामिल है। सारी दुनिया की नजरें ट्रम्प पर लगी हुई हैं और उनकी विदेश नीति को लेकर अनुमान लगाए जा रहे हैं। डोनाल्ड ट्रम्प ने शपथ ग्रहण के एक दिन बाद ही क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक बुलाई है जिसमें आॅस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका के विदेश मंत्री मिलेंगे। भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर इस बैठक में शामिल होंगे और अमेरिका के नए िवदेश मंत्री मार्को रुबियो भी शामिल होंगे। मार्को रुबियो को चीन विरोधी माना जाता है। उन्होंने पिछले वर्ष जुलाई में एक विधेयक पेश किया था, जिसमें कहा गया था कि प्रौद्योिगकी हस्तांतरण के मामले में भारत से जापान, इजराइल, दक्षिण कोरिया और नाटो भागीदारों की ही तरह समान व्यवहार किया जाए। मार्को रुबियो का चीन के प्रति रुख काफी आक्रामक रहा है। यह िबल कहता है कि भारत-अमेरिका भागीदारी कम्युनिस्ट चीन के प्रभाव का मुकाबला करने में सक्षम होगा। मार्को रुबियो ने भारत के साथ रणनीतिक, कूटनयिक, आर्थिक और सैन्य संबंधों को मजबूत बनाने की जमकर वकालत की है। रुबियो ने ही पाकिस्तान की सहायता रोकने का समर्थन किया था। भारत के लिए क्वाड की बैठक काफी महत्वपूर्ण है। यह बैठक ट्रम्प के नए प्रशासन की विदेश नीति का िहस्सा होगी। साथ ही इस बैठक का मुख्य उद्देश्य यह िदखाना है कि नए प्रशासन के तहत भारत प्रशांत क्षेत्र के िलए अमेरिका की प्रतिबद्धता में कोई बदलाव नहीं आया है।
इस बैठक को अमेरिकी विदेश नीति में निरंतरता और स्थिरता का संकेत माना जा रहा है। यह बैठक नए प्रशासन के साथ विदेशी नेताओं के साथ पहली महत्वपूर्ण बातचीत होगी। इस दौरान अमेरिकी कांग्रेस द्वारा नए विदेश मंत्री के रूप में मार्को रुबियो की पुष्टि होने की संभावना है और उनकी यह पहली विदेश नीति बैठक होगी। 21 जनवरी को क्वाड देशों की बैठक से पहले अमेरिकी कांग्रेस मार्को रुबियो को विदेश मंत्री के रूप में मंजूरी दे सकती है और उन्हें सोमवार शाम को शपथ लेने का मौका मिल सकता है। शपथ लेने के बाद, यह उनकी पहली विदेश नीति बैठक होगी। अन्य तीन देशों की बात करें तो साथ ही मामले में भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर, ओआरएफ अमेरिका के कार्यकारी निदेशक ने इस बैठक को सकारात्मक और स्थिरता का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि ट्रम्प के पहले कार्यकाल में क्वाड को फिर से शुरू किया गया था जो कि इस बात का संकेत देता है कि अमेरिका अब एक अधिक प्रतिस्पर्धी वैश्विक रूपरेखा में है जहां वह बाकी दुनिया को हल्के में नहीं ले सकता।
जैसे-जैसे दुनिया में भारत का रुतबा बढ़ा है और भारत अब बुलंद आवाज हो गया है। साल 2004 में सुनामी से हुई तबाही के बाद यह महसूस किया जाने लगा कि समुद्री सुरक्षा के लिए एक मंच होना चाहिए, फिर चीन की ओर से मिलने वाले खतरों को देखते हुए भी इसकी स्थापना को बल मिला। ऐसे में एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशंस (आसियान) के चार देश भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान एकजुट हुए। साल 2007 में हुई आसियान की एक अनौपचारिक बैठक के दौरान जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने समुद्री सुरक्षा के लिए क्वाड्रिलेटरल सेक्योरिटी डायलॉग (चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता) यानी क्वाड का प्रस्ताव रखा और इसी के साथ इसकी शुरूआत हो गई। इस अनौपचारिक गठबंधन यानी क्वाड का गठन चीन को रास नहीं आया। वह नाराज भी हुआ और यह जानता है कि उस पर दबाव बनाने के लिए ही इसका गठन किया गया है।
समंदर में जिस तरह से चीन अपनी धौंस पट्टी जमाने की कोशिश कर रहा था, उसका जवाब क्वाड देशों ने संयुक्त रूप से नौसेना अभ्यास करके दे दिया है। क्वाड कोई सैन्य गठबंधन नहीं है, उसका लक्ष्य भारत प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा और स्थायित्व को बनाए रखना है। नियम आधारित व्यवस्था बनाना और परिवहन की स्वतंत्रता को बरकरार रखना है। क्वाड के चलते चीन पर भारत की आर्थिक निर्भरता घटी है। भारत के वैश्विक व्यापार के लिए क्वाड के जरिए महत्वपूर्ण व्यापार मार्गों की सुरक्षा भी सुनिश्चित की जाती है। यह चीन के सैन्य आक्रमण को रोकने के साथ ही इंडो पैसिफिक क्षेत्र में चीनी आक्रामकता को रोकने में मददगार है। क्वाड के सप्लाई चैन से जुड़कर भारत अपनी उत्पादन क्षमता को और मजबूत कर रहा है। साथ ही खुद को उत्पादन के एक दमदार वैकल्पिक केंद्र के रूप में स्थापित कर चीन को चुनौती दे रहा है। पूरी दुनिया में जब चीन को लेकर एक अलग माहौल बन रहा है, तब भारत का आर्थिक लचीलापन यहां विदेशी निवेश को बढ़ावा दे रहा है। कई देशों की बड़ी-बड़ी निर्माण इकाइयां जो पहले चीन से संचालित होती थीं, वे अब भारत में भी अपना उत्पादन शुरू कर चुकी हैं। इनमें मोबाइल निर्माण से लेकर विदेशी कारें तक शामिल हैं।
डोनाल्ड ट्रम्प का चीन के विरुद्ध सख्त रुख सामने आ गया है। ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल में भारत के साथ संबंधों का और अधिक विस्तार होने की उम्मीद है। भारत अपने हितों को देखते हुए बहुत सतर्कता से आगे बढ़ेगा क्योंकि वह अपने कंधों पर अमेरिका को भी बंदूक चलाने नहीं देगा।