पंजाब की सतलुज नदी में मिला टैंटलम, भारत को दोबारा बना सकता है 'सोने की चिड़िया'
Tantalum: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT), रोपड़ के शोधकर्ताओं ने पंजाब में सतलुज नदी की रेत में टैंटलम (Tantalum) को खोजा है। यह खोज आईआईटी के सिविल इंजीनियरिंग विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. रेस्मी सेबेस्टियन की लीड वाली टीम ने की है।
- पंजाब की सतलुज नदी में मिला टैंटलम
- वजन में काफी भारी और ठोस होता है टैंटलम
- 1802 में हुई थी इस धातु की खोज
- इलेक्ट्रोनिक सेक्टर में अधिक यूज होता है टैंटलम
यह खोज पंजाब के साथ- साथ पूरे भारत के लिए बड़ी खोज है। क्योंकि ये भारत को दोबारा 'सोने की चिड़िया' बनाने का बना सकती है। आइए जानते है ये धातु क्या है।
क्यां है टैंटलम ?
टैंटलम एक रेयर धातु है, जिसका एटॉमिक नंबर 73 है। यह नंबर किसी परमाणु में प्रोटॉन की संख्या को दर्शाता है। टैंटलम ग्रे कलर का होता है। यह वजन में बहुत भारी और ठोस होता है। आज इस्तेमाल में आने वाले सबसे अधिक करोजन-रजिस्टेंट मेटल में से यह एक है। इसके करोजन-रजिस्टेंट होने की वजह है। हवा के संपर्क में आने पर यह ऑक्साइड परत बनाता है, जिसे हटाना बहुत मुश्किल है।
टैंटलम लचीला होता है। इसका मतलब है कि बिना टूटे यह पतले तार या धागे में तब्दील हो सकता है। बिल्कुल सोने की तरह। आपको बता दें, अमेरिकी उर्जा विभाग से जुड़े एक्सपर्ट्स के मुताबिक टैंटलम ऐसा मेटल है जो 150 डिग्री सेल्सियस तापमान से नीचे भी, किसी केमिकल अटैक से पूरी तरह सुरक्षित रहता है। इस पर कोई असर नहीं होता। केवल हाइड्रोफ्लोरिक एसिड, फ्लोराइड आयन युक्त एसिड सॉल्यूशन और फ्री सल्फर ट्राइऑक्साइड से इसे नुकसान होता है।
कहां होता है इस्तेमाल?
Tantalum: टैंटलम का यूज सबसे ज्यादा इलेक्ट्रॉनिक सेक्टर में होता है। इस धातु से बने कैपेसिटर सबसे अच्छे माने जाते है। स्मार्टफोन से लेकर लैपटॉप और डिजिटल कैमरे जैसे पोर्टेबल इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में टैंटलम का इस्तेमाल होता है।
पहली बार कब हुई थी खोज?
दुनिया के सामने टैंटलम 1802 में सामने आया था। जब स्वीडन के रसायन वैज्ञानिक एंडर्स गुस्ताफ एकेनबर्ग ने इसकी खोज की थी। उन्होंने इसकी खोज येटरबी (स्वीडन) से प्राप्त खनिजों में की थी। शुरुआत में यह सोचा गया था कि एकेनबर्ग ने नाइओबियम का केवल एक अलग रूप पाया है। यह एलिमेंट रासायनिक रूप से टैंटलम के समान होता है। यह मुद्दा 1866 में सुलझाया गया था। तब जब एक स्विस वैज्ञानिक जीन चार्ल्स गैलिसार्ड डी मैरिग्नैक ने साबित किया कि टैंटलम और नाइओबियम दो अलग-अलग धातु हैं।
कैसे पड़ा नाम टैंटलम नाम?
इस दुर्लभ धातु का नाम ग्रीक पौराणिक चरित्र टैंटलस के नाम पर रखा गया। वह अनातोलिया में माउंट सिपाइलस के ऊपर एक शहर का अमीर लेकिन दुष्ट राजा था। टैंटलस को जीउस से मिली भयानक सजा के लिए जाना जाता है। जहां राजा को पाताल लोक में निर्वासित कर दिया गया था। वहां जब भी वह पानी पीने की कोशिश करता तो पानी दूर चला जाता और फलों के गुच्छे तोड़ने की कोशिश करता तो शांखाएं दूर हो जाती है।
इसलिए ही इस धातु का नाम टैंटलम रखा गया है। क्योंकि जब इसे एसिड के बीच में रखा जाता है तो यह उनमें से किसी को भी ग्रहण नहीं करता है।
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