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अमेरिकी जन्मजात नागरिकता और भारत

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने दूसरे कार्यकाल का आगाज करते ही…

10:47 AM Jan 22, 2025 IST | Aditya Chopra

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने दूसरे कार्यकाल का आगाज करते ही…

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने दूसरे कार्यकाल का आगाज करते ही जिस तरह का आक्रामक रुख अपनाया है उससे उथल-पुथल मचने की आशंकाएं व्यक्त की जाने लगी हैं। विशेषज्ञ अब यह अनुमान लगाने लगे हैं कि ट्रम्प का दूसरा कार्यकाल ​िकन-किन ​देशों के लिए नुक्सानदेह हो सकता है और कौन-कौन से देश इससे प्रभावित होंगे। इसमें कोई संदेह नहीं कि अमेरिका विश्व का ऐसा देश है जो पलभर में समीकरण बदल देता है। वह ऐसा देश है जिसने कई देशों में विध्वंस का खेल खेला है। अमेरिकी नागरिक खुद को सर्वश्रेष्ठ नागरिक मानते हैं और अमेरिकी हमेशा अपने हितों की रक्षा के संबंध में सोचते हैं और काम करते हैं। अमेरिका को महान बनाने के लिए डोनाल्ड ट्रम्प ने भी एक के बाद एक फैसले लिए। अमेरिका की दक्षिणी सीमा मेक्सिको बॉर्डर पर आपातकाल घोषित कर वहां सेना भेजने की घोषणा की गई। अवैध प्रवासियों को उनके मूल देश तक पहुंचाने का ऐलान किया गया।

डोनाल्ड ट्रम्प ने अवैध घुसपैठियों को चुनावी मुद्दा बनाया था। शपथ लेने के 6 घंटे के भीतर ही ट्रम्प ने बाइडेन के 78 फैसलों को बदला। इसमें अवैध प्रवासियों को बाहर निकालने के साथ ही जन्मजात नागरिकता को खत्म कर ​िदया। उन्होंने उन माता-पिता के बच्चों को जन्मजात नागरिकता देने से इन्कार करने का आदेश दिया है जो अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे हैं या फिर अस्थायी वीजा लेकर रह रहे हैं। ट्रम्प ने इस आदेश को लागू करने के लिए 30 दिन का समय दिया है। ट्रम्प का ये आदेश अमेरिकी बच्चों को मिलने वाले जन्मजात नागरिकता के अधिकार को चुनौती देता है। अमेरिकी संविधान का 14वां संशोधन बच्चों को जन्मजात नागरिकता की गारंटी देता है। अमेरिका में यह कानून 150 साल से लागू है।

दुनिया में दो तरह से बच्चों को नागरिकता मिलती है। पहला- राइट ऑफ सॉइल यानी कि बच्चे का जहां जन्म हुआ हो, वह अपने आप वहां का नागरिक बन जाता है। दूसरा राइट ऑफ ब्लड यानी कि बच्चे के मां-बाप जहां के नागरिक हों, बच्चे वहीं के नागरिक माने जाएंगे। गरीब और युद्धग्रस्त देशों से आए लोग अमेरिका आकर बच्चों को जन्म देते हैं। ये लोग पढ़ाई, रिसर्च, नौकरी के आधार पर अमेरिका में रुकते हैं। बच्चे का जन्म होते ही उन्हें अमेरिकी नागरिकता मिल जाती है। नागरिकता के बहाने माता-पिता को अमेरिका में रहने की कानूनी वजह भी मिल जाती है। अमेरिका में यह ट्रेंड काफी लंबे समय से जोरों पर है। आलोचक इसे बर्थ टूरिज्म कहते हैं। प्यू रिसर्च सेंटर की 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक 16 लाख भारतीय बच्चों को अमेरिका में जन्म लेने की वजह से नागरिकता मिली है।

जन्मजात नागरिकता खत्म करने और एच1-बी वीजा पर सख्त नियम लागू करने का सीधा असर भारतीय और मेक्सिको के प्रवासियों पर पड़ेगा। एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में इस समय लगभग 18 हजार से ज्यादा भारतीय अवैध रूप से रह रहे हैं। इनमें से अधिकांश डंकी रूट अपनाकर अमेरिका पहुंचे हैं। इन भारतीयों को अमेरिका छोड़ने पर मजबूर होना पड़ेगा। प्रवास नीति में बदलाव से भारतीय पेशेवरों आैर छात्रों के ​िलए अमेरिका में अवसर सीमित हो जाएंगे। अमेरिका में बसने और काम करने का उनका सपना टूट जाएगा। ट्रम्प की नीतियां भारतीयों के लिहाज से ठीक नहीं हैं। इससे भारतीय समुदाय की मुश्किलें बढ़ेंगी। अमेरिका में भारतीय अमेरिकियों की संख्या 5.4 मिलियन है, जो अमेरिकी आबादी का 1.47 प्रतिशत है। जन्मजात नागरिकता कानून पलटने को लेकर देश के भीतर भी ​िवरोध शुरू हो गया है। अमेरिका के 22 राज्यों के अटॉर्नी जनरल ने इस कानून को खत्म करने के फैसले को लेकर मुकदमा दर्ज करा ​िदया है। डेमोक्रेटिक अटॉर्नी जनरल और प्रवासी अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि जन्मजात नागरिकता एक स्थापित कानून है। भले ही राष्ट्रपतियों के पास व्यापक अधिकार हो लेकिन वे राजा नहीं होते। अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन का कहना है कि अमेरिका में जन्मे बच्चों को नागरिकता देने से इन्कार करना न केवल असंवैधानिक है बल्कि यह अमेरिकी मूल्यों को नकारता भी है। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने भी जन्मजात नागरिकता को बरकरार रखा था। जिसमें यूनाइटेड स्टेट्स बनाम वोंग ​िकम आर्क 1898 का ऐतिहासिक मामला भी शा​िमल है। कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि गैर नागरिक माता-पिता से अमेरिका में जन्मा बच्चा अभी भी अमेरिकी नागरिक है। ट्रम्प के आदेश के सामने बहुत सारी कानूनी बाधाएं हैं। संविधान के प्रावधानों को बदलने के लिए एक संवैधानिक संशोधन की जरूरत होगी।

अमेरिकी संविधान में संशोधन करने के लिए सदन और सीनेट दोनों में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है, उसके बाद तीन-चौथाई राज्य विधानसभाओं से समर्थन की आवश्यकता होती है। नए सीनेट में

डेमोक्रेट्स के पास 47 सीटें हैं, जबकि रिपब्लिकन के पास 53 सीटें हैं। सदन में डेमोक्रेट्स के पास 215 सीटें हैं और रिपब्लिकन के पास 220 सीटें हैं। यह आदेश कैसे लागू होगा यह आने वाले दिनों में साफ होगा। अमेरिकन कोर्ट भी इस फैसले को पलट सकता है।

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