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लड़ाका नहीं शांतिदूत

इस बार दुनिया का प्रतिष्ठित नोबेल शांति पुरस्कार इथोपिया के प्रधानमंत्री अबी अहमद को देने का ऐलान हो चुका है। नोबेल शांति पुरस्कार के लिए इस बार 301 नाम प्रस्तावित थे।

05:05 AM Oct 15, 2019 IST | Ashwini Chopra

इस बार दुनिया का प्रतिष्ठित नोबेल शांति पुरस्कार इथोपिया के प्रधानमंत्री अबी अहमद को देने का ऐलान हो चुका है। नोबेल शांति पुरस्कार के लिए इस बार 301 नाम प्रस्तावित थे।

लड़ाका नहीं शांतिदूत
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इस बार दुनिया का प्रतिष्ठित नोबेल शांति पुरस्कार इथोपिया के प्रधानमंत्री अबी अहमद को देने का ऐलान हो चुका है। नोबेल शांति पुरस्कार के लिए इस बार 301 नाम प्रस्तावित थे। इनमें से 223 नाम एकल व्यक्तियों के थे और बाकी नाम संस्थाओं के थे। इन नामों में जिन दो लोगों के नाम पुरस्कार के लिए बड़े दावेदार माने जा रहे थे उनमें अबी अहमद के साथ जलवायु परिवर्तन पर भावुक भाषण देने वाली ग्रेटा तुनबेर्ग भी शामिल थी। इथोपिया दुनिया का 5वां अत्यंत गरीब देश है। इथोपिया की भुखमरी पूरी दुनिया में चर्चित है।
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यह एक ऐसा देश है जिसे कभी उपनिवेशित नहीं किया गया। इस देश ने ईटालियंस को दो बार पराजित किया। इथोपिया का बाइबल में 40 बार उल्लेख है। यह बाइबल, कुरान और कई प्रसिद्ध ग्रंथों में उल्लेखित कुछ देशों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि दुनिया के पहले मनुष्यों की उत्पत्ति इथोपिया में हुई थी। अबी अहमद को नोबेल शांति पुरस्कार दिए जाने की घोषणा के साथ ही इथोपिया फिर चर्चा में है। अबी अहमद को नोबेल शांति पुरस्कार अंतर्राष्ट्रीय शांति और सहयोग में उनके प्रयासों और शत्रु देश इरिट्रिया के साथ शांति स्थापित करने के लिए दिया गया है। अबी अहमद 2018 में इथोपिया के प्रधानमंत्री बने और उन्होंने बड़े पैमाने पर उदारीकरण की शुरूआत की।
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उन्होंने हजारों विपक्षी कार्यकर्ताओं को जेल से रिहा कराया और निर्वासित असंतुष्टों को देश में वापस लौटने की इजाजत दी। पड़ोसी देश इरिट्रिया के साथ दो दशक से भी अधिक समय से चले आ रहे संघर्ष को खत्म करते हुए उसके साथ शांति स्थापित की। सितम्बर 2018 में अबी ने इरिट्रिया और जिबूती के बीच कई वर्षों से चली आ रही राजनीतिक शत्रुता खत्म कर कूटनीतिक रिश्तों को सामान्य बनाने में मदद की। इसके अलावा अबी ने केन्या और सोमालिया में समुद्री इलाके को लेकर चले आ रहे संघर्ष को खत्म कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अबी अहमद के पिता ओरोमो मुस्लिम थे और मां अम्हारा ईसाई।​ किशोरावस्था में वे तत्कालीन दर्ग्यू शासन के खिलाफ सशक्त संघर्ष में शामिल हो गए और आखिर में खुफिया और संचार सेवाओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए लेफ्टिनेंट कर्नल पद पर पहुंचे।
कभी लड़ाका बने अबी अहमद ने 1995 में रवांडा में संयुक्त राष्ट्र शांति दूत के रूप में कार्य किया। इरिट्रिया के साथ 1998-2000 में सीमा विवाद के दौरान उन्होंने इरिट्रिया के डिफेंस फोर्स के इलाकों में एक टोही मिशन पर गई जासूसी टीम का नेतृत्व किया। 2010 में अबी ने राजनीति में एंट्री ली और ओरोमो पीपुल्स डेमोक्रेटिक आर्गेनाइजेशन के सदस्य बने और फिर संसद के सदस्य चुने गए। संसद में उनके कार्यकाल के दौरान ही मुसलमानों और ईसाइयों में संघर्ष शुरू हुआ और उन्होंने संघर्ष समाप्त करने के लिए ‘शांति के लिए धार्मिक मंच’ की स्थापना की।
इरिट्रिया करीब तीन दशक के लम्बे संघर्ष के बाद 1993 में इथोपिया से अलग हुआ था। अलग होने के बाद दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को लेकर झगड़े होने लगे। सीमांत शहरों में बम धमाके और गोलाबारी आम बात हो गई। दो दशक से भी लम्बे समय तक चले इस संघर्ष में कम से कम एक लाख लाेगों को जान गंवानी पड़ी थी। ऐसा लग रहा था कि संघर्ष कभी खत्म नहीं होगा। तब अबी अहमद ने अपनी तरफ से शांति की पहल की। अबी अहमद की अलग-अलग समुदायों पर अच्छी पकड़ है। उन्हें जनता के बीच काफी सम्मान प्राप्त है। उनके प्रयासों से ही दोनों देशों के बीच शांति समझौता हुआ। लड़ाके से शांतिदूत बने अबी अहमद का नाम नोबेल शांति पुरस्कार के लिए सूची में दर्ज किया गया और उन्होंने सभी को पीछे छोड़ते हुए यह पुरस्कार हासिल किया।
यह भी सही है कि ग्रेटा तुनबर्ग ने जलवायु परिवर्तन की रोकथाम के लिए अपने फ्राइडेज फॉर फ्यूचर आंदोलन के द्वारा युवाओं में चेतना जगाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वह शुद्ध शाकाहारी बन गई हैं। वह किसी ईंधन से चलने वाली बस, कार या विमान में सफर नहीं करती। इसमें कोई संदेह नहीं कि ग्रेटा के​ प्रयास ईमानदारी से भरे हुए हैं, लेकिन कुछ लोग और संगठन ग्रेटा के आंदोलन को अपने हितों के ​लिए खतरा मानते हैं। कुछ लोग ग्रेटा को अदृश्य शक्तियों की कठपुतली भी करार देते हैं।
सबसे कम उम्र में नोबेल पुरस्कार पाने वाली पाकिस्तान की मलाला युसुफजई रही। 2014 में जब उसे पुरस्कार मिला ​था तब उसकी उम्र 17 वर्ष की थी। मलाला का नाम उसकी हत्या के प्रयास से घायल होने के बाद चमका न कि अपने किसी चमत्कारिक विवाद या मैजिक काम से। इथोपिया के प्रधानमंत्री अबी अहमद के प्रयासों से लाखों लोगों की जानें बची हैं। जान लेने वाला नहीं, लोगों की जान बचाने वाला ही शांतिदूत होता है। इसलिए उनका चयन सही है।
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Ashwini Chopra

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