हमें युद्ध नहीं शांति चाहिए
आज की तारीख में घर, परिवार, समाज या देश या इसके बाद अंतर्राष्ट्रीय मंच पर कोई भी व्यक्ति किसी भी सूरत में तनाव नहीं चाहता।
04:18 AM Jan 12, 2020 IST | Aditya Chopra
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आज की तारीख में घर, परिवार, समाज या देश या इसके बाद अंतर्राष्ट्रीय मंच पर कोई भी व्यक्ति किसी भी सूरत में तनाव नहीं चाहता। सच बात तो यह है कि अच्छे जीवन का एकमात्र विकल्प तो शांति ही है। जिस तरह से अमेरिका और ईरान के बीच तनातनी चल रही है, उसे देखकर पिछले दिनों कहा जा रहा था कि दुनिया तीसरे विश्वयुद्ध के कगार पर पहुंच गई है। जब अमेरिका ने एक जोरदार हमले में ईरानी जनरल कासिम सुलेमानी को मार गिराया तो ईरान ने भी पलटवार किया और इराक में अमेरिका के दो सैनिक अड्डों पर मिसाइल दाग कर इन्हें तबाह कर दिया।
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हालांकि ईरान ने 80 अमेरिकी सैनिकों के मारे जाने की बात कही थी लेकिन रातोंरात अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्रेस कांफ्रेंस बुला कर स्पष्ट कर दिया कि एक भी अमेरिकी सैनिक नहीं मरा। इसके बाद ट्रंप चाहते तो बड़ा हमला कर सकते थे लेकिन उन्होंने साफ कहा कि युद्ध के अलावा अगर कोई विकल्प है तो हम उस पर बातचीत को तैयार हैं। ईरान के आक्रामक तेवरों में भी अमरीकी अंदाज के बाद नरमी आई और उसने भी कहा कि अगर अमेरिका शांति चाहता है तो हम भी शांति के लिए तैयार हैं।
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कहने का मतलब यह है कि फिलहाल एक बड़े युद्ध का खतरा टल गया है जो कि जरूरी भी बहुत था। हमारा मानना है कि अपने जनरल के मारे जाने के बाद ईरान के लोग भड़क गए थे, क्योंकि ईरान के साथ-साथ इराकी लोग भी उन्हें मानते थे। एक अच्छी बात यह हुई कि ईरान अपने देशवासियों के अमेरिका के प्रति बढ़ते आक्रोश को शांत करने के लिए कुछ करना चाहता था और उससे अमेरिकी सैनिकों की जान नहीं गई। ऐसा लगता है कि इराक या फिर तेहरान से अमेरिका को संदेश दे दिया गया था कि आप अपने सैनिकों को सैनिक अड्डों से हटा लें क्योंकि वहां मिसाइलें दागी जाने वाली हैं।
इसीलिए मिसाइलें दागने के बाद अमेरिका के सैनिकों की जानें नहीं गईं। कूटनीतिक स्तर पर दोनों देश एक-दूसरे को समझते हैं। इसीलिए यह खतरा टल रहा है लेकिन दोनों देश एक-दूसरे की राजनीतिक स्थितियों के बारे में भी परिचित हैं तभी इतने बड़े पैमाने पर इतना कुछ हो गया। जनरल सुलेमानी की मौत से लेकर उत्पन्न आक्रोश तक अगर सब कुछ शांतिपूर्ण तरीके से हल कर लिया जाता है तो अच्छे की उम्मीद की जा सकती है। क्योंकि यह वर्ष ट्रंप के लिए चुनावी वर्ष है इसलिए मित्र देशों को दूर होता देखकर ट्रंप ने भी अब अपने तेवर बदल लिए हैं।
ईरान को सबक सिखाने के लिए उन्होंने सुलेमानी को जिस तरह से मार गिराया तो इसके पीछे भी अमेरिकी जनता के आक्रामक तेवर थे लेकिन अमेरिका ने जो करना था वो कर दिया तो राजनीतिक दृष्टिकोण से जब अमेरिकी सीनेटर अमेरिकी एक्शन का विरोध करने लगे तो ट्रंप बैकफुट पर आ गए। भारत भी आज की तारीख पर अलर्ट है। हमारी अर्थ व्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा ईरान से आने वाले आयल पर निर्भर है। सब-कुछ सैट हो रहा है। अमेरिका अब ईरान पर कुछ कड़े प्रतिबंध लगा चुका है तो यकीनन लग रहा है कि दोनों देश की जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अर्थ व्यवस्था लड़खड़ा गई हो तो दो बड़े मुल्कों का टकराव देश और दुनिया के लिए अच्छा नहीं हो सकता।
हम समझते हैं कि भारत एशियाई क्षेत्र में एक बड़ी शक्ति होने के नाते सबके हितों को देखते हुए एक बड़ी भूमिका मध्यस्थ के रूप में निभा सकता है। इस समय पूरी दुनिया शांति चाहती है और खुद मोदी जी पूरी दुनिया में शांति के अग्रदूत बने हुए हैं। युद्ध से बचने का प्रयास हमेशा होना चाहिए और ये परिवार, समाज, देश और दुनिया पूरी तरह से शांति पर ही टिकी है, अहिंसा पर ही केन्द्रित है।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी हों या भगवान महावीर, अहिंसा परमोधर्म या फिर जियो और जीने दो का सिद्धांत हो, यह न केवल शांति बल्कि उन्नति का मार्ग है। इस तथ्य को हर कोई स्वीकार करता है तो फिर ईरान, अमेरिका या किसी भी अन्य देश में आपसी टकराव नहीं होना चाहिए बल्कि हमेशा मैत्री भाव से शांति की बात होनी चाहिए।

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