भारत की आन, बान, जान, शान और पहचान है, उर्दू !
उर्दू एक भाषा होने के साथ-साथ एक तहज़ीब, परंपरा और प्यार की भाषा भी है, जो भारत की कोख से जन्मी है और हर भारतीय भाषा, क्षेत्र, समाज, धर्म और संस्कृति की सुगंध शामिल है इस में। यह भारत की आत्मा से जुड़ी भाषा है। यह विकसित भारत की भाषा है। इसी संदर्भ में पटना के बापू धाम में एक विशाल संगोष्ठी इस बात को लेकर हुई कि उर्दू तो अपने जन्म से ही भारत के विकास से जुड़ी हुई है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने उर्दू से जुड़ी सभी संस्थाओं और संस्थानों को अपने राष्ट्र विकास मंत्र, ‘सब का साथ, सब का विकास, सब का विश्वास और सब का प्रयास’ से जोड़ा है, जिसका जीता- जगता उदाहरण हाल ही में राष्ट्रीय उर्दू भाषा परिषद विकास (नेशनल काउंसिल फॉर प्रमोशन ऑफ उर्दू लैंग्वेज) का पटना में अंतर्राष्ट्रीय स्तर का त्रि-दिवसीय समागम, ‘उर्दू भाषा का भविष्य, विकसित भारत @ 2047’, था, जिसमें उर्दू से जुड़े लेखकों, शायरों, नाटककारों आदि ने उर्दू के भूत, वर्तमान और भविष्य को विकसित भारत के विषय से बख़ूबी जोड़ा।
विकसित भारत और उर्दू के संदर्भ में बिहार के राज्यपाल, आरिफ मुहम्मद खान ने कहा कि पटना में इस प्रकार की संगोष्ठी इस बात का प्रमाण है कि सरकार उर्दू की सर्व धर्म समभाव वाली सद्भावना के साथ है और इस भाषा से जुड़ी सभी सरकारी संस्थाओं का साथ दिया है। राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद के अध्यक्ष, डॉ. शम्स इकबाल के अनुसार उर्दू में देश हित के अतिरिक्त होली, दीपावाली, दशहरा, मर्यादा पुरुषोत्तम राम, श्री कृष्ण आदि के इकबाल में भी बहुत कुछ लिखा गया है और लिखा जा रहा है। उर्दू भारत के कण-कण में रची बसी है। उनका कहना-उर्दू है खालिदा खानम तो हिंदी राजकुमारी है, पूरी महफ़िल लूट ले गया।
भारतीय भाषाएं और विशेष रूप से उर्दू भले ही बाज़ार में, विज्ञापनों में और रोजगार में भले है जगह बनाएं या न बनाएं, हां देशवासियों और भारत के अंतर्मन में सटीक रूप से जगह बनने में सक्षम हैं। उर्दू के साथ सब से बड़ी नाइंसाफी यह हुई कि इसे मुसलमानों की भाषा समझ लिया गया और इसके विरुद्ध द्वेष बढ़ता गया। इतनी नफरत बढ़ी कि इसे विभाजन और पाकिस्तान बनाने का ज़िम्मेदार तक समझ लिया गया, जो कि बिल्कुल गलत है, क्योंकि यदि मुस्लिमों की कोई भाषा है तो वह है, अरबी, न कि उर्दू। उर्दू के लेखकों और शायरों की कमी नहीं, जैसे, बृजनारायण चकबस्त, देश शंकर नसीम, मुंशी हरगोपाल तुफ्तका, फ़िराक़ गोरखपुरी, कृष्ण चंद्र, राम लाल, बशेशर प्रदीप, मोहिंदर सिंह बेदी, राजेंद्र सिंह बेदी, तिलोक चंद महरूम, जगन्नाथ आज़ाद, कृष्ण बिहारी नूर, रत्न नाथ सरशार, मुंशी नवल किशोर गोपी चंद नारंग, चरण सिंह बशर, मुंशी नवल किशोर आदि।
