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रूस-यूक्रेन युद्ध के दो साल

12:47 AM Feb 26, 2024 IST | Aditya Chopra
रूस यूक्रेन युद्ध के दो साल

रूस-यूक्रेन युद्ध को 24 फरवरी शनिवार को दो वर्ष पूरे हो चुके हैं। यूक्रेन के शहर खंडहरों में तब्दील हो गए हैं। हजारों लोग मारे जा चुके हैं और लाखों लोग शिविरों में रह रहे हैं। कई क्षेत्र तो अनाथ बच्चों के लिए कैम्पों में तब्दील हो चुके हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से इस बड़े युद्ध का अंत कहीं नजर नहीं आ रहा। आंकड़े बताते हैं कि लगभग 52 प्रतिशत यूक्रेनी नागरिक चिकित्सा सहायता, आवास और रोजगार जैसी बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उनके घर पूरी तरह से तबाह हो चुके हैं। ऊर्जा केन्द्रों पर हमलों के चलते बिजली, पानी और स्वास्थ्य देखभाल बाधित है। 65 लाख लोग यूक्रेन छोड़कर विदेशों में जाकर आश्रय तलाश रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि इस वर्ष डेढ़ करोड़ यूक्रेनी लोगों को मानवीय सहायता की जरूरत पड़ेगी। इस युद्ध में रूस को भी काफी नुक्सान हुआ है। पैंटागन का अनुमान है कि 60 हजार के लगभग रूसी सैनिक मारे गए हैं जबकि तीन लाख रूसी सैनिक घायल हुए हैं। रूस का काफी धन युद्ध पर खर्च हो रहा है। एक विशाल देश जिसकी ताकत बेशुमार है, उससे यूक्रेन जैसे छोटे देश का युद्ध लड़ना अपने आप में हैरान कर देने वाला है। जब युद्ध शुरू हुआ, तो शायद पूरी दुनिया को उम्मीद थी कि रूस जल्द ही यूक्रेनी सुरक्षा पर कब्ज़ा कर लेगा और राजधानी कीव पर कब्ज़ा कर लेगा। फरवरी 2022 की शुरूआत में, यूनाइटेड स्टेट्स ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ के तत्कालीन अध्यक्ष जनरल मार्क मिले ने कथित तौर पर कांग्रेस के नेताओं को बताया कि पूर्ण पैमाने पर रूसी आक्रमण की स्थिति में, यूक्रेन 72 घंटों में ढह सकता है। अब दो साल हो गए हैं और यूक्रेनियन ने रूसी सेनाओं को दूर रखा है और बहुत दृढ़ संकल्प के साथ अपने देश की रक्षा की है। हालांकि, आज युद्ध की गति रूस पर निर्भर है। यूक्रेनी सेनाएं उपकरणों और जनशक्ति की भारी कमी महसूस कर रही हैं। दूसरी ओर, रूस लड़े जा रहे नए प्रकार के युद्ध के लिए अपनी रणनीति को सफलतापूर्वक पुनः समायोजित और अनुकूलित करने में सक्षम है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह अपनी अर्थव्यवस्था को पश्चिमी प्रतिबंधों से बचाने में सक्षम है।
अमेरिका और उसके मित्र देश लगातार रूस पर प्रतिबंध लगाते जा रहे हैं। इसके बावजूद रूस को ज्यादा फर्क नहीं पड़ रहा। इससे पश्चिमी देश परेशान हो उठे हैं। अब सवाल यह है कि इस युद्ध से रूस को क्या हासिल होगा और यह युद्ध कब खत्म होगा। यद्यपि रूस को नुक्सान तो हुआ लेकिन उसने यूक्रेन के 18 फीसदी क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है। रूसी सेना का वर्तमान में दोनेत्सक, लुहान्स्क, जापरोजिया, खेर्सोन और कुछ हद तक खारकिव के कई हिस्सों पर कब्जा हो चुका है। अब तो यूक्रेन के पूर्वी शहर अवदीवका पर भी रूसी सेना का कब्जा हो गया है। फिलहाल जंग रूसी सेना के पक्ष में दिखाई देती है। इस युद्ध ने भू-राजनीति को काफी हद तक प्रभावित किया है। इस युद्ध के चलते अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में सप्लाई चेन बाधित हुई। कच्चे तेल, गैस, स्टील और निकेल से लेकर सभी चीजों के दाम बढ़े हैं। जिसका असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर दिखा। नाटो के झगड़े में यूक्रेन ऐसा फंसा कि वह अब तक युद्ध में उलझा हुआ है। यूक्रेन की सहायता को लेकर पश्चिमी देश भी बंटे हुए हैं। अमेरिकी कांग्रेस के रिपब्लिकन बहुल निचले सदन में यूक्रेन को सैन्य और नागरिक सहायता देने का विरोध किया जा रहा है। यूक्रेन नाटो का पूर्ण सदस्य नहीं है लेकिन वह नाटो के साथ करीबी सहयोग करता है। सबकी नजरें अब नवम्बर में होने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों पर लगी हुई हैं।
फिलहाल दोनों देशों के बीच सुलह की कोई संभावना नहीं दिख रही है। रूस और यूक्रेन दोनों पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। यूक्रेन को अमेरिका समेत तमाम पश्चिमी देशों का साथ मिल रहा है। इसी बीच यूक्रेन की सरकार सेना में भर्ती के लिए न्यूनतम आयु 27 से घटाकर 25 करने पर भी विचार कर रही है। इसके अलावा यूक्रेन अपने सैन्य वाहन और ड्रोन बनाकर अपनी सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने की भी कोशिश कर रहा है। फिलहाल यूक्रेन हथियारों की आपूर्ति और यूरोप व अमेरिका से वित्तीय सहायता पर निर्भर है। यूरोपीय संघ द्वारा हाल ही में डालर 54 बिलियन की वित्तीय सहायता को मंजूरी दी है। इसके अलावा नाटो सदस्य कुछ अतिरिक्त हथियारों की आपूर्ति करेंगे। उधर रूस भी युद्ध से अपने कदम पीछे नहीं हटाना चाहता है। यह लगातार ईरान से ड्रोन खरीद रहा है और उत्तर कोरिया से तोपखाने गोला बारूद और कुछ मिसाइलों की मात्रा बढ़ा रहा है। ऐसे में युद्ध रुकने की फिलहाल कोई संभावना नहीं है।
रूस के राष्ट्रपति पुतिन अब पूरे यूक्रेन को हड़प लेना चाहते हैं। अब सवाल यह है कि क्या युद्ध के कारण पुतिन और मजबूत हुए हैं। रूसी मीडिया की मानें तो पुतिन का जनाधार बरकरार है और उन्हें लोकप्रिय समर्थन मिल रहा है और मार्च के चुनावों में उनकी जीत तय है। हालांकि रूस के लोग युद्ध को पसंद नहीं कर रहे लेकिन वे पुतिन का समर्थन जरूर कर रहे हैं और चाहते हैं कि युद्ध जल्दी खत्म हो। पुतिन भले ही यह कह रहे हैं कि वे बातचीत के इच्छुक हैं लेकिन यूूक्रेन की शांति योजना और रूस की शांति योजना में ​विरोधाभास है। रूस जीते हुए इलाके वापिस करने को तैयार नहीं। वास्तव में रूस का पश्चिम के साथ और नाटो के साथ एक छद्म युद्ध है, इसलिए बातचीत की कोई सम्भावना नजर नहीं आ रही।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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