अपने बच्चों की खातिर पाला बदल सकते हैं उद्धव व शरद
महाराष्ट्र की राजनीति के दो बड़े पुरोधा यानी शरद पवार और उद्धव ठाकरे आने वाले…
’तेरी चाह में ही इस कदर रुसवा हुआ हूं मैं
था कभी बेशकीमती पर अब बिका हुआ हूं मैं’
महाराष्ट्र की राजनीति के दो बड़े पुरोधा यानी शरद पवार और उद्धव ठाकरे आने वाले दिनों में कुछ कठिन राजनीतिक फैसले ले सकते हैं। अपने स्वास्थ्यगत कारणों से ये दोनों ही नेता अपनी राजनीतिक विरासत का सुगमतापूर्वक हस्तांतरण अपने बच्चों को करना चाहते हैं। सूत्रों की मानें तो पिछले दिनों उद्धव ने देश के एक प्रमुख उद्योगपति से मिलकर उनके समक्ष अपनी यह इच्छा जताई कि ‘वे पीएम मोदी व अमित शाह से वन-टू-वन मुलाकात के लिए तैयार हैं।’ कहते हैं उद्धव अपनी पार्टी शिवसेना को एनडीए का हिस्सा बनाने को तैयार हो गए हैं, पर बदले में वे चाहते हैं कि ‘उनके पुत्र आदित्य ठाकरे को इसी वर्ष अप्रैल-मई में प्रस्तावित केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार में केंद्र में मंत्री बना दिया जाए। वैसे भी एकनाथ शिंदे को इन दिनों भाजपा ने किंचित दरकिनार कर रखा है। महाराष्ट्र के नए फड़णवीस काल में उप मुख्यमंत्री शिंदे वफादारों की भी कुछ खास चल नहीं पा रही है, ऐसे में अगर उद्धव की शिवसेना एनडीए गठबंधन का हिस्सा बनती है तो मोदी सरकार की भी नायडू-नीतीश पर से निर्भरता थोड़ी कम हो सकती है, वहीं उद्धव की दूसरी बड़ी चिंता बृहन्मंुबई नगर निगम यानी बीएमसी के आगामी चुनावों को लेकर है। बीएमसी पर अब तलक शिवसेना उद्धव गुट का ही कब्जा रहा है, और वर्ष 2025-26 के लिए अकेले बीएमसी का बजट कोई 74,427 करोड़ रुपयों का है। कहना न होगा कि उद्धव को भी पार्टी चलाने का एक बड़ा हिस्सा जाने-अनजाने बीएमसी के माध्यम से ही आता है। इस बार भाजपा ने बीएमसी चुनावों के लिए पूरी तरह कमर कस रखी है, अगर हालात ऐसे ही रहे तो फिर बीएमसी में भी उद्धव के इरादों पर पानी फिर सकता है, अगर एक बार हाथ से बीएमसी चला गया तो फिर उद्धव के लिए भी पार्टी चलाना आसान नहीं रह जाएगा, शायद यही वज़ह है कि वे अब भाजपा से हाथ मिलाने को भी तैयार हो गए हैं। रही बात दिग्गज मराठा नेता शरद पवार की तो उनका भी भाजपा की ओर ताजा झुकाव दिखने लगा है। जब से उन्होंने एक बड़े समारोह में महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे को सम्मानित किया है, कहा जाता है तब से भाजपा नेतृत्व भी उनके निरंतर संपर्क में है। कहते हैं भाजपा शीर्ष की कोशिश है कि शरद व अजित पवार की पार्टी फिर से एक हो जाए और शरद पुत्री सुप्रिया सूले को मोदी सरकार में मंत्री बना दिया जाए। वैसे भी अपने स्वास्थ्य को लेकर उद्धव व शरद पवार दोनों की चिंता एक समान है, दोनों ही चाहते हैं कि ’ उनके बच्चों का भविष्य जल्द से जल्द सुरक्षित हो जाए।’
क्या हेमंत बिस्वा से नाराज़ है भाजपा शीर्ष ?