भारत के चीफ इमाम डॉ. उमैर अहमद इलियासी का मानना है कि किसी भी भाषा का कोई धर्म नहीं होता और भाषा उसकी हो जाती है, जो उसे दिल से चाहता है। उर्दू तो शुरू से ही भारत के विकास की द्योतक रही है। उनके अनुसार उर्दू पर प्रायः इस प्रकार के जो आरोप लगाए जाते हैं कि इसने पाकिस्तान बनवाया, सरासर बेबुनियाद और झूठे हैं क्योंकि पाकिस्तान की स्थापना जिन्ना की धार्मिक सांप्रदायिकतावादी मानसिकता ने कराई थी। "उर्दू तो प्यार-मुहब्बत और दिल की रूहानी भाषा है! विकसित भारत की आन, बान, शान और पहचान है, उर्दू !" कहते हैं इलियासी।
उर्दू साझा विरासत और आपसी भाईचारे की भाषा है। जिस समय अंग्रेज भारत पर पंजे गड़ा कर बैठे थे, उस समय देश को आज़ाद करने के लिए काफ़ी उर्दू अखबार, जैसे, ‘अवध अखबार’, ‘उर्दू अखबार’, ‘पैसा अखबार’ ‘जाम-ए- जहांनुमा’, ‘अकमल-उल-अखबार’, ‘अल-मशरिक’, ‘अल-हिलाल’, ‘अल-बालाग’ आदि। देशभक्ति की कितनी कविताएं हिंदी या अन्य भाषाओं में हैं, उतनी ही उर्दू में भी हैं, जैसे, ‘सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा’, ‘सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है’, ‘मेरा प्यारा हिंदुस्तान, मेरे सपनों का जहां’ आदि।
इसी प्रकार से उर्दू भाषा में राजकुमार उपाध्याय का नाटक, ‘गांधी तुम कहां हो’ भी इस बात को प्रमाणित करता है कि हर दौर में उर्दू के भारत की संप्रभुता और भारत सर्वोपरि को सर्वोपरि रखा है। ईमानदारी की बात तो यह है कि जहां-जहां कोई उर्दू बोलता है, वहां वहां हिंदुस्तान बोलता है। राजा राम मोहन रॉय, डा. राजेंद्र प्रसाद, पूर्व राष्ट्रपति, शंकर दयाल शर्मा, मुरली मनोहर जोशी आदि सभी मदरसों के छात्र रहे हैं।
आज से ही नहीं शुरू से ही उर्दू ने विकसित और सुरक्षित भारत के संदर्भ में भारत के लिए, ‘चमन’, ‘गुलज़ार’, ‘गुलशन’, ‘बाग-ओ-बहार’, ‘गुल-ए-बहार’ आदि शब्दों से सुसज्जित किया है। आज के दौर में भी उर्दू में भारत की प्रगति को ले कर खूब लिखा जा रहा है। भारतीय उर्दू विकास परिषद की ओर से प्रकाशित होने वाली, बच्चों की मासिक उर्दू पत्रिका, ‘बच्चों की दुनिया’ में चंद्रयान विक्रम, ब्रह्मोस मिसाईल, कोविड वैक्सीन, सूर्य पर खोज आदि के बारे में लिखा जाता रहा है। पहले अंतरिक्ष में गए राकेश शर्मा के बारे में ख़ूब लिखा गया और अब सुधांशु शुक्ल के ऊपर भी नज़्में लिखने वालों की कमी नहीं।
बकौल, डॉ. ख्वाजा इफ्तिखार अहमद, (अध्यक्ष इंटरफेथ हार्मनी फाउंडेशन ऑफ इंडिया), उर्दू विकसित भारत की आन, बान, शान, जान और पहचान है। उन्होंने ने बताया कि विकसित भारत और उर्दू के मेल-जोल और सद्भावना का ही परिणाम है कि उर्दू के पत्र-पत्रिकाओं में श्री कृष्ण, मर्यादा पुरुषोत्तम राम, होली, दीपावली, दशहरा आदि पर खूब लिखा गया है। एक लंबे अर्से तक चले मुशायरे, ‘जश्न-ए-बहार’ की संयोजिका, कामना प्रसाद का मानना है बरसों बाहरी ताकतों ने लूटा, मगर बावजूद इसके कारण, यह ऊपर वाले की कृपा से रचा-बसा रहा। एक और सबसे बड़ा कारण यह है कि इसके देश वासियों ने न तो रूहानियत का दामन न छोड़ा और न ही नवीनता का। देश आत्मिकता के साथ आधुनिकता का अनुसरण करता रहा, जिसके कारण यह आज विश्व गुरु बनने की कगार पर है।