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हमने सीख लिया तूफानों से टकराना

1999 के सुपर साइक्लोन में 10 हजार से अधिक लोगों की मौत हुई थी जबकि 2019 में आए तूफान से महज 10 लोगों की मौत हुई। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि

10:22 PM May 04, 2019 IST | Desk Team

1999 के सुपर साइक्लोन में 10 हजार से अधिक लोगों की मौत हुई थी जबकि 2019 में आए तूफान से महज 10 लोगों की मौत हुई। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि

1999 के सुपर साइक्लोन में 10 हजार से अधिक लोगों की मौत हुई थी जबकि 2019 में आए तूफान से महज 10 लोगों की मौत हुई। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि हमने आपदा प्रबन्धन में कितनी प्रगति की है। पहले हमारे पास मौसम की सटीक भविष्यवाणी करने वाला सिस्टम नहीं था। मौसम विभाग के सभी पूर्वानुमान गलत हो जाते थे जिससे काफी जान और माल की हानि होती थी।

ओडिशा सरकार और केन्द्रीय एजैंसियों ने जिस तरह से इस बार आपदा प्रबन्धन किया उसकी तारीफ की ही जानी चाहिए। ऐसा नहीं है​ कि फोनी तूफान ने कहर नहीं बरपाया। कई क्षेेत्रों में कच्चे मकान ढह गए। पक्के मकानों को भी क्षति पहुंची। पेड़ भी उखड़े और ​बिजली के खम्भे भी। इतने तीव्र तूफान से नुक्सान होना ही था लेकिन फोनी तूफान से मृतकों की संख्या तूफान की गम्भीरता को देखते हुए काफी कम है। 10 लाख लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाना कोई आसान काम नहीं है लेकिन राज्य आैर केन्द्र सरकार के बीच बेहतर तालमेल आैर बड़ी एनडीआरएफ टीम की वजह से यह सम्भव हो पाया।

ओडिशा हर वर्ष कम से कम दो विपदाएं झेलता है। यह एक ऐसा राज्य बन गया है जो बाढ़, तूफान और सूखे की मार लगातार झेल रहा है। चक्रवात के लिहाज से ओडिशा भारत का एक बेहद अहम राज्य है। आमतौर पर चक्रवात राज्य के तटीय इलाकों से मानसून के बाद टकराते रहे हैं लेकिन अब मानसून पूर्व ही चक्रवात आ रहे हैं। पिछले वर्ष 11 से 14 अक्तूबर को तितली चक्रवात ने समूचे राज्य को काफी नुक्सान पहुंचाया था। 1900 से 2011 के बीच राज्य ने 59 वर्ष सबसे तीव्र और भयंकर बाढ़ को झेला।

24 वर्ष गम्भीर चक्रवात और 42 वर्ष सूखा आैर 14 वर्ष कठोर और गर्म हवाएं और 7 वर्ष खतरनाक टोर्नेडो को भी झेला। मौसम आैर प्राकृतिक आपदाओं की तीव्रता बढ़ने के साथ ही राज्य में 1965 के बाद से प्रत्येक वर्ष दो से तीन आपदाएं हो रही हैं। आेडिशा के तट काे देश का सबसे उथल-पुथल वाला तट करार दिया जाता है। बीती शताब्दी में 1035 चक्रवाताें ने भारतीय द्वीपों को अस्थिर किया था। पूर्वी तट पर चक्रवातों के टकराने की संख्या इससे आधी है जबकि आेडिशा कुल 263 तूफानों का अनुभव कर चुका है। 1999 के तूफान के बाद ओडिशा ने आपदा प्रबन्धन को पुख्ता किया। अनेक आपदा शैल्टर बनाए, आपदा जोखिम घटाने के लिए सिस्टम स्थापित किया। आपदा के समय एनजीओ के स्वयंसेवकों की मदद लेना, लोगों को सक्रिय करना, भोजन की व्यवस्था करना और आपदा के समय उठाए जाने वाले कदमों की रूपरेखा तैयार की गई।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के बेहतर वार्निंग सिस्टम के कारण से तूफान को कम किया गया है। आईएमडी के नए क्षेत्रीय तूफान माॅडल ने भारी नुक्सान को रोकने में मदद की। साथ ही यह भी दिखाया कि 1999 के सुपर साइक्लोन के बाद से लैंडफाल पर नजर रखने और पूर्वानुमान लगाने में कितनी प्रगति हुई है। अक्तूबर 2013 में आए फैलिन और अक्तूबर 2014 में आए हुदहुद तूफान को लेकर सफल अभियान के बाद केन्द्रीय एजैंसियां और राज्य सरकारें बड़े पैमाने पर निकासी का प्रबन्धन करने में सक्षम थी।

नए रीजन मॉडल में अन्य मॉडल की तुलना में वायुमंडलीय के अलावा समुद्री कम्पोनेंट्स होते हैं, जिससे तूफान को बेहतर तरीके से ट्रैक कर सकते हैं। पूर्वानुमान एजैंसी अपने चक्रवात प्रारम्भिक चेतावनी प्रणाली में लगातार सुधार कर रही है। इसमें कोई संदेह नहीं कि तूफान का सामना करने के लिए इस बार युद्ध स्तर की तैयारी की गई थी जिसको जो जिम्मेदारी दी गई थी, वह अपनी जगह तैनात था। यद्यपि केन्द्र सरकार ने राहत के लिए पहले ही धन की व्यवस्था कर दी थी लेकिन तूफान, चक्रवात और अन्य आपदाएं राज्य के लिए एक आर्थिक चुनौती हैं। 1970 के दशक में प्राकृतिक आपदाओं के चलते ओडिशा में सम्पत्ति का नुक्सान 10.5 अरब रुपए था।

वहीं 1980 में यह 7 गुना बढ़ गया जबकि 1990 में 10 गुना बढ़ गया। बाढ़ और सूखा भी आर्थिक क्षति को हर वर्ष बढ़ा देते हैं। फोनी तूफान से कितना नुक्सान हुआ, इसका आकलन किया जा रहा है। पिछले 20 वर्षों में ओडिशा के आपदा प्रबन्धन राहत विभाग ने प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए वृहद योजना बनाई जिसमें उन्होंने विश्व बैंक की मदद ली थी। तैयारी में ही समझदारी है, ओडिशा ने आपदा प्रबन्धन में मिसाल कायम की है। अन्य राज्यों को भी उससे सबक लेकर आपदाओं से निपटने की तैयारी करनी चाहिए। इसका अर्थ यही है कि हमने तूफानों से टकराना सीख लिया है।

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