क्या चाहते हैं चन्द्रबाबू नायडू ...
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू पर पीएम मोदी वैसे भी खासे मेहरबान रहते…
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू पर पीएम मोदी वैसे भी खासे मेहरबान रहते हैं। जब भी नायडू दिल्ली आते हैं तो अपने राज्य के लिए यहां से बड़ी सौगात लेकर ही वापिस लौटते हैं। सूत्रों की मानें तो ’ऑपरेशन सिंदूर’ से कुछ समय पहले जब नायडू पीएम को आंध्र आने का निमंत्रण देने दिल्ली आए थे तो उसके बाद उनकी मुलाकात सरकार के एक बड़े नेता से भी हुई थी, बातों ही बातों में चंद्रबाबू ने से कहा कि जब 2024 में केंद्र में सरकार बनाने के लिए टीडीपी ने नरेंद्र मोदी को समर्थन दिया था तब यह तय हुआ था कि उनकी पार्टी को तीन कैबिनेट मंत्री के पद मिलेंगे, पर अबतलक उन्हें एक कैबिनेट व एक राज्य मंित्रयों से ही काम चलाना पड़ रहा है। नेता ने नायडू को भरोसा दिलाते हुए कहा कि ’पीएम की इस बात का पूरा इल्म है, अगली बार जब भी केंद्रीय मंत्रिमंडल का विस्तार होगा हम आपकी इस बात का ध्यान रखेंगे।
चिराग का अपना ही खटराग
अपने दिवंगत पिता राम विलास पासवान के पद चिन्हों पर चलते हुए केंद्रीय मंत्री व लोजपा (राम विलास) प्रमुख चिराग पासवान भी भाजपा के समक्ष अपनी ढपली अपना राग गाने में जुटे हैं। चिराग जानते हैं कि इस बार का बिहार विधानसभा चुनाव उनकी सियासी प्रासंगिकता को बनाए रखने के लिए कितना जरूरी है। वे पिछले काफी समय से अपने लिए अलौली विधानसभा को तैयार कर रहे थे, पर उनके चाचा ने अपनी यह सीट तोहफे में अपने बेटे यश को देने का सफल दांव चल दिया, चिराग वैसे भी अपने इस चाचा पशुपति पारस से और उलझना नहीं चाहते। सो, उन्होंने अलौली सीट अपने चचेरे भाई यश पासवान के लिए ही छोड़ देने का मन बना लिया है, क्योंकि वे नहीं चाहते कि अपने भाई को ही हराने के लिए उन्हें अलौली से उतरना पड़े, सो पिछले कुछ समय से वे अपने लिए एक नई सीट की तलाश में थे, जो जमुई के अंतर्गत आने वाली सिकंदरा सुरक्षित सीट पर पूरी हो गई है। सूत्रों की मानें तो चिराग अब सिकंदरा से चुनाव लड़ने की तैयारियों में जुट गए हैं, जबकि यह सीट फिलहाल एनडीए के सहयोगी दल हम के पास है और हम के प्रफुल्ल मांझी यहां से विधायक हैं। चिराग पासवान इस दफे भाजपा से 42 सीटों की डिमांड कर रहे हैं, जबकि फिलवक्त भाजपा लोजपा (राम विलास) के लिए 20 से 25 सीटें छोड़ने को ही राजी दिखती है, क्योंकि भाजपा को लगता है केवल चिराग को साधने से ही बिहार के 20 फीसदी दलित वोटरों को एकमुश्त नहीं साधा जा सकता है, वैसे भी चिराग के सजातीय पासवान या दुसाध मात्र 3.5 फीसदी ही हैं। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी चिराग ने अपनी ढपली अपना राग गाया था और भाजपा से गठबंधन की परवाह न करते हुए 137 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए थे, तब उनका मात्र एक ही उम्मीदवार बेगुसराय की मटिहानी सीट से जीत दर्ज करा पाया था। अभी चिराग बहुजन भीम संकल्प समागम की तैयारियों में जुटे हैं।
बिहार में जाति कार्ड का बोलबाला
बिहार विधानसभा के चुनाव जैसे-जैसे करीब आ रहे हैं, राज्य के तमाम राजनीतिक दल अब खुल कर जाति की राजनीति का आगाज़ करने में जुट गए हैं। खास कर तमाम राजनीतिक दलों की निगाहें दलित और पिछड़े वोटरों को लुभाने पर लगी हैं। एक ताजा अनुमान के अनुसार बिहार में दलित वोटरों की तादाद लगभग 20 फीसदी है, 27 फीसदी ओबीसी वोटर हैं और तकरीबन 36 फीसदी अति पिछड़ी जातियां यानी कि ईबीसी वोटर हैं।
