Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

ट्रम्प की स्ट्राइक और हमारे नेतृत्व की परीक्षा

04:02 AM Aug 07, 2025 IST | Editorial

“मुझे फर्क नहीं पड़ता कि भारत रूस के साथ क्या करता है। वह अपनी डैड इकानिमी को मिल कर गिरा सकते हैं”, भारत पर 25% टैरिफ थोपते हुए अमेरिका के असंतुलित राष्ट्रपति डाेनाल्ड ट्रम्प के यह कड़वे शब्द बहुत देर चुभते रहेंगे और इनमें भारत और अमेरिका के रिश्ते को तबाह करने की पूरी क्षमता है। ऐसे कहा जा रहा है कि जैसे हम नार्थ कोरिया हों। सामरिक विशेषज्ञ डैरिक ग्रासमैन के अनुसार, “मई 1998 के बाद यह भारत और अमेरिका की सामरिक पार्टनरशिप के लिए सबसे बुरा दिन है”। इसी के साथ अमेरिका के राष्ट्रपति ने घोषणा की कि उन्होंने पाकिस्तान के साथ समझौता किया है और दोनों मिल कर पाकिस्तान के “विशाल तेल रिजर्व” का विकास करेंगे। पाकिस्तान के साथ समझौते की घोषणा हमें चिढ़ाने के लिए की गई है क्योंकि अभी तक पाकिस्तान के कथित तेल रिजर्व के बारे कोई हरकत नहीं है। भारत सरकार की प्रतिक्रिया सावधानीपूर्वक और परिपक्व रही है। कहा गया कि हम राष्ट्रीय हित में निर्णय लेंगे और रूस से रिश्ते समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं। इन शब्दों के साथ भारत ने ट्रम्प की धौंस का संयमित जवाब देने की कोशिश की है, पर समस्या तो है। आिखर अमेरिका दुनिया का सबसे ताकतवर देश है। उसके साथ बिगड़ते रिश्ते हमारे हित में नहीं हो सकते।
नरेन्द्र मोदी ने ट्रम्प के साथ अच्छा रिश्ता बनाने का बहुत प्रयास किया है। याद रखिए अब की बार ट्रम्प सरकार के अपने दूसरे कार्यकाल में अमेरिका के राष्ट्रपति का रवैया भारत विरोधी है। जिस पाकिस्तान को उनसे पहले राष्ट्रपति अछूत समझते रहे उसे ही ट्रम्प साथी बनाने में लगे हैं। वह देश जिसे दुनिया आतंकवाद का अड्डा जानती है और जो एक प्रकार से अंतर्राष्ट्रीय भिखारी है, वह कूटनीति में हमें मात कैसे दे गया? दक्षिण एशिया का शक्ति संतुलन जो हमारी तरफ झुका हुआ था, को ट्रम्प उलटाने में लगे हैं। ट्रम्प के बदले रुख का कारण क्या है? एक कारण है कि भारत सरकार उन्हें पाकिस्तान के साथ युद्ध विराम का श्रेय देने को तैयार नहीं। ट्रम्प लगभग ढाई दर्जन बार कह चुके हैं कि युद्ध विराम उन्होंने करवाया जबकि भारत सरकार का कहना है कि युद्ध विराम तब हुआ जब पाकिस्तान के डीजीएमओ ने इसकी याचना की। पाकिस्तान उसका श्रेय ट्रम्प को दे रहा है और उन्हें नोबेल सम्मान देने की सिफारिश कर चुका है जो अहंकारी ट्रम्प को बहुत पसंद आई है जबकि भारत का कोरा जवाब था कि नोबेल पुरस्कार की बात व्हाइट हाउस से ही करें। पाकिस्तान में हमारे पूर्व राजदूत गौतम बम्बावाला ने माना है कि ट्रम्प की ईगो को खुश कर पाकिस्तान ने 'अपने पत्ते सही चले हैं’।
हर्ष पंत जोअब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में विशेषज्ञ है, का कहना है कि ट्रम्प इसलिए नाराज है क्योंकि भारत के साथ ट्रेड डील किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंची। अमेरिका के वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट के अनुसार भी राष्ट्रपति ट्रम्प और उनकी सारी ट्रेड टीम ‘भारत के साथ ट्रेड वार्ता को लेकर हताश हैं। भारत वह पहला देश था जिसने अमेरिका के साथ ट्रेड वार्ता शुरू की थी। शुरू में हमने टैरिफ घटा कर ट्रम्प को खुश करने के लिए कई रियायतें भी दी थीं। हम वहां से आयात, जिसमें रक्षा सामान भी शामिल है, वह बढ़ाते जा रहे हैं। इसी के कारण ट्रम्प भारत और मोदी को 'फ्रैंड’ कहते रहे हैं, पर अब 25% टैरिफ लगा दिया है और हमारी अर्थव्यवस्था को ‘डैड’ करार दिया। तीसरा बड़ा कारण है कि हम कृषि और डेयरी क्षेत्र को उनके लिए खोलने को तैयार नहीं है। हम उन्हें उस क्षेत्र में एंट्री नहीं दे सकते जिस पर हमारेलगभग 65 प्रतिशत लोग निर्भर हैं। अमेरिका में हर किसान को वार्षिक 26 लाख रुपए की सब्सिडी मिलती है जबकि हमारे एक किसान की औसत आय एक लाख रुपए से कम है। हम उनका मुकाबला कर ही नहीं सकते।
ट्रम्प की नाराजगी का अगला कारण रूस है। राष्ट्रपति बनने से पहले ट्रम्प का दावा था कि बनने के बाद वह 24 घंटों में रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध रुकवा देंगे। पर यह हो नहीं रहा क्योंकि पुतिन अपनी शर्तों पर अड़े हुए हैं। रूस पर दबाव डालने के लिए ट्रम्प हम पर दबाव डाल रहे हैं कि हम रूस से तेल लेना बंद कर दें और रक्षा सामान की खरीद कम कर दें। अमेरिका और उसके यूरोपीय साथी कई बार भारत और चीन पर आरोप लगा चुके हैं कि हम रूस से जो तेल और रक्षा सामान खरीदते हैं उससे यूक्रेन के खिलाफ रूस की युद्ध मशीनरी के लिए धन मिलता है। चीन क्योंकि बराबर की टक्कर है इसलिए उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकते, पर हमें जुर्माना लगाने की भी ट्रम्प ने धमकी दी है। रूस के तेल पर हमारी निर्भरता यूक्रेन युद्ध से पहले 2% से बढ़ कर जून 2024 में 40% हो गई थी। उनका तेल सस्ता है और हमारा अधिकतर रक्षा सामान रूस से आता है। ब्रह्मोस मिसाइल जो आपरेशन सिंदूर के दौरान इतनी सफल रही है, भी रूस के साथ पार्टनरशिप में यहां बनती है।
हम रूस से अलग हो ही नहीं सकते, और न ही अमेरिका जैसे अविश्वसनीय देश के पाले में जा सकते है। हमारी लीडरशिप के लिए यह न केवल बड़ी चुनौती है बल्कि परीक्षा भी है। लोग इंदिरा गांधी को याद करते हैं कि वह निक्सन के आगे डटी रहीं। इस सरकार की यह भी समस्या है कि वह प्रदर्शित करते रहे कि मोदी और ट्रम्प बहुत घनिष्ठ मित्र हैं। जिसे गोदी मीडिया कहा जाता है उसने देश का बहुत अहित किया है। जो मोदी और ट्रम्प के बीच 'कैमिस्ट्री’ को लेकर गद्गद् हो रहे थे उन्होंने देश को गुमराह किया है। लोकराय बिल्कुल अमेरिका विरोधी हो चुकी है क्योंकि लोग समझते हैं कि हमसे विश्वासघात हुआ है। अगर सरकार कुछ समझौता करने की कोशिश भी करेगी उसे लोग समर्पण समझेंगे।
डाेनाल्ड ट्रम्प की सोच में केवल ताकत का महत्व है, न सद्भावना का है, न किसी गठबंधन का है। अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य अचानक हमारे लिए अप्रिय हो गया है। हमारा कोई दोस्त नजर नहीं आ रहा। हमारे विकल्प सीमित हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि किसी देश ने हमें आॅपरेशन सिंदूर से नहीं रोका, पर यह भी कड़वी सच्चाई है कि किसी देश ने खुल कर हमारा समर्थन नहीं किया और न ही पाकिस्तान की निंदा ही की है। हमारे छोटे-छोटे पड़ोसी देश भी तमाशा देखते रहे। एक तरफ चीन सीमा पर फुंकार रहा है तो दूसरी तरफ अमेरिका ने पाकिस्तान के सौ खून माफ कर दिए गए हैं।
