W3Schools
For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

विफल हो चुका है संयुक्त राष्ट्र

यह बात सत्य है कि प्रथम विश्व​ युद्ध के उपरांत लीग आफ नेशन्स की कार्यशैली की असफलता के बाद सारे विश्व में बड़ी शिद्धत से महसूस किया गया कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शांति प्रसार और सुरक्षा की नीति तब सफल हो सकती है

01:56 AM Nov 20, 2020 IST | Aditya Chopra

यह बात सत्य है कि प्रथम विश्व​ युद्ध के उपरांत लीग आफ नेशन्स की कार्यशैली की असफलता के बाद सारे विश्व में बड़ी शिद्धत से महसूस किया गया कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शांति प्रसार और सुरक्षा की नीति तब सफल हो सकती है

विफल हो चुका है संयुक्त राष्ट्र
यह बात सत्य है कि प्रथम विश्व​ युद्ध के उपरांत लीग आफ नेशन्स की कार्यशैली की असफलता के बाद सारे विश्व में बड़ी शिद्धत से महसूस किया गया कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शांति प्रसार और सुरक्षा की नीति तब सफल हो सकती है, जब विश्व के सारे देश अपने निजी स्वार्थों से उठकर सम्पूर्ण विश्व को एक ईकाई समझ कर अपनी सोच को वि​कसित करें।
इसके लिए लगातार प्रयास किए जाते रहे। जो भी घोषणा पत्र इस संदर्भ में आए उनमें प्रमुख थे-
-लंदन घोषणा पत्र
-एटलांटिक चार्टर
-संयुक्त राष्ट्र घोषणा पत्र
-मास्को घोषणा पत्र
-तेहरान घोषणा पत्र
-डम्बारटम घोषणा पत्र
पूर्व के घोषणा पत्रों का विस्तार से विवेचन यहां सम्भव प्रतीत नहीं होता अतः इतना बताना चाहता हूं कि अक्तूबर 1944 को वाशिंगटन (डीसी) में यह निर्णय लिया गया कि संयुक्त राष्ट्र की सबसे प्रमुख ईकाई SECYRITI COUNCIL अर्थात् सुरक्षा परिषद होगी, जिसके पांच स्थाई सदस्य होंगे-चीन, फ्रांस, सोवियत संघ (अब रूस) ग्रेट ब्रिटेन और अमेरिका।
तब से लेकर दुनिया का शक्ति संतुलन बदल चुका है, नई शक्तियां उभर कर सामने आ चुकी हैं। शक्ति संरचना, नियम और मानकों के मामले में भू राजनीति संयुक्त राष्ट्र के गठन के बाद से पूरी तह बदल चुकी है। इन परिवर्तनों के चलते स्वयं संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद अपनी प्रासंगिकता खो चुका है। 
सुरक्षा परिषद एक तरह से विकलांग हो चुकी है और वह ​वैश्विक शांति और सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं का समाधान कर पाने में सक्षम नहीं है। सुरक्षा परिषद एक तरह से विश्वविद्यालयों में होने वाली डिबेट जैसा प्लेटफार्म बनकर रह गया है। जहां भाषण तो बड़े-बड़े होते हैं लेकिन काम की बात कोई नहीं होती। दुनिया भर में अनेक हिस्सों में आतंकवाद का तांड़व हो रहा है, परमाणु हथियारों की होड़ अब भी लगी हुई है। छोटे-छोटे देशों में युद्ध हो रहे हैं, लेकिन इस सबको नियंत्रित कर पाने में सुरक्षा परिषद पूरी तरह असफल रहा है।