यानी कि इन तीनों को मिलाने से ही वोटरों का आंकड़ा 63 फीसदी के आसपास आ जाता है। सामान्य जाति के वोटर्स की बात करें तो इनकी संख्या मात्र 15.15 फीसदी बैठती है। सो, आप सहज समझ सकते हैं कि राजनीतिक दलों की गिद्ददृष्टि मजबूती से इस 63 फीसदी वोट बैंक पर टिकी है। भाजपा की असल चिंता अपने साथी जदयू के खिसकते वोट बैंक को लेकर है, भाजपा के अपने ही सर्वेक्षणों में दावा हुआ है कि जदयू के कई परंपरागत वोट बैंक अब खिसक कर राजद और कांग्रेस की झोली में जा रहे हैं जैसे धानुक व कोइरी वोट। वहीं राहुल गांधी व कांग्रेस ने दलित वोट बैंक में सेंध लगाने का काम किया है, राहुल गांधी ने न सिर्फ कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष एक दलित यानी राजेश राम को बनाया है, बल्कि वे अपनी हर सभा में संविधान और अंबेडकर का राग जरूर छेड़ते हैं, अगर राम विलास पासवान के परंपरागत दुसाध वोटरों की बात छोड़ भी दें तो दलितों की अन्य जातियां जैसे रविदास, निशाद, मोची आदि कांग्रेस की ओर सद्भावना दिखा रहे हैं, इससे तेजस्वी को फायदा हो सकता है। भाजपा को डर है कि 2024 लोकसभा चुनाव के दौरान जिस तरह अखिलेश का पीडीए यूपीए में काम कर गया, ऐसा कहीं बिहार में भी इस बार न हो जाए। सो, भाजपा अपनी तिरंगा यात्रा के माध्यम से इस जातीय संतुलन को देशभक्ति में पिरोना चाहती है।
कई देशों में बदले जा सकते हैं भारतीय राजदूत
चर्चा है कि भारत कई देशों में अपने राजदूत बदल सकता है। सरकार ने दो दिन पहले अपने विदेश मंत्री को तलब कर कई मामलों पर सवाल-जवाब किए हैं। यह भी कहा गया है कि ये देश हमेशा से भारत के साथ खड़े रहते थे। पिछले दिनों भूटान, नेपाल, श्रीलंका, मालद्वीप जैसे पड़ोसियों ने भी ‘न्यूट्रल स्टेटमेंट’ दिए। यहां तक कि 7-8 छोटे अफ्रीकी देश भी अलग भाषा बोल रहे हैं। जबकि भारत हमेशा से ‘नॉन अलांयस मूवमेंट’ की अलख जगाता रहा है, उसने समय-समय पर अफ्रीकी देशों की खुल कर मदद भी की है।
समझा जाता है कि विदेश मंत्रालय की ओर से सफाई दी गई कि चूंकि ये छोटे-छोटे अफ्रीकी देश हैं जिनका मजबूत स्टैंड नहीं होता तथा ये अपने बयान बदलते रहते हैं। अब ये संकेत मिल रहे हैं कि आने वाले कुछ दिनों में कम से कम 18-19 देशों से भारतीय राजदूतों की छुट्टी हो सकती है, उनकी जगह कुछ प्रो-एक्टिव चेहरों को लाया जा सकता है।
…और अंत में :
बिहार चुनाव के मद्देनज़र सजातीय वोटरों को लुभाने के लिए नेताओं में होड़ लगी है। चिराग पासवान दलित वोटरों को लुभाने के लिए ’बहुजन भीम संवाद’ आरंभ कर रहे हैं, उनकी पार्टी का लक्ष्य गरीबों और पिछड़े वर्गों के अधिकारों को पूरा करने के संकल्प से जुड़ा है। चिराग अपने छोटे-छोटे कार्यक्रमों द्वारा अपने सहयोगी दलों को अपनी ताकत भी दिखाना चाहते हैं। वहीं भाजपा निशाद समाज को अपने साथ जोड़ने के लिए ’बहुजन निशाद संवाद’ करने जा रही है, राज्य के लगभग हर जिले में इस संवाद को आयोजित करने का कार्यक्रम है। नीतीश कुमार की निगाहें राज्य की 48 फीसदी महिला वोटरों पर टिकी हैं जो अब तक के चुनावों में उनका ट्रंप कार्ड साबित हुई हैं।
नीतीश ’महिला संवाद’ के माध्यम से अपनी महिला वोटरों से जानना चाहते हैं कि शराब बंदी से उन्हें कितना फायदा हुआ है। जीतन राम मांझी व उपेंद्र कुशवाहा जैसे नेता भी अपने-अपने समाज को एकजुट करने की कोशिशों में जुटे हैं।
मांझी ’बहुजन गरीब यात्रा’ निकाल रहे हैं, पर पीके ने उनकी पार्टी के उपाध्यक्ष रामचंद्र दास को अपनी पार्टी जन सुराज में शामिल कर उन्हें एक बड़ा झटका दे दिया है।
(www.parliamentarian.in)