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आधार से मतदान

चुनाव आयोग ऐसी संवैधानिक और स्वतंत्र संस्था है जो सीधे संविधान से शक्ति लेकर…

11:10 AM Mar 19, 2025 IST | Aditya Chopra

चुनाव आयोग ऐसी संवैधानिक और स्वतंत्र संस्था है जो सीधे संविधान से शक्ति लेकर…

आधार से मतदान

चुनाव आयोग ऐसी संवैधानिक और स्वतंत्र संस्था है जो सीधे संविधान से शक्ति लेकर अपना कार्य करती है। भारत के लोकतंत्र में चुनाव आयोग को मतदाता सूची बनाने से लेकर मतदान कराने तक का अधिकार संविधान में इस प्रकार दिया गया है कि देश की राजनीतिक प्रणाली उस पर पूरा विश्वास रखते हुए अपनी गतिविधियों को अंजाम दे। इसके साथ ही चुनाव आयोग को यह जिम्मेदारी भी दी गई है कि वह सक्रिय सभी राजनीतिक दलों के साथ एक समान व्यवहार करें और उनकी आंतरिक लोकतांत्रिक गतिविधियों पर भी नजर रखें। हमारे संविधान निर्माता जो यह व्यवस्था करके गए हैं उसमें चुनाव आयोग काे किसी भी प्रकार के शक से परे रहते हुए अपना कार्य पूरी स्वतंत्रता से करने का विधान है किंतु हाल के कुछ वर्षों से देश के विपक्षी दल चुनाव आयोग के बारे में विभिन्न प्रकार की शंकाएं उठा रहे हैं। भारत के लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि चुनाव पूरा होने के बाद देश को शासन प्रणाली देने का इन्हीं का कार्य होता है। चुनाव आयोग का काम होता है कि वह मतदाता सूची इस प्रकार बनाए कि एक भी भारतीय नागरिक इसकी सूची से बाहर ना रहे।

हाल में मतदाता सूची को लेकर जिस प्रकार के सवाल देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने उठाए हैं और पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस की नेता व मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी ने संदेह प्रकट किए हैं उनमें मतदाता सूची भी अब शामिल हो गई है। अतः चुनाव आयोग की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह ऐसी सभी शंकाओं का निराकरण करें। ममता बनर्जी ने और लोकसभा में विपक्ष के नेता श्री राहुल गांधी ने मतदाता सूचियाें को लेकर कुछ सवाल खड़े किए थे और कहा था कि मतदाता सूचियाें में फर्जी नाम जोड़े जा रहे हैं। मतदाता सूचियाें का संदेह से परे रहना भी बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा है। क्योंकि जिस नागरिक का नाम मतदाता सूची में होगा केवल उसी को मतदान करने का अधिकार होगा। इसके साथ ही ममता दीदी का कहना था कि उनके राज्य पश्चिम बंगाल में ऐसे मतदाताओं की लंबी फेहरिस्त है जिनके नाम दूसरे राज्यों के मतदाताओं के रूप में पंजीकृत हैं। चुनाव आयोग ने ऐसी सभी शिकायतों का संज्ञान लिया है। यह इस बात को दर्शाता है कि चुनाव आयोग की नियत साफ है और वह मतदाता सूचियाें को शंका रहित बनाना चाहता है। इस तरफ उसने काम करना शुरू कर दिया है और अपने उस प्रस्ताव को पुनः जमीन पर उतरने की इच्छा जाहिर की है जिसमें मतदाता कार्ड को आधार कार्ड से जोड़े जाने का प्रावधान है।

2 साल पहले सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया था कि मतदाता कार्ड को आधार कार्ड से जोड़ा जा सकता है परंतु प्रत्येक मतदाता को यह अधिकार होगा कि वह इस प्रावधान से स्वयं को अलग रखें और चुनाव आयोग को अपने आधार कार्ड का विवरण ना दे। 18 मार्च को चुनाव आयोग ने इसी विषय पर गृह मंत्रालय, कानून मंत्रालय और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक की और यह निर्णय लिया कि भारत के प्रत्येक मतदाता को आधार कार्ड से जोड़ा जाएगा परंतु इसमें एक पेंच है कि यदि कोई मतदाता चाहे तो अपना नाम आधार कार्ड से ना जोड़े जाने का फैसला कर सकता है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी यह कहा था कि चुनाव आयोग आधार कार्ड को मतदाताओं से जोड़ सकता है परंतु मतदाता को यह अधिकार होगा कि वह ऐसा करने के लिए बाध्य न हो। इसका मतलब यह हुआ कि चुनाव आयोग मतदाता कार्ड को आधार कार्ड से जोड़कर प्रत्येक भारतीय नागरिक को यह विश्वास दिलाना चाहता है कि वह मतदान की अहर्ताएं पूरी करने पर अपने आधार कार्ड को मतदाता कार्ड से जोड़ने की इजाजत न दे लेकिन ऐसा करते हुए उसे चुनाव आयोग को यह बताना होगा वह क्यों अपने आधार कार्ड से मतदाता कार्ड को जोड़े जाने का विरोध कर रहा है। अभी तक चुनाव आयोग 66 करोड़ मतदाताओं को आधार कार्ड से जोड़ चुका है। भारत में कुल 96 करोड़ के लगभग मतदाता हैं।