अमेरिका का कुल घाटा 1200 अरब डालर है जिसमें हमारा योगदान केवल 40 अरब डालर का है। अर्थात इस टैरिफ-स्ट्राइक का सम्बंध केवल अर्थव्यवस्था से ही नहीं है। यह सामरिक और राजनीतिक स्ट्राइक भी है।
दबाव के नीचे झुकना हमारे लिए कोई विकल्प नहीं है। ट्रम्प हमारी आर्थिक, विदेश नीति और सामरिक स्वायत्तता समाप्त करना चाहते हैं। ब्राजील, कैनेडा और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों ने झुकने से इंकार कर दिया है। रूस से हमें अलग करने का अशिष्ट प्रयास हमारी सामरिक प्रतिष्ठा पर चोट है। जैसे डाॅ.मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार संजय बरूआ ने लिखा है ‘1971 के बाद पहली बार पाकिस्तान को लेकर अमेरिका और चीन एक ही तरफ हैं’। यह अधिक देर नहीं रहेगा क्योंकि चीन जिसने पाकिस्तान में अरबों डालर का निवेश किया है चुपचाप अमेरिका और पाकिस्तान में बढ़ती घनिष्ठता बर्दाश्त नहीं करेगा। हमें अब अमेरिका पर निर्भरता कम करनी होगी और दूसरे बाजार ढूंढने पड़ेंगे। यह आसान नहीं होगा। पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन ने लिखा है, “ट्रम्प के प्रतिरोध करने की कीमत चुकानी पड़ सकती है, पर हमें इसके लिए तैयार रहना चाहिए”। स्पष्ट संदेश जाना चाहिए कि बंदूक की नोक पर समझौता नहीं हो सकता, न होगा। नरेन्द्र मोदी के लिए यह चुनौती ही नहीं अपना नेतृत्व और मजबूत करने का मौका भी है।
अंत में: भारत को अपमानित करने के लिए डाेनाल्ड ट्रम्प ने हमें डैड इकानिमी कहा है। हम दुनिया की चौथी सबसे बड़ी 4 ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था है और कुछ महीनों में हम जापान को पछाड़ कर तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएंगे लेकिन ट्रम्प साहिब को हमारी अर्थव्यवस्था मुर्दा नजर आती है। एनडीटीवी ने कई अमेरिकी एआई सिस्टम से सवाल किया कि 'क्या भारत की अर्थव्यवस्था डैड है?’ जवाब बड़े दिलचस्प हैं,
* चैटजीपीटी—भारत की अर्थव्यवस्था डैड से बहुत दूर है। यह गतिशील और शक्तिमान है।
* ग्रौक—नहीं यह मुर्दा नहीं है। यह वैश्विक स्तर पर सबसे तेज अर्थव्यवस्था में से एक है।
* जेमिनी—मजबूत विकास है।
* मैटा—भारत वैश्विक स्तर पर सबसे तेज विकास करने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था है।
* कोपायलेट—मरने से बहुत दूर यह तो उलट तेज विकास कर रही है।
अफसोस है कि अमेरिका के राष्ट्रपति को अपनी विशाल ईगो में यह नजर नहीं आता, पर अफसोस इतना ही नहीं। हमारे देश में भी चन्द लोग हैं जो ट्रम्प से सहमत हैं। इनमें प्रमुख हैं विपक्ष के नेता राहुल गांधी। लोकसभा में प्रधानमंत्री मोदी को यह चुनौती देने के बाद कि वह कहें कि 'डाेनाल्ड ट्रम्प तुम झूठे हो’, राहुल गांधी ने सदन के बाहर कह दिया कि डाेनाल्ड ट्रम्प सच कह रहे हैं कि 'इंडियन इकानिमी इज डैड’। उनका कहना था कि प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री को छोड़ कर सारे जानते हैं कि हमारी अर्थव्यवस्था मुर्दा है। इस टिप्पणी की जितनी भी निन्दा की जाए कम है। राहुल गांधी सैल्फ गोल करने के आदी हैं। जब-जब देश उन्हें गम्भीरता से लेने लगता है वह ऐसा कुछ कर बैठतें है, या कह देते हैं कि पुनर्विचार करना पड़ता है।

Advertisement
Advertisement
Next Article