इंतजार हमलावरों के अंत का...
‘आई लव यू नन्ना’-ये थे बेटे के आख़िरी शब्द, जब उसने अपने पिता के ताबूत से…
‘आई लव यू नन्ना’-ये थे बेटे के आख़िरी शब्द, जब उसने अपने पिता के ताबूत से लिपटकर विदाई ली। आंध्र प्रदेश के रहने वाले मधुसूदन जो एक सूचना प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ थे, 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में मारे गए लोगों में शामिल थे। यह हमला बैसरन नामक एक ऊंचे पहाड़ी मैदान में हुआ, जो पहलगाम से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
मंजुनाथ राव को गर्दन में गोली मारी गई। वह एक मिनट से भी कम समय में गिर पड़े और उनकी मृत्यु हो गई। जब उनकी पत्नी पल्लवी ने आतंकियों का सामना करते हुए कहा-मुझे भी गोली मारो तो आतंकियों ने उन्हें छोड़ते हुए कहा-मोदी से जाकर कहो।
हमलावर रामचंद्रन से बार-बार कलमा, कलमा, बोलने के लिए कह रहा था। रामचंद्रन ने पूछा, वो क्या है? और इसके कुछ ही सैकेंड में उन्हें गोली मार दी गई, उनकी पत्नी, बेटी और पोते-पोतियों की आंखों के सामने। जो लोग नहीं जानते, उनके लिए बता दें कि ‘कलमा’ इस्लाम का एक पवित्र और मौलिक आस्था-वाक्य है, जिसे हर मुसलमान जानता है और नियमित रूप से दोहराता है।
असम के एसोसिएट प्रोफेसर देबाशीष भट्टाचार्य की जान इसलिए बच गई क्योंकि उन्होंने आतंकवादी को आता देख ज़ोर-ज़ोर से कलमा पढ़ना शुरू कर दिया। उन्होंने बताया उसने मुझसे पूछा ‘तुम क्या बोल रहे हो, मैं लगातार ला इलाहा- इल्लल्ला दोहराते रहा। एक सहज प्रवृत्ति के तहत वह उन लोगों के समूह में शामिल हो गए थे जो पेड़ के नीचे खड़े होकर कलमा पढ़ रहे थे। वह अपनी पत्नी और बेटे के साथ छुट्टियां मनाने इस खूबसूरत पर्यटन स्थल पर आए थे। इस हमले के धार्मिक आधार पर होने का संकेत इस तथ्य से भी मिलता है कि कई पीड़ितों की पहचान करने के लिए उनकी पैंट की ज़िप खोली गई थी। जांच एजेंसियों ने पुष्टि की है कि 26 में से 20 शवों के कपड़े इस तरह की स्थिति में मिले, ताकि यह देखा जा सके कि वे धर्म विशेष से संबंधित हैं या नहीं, खासकर खतना के आधार पर, जो एक धार्मिक पहचान है।
अब इस तथ्य को कर्नाटक के मंत्री आर.बी. तिम्मापुर के इस बयान से जोड़िए जिसमें उन्होंने कहा कि यह सब एक साज़िश है, ताकि इस हमले को धार्मिक रंग दिया जा सके। जो गोली चलाता है, वह क्या धर्म या जाति पूछेगा? वह तो बस गोली चलाएगा और चला जाएगा। मंत्री ने यह बयान मीडिया को दिया था।
लेकिन यह सिर्फ एक राज्य मंत्री की बात नहीं है। कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा ने भी कहा कि ‘गैर-मुसलमानों पर हमला किया गया और प्रधानमंत्री को संदेश दिया गया क्योंकि हमारे देश में मुसलमानों के साथ गलत व्यवहार किया जा रहा है।’ वाड्रा की टिप्पणी को भाजपा के शब्दों में-आतंकवादियों द्वारा आतंकवाद को उचित ठहराने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली भाषा कहना मुद्दे को कमतर आंकना है। ऐसे बयानों के लिए सिर्फ़ एक शब्द है -राष्ट्र विरोधी।
अब वक्त आ गया है कि तथाकथित शांति के पैरोकारों को भी आइना दिखाया जाए, चाहे वे राजनीति में हों या वर्षों से ट्रैक-2 कूटनीति का हिस्सा रहे हों। वे लोग जो लगातार यह कहते नहीं थकते कि भारत और पाकिस्तान में कोई अंतर नहीं है, लोग एक जैसे हैं, खाना एक जैसा है, संस्कृति एक जैसी है, भाषा एक जैसी है,ये बातें वास्तविकता से कोसों दूर हैं। सच्चाई यह है कि भारत और पाकिस्तान के लोगों में फर्क है। न उनकी सोच हम जैसी है, न उनकी संस्कृति, न ही प्राथमिकताएं। पाकिस्तान के लिए धर्म पहले है, भारत के लिए देश। यही सोच का मूलभूत अंतर है।
इसीलिए जब कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया जैसे नेता कहते हैं कि युद्ध की कोई ज़रूरत नहीं है तो यह राष्ट्रवादियों को आहत करता है। जब पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती केंद्र सरकार से ‘सावधानी बरतने’ और ‘आम नागरिकों व आतंकवादियों में फर्क करने’ की अपील करती हैं, या जब सांसद रूहुल्ला मेहंदी यह कहते हैं कि ‘कश्मीर और कश्मीरियों को सामूहिक सज़ा दी जा रही है’ तो यह बात देश के समझदार नागरिकों को असहज करती है।
महबूबा मुफ्ती और रूहुल्ला मेहंदी के ये बयान उस समय आए हैं जब सुरक्षा बलों ने बड़े पैमाने पर ऑपरेशन चलाए, संदिग्ध आतंकवाद समर्थकों के घरों पर छापेमारी की, गिरफ्तारियां की गईं और कई घर ढहाए गए। ठीक इसी तरह के बयान जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और हुर्रियत चेयरमैन मीरवाइज उमर फारूक की ओर से भी सामने आए हैं।
