For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

बेवजह है भाषा विवाद

भारत विविधताओं से भरा अलग-अलग संस्कृतियों और भाषाओं का देश है। अब तक देश की सबसे बड़ी ताकत यही रही है कि किसी भी क्षेत्र की संस्कृति या भाषा को अन्य जबरन थोपने की कोशिश नहीं हुई।

01:13 AM May 22, 2022 IST | Aditya Chopra

भारत विविधताओं से भरा अलग-अलग संस्कृतियों और भाषाओं का देश है। अब तक देश की सबसे बड़ी ताकत यही रही है कि किसी भी क्षेत्र की संस्कृति या भाषा को अन्य जबरन थोपने की कोशिश नहीं हुई।

बेवजह है भाषा विवाद
भारत विविधताओं से भरा अलग-अलग संस्कृतियों और भाषाओं का देश है। अब तक देश की सबसे बड़ी ताकत यही रही है कि किसी भी क्षेत्र की संस्कृति या भाषा को अन्य जबरन थोपने की कोशिश नहीं हुई। व्यापक एकता का भाव देश को एक सूत्र में जोड़ता है। देश को एक सूत्र में पिरोने और हिन्दी के विस्तार की इच्छा के पीछे अन्य भाषाओं का तिरस्कार करना नहीं है इसके बावजूद भारत में भाषा विवाद काफी तीखे हो जाते हैं। दक्षिण भारतीय राज्यों में हिन्दी का विरोध कोई नया नहीं है। ​तमिलनाडु में हिंदी को लेकर विरोध 1937 से ही है, जब राजगोपालाचारी चक्रवर्ती की सरकार ने मद्रास प्रांत में हिन्दी को लाने का समर्थन किया था परन्तु द्रविड़ कषगम (डीके) ने इसका विरोध किया था। तब विरोध ने हिंसक रूप ले लिया था और इसमें दो लोगों की मौत हो गई थी। वर्ष 1965 में दूसरी बार जब हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने की कोशिश की गई तो एक बार ​िफर विरोध भड़क उठा था। हिंसक झड़पों में 70 लोगों की जानें चली गई। दक्षिण के सभी राज्य भी इसके विरोध में थे। विरोध-प्रदर्शनों के परिणाम ​स्वरूप उस वक्त के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री को आश्वासन देना पड़ा था। तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री इंदिरा गांधी ने राजभाषा अधिनियम में संशोधन के जरिए अंग्रेजी को सहायक राजभाषा का दर्जा देकर अमल में लाया गया। तब से दक्षिण भारतीय राज्यों ने अंग्रेेजी पर बहुत जोर दिया।
Advertisement
उन्होंने इसका सामाजिक विकास और आर्थिक समृद्धि की सीढ़ी की तरक्की के तौर पर इस्तेमाल किया। हाल ही में हिन्दी भाषा को लेकर दक्षिण भारतीय फिल्म स्टार और मुंबई फिल्म इंडस्ट्री के दिग्गज नेता आपस में भिड़ गए थे। तमिलनाडु में सत्तारूढ़ द्रमुक ने केंद्र सरकार को हिन्दी थोपने काे लेकर चेतावनी देते हुए कहा था कि राज्य के लोग भाषा के मसले पर पार्टी के दिवंगत नेता एम. करुणानिधि के आंदोलन को भूले नहीं हैं और वे ऐसा नहीं होने देंगे। ​तमिलनाडु के उच्च शिक्षा मंत्री के. पोनमुढ़ी ने हिन्दी को अनिवार्य भाषा बनाने के विरोध में यह कहकर हंगामा खड़ा कर दिया था कि यहां हिन्दी बोलने वाले पानी-पूरी बेचते हैं जबकि अंग्रेजी वालों को अच्छी नौकरी मिलती है। मंत्री महोदय ने यह दावा किया कि राज्य सरकार दो भाषा प्रणाली को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है।
