दो बूंद जिन्दगी की...
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13 जनवरी, 2014 को भारत को पोलियो के कलंक से आजादी मिली थी। इस दिन पोलियोमुक्त भारत के तीन वर्ष पूरे हो गए थे यानी तीन साल में पोलियो का एक भी मामला सामने नहीं आया था। तब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत को पोलियोमुक्त देश घोषित कर दिया था। भारत ने पोलियो के विषाणु खत्म करने के लिए 35 वर्ष तक जंग लड़ी। 1981 में भारत में पोलियो के 38,090 मामले थे जो 1987 से कम होकर 28,264 मामले ही रह गए। 2009 में सबसे ज्यादा पोलियो के 745 मामले भारत में थे। 2010 में यह संख्या 43 ही रह गई मगर यह आंकड़ा भी कम नहीं था क्योंकि दुनिया से लगभग इसका नामोनिशान खत्म हो गया था। कुछ देशों के साथ सिर्फ भारत में पोलियो का दानव अपने शिकार बना रहा था। 2010 के बाद पोलियो उन्मूलन अभियान को युद्धस्तर पर आगे बढ़ाया गया। शायद दुनिया में कहीं भी इतने बड़े पैमाने पर इतने कामयाब अभियान की मिसाल और नहीं मिलती। इस अभियान का श्रेय केन्द्रीय मंत्री डा. हर्षवर्धन को ही जाता है जिन्होंने दिल्ली का स्वास्थ्य मंत्री रहते अक्तूबर 1994 में पोलियो उन्मूलन अभियान आरम्भ किया था। कार्यक्रम इतना सफल रहा कि फिर उसे भारत सरकार द्वारा पूरे देश में अपनाया गया।
पोलियो को जड़ से उखाड़ फैंकने के लिए पल्स पोलियो अभियान में 20 लाख से अधिक कार्यकर्ताओं का अमूल्य योगदान रहा जिन्होंने घर-घर जाकर 5 साल तक के बच्चों को दो बूंद जिन्दगी की पिलाई और उनके आने वाले कल को स्वस्थ बनाने में मदद की। भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में स्वास्थ्य सेवाओं के हालात बदतर हैं। ऐसी स्थिति में अभियान की सफलता को लेकर संदेह रहे लेकिन भारत ने पूरी दुनिया को दिखा दिया था कि कुछ भी हासिल करना असम्भव नहीं। सरकार का पोलियो के खिलाफ यह अभियान ‘दो बूंद जिन्दगी की’ नाम से प्रचारित किया गया। इस अभियान के प्रति जागरूकता बढ़ाने में भारत रत्न सचिन तेंदुलकर, अमिताभ बच्चन आैर अन्य अभिनेताओं ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अमिताभ बच्चन की ‘शर्म आनी चाहिए हमें’ जुमले वाला कैम्पेन काफी असरदार रहा था। देश के दूरदराज इलाकों में रहने वाले सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े तबके में इन अिभयानों ने पोलियो के बारे में जागरूक करने का काम किया।
भारत को पोलियोमुक्त होने में आने वाली मुश्किलों के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी, विशाल जनसंख्या, जागरूकता की कमी, धार्मिक रूढ़ियां, भौगोलिक असमानताएं और कई अन्य समस्याएं सामने आईं। हालांकि भारत को पोलियोमुक्त घोषित किया जा चुका है लेकिन कुछ लोग भारत की इस बड़ी उपलब्धि पर पानी फेर देना चाहते हैं। पोलियो के खिलाफ चली जंग भारत सरकार, रोटरी क्लब, बिल एंड मेलिंडा गेट्स आैर ग्लोबल पोलियो इनीशिएटिव के साझा प्रयासों से लड़ी गई। लगातार साल में दो बार लगभग 17 करोड़ बच्चों का टीकाकरण किया गया लेकिन अफसोस गाजियाबाद की एक ड्रग कम्पनी पोलियो के वायरस को फैलाने का काम करती पकड़ी गई। गाजियाबाद स्थित मेडिकल कम्पनी बाॅयोमेड द्वारा बनाई गई ओरल पोलियो वैक्सीन में टाइप-2 पोलियो वायरस पाए गए हैं। ऐसी स्थिति में आशंका जताई जा रही है कि यह बीमारी एक बार फिर से भारत में फैल सकती है। उत्तर प्रदेश के कुछ बच्चों के मल में इस वायरस के लक्षण पाए गए। इन सैम्पल्स काे जांच के लिए भेजा गया तो वायरस की पुष्टि हो गई। कम्पनी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई और इसके प्रबन्ध निदेशक को गिरफ्तार कर लिया गया है। अगले आदेश तक बॉयोमेड को किसी भी दवाई के निर्माण और बिक्री या वितरण पर रोक लगा दी गई है। यह कम्पनी महाराष्ट्र आैर उत्तर प्रदेश को वैक्सीन सप्लाई करती थी। दोनों राज्यों को अलर्ट कर दिया गया है। दवाइयों के धंधे में भी बड़े खेल हैं, लोग नकली दवाइयों का शिकार हो रहे हैं।
हैरानी की बात तो यह है कि 2016 में ही सरकार ने आदेश दिए थे कि 25 अप्रैल तक पोलियो टाइप-2 के वायरस नष्ट कर दिए जाएं तो यह बचा कैसे रह गया। कहीं न कहीं निगरानी में लापरवाही बरती गई। अब स्वास्थ्य मंत्रालय ने पोलियो निगरानी दल से उन बच्चों का पता लगाने को कहा गया जिन्हें यह दवा पिलाई गई। भारतीय दवा महानियंत्रक ने भी कम्पनी के खिलाफ कड़े कदम उठाए हैं। बॉयोमेड ने देश के लोगों के जीवन से खिलवाड़ किया है क्योंकि वैक्सीन में पाए गए वायरस-टू अानुवांशिक बदलाव के बाद लकवा मारने का कारण बन सकता है। एक तरफ लोगों को स्वस्थ बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आयुष्मान योजना चला रहे हैं, दूसरी तरफ एक दवा कम्पनी ने पोलियो को फिर वापस लाने का काम कर राष्ट्रद्रोह किया है। केन्द्र आैर राज्यों के स्वास्थ्य विभाग सतर्क होकर काम करें। केवल एक फार्मा कम्पनी के खिलाफ कार्रवाई करने से कुछ नहीं होगा, हर दवा कम्पनी की स्कैनिंग होनी ही चाहिए। ‘दो बूंद जिन्दगी की’ कहीं जीवन को दूभर ही न बना दे।