असम के भगवा मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा को अपने बड़बोलेपन की कीमत चुकानी पड़ सकती है। हेमंत बिस्वा अपने प्रदेश में और प्रदेश से बाहर इतने उग्र हिंदुत्व का राग अलाप रहे हैं कि प्रतिक्रिया स्वरूप असम में तेजी से मुस्लिम वोट गोलबंद हुए हैं। अगले ही साल यानी 2026 में असम में विधानसभा चुनाव होने हैं, भाजपा के अपने सर्वे बताते हैं कि ‘मुसलमानों की बात छोड़ भी दी जाए तो यहां के हिंदू वोटर भी सरमा के इस प्रखर हिंदुत्व के एजेंडा पर बंटे हुए हैं।’ अब से पहले तक प्रदेश के मुस्लिम वोटों में बंटवारा करने में बदरुद्दीन अजमल की पार्टी एआईयूडीएफ की भी एक महती भूमिका रही है, पर कहते हैं अब प्रदेश का मुस्लिम वोटर भी अजमल से छिटकने लगे हैं, उसे कहीं न कहीं यह लगने लगा है कि जाने-अनजाने एआईयूडीएफ भी भाजपा की एक ‘बी’ टीम ही है। चुनावी रणनीतिकारों का ऐसा मानना है कि ‘इस बार असम के मुस्लिम वोटर गोलबंद होकर कांग्रेस के पक्ष में अलख जगाएंगे, सो इस दफे यहां एडवांटेज कांग्रेस की स्थिति बन सकती है।’ वैसे भी भाजपा शीर्ष इस बात को लेकर भी सरमा से किंचित नाराज़ है कि ‘उन्हें बड़े अरमानों से झारखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा को जिताने की महती जिम्मेदारी सौंपी गई थी, जिसमें वे नाकाम साबित रहे।’
पप्पू यादव को लेकर कांग्रेस नेतृत्व में मतभेद
बिहार को लेकर राहुल गांधी इन दिनों कुछ ज्यादा ही सक्रिय हैं, पिछले कुछ दिनों में वे दो बार बिहार का दौरा भी कर चुके हैं। अभी इस शुक्रवार को राहुल की पहल पर बिहार का कांग्रेस प्रभारी भी बदला गया है। मोहन प्रकाश की जगह राहुल गांधी के बेहद करीबियों में शुमार होने वाले कर्नाटक के एक युवा नेता कृष्णा अल्लावरू को बिहार का नया कांग्रेस प्रभारी बनाया गया है। अल्लावरू को एक बेहतर संगठनकर्ता व एक बेहद कुशल रणनीतिकार भी माना जाता है। वे यूथ कांग्रेस के प्रभारी भी हैं। इस साल के आखिर में बिहार विधानसभा के चुनाव भी होने हैं सो कयास लगाए जा रहे हैं कि जल्द ही बिहार कांग्रेस को उसका नया प्रदेश अध्यक्ष भी मिलने वाला है। सूत्र बताते हैं कि प्रियंका गांधी की पहली पसंद के तौर पर पूर्णिया के निर्दलीय सांसद पप्पू यादव का नाम उभरा है। प्रियंका चाहती हैं कि ’अगर किसी कारणवश पप्पू यादव अध्यक्ष नहीं बन पाते हैं तो फिर उनकी पत्नी रंजीत रंजन को यह महती जिम्मेदारी सौंपी जाए।’ पिछले दिनों जब राहुल पटना गए थे तो पटना एयरपोर्ट से लेकर मौर्य होटल (जहां राहुल ठहरने वाले थे) तक पप्पू यादव ने अपने होर्डिंग्स, बैनर व पोस्टर से शहर को पाट दिया था, राहुल का काफिला जब एयरपोर्ट से चला तो पप्पू यादव के समर्थक जगह-जगह जिंदाबाद के नारे बुलंद कर रहे थे। कहा जाता है कि पप्पू यादव ने भी उसी मौर्य होटल में अपने लिए भी एक कमरा बुक करा रखा था, फिर भी राहुल से उनकी वन-टू-वन मुलाकात नहीं हो पाई। राहुल जानते हैं कि अगर उन्होंने पप्पू यादव पर दांव लगाया तो फिर लालू परिवार की नाराज़गी उन्हें झेलनी पड़ सकती है। न तो लालू और न ही तेजस्वी पप्पू यादव को पसंद करते हैं’ पर राहुल यह भी समझते हैं कि ’अगर कांग्रेस को बिहार में अकेले चुनाव में जाना पड़ा तब पप्पू यादव उनके लिए एक बड़े ‘ट्रंप कार्ड’ साबित हो सकते हैं।
…और अंत में
कांग्रेस में इन दिनों संगठनात्मक स्तर पर बड़े फेरबदल देखे जा सकते हैं। इस शुक्रवार को पार्टी ने प्रभारियों की एक नई लिस्ट जारी की है। जिसमें मोहन प्रकाश, दीपक बावरिया, देवेंद्र यादव, राजीव शुक्ला, भरत सिंह सोलंकी, डॉ. अजय कुमार जैसे धुरंधर नेताओं को प्रभारी की जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया गया है। जबकि राज्यों के नए प्रभारियों के तौर पर भूपेश बघेल, डॉ. सैय्यद नासिर हुसैन, बीके हरि प्रसाद, कृष्णा अल्लावरू, रजनी पाटिल, अजय कुमार लल्लू जैसे नामों को जगह मिली है। सूत्रों की मानें तो इस बार के फेरबदल में इस बात का पूरा ख्याल रखा गया है कि ’वैसे नेताओं को ही प्रभार मिले जिन्हें संगठन चलाने का पूरा अनुभव हो और जिन पर कोई ‘बैगेज’ न हो।’ सबसे हैरतंगेज था बीके हरि प्रसाद का नाम, कहते हैं हरि प्रसाद के लिए कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने पूरा जोर लगाया, अध्यक्ष महोदय का तर्क था कि ‘कर्नाटक चुनाव के बाद पार्टी इनका पूरा इस्तेमाल नहीं कर पा रही है।’ सो, लिस्ट सामने आने के महज़ एक दिन पहले इसमें बीके हरि प्रसाद को जगह मिली।
कर्नाटक के अलावा केरल के लोगों को भी नई टीम में जगह मिल गई है। जब से प्रियंका गांधी केरल के वायनाड से सांसद बनीं हैं केरल के लोगों पर उनकी खास कृपा दृष्टि रही है। प्रियंका के कोर टीम में शुमार होने वाले संदीप सिंह के नाम को लेकर भी काफी चर्चा रही, उनके पक्ष-विपक्ष में इतनी बात कही गई है कि उनको नई जिम्मेदारी देने पर संशय बना रहा।