सवाल यह है कि यदि चुनाव आयोग चुनावी प्रक्रिया को और परिष्कृत व पारदर्शी बनाना चाहता है तो नागरिकों को इसका विरोध क्यों करना चाहिए। आधार कार्ड से मतदाता को जोड़कर चुनाव आयोग इस बात की गारंटी दे रहा है कि मतदाता सूची को लेकर जो विवाद खड़ा किया जा रहा है उसका हल आधार कार्ड है। गौर करने वाली बात यह है कि जब मतदाता सीधे आधार कार्ड से जुड़ जाएगा तो वह अपना नाम सूची में दर्ज होने की चिंता से मुक्त होगा। यह जिम्मेदारी चुनाव आयोग पर होगी कि हर वयस्क नागरिक मतदाता बने जिसके पास आधार कार्ड है। इसके साथ ही प्रत्येक वयस्क नागरिक को अपना आधार कार्ड बनवाना भी आवश्यक लगेगा। चुनावी प्रक्रिया में यह इस बात की गारंटी होगी कि केवल वही व्यक्ति एक बार वोट डाल सकता है जिसके पास आधार कार्ड होगा। आधार कार्ड हर नागरिक की पहचान है और इस बात का सबूत है कि वह व्यक्ति भारत में रहता है हालांकि यह नागरिकता की पहचान नहीं है। मूल रूप से यह उसके निवास की पहचान है और मतदाता कार्ड भी निवास को देखकर ही बनाए जाते हैं इस कार्ड में प्रत्येक निवासी की राष्ट्रीयता भी दर्ज होती है अतः इसमें किसी प्रकार का दोहरापन नहीं हो सकता।

बेशक भारत की चुनाव प्रणाली में मतदाताओं द्वारा डाला गया वोट पूर्णत: गुप्त होता है। मगर मतदाता सूची के भी प्रकट होने से और इसके आधार कार्ड से जुड़ने से किसी प्रकार की निजता भंग नहीं होनी चाहिए क्योंकि सरकार के पास सभी नागरिकों के आधार कार्ड की जानकारी रहती है। यदि यह जानकारी चुनाव आयोग के पास भी हो तो इसमें क्या बुराई हो सकती है जबकि चुनाव आयोग प्रत्येक मतदाता का निगेहबान होता है और तय करता है कि हर एक वाजिब मतदाता अपने वोट का इस्तेमाल चुनाव में जरूर करें क्योंकि हमारी पूरी लोकतांत्रिक व्यवस्था का संचालन नागरिकों को मिले

चुनाव के अधिकार से ही होता है। यह अधिकार लोकतंत्र में नागरिकों को मिला सबसे बड़ा अधिकार होता है क्योंकि वह केवल किसी प्रत्याशी का ही भविष्य नहीं संवारता है बल्कि अपनी सत्ता में भागीदारी भी तय करता है। उसके एक वोट से ही भारत की सरकारें बनती और बिगड़ती हैं। अब यह स्पष्ट है कि जिन चुनावी धांधलियों की चर्चा होती है उन्हें अब करना बहुत मुश्किल हो जाएगा क्योंकि हर मतदाता यह कह सकता है कि वह चुनावी प्रक्रिया में बढ़-चढ़कर भाग लेना चाहता है। अभी तक यह चर्चा होती रहती थी कि बहुत से मतदाताओं के नाम चुनाव सूची में नहीं पाए जाते या फिर कोई व्यक्ति दो-दो बार दो जगह से मतदान कर आता है। चुनाव आयोग के फैसले का प्रत्येक राजनीतिक दल को स्वागत करना चाहिए।

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Aditya Chopra

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