चचा ट्रम्प का आदेश ही सर्वोच्च है...!
ट्रम्प के लंच पर पाक सेनाध्यक्ष की बुलाहट का राज…
मैं इस समय कई देशों की यात्रा पर हूं, जो भी मिलता है यह जरूर पूछ रहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल मुनीर को लंच पर क्यों बुलाया और भारत पर इसका क्या असर होगा? मैं उन्हें कहता हूं कि यह तो ट्रम्प और मुनीर ही बता सकते हैं कि उनके बीच क्या सौदेबाजी हुई लेकिन इस लंच ने सबको चकरा दिया है क्योंकि इसके पहले व्हाइट हाउस में किसी भी राष्ट्रपति ने दुनिया के किसी भी देश के प्रधानमंत्री के रहते वहां के सेनाध्यक्ष के लिए इस तरह का लंच आयोजित नहीं किया। ट्रम्प निश्चय ही यही चाह रहे होंगे कि ईरान के खिलाफ जंग में पाकिस्तान अमेरिका का साथ दे। मुनीर इन्कार करेंगे भी कैसे? दुनिया में चचा का आदेश सुप्रीम है, वैसे मजाक की हद तो यह है कि इस लंच के बाद पाकिस्तान ने ट्रम्प को शांति के नोबल पुरस्कार के लिए नामित कर दिया और ट्रम्प ने कहा कि वह कुछ भी कर लें उन्हें नोबल मिलने वाला नहीं है।
लेकिन चलिए, इजराइल और ईरान की जंग से पहले मैं आपको यह बताऊं कि अभी मैं जिन इलाकों में घूम रहा हूं वहां वाहनों के कारोबार में पाकिस्तानी पहले क्रम पर और भारतीय दूसरे क्रम पर हैं। दोनों समुदायों के बीच यहां जबर्दस्त भाईचारा है। बातचीत में पाकिस्तानी कहते हैं कि भारत-पाक के बीच जो विवाद है वह दोनों देशों के बीच नहीं बल्कि सियासतों के बीच है। देश और सियासत में बहुत फर्क होता है। वहां के पाकिस्तानी ही मुझसे कह रहे थे कि भारत को दबाव में रखने के लिए अमेरिका वर्षों से पाकिस्तानी सियासत को उचकाता रहा है। पाकिस्तान को और वहां की आर्मी के जनरलों के अलावा आईएसआई के लोगों को बेहिसाब पैसा देता रहा है। उसी पैसे से पाकिस्तान हथियार खरीदता है, लाभ अमेरिकी हथियार कारोबार को होता है, पाकिस्तानी जनरलों की तो बल्ले-बल्ले है।
उन्होंने अमेरिका, यूरोप, फ्रांस और दुबई से लेकर अब कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में भी आलीशान निवास बना रखे हैं, कोई नेता पाकिस्तान में लोकतंत्र लाने की कोशिश करता है तो सब मिलकर उसे निपटा देते हैं। बेनजीर भुट्टो और नवाज शरीफ से लेकर इमरान तक इसके उदाहरण हैं। इस बार भी चचा वही खेल खेल रहे हैं। मुझे लगता है कि पाकिस्तान से निकल कर दुनिया के दूसरे देशों में बसे लोगों की यह राय बिल्कुल दुरुस्त है। यदि ऐसी बात नहीं होती तो ट्रम्प पाक के प्रधानमंत्री को छोड़ कर सेनाध्यक्ष को क्यों बुलाते? उन्हें पता है कि पाक अविश्वसनीय देश है। अफगानिस्तान की जंग के दौरान पाकिस्तानी सेना व आईएसआई की धोखेबाजी अमेरिका देख चुका है। ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान की धरती पर ही छिपा था, इसलिए ट्रम्प के लिए सुनिश्चित करना जरूरी है कि मौजूदा जंग में किसी भी कीमत पर पाकिस्तान धोखाधड़ी न करे।