यह सर्वविदित है कि किसी भी सफल आतंकी हमले के पीछे आमतौर पर स्थानीय सहयोग होता है। ऐसे लोग जो आतंकवादियों के मकसद से सहमत होते हैं, स्वेच्छा से उन्हें शरण देते हैं और अपने घरों को अस्थायी ठिकाना बनाने की अनुमति देते हैं। 90 के दशक में अशांत पंजाब में उग्रवाद इसलिए बढ़ा क्योंकि स्थानीय लोगों ने खुलकर समर्थन किया। गांवों के लोग उन लोगों के लिए अपने दरवाज़े खोलने से नहीं हिचकते थे, जो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा स्वर्ण मंदिर परिसर में सेना भेजे जाने का बदला लेने के लिए हथियार उठाए थे, या जो खालिस्तान की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे थे। कश्मीर में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिलता है, जहां ‘आजादी’ के नाम पर कई स्थानीय लोग आतंकियों को पनाह और लॉजिस्टिक सहयोग देते हैं। हालिया आतंकी हमले में स्थानीय ओवरग्राउंड वर्कर्स की गिरफ्तारी इस बात की पुष्टि करती है।
इसी पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह बयान कि भारत हर आतंकी और उसके समर्थकों को सज़ा देगा और ‘उन्हें धरती के आख़िरी कोने तक ढूंढ निकालेगा’ देश की बहुसंख्यक जनता के बीच समर्थन पा रहा है। उनका यह संकल्प कि हमारे दुश्मनों ने देश की आत्मा पर हमला करने की जुर्रत की है। उन्हें कल्पना से भी बड़ी सज़ा मिलेगी, उन लोगों की भावना से मेल खाता है जो मानते हैं कि पाकिस्तान को अब सबक सिखाना ज़रूरी है, चाहे इसके लिए युद्ध ही क्यों न करना पड़े। इसी तरह महबूबा मुफ्ती या किसी अन्य की चेतावनी देने वाली आवाज़ों को खारिज किया जा रहा है, जिन्हें लोग एक गंभीर और बर्बर हमले को हल्का करने का प्रयास मानते हैं, एक ऐसा हमला जिसका जवाब ज़रूरी है।
प्रधानमंत्री के रूप में भले ही मोदी की कार्यशैली पर कई सवाल उठते रहे हों लेकिन संकट के समय में उनका सक्रिय रवैया सराहना के योग्य है। उन्होंने एक ऐसे नेता के रूप में खुद को स्थापित किया है जो हर स्थिति में नियंत्रण में रहते हैं।
सबसे पहले उन्होंने अपना विदेशी दौरा बीच में ही छोड़ दिया और तुरंत भारत लौटे। कुछ ही घंटों में उनकी सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ कड़े कदम उठाए, 60 साल पुरानी सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया जो दोनों देशों के बीच जल वितरण को लेकर बनी थी। भारत-पाकिस्तान सीमा को सील कर दिया गया, पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द कर दिए गए और उन्हें 48 घंटे के भीतर देश छोड़ने का आदेश दिया गया। साथ ही भारत में पाक उच्चायोग के अधिकारियों को वापस भेजने का निर्देश दिया गया। इन प्रतिरोधात्मक कदमों के ज़रिए प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार फिर यह दिखा दिया कि वे एक मज़बूत नेतृत्व वाले नेता हैं, एक ऐसा नेता जो देश और उसके नागरिकों की सुरक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।
उनका यह बयान कि हमलावरों को कल्पना से परे सज़ा दी जाएगी। और 140 करोड़ भारतीयों की इच्छाशक्ति उनकी रीढ़ तोड़ देगी। उनके पहले दिए गए बयान ‘घर में घुस कर मारेंगे’ की ही पुनर्पुष्टि है। संदर्भ के लिए बता दें कि वर्ष 2019 में पुलवामा हमले के बाद जिसमें आतंकवादियों ने 40 से अधिक सीआरपीएफ जवानों की जान ले ली थी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ तौर पर कहा था कि उनकी सरकार का सिद्धांत है कि ऐसे हमलों का जवाब हमलावरों को मारकर दिया जाएगा।
‘घर’ में घुस कर मारेंगे -यह मूल रूप से हिंदी में कहा गया वाक्य है, जिसकी गंभीरता और भाव अंग्रेज़ी अनुवाद में कहीं न कहीं कम हो जाती है लेकिन इसका असली अर्थ यही है अब कोई नहीं बचेगा। दिलचस्प बात यह है कि हाल ही में पहलगाम हमले के बाद यही वाक्य ‘घर में घुस कर मारेंगे’ सोशल मीडिया और जनमानस में फिर से गूंजने लगा है। यह वर्तमान में देश के हर समझदार नागरिक के भीतर उठ रहे आक्रोश और प्रतिशोध की भावना को सटीक रूप से दर्शाता है। ऐसे हालात में ‘युद्ध नहीं, शांति चाहिए’ संयम बरतें या सावधानीपूर्वक कदम उठाने जैसे बयानों की कोई प्रासंगिकता नहीं रह जाती। बल्कि इस समय ऐसे बयान राष्ट्र-विरोधी सोच के दायरे में आते हैं, कम से कम उस गुस्से और जज्बात से बिल्कुल विपरीत हैं जो आज देश के भीतर गूंज रहा है ‘घर में घुस के मारेंगे।’