Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

ब्रिटेन का खंडित जनादेश

NULL

10:17 PM Jun 09, 2017 IST | Desk Team

NULL

ब्रेग्जिट मसले को लेकर निर्धारित समय से तीन वर्ष पूर्व चुनाव कराने का ब्रिटिश प्रधानमंत्री टेरीजा मे का फैसला कंजरवेटिव पार्टी के लिए महंगा साबित हुआ है। एग्जिट पोल के अनुसार ही कंजरवेटिव पार्टी सबसे बड़े दल के तौर पर तो उभरी लेकिन उसे बहुमत नहीं मिला है। लेबर पार्टी को पिछले चुनावों से कहीं अधिक फायदा हुआ है। किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है, लिहाजा ब्रिटेन में एक बार फिर त्रिशंकु संसद की स्थिति पैदा हो चुकी है। 2015 के चुनाव में कंजरवेटिव पार्टी ने जबर्दस्त जीत हासिल की थी। वैसे तो अगला चुनाव 2020 में होना था लेकिन पिछले वर्ष ब्रेग्जिट पर आए जनमत संग्रह के बाद टेरीजा ने समय पूर्व चुनाव कराने का फैसला किया था। टेरीजा ने सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए मध्यावधि चुनावों का दाव खेला था। यूरोपीय यूनियन के मुद्दे पर जनमत संग्रह के बाद डेविड कैमरून के इस्तीफे के बाद उन्होंने 13 जुलाई, 2016 को प्रधानमंत्री पद सम्भाला था। यूरोपीय संघ के नेता ब्रेग्जिट के फैसले के बाद ब्रिटेन पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। टेरीजा चाहती थीं कि उन्हें इस दबाव से मुक्ति मिल जाए, यदि यूरोपीय यूनियन के साथ ब्रेग्जिट वार्ता के कुछ नकारात्मक आर्थिक प्रभाव होते हैं तो उनसे निपटने के लिए उन्हें पर्याप्त समय मिल जाएगा लेकिन उनका दाव उल्टा पड़ा है। यूं तो ब्रेग्जिट मुद्दे पर हर राजनीतिक दल विभाजित था।

ब्रेग्जिट के साथ-साथ ब्रिटेन के चुनावों में दूसरा बड़ा मुद्दा आतंकवाद का रहा। मैनचेस्टर आतंकवादी हमले के बाद हुए सर्वे में प्रधानमंत्री टेरीजा की लोकप्रियता में कमी आ गई थी। एक के बाद एक आतंकवादी हमलों के बाद टेरीजा को कमजोर प्रधानमंत्री माना जाने लगा था। ब्रिटेन आतंकवाद विरोधी वैश्विक प्रयासों का हिस्सा है और इराक, सीरिया और आईएस के खिलाफ हमले के लिए तैनात अमेरिकी गठबंधन का प्रमुख सदस्य है लेकिन विपक्षी लेबर पार्टी के नेता जेरमी कार्विन नेकहा था कि अगर लेबर पार्टी सत्ता में आती है तो वह विदेश नीति बदल देंगे और आतंक के खिलाफ युद्ध बंद कर देंगे। लेबर पार्टी मानती है कि ब्रिटिश सैन्य हस्तक्षेप के बाद न केवल आतंकी हमलों के खतरे को रोकने में नाकाम रहा है बल्कि इससे खतरा कहीं अधिक बढ़ गया है। ब्रिटेन में यह बहस जोरों पर चल रही है कि क्या ब्रिटिश सेना की मदद से अफगानिस्तान, इराक और लीबिया में आतंकवाद से निपटने में कोई मदद मिली या नहीं।भारत के लिए ब्रिटेन के चुनाव काफी अहम हैं। दोनों देशों के संबंध ब्रिटेन की नई सरकार पर निर्भर करते हैं क्योंकि दोनों दलों की राय बहुत अलग है। जैसा कि लग रहा है कि लेबर पार्टी छोटे दलों से मिलकर सरकार बना सकती है तो ब्रिटेन यूरोपीय कस्टम यूनियन में बना रह सकेगा। ऐसे में भारत-ब्रिटेन वार्ताओं की जरूरत नहीं पड़ेगी।

भारत को यूरोपीय यूनियन से बातचीत करनी होगी। अगर ब्रिटेन यूरोपीय यूनियन से बाहर रहने का फैसला करता है तो फिर ब्रिटेन को भारत की जरूरत पड़ेगी। ब्रिटेन को भारत से व्यापार की जल्दी होगी। भारत-ब्रिटेन में एक बड़ा मुद्दा अप्रवासन का भी है। टेरीजा नहीं चाहती थीं कि भारत को अप्रवासन में कोई छूट दी जाए। उनका यह रवैया भारतीय हितों के प्रतिकूल था जबकि लेबर पार्टी और लिबरल डेमोक्रेट्स इस पर भारत को ढील देने को तैयार हैं। भारत और यूरोपीय यूनियन में सबसे बड़ा मसला एग्रीकल्चर सब्सिडी को लेकर था लेकिन भारत-ब्रिटेन के बीच इसे लेकर कोई गतिरोध नहीं। भारत के लिए अप्रवासन का मुद्दा बहुत बड़ा है। ब्रिटेन के चुनाव में 4.6 करोड़ मतदाता थे इनमें से 15 लाख मतदाता भारतीय मूल के थे जिन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यद्यपि विपक्ष टेरीजा का इस्तीफा मांग रहा है, देखना यह है कि ब्रिटेन में स्थाई सरकार कौन दे सकता है। चुनाव परिणामों के बाद सारी दुनिया की जिज्ञासा खत्म हो चुकी है। इन चुनाव परिणामों से समूचा विश्व प्रभावित होगा। आज का चुनाव क्या रुख लेता है, देखना बाकी है। फिलहाल टेरीजा को सियासी आघात लग चुका है।

Advertisement
Advertisement
Next Article