इस बात की पूरी संभावना थी कि इजराइल-ईरान की जंग में अमेरिका कूदेगा। वैसे ट्रम्प की बदलती नीतियों से परेशान ज्यादातर अमेरिकी नहीं चाहते थे कि उनका देश इस जंग में शामिल हो लेकिन ट्रम्प जो चाहते हैं वही करते हैं। वैसे भी खुद के लक्ष्य के साथ अमेरिका के लक्ष्य को भी पूरा करने के लिए ही इजराइल ने ईरान पर हमला किया है। इजराइली हमले से निश्चय ही ईरान हताहत है लेकिन ईरानी हमले से इजराइल में भी कम तबाही नहीं हुई है। इजराइल खुद के दम पर ईरान को घुटने टेकने पर मजबूर करने की हालत में नहीं है। उसे अमेरिका की सीधी मदद चाहिए ही चाहिए थी। अभी ईरान की मदद रूस तो कुछ खास नहीं कर पा रहा है क्योंकि वह खुद ही यूक्रेन में उलझा हुआ है लेकिन चीन जरूर ईरान की मदद कर रहा है।
ऐसी खुफिया जानकारियां आई हैं कि मिसाइल में उपयोग होने वाले कुछ कैमिकल और उपकरण लेकर दो चीनी मालवाहक विमान तेहरान पहुंचे थे। इस जंग में चीन मीठी चाशनी पी रहा है, चुपके से ईरान को हथियार बेच रहा है। ईरान और पाकिस्तान के बीच 909 किलोमीटर लंबी सरहद है और बलूचिस्तान भी इसी इलाके में आता है। ट्रम्प यह सोच रहे होंगे कि यदि ईरान के भीतर घुसने की जरूरत हुई तो पाकिस्तानी जमीन और हवाई क्षेत्र का उपयोग करना होगा, जैसा कि अफगानिस्तान जंग के समय हुआ था। ऐसा माना जाता है कि गुप्त रूप से पाकिस्तान में अमेरिका का एयर बेस है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान यह बात उभर कर सामने भी आई कि जिस नूर खान एयर बेस पर भारत ने मिसाइल दागी वहां से कुछ ही दूर पर अमेरिकी वायुसेना थी। जो भी हो, पाकिस्तान को साथ रखना अमेरिका की जरूरत है।
अमेरिका ने ईरान के कई भूमिगत परमाणु ठिकानों पर बम बरसा दिये हैं। ट्रम्प अब क्या ईरान में खामेनेई सरकार का तख्तापलट कर देंगे और ऐसी सरकार बिठा देंगे जो अमेरिकी कठपुतली होगी?खामेनेई के खिलाफ ईरान के भीतर काफी विरोध है क्योंकि शरिया के नाम पर खामेनेई ने बहुत अत्याचार किया है। खासकर महिलाओं का जीना दूभर हो चुका है। रजा शाह पहलवी के समय महिलाएं वहां फुटबॉल खेलती थीं और कार चलाती थीं। महिलाओं की सारी आजादी खामेनेई ने छीन ली। इसलिए तख्ता पलट की संभावनाएं ज्यादा लगती हैं। खामेनेई के कई बड़े कमांडर्स मारे जा चुके हैं। वे खुद भूमिगत हैं, ऐसी स्थिति है और सबसे बड़ी बात कि ईरान के भीतर मौसाद ने गहरी सेंध लगा दी है। ड्रोन और मिसाइल के उपकरणों को तस्करी के माध्यम से ईरान पहुंचाया और ईरान की धरती से ही ईरान पर हमला किया।
खामेनेई संकट में हैं और उनकी सत्ता का अंत होता दिख रहा है। तो प्रश्न है कि सत्ता किसे मिलेगी? 1979 में ईरान के राजा मोहम्मद रजा शाह पहलवी हुआ करते थे। इस्लामिक क्रांति में उनका तख्तापलट हुआ था। उनके पुत्र रजा पहलवी इस वक्त अमेरिका में रह रहे हैं। उन्होंने कहा है कि हम 46 साल से लड़ रहे हैं। अब हमारा वक्त आ गया है ! …तो क्या वाकई सत्ता में उनका वक्त आ गया है? इंतजार कीजिए, वक्त अपनी कहानी खुद कहता है। और अंत में ये बताना चाहता हूं कि ईरान से हमारे रिश्ते अच्छे हैं लेकिन मोहम्मद रजा शाह पहलवी के जमाने में ज्यादा अच्छे थे। हम गुटनिरपेक्षता में विश्वास करते हैं, हम जंग नहीं, शांति चाहने वाले देश हैं।