एक भाषा अंग्रेजी जो अंतर्राष्ट्रीय भाषा है और दूसरी ​तमिल जो स्थानीय भाषा है। हाल ही में पूर्वोत्तर राज्यों में दसवीं कक्षा तक हिन्दी को अनिवार्य बनाने के मसले पर तीखा विरोध सामने आया। गैर हिन्दी भाषी राज्यों के कई नेताओं ने यह भी कहा कि वे हिन्दी को लेकर बहुत सहज है और इसके समर्थक भी हैं। मगर इसे किसी पर थोपे जाने का विरोध करते हैं। कई नेताओं ने तो इसे भारत के बहुलतावाद पर हमला करार दिया। इन प्रतिक्रियाओं को देखते हुए कहा ​जा सकता है कि भाषा को लेकर केंद्र की ओर से समूचे देश के लिए एकरूपता पर आधारित कोई कदम नई उथल-पुथल पैदा कर सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाषा विवाद पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए जयपुर में भाजपा के राष्ट्रीय पदाधिकारियों की बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि भाजपा सभी भारतीय भाषाओं को भारतीयता की आत्मा मानती है। हर क्षेत्रीय भाषा में भारतीय संस्कृति का प्रतिबिंब है और राष्ट्र के बेहतर भविष्य की एक कड़ी के रूप में देखती है। उन्होंने याद दिलाया कि यह भाजपा ही है जिस ने पहली बार भारत की संस्कृति और भाषाओं को राष्ट्र के सम्मान से जोड़ा है।
नई शिक्षा नीति में हमने क्षेत्रीय भाषाओं को महत्व दिया है। यह हर क्षेत्रीय भाषा के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। नई शिक्षा के माध्यम के रूप में मातृभाषा के उपयोग की सिफारिश को लागू किया गया है। इसमें मातृभाषा, स्थानीय भाषा या क्षेत्रीय भाषा का विकल्प भी दिया गया है। भाषा नीति का मूल आधार त्रिभाषा फार्मूला है जिसके अनुसार स्कूली विद्यार्थियों को तीन भाषाआंे का ज्ञान अनिवार्य रूप से होना चाहिए। इसके साथ ही ​तमिल, तेलगू, कन्नड़, फारसी, संस्कृत और शास्त्रीय भाषाओं के अध्ययन पर जोर दिया गया है। शिक्षा के माध्यम के रूप में अंग्रेजी की वकालत करने वाला तबका जिसमें देशभर में कुकुरमुत्तों की तरह फैले अंग्रेजी माध्यम के स्कूल भी हैं, शिक्षा नीति के उस प्रावधान का विरोध करता नजर आया जिसमें प्राथमिक शिक्षा के लिए पढ़ाई का माध्यम मातृभाषा या स्थानीय भाषा में कराने की बात कही गई है।
Advertisement
दुनियाभर के शिक्षाविद यह मानते हैं कि बच्चे का सर्वाधिक प्रारंभिक विकास और सीखने की प्रवृत्ति उसी भाषा में बढ़ती है जो उसके घर में बोली जाने वाली भाषा होती है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का भी मानना था कि मातृभाषा का स्थान कोई दूसरी भाषा नहीं ले सकती, उनके अनुसार ‘गाय का दूध भी मां का दूध नहीं हो सकता।’ जो बच्चे अपनी भाषा की बजाय दूसरी भाषा में शिक्षा प्राप्त करते हैं उनकी मौलिकता नष्ट हो जाती है। दरअसल हाल ही में गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि अब वक्त आ गया है कि जब राजभाषा हिन्दी को देश की एकता का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया जाए। उन्होंने यह भी कहा था कि हिन्दी की स्वीकार्यता स्थानीय भाषाओं के नहीं बल्कि अंग्रेजी के विकल्प में होनी चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वक्तव्य से स्पष्ट है कि सरकार की मंशा क्षेत्रीय भाषाओं पर हिन्दी थोपने की नहीं है। मुझे लगता है कि भाषा विवाद राजनीतिक लाभ और हानि की दृष्टि से खड़े किए जाते हैं जिन्हें बेवजह ही कहा जा सकता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
Advertisement
Author Image

Aditya Chopra

View all posts

Aditya Chopra is well known for his phenomenal viral articles.

Advertisement
×