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बचपन से एक गीत सुनते आए हैं और जो दिल की गहराइयों से अच्छा लगता है ‘न हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा, तू इन्सान की औलाद है

01:00 AM Jun 24, 2018 IST | Desk Team

बचपन से एक गीत सुनते आए हैं और जो दिल की गहराइयों से अच्छा लगता है ‘न हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा, तू इन्सान की औलाद है

बचपन से एक गीत सुनते आए हैं और जो दिल की गहराइयों से अच्छा लगता है ‘न हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा, तू इन्सान की औलाद है इन्सान बनेगा’ और आज इसी गीत को कुछ इस तरह गुनगुनाने को जी चाहता है कि ‘न ​हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा, तू हिन्दोस्तानी है तू हिन्दोस्तान के लिए जीये-मरेगा।’

वाकई शहीद औरंगजेब और उसके पिता ने यह कहते हुए साबित कर दिया कि उनके अन्दर देशभक्ति कूट-कूटकर भरी हुई है यानी हिन्दोस्तान के सभी मुसलमान जो इस देश को प्यार करते हैं वो देश के लिए ही जीते-मरते हैं। कुछ लोग हैं जो दूसरे देशों के बहकावे में आकर या पैसों के लालच में आकर अपना जमीर बेचते हैं वरना इस देश में हिन्दोस्तान की जमीं पर आैरंगजेब जैसे देशभक्त शहीदों की कमी नहीं। एक पिता जिसका जवान बेटा ईद पर छुट्टी लेकर घर आ रहा हो, उसे बेरहमी से मार दिया गया और वो शान से कहे कि एक पुत्र तो क्या वह अपने सभी पुत्रों को देश के लिए न्यौछावर कर सकते हैं। वाह! हम उनके आगे नतमस्तक हैं। सारा देश नतमस्तक है। वाकई हम सभी देशवासी अगर चैन की नींद सोते हैं तो ऐसे सैनिकों की वजह से जिनके लिए सबसे पहले देश है चाहे वो हिन्दू, सिख, मुसलमान या ईसाई है। कोई भी सैनिक जाति-धर्म से उठकर देश के लिए जीता-मरता है। उसका धर्म, ईमान सब कुछ देश है। उनका एक ही सूत्र वाक्य है-‘हम जीएंगे हम मरेंगे ऐ वतन तेरे लिए’।

यही नहीं पिछले दिनों उत्तराखंड में युवा पुलिसकर्मी गगनदीप सिंह ने एक मुस्लिम लड़के को लोगों की भीड़ से बचाया आैर अपनी देशभक्ति की ड्यूटी को भी निभाया, उनकी बहादुरी, देशसेवा को देखते हुए हमारे वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब के प्रसिद्ध एडवोकेट विनोद निझावन ने उन्हें पंजाब केसरी की टीम द्वारा चैक भी भेजा।

कश्मीर में सरकार भंग हुई जिसका हम सब यानी सभी हिन्दोस्तानी स्वागत करते हैं क्योंकि हालात इतने बिगड़ रहे थे कि अगर यह न होता तो न जाने कितना नुक्सान होता। अभी भी कम नहीं हुआ। एक-एक मिनट देश की जनता व कश्मीर की जनता पर भारी था। दम घुटने वाला था। असल मायने में मोदी जी का एक प्रयास था कश्मीर के हालात को सुधारने का और आतंकवादियों को सुधरने का अवसर देने का परन्तु अब तो हद ही हो गई। जब बहुत ही पाक, पवित्र दिनों में सीजफायर की घोषणा की गई तो इसका नाशुक्रा फायदा उठाया गया। कहीं तो हमारे सैनिक शहीद हो रहे थे, कहीं पत्थर खा रहे थे, कई जवानों के शरीर तिरंगे में लिपट कर घर पहुंचे, कई शहीद होने से पहले ही अपने पहले बच्चे की शक्ल तक नहीं देख पाए, कई शादी की घोड़ी चढ़ने से पहले शहीदी की घोड़ी चढ़ गए, कई बहनें राखी बांधने का इंतजार करती बिखर गईं, कई जवान विधवाओं की आंखों के आंसू सूख गए, कई माताओं की ममता ने रो-रोकर पानी से समुद्र भर दिए, कई बूढ़े पिता की सहारे की लाठियां टूट गईं परन्तु इतना कुुछ होने के बाद अपनी आंखों से देखने के बाद इन बेरहम कातिलों और कई देशद्रोहियों को सब्र नहीं हो रहा था।

परन्तु अब थोड़ा सा लग रहा है कि कश्मीरियों को अब अपनों को खोने का दर्द महसूस होने लगा है। अयूब पंडित, औरंगजेब और कैप्टन उमर फैय्याज की बेरहमी से की गई हत्या ने सबको हिलाकर रख दिया है। पहली बार कश्मीर में एक निष्पक्ष पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या पर कश्मीरी लोग खुलकर सामने आकर सड़कों पर उतर आए और उसके जनाजे पर कश्मीरियों ने पाकिस्तान के विरोध में आवाज उठाई। शुजात बुखारी की हत्या से तो हमारे परिवार के जख्म फिर से हरे हो गए जब सच्चाई की आवाज उठाने की खातिर अश्विनी जी के दादा जी और पिताजी को शहीद कर दिया गया। पिताजी की हत्या के बाद आदरणीय रोमेश जी ने शहीद परिवार फण्ड शुरू किया जिसमें उन्होंने किसी भी जाति-धर्म की विधवा व शहीद की पत्नी को सहायता दी और सब हिन्दोस्तानियों ने भी धर्म-जाति से ऊपर उठकर इस फण्ड में योगदान दिया आैर देते आ रहे हैं। आज भी सारे हिन्दोस्तानी शहीद रोमेश चन्द्र जी की धर्मनिरपेक्षता को याद करते हुए उनके नाम से इस फण्ड में योगदान देते रहते हैं। वाकई इन्सान आैर इन्सानियत का तो धर्म होता है जो देशवासी निभाते हैं परन्तु आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं, कोई जाति नहीं होती, वे तो केवल खून बहाते हैं।

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