भविष्य का हथियार ‘पानी’
जब सैमुअल टेलर कोलरिज़ ने अपनी कविता ‘द राइम ऑफ द एंशिएंट मॅरिनर’ में लिखा…
जब सैमुअल टेलर कोलरिज़ ने अपनी कविता ‘द राइम ऑफ द एंशिएंट मॅरिनर’ में लिखा था, ‘पानी-पानी हर जगह’, तब शायद उन्हें अंदाज़ा भी नहीं था कि एक दिन यही शब्द भविष्यवाणी साबित होंगे और आने वाले समय में पानी देशों के बीच एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा लेकिन आज की हकीकत यही है और हालात दिन-ब-दिन बिगड़ते ही जा रहे हैं। इसका एक ताज़ा उदाहरण है भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ता तनाव, जिसमें भारत ने पाकिस्तान को जाने वाले नदियों के जल को रोकने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं।
पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत सरकार ने जो शुरुआती कदम उठाए उनमें से एक था भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में हुई सिंधु जल संधि की समीक्षा। यह संधि दोनों देशों के बीच छह नदियों के जल बंटवारे को नियंत्रित करती है। तकनीकी पहलुओं को एक तरफ रखें तो इसका सीधा-सा अर्थ यह निकलता है- पाकिस्तान को जल आपूर्ति से वंचित करना। या कम से कम यही संदेश भारत सरकार ने अपने देशवासियों और सीमा पार लोगों को देने की कोशिश की है।
यह कोई खोखली धमकी नहीं है। इस संधि को निलंबित करने के निर्णय ने पाकिस्तान को गंभीर नुक्सान पहुंचाया है और इसके तात्कालिक ही नहीं, बल्कि दीर्घकालिक परिणाम भी होंगे। हालांकि सच्चाई यह है कि ऐसा करना जितना आसान लगता है, उतना है नहीं। सवाल उठते हैं- क्या भारत वास्तव में पाकिस्तान को पानी देना बंद कर सकता है या यह महज़ एक बयानबाज़ी है? क्या कोई भी देश पानी को हथियार बना सकता है? यह जल युद्ध पाकिस्तान को कितनी गहराई तक प्रभावित करेगा? भारत की तात्कालिक रणनीति और दीर्घकालिक योजना क्या है?
इन सभी पहलुओं पर दो विशेषज्ञ डॉ. उत्तम सिन्हा और प्रोफेसर अंजल प्रकाश ने अपनी राय रखी और इस ‘जल युद्ध’ को व्यापक संदर्भ में समझाया। डॉ. सिन्हा एक लेखक और ट्रांसबाउंडरी जल मुद्दों के विशेषज्ञ हैं। उनकी प्रमुख कृतियों में इंडस बेसिनअनइन्तेर्रुप्तेद, इंडस वाटर ट्रीटी और ट्रायल बय वाटर: इंडिया पाकिस्तान रिलेशनशामिल हैं।
प्रोफेसर अंजल प्रकाश का कार्य क्षेत्र जल और जलवायु परिवर्तन है। वे विभिन्न स्तरों पर सरकार के साथ जुड़कर काम कर चुके हैं और जल को एक रणनीतिक उपकरण के रूप में उपयोग करने के पक्षधर रहे हैं। हालांकि, ‘जल को हथियार’ बनाने के मुद्दे पर दोनों विशेषज्ञों के मत भिन्न थे। जहां डॉ. सिन्हा इस शब्दावली से असहज दिखे, वहीं प्रो. प्रकाश इसके समर्थन में नज़र आए।
डॉ. सिन्हा का मानना है कि जल का पुनर्गठन संभव है। भारत ने संधि को रद्द नहीं किया है, केवल निलंबित किया है जिसका उद्देश्य पाकिस्तान और विश्व को यह संकेत देना है कि भारत की सहनशीलता की सीमा समाप्त हो चुकी है। अतीत में भारत ने इस संधि का राजनीतिकरण नहीं किया लेकिन पहलगाम घटना के बाद संयम की कोई गुंजाइश नहीं थी। भारत ने जल आपूर्ति को पूरी तरह बंद नहीं किया है, बल्कि संधि के प्रावधानों का उपयोग करते हुए जैसे बांधों की फ्लशिंग या पाकिस्तान को सूचनाएँ न देना एक रणनीतिक दबाव बनाया है।
इसके विपरीत, प्रोफेसर अंजल प्रकाश जल को एक रणनीतिक हथियार के रूप में प्रयोग करने की वकालत करते हैं विशेषकर उस परिप्रेक्ष्य में जब पाकिस्तान “आतंकवाद को अपनी राज्य नीति का हिस्सा” बना चुका है। उनके अनुसार, “अब समय आ गया है कि हम पानी को एक रणनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करें अर्थात इसके एक हिस्से पर नियंत्रण रखते हुए अपने हित में उसका प्रयोग करें।”
वे यह भी कहते हैं कि सिंधु जल संधि भारत के लिए “अन्यायपूर्ण संधि” है “यह एक असमान संधि है, जो भारत के अपने राज्य जैसे जम्मू-कश्मीर की कीमत पर हस्ताक्षरित की गई थी। इस राज्य ने वर्षों से सिंधु का जल मांगा लेकिन उसे कभी उपयोग करने की अनुमति नहीं मिली। यह जल उस पाकिस्तान के हिस्से में जाता रहा है जो आतंकवाद को समर्थन देता है। 2023 में मैंने इस संधि पर पुनर्विचार की मांग की थी और स्पष्ट रूप से कहा था कि भारत को जल को हथियार के रूप में उपयोग करने के लिए तैयार रहना चाहिए।” क्या संधि को निलंबित करना पाकिस्तान के लिए एक आर्थिक झटका है?