कौन नहीं जानता कि दक्षिण एशिया में पाकिस्तान आतंकवाद की सबसे बड़ी पनाहगाह बन चुका है। वहां आतंकवादियों को प्रशिक्षित करने वाले सरगना खुलेआम सड़कों पर घूमते हैं और दुनिया में जगह-जगह अपनी साजिशों को अंजाम देने का प्रयास करते हैं। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपनी किताब में पाकिस्तान का भंडाफोड़ा है। उन्होंने साफ कहा है कि पाक में हुक्मरानों में से कुछ का संबंध लादेन के संगठन से था। सुरक्षा परिषद को अातंकवाद पर लगाम लगाने में कोई सफलता नहीं मिली है। चीन तुर्की समेत कई देश पाकिस्तान को समर्थन दे रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लगातार संयुक्त राष्ट्र में सुधार की वकालत करते आ रहे हैं। शंघाई सहयोग संगठन औरि​ब्रिक्स के मंच से प्रधानमंत्री ने एक बार फिर आतंकवाद को रोकने के लिए एकजुटता की जरूरत रेखांकित की है। प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान का नाम लिए बगैर कहा कि उन देशों  को भी इसका ​जिम्मेदार ठहराया जाए जो आतंकवाद को पनाह देते हैं। आतंकवाद के मसले पर संगठित प्रयासों की जरूरत है।
आतंकवाद की समस्या से पार पाने में संयुक्त राष्ट्र का पक्षपाती रवैया भी आड़े आ रहा है। अमेरिका, ​ब्रिटेन आदि देशों के हित जहां सीधे प्रभावित नजर आते हैं वहां तो संयुक्त राष्ट्र महासभा गम्भीर रुख अपनाती है, परन्तु अगर कोई दूसरा देश हो तो कोरी भाषणबाजी की जाती है। भारत लगातार संयुक्त राष्ट्र महासभा की नीतियों में बदलाव की मांग उठाता आ रहा है। भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठकों में पाकिस्तान और चीन का कच्चा चिट्ठा खोल चुका है लेकिन कुछ नहीं किया गया। पांच स्थाई सदस्य देशों के फैसले वास्तविकता के अनुकूल नहीं हैं। शीत युद्ध के बाद वैश्विक आर्थिक ढांचा बदल चुका है। भारत सुरक्षा परिषद का विस्तार कर स्थाई सदस्यता चाहता है। भारत समेत कई देश संयुक्त राष्ट्र में विस्तार और प्रभावी बहुपक्षवाद के पक्षधर हैं। लेकिन बहुपक्षवाद और समुचित प्रतिनिधित्व के सवाल पर संयुक्त राष्ट्र खामोश है। 
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और एशिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था है। भारत संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशनों में सबसे बड़ा भागीदार रहा है और सबसे ज्यादा हमारे जवानों ने शहादतें दी हैं। भारत संयुक्त राष्ट्र का संस्थापक सदस्य है लेकिन इतने वर्षों बाद भी सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता न ​मिलना पूरी तरह गलत है। संयुक्त राष्ट्र में आज तक ऐसा बहुत कुछ होता आया है कि अमेरिका की दादागिरी चलते रहे। वीटो पावर के चलते चीन भी अपनी दादागिरी कर रहा है। भारत और चीन के सीमा संघर्ष ने भू-राजनीतिक सहयोग की सम्भावनाओं पर सवालिया निशान लगा ​दिया है। वक्त की मांग है कि वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए भारत जैसे देश विश्व मंच पर अपनी प्रभावी भूमिका निभाएं। सुरक्षा परिषद में भारत के अलावा दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका प्रतिनिधित्व न होना वास्तविकताओं से मुंह मोड़ने जैसा ही है। आतंकवाद चीख-चीख कर कह रहा है कि हमारे पास समय कम है। संयुक्त राष्ट्र संघ अपनी प्रासंगिकता खो चुका है। संगठन में जान डालनी है तो भारत और अन्य देशों को स्थाई सदस्यता देनी ही होगी।
Advertisement
Advertisement
Author Image

Aditya Chopra

View all posts

Aditya Chopra is well known for his phenomenal viral articles.

Advertisement
Advertisement
×