डॉ. सिन्हा इससे सहमत होते हुए कहते हैं, “चूंकि सिंधु बेसिन पाकिस्तान की जीवनरेखा है जो देश की 80% कृषि आवश्यकताओं के लिए जल आपूर्ति करती है इसलिए जल प्रवाह में अस्थायी बाधा, सिंचाई समय सारिणी को प्रभावित कर सकती है और जल विद्युत उत्पादन में भी बाधा डाल सकती है।”
प्रोफेसर अंजल प्रकाश की मानें तो पाकिस्तान निकट भविष्य में ऊर्जा संकट का सामना कर सकता है। उनके अनुसार, “पाकिस्तान की 30 प्रतिशत ऊर्जा जलविद्युत क्षेत्र से आती है। यदि जल प्रवाह में कमी आती है या प्रवाह असामान्य होता है तो उनके लिए जल विद्युत उत्पादन करना कठिन हो जाएगा और यह पाकिस्तान के लिए चिंता का विषय बन सकता है।”
प्रो. प्रकाश भी मानते हैं कि फिलहाल पानी रोकना व्यावहारिक नहीं है। हमारे पास फिलहाल ऐसा कोई बुनियादी ढांचा नहीं है लेकिन सूचना साझा न करना एक ऐसा कदम है जिसका त्वरित प्रभाव पड़ेगा। आने वाले तीन से पांच वर्षों में जल प्रवाह को मोड़ने के लिए अवसंरचना तैयार करने की योजना है और निश्चित रूप से संधि पर पुनः वार्ता की भी हालांकि मैं इसे निकट भविष्य में होता नहीं देखता।
डॉ. सिन्हा भी मानते हैं कि “प्रभाव तात्कालिक नहीं हो सकता”, लेकिन साथ ही इस बात पर ज़ोर देते हैं कि भारत को अपने जल संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करना चाहिए अपने हित और अपनी जनता के लाभ के लिए, जो अतीत में नहीं हुआ। कुछ व्यावहारिक चुनौतियां, जैसे कि दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियां और क्षेत्र का उच्च भूकंपीय संवेदनशीलता वाला क्षेत्र होना भारत के लिए अवश्य ही बाधाएं बन सकती हैं।
प्रो. प्रकाश का सुझाव है कि भारत को एक विशाल बांध की बजाय कई छोटे बांधों की शृंखला विकसित करनी चाहिए जिससे कार्यान्वयन अधिक व्यावहारिक और सुरक्षित हो सके। दोनों विशेषज्ञ इस बात पर सहमत हैं कि आगे का रास्ता है संधि पर पुनर्विचार और पुनः वार्ता। वहीं गतिरोध यह है कि भारत एक द्विपक्षीय समझौता चाहता है, जबकि पाकिस्तान किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता पर अड़ा रहेगा। इन्कार नहीं किया जा सकता कि मोदी सरकार ने पाकिस्तान को उसकी सबसे संवेदनशील नस पर चोट दी है- जल आपूर्ति को सीमित कर।
भले ही हकीकत में इसका पूरा प्रभाव वैसा न हो जैसा बताया जा रहा है लेकिन यह किसी भी रूप में एक खोखली धमकी नहीं है। यदि भारत आंशिक रूप से भी जल प्रवाह को मोड़ दे, सूचना साझा करना बंद कर दे और अपने शत्रु देश पर दबाव बनाए रखे तो यह कदम निश्चित रूप से सार्थक सिद्ध होगा और पाकिस्तान को संकट की स्थिति में पहुंचा देगा।