लद्दाख में यह क्या चल रहा है?
‘बिके तो हम भी सौ-सौ बार थे, पर हमें खरीदने वाले भी वे
खरीदार थे
पर ये सौदा तो कुछ अजीब था, मेरे हाथ बंधे थे,उनके हाथों में
तलवार थे’
लद्दाख में जन असंतोश की ज्वाला अलग-अलग वेश धर कर सामने आ रही है, अभी वहां ‘जेन ज़ी’ का उबाल किंचित ठंडा पड़ने के आसार दिख रहे थे कि अचानक ‘रेमन मैग्सेसे’ पुरस्कार विजेता सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी ने सुप्त ज्वाला को भड़काने का काम किया है। शिक्षाविद्, इनोवेटर और पर्यावरणविद् सोनम लद्दाख का एक जाना-माना चेहरा है। कभी वे सरकार अनन्य प्रशंसकों में शुमार हुआ करते थे, पर जब उन्होंने चीन के मुद्दे पर अपनी बेलाग टिप्पणी कर दी तब से वे केंद्र सरकार की‘हिट लिस्ट’ में आ गए। अब केंद्र सरकार ने उनकी देशभक्ति पर सवाल उठाते हुए उनको गिरफ्तार कर जोधपुर जेल भेज दिया है। दरअसल, वांगचुक ‘लेह एपेक्स बॉडी’ (लेब) के साथ मिल कर पिछले काफी समय से संविधान की छठी अनुसूची के तहत लद्दाख को राज्य का दर्जा व संरक्षण देने की मांग कर रहे थे। अपनी इसी मांग को स्वर देने के लिए ही उन्होंने 35 दिनों के अपने उपवास की घोषणा की थी और बकायदा उपवास पर जा बैठे थे, पर जब लद्दाख में ‘जेन ज़ी’ के आंदोलन ने उग्र व हिंसक रूप ले लिया तो मजबूरन उन्हें अपना उपवास वापिस लेना पड़ा था, उन्होंने नई पीढ़ी से शांति बनाए रखने की अपील भी की, पर इससे केंद्र का दिल नहीं पसीजा। उनके एनजीओ पर जांच की तलवार लटक गई और उन्हें सलाखों के पीछे डाल दिया गया। वैसे भाजपा के यहां से दो बार के सांसद रहे और लेब के अध्यक्ष रहे थुपस्तान छेवांग को जनभावनाओं की कद्र करते हुए एपेक्स बॉडी के सिरमौर पद से ऐसे समय में तब इस्तीफा देना पड़ा जब केंद्र सरकार लेब और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस के साथ मिल कर संवैधानिक अधिकारों के तहत लद्दाख को राज्य का दर्जा देने की बात कर रही थी। कहा जाता है कि केंद्र सरकार के कहने पर छेवांग ने फिर से इस एपेक्स बॉडी को ज्वॉइन कर लिया। जबकि उनका भाजपा से इस्तीफा 2018 में हो गया था। सनद रहे कि कांग्रेस नेता नवांग रिग्जिन ने यह कहते हुए लेह एपेक्स बॉडी से अपना इस्तीफा दे दिया था कि ’इस संस्था में राजनैतिक पार्टी से जुड़े लोगों को नहीं होना चाहिए।’ वहीं सोनम वांगचुक की सरकार लगातार अनदेखी कर रही थी। इसके बाद ही वांगचुक ने अलग राज्य की मांग करते और लद्दाख में व्याप्त बेरोजगारी और पर्यावरण की चिंता को मुद्दा बनाते 35 दिनों के उपवास की घोषणा कर दी, जिसे स्थानीय ‘जेन ज़ी’ का भरपूर समर्थन हासिल हुआ। सोनम के एपेक्स बॉडी से बाहर होते ही केंद्र सरकार ने इसके सदस्यों के साथ अक्तूबर में बातचीत की तारीख मुकर्रर कर दी है।
लद्दाख पर क्यों है चीन की नज़र
लद्दाख में जो कुछ घटित हो रहा है माना जाता है कि चीन ने इस पर पूरी नजर गड़ा रखी है। हालांकि लद्दाख के लोग कभी भी चीन को पसंद नहीं करते, यहां की जनभावनाएं चीन के बजाए तिब्बती लोगों के साथ हैं। वैसे भी हमारे सीमावर्ती इलाकों में जहां कहीं भी असंतोश पनपता है चीन उसे एक मौके की तरह देखता है और लद्दाख की सीमाएं चीन और पाकिस्तान दोनों से लगती हैं। चुनांचे यह भारत के लिए रणनैतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है। सोनम वांगचुक के 35 दिनों की भूख हड़ताल के 15वें ही दिन वहां हिंसा भड़क गई, जिसमें 4 मासूम लोगों की जान भी चली गई। केंद्र ने लद्दाख में तनाव बढ़ने के पीछे कहीं न कहीं सोनम वांगचुक को ही जिम्मेदार माना और उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।
असंतोश के पीछे क्या है?
पिछले दिनों लद्दाख में हुए हिंसक प्रदर्शन के लिए ‘क्रोनी कैपटिलज़्म’ को भी जिम्मेदार माना जा सकता है। दरअसल, सन् 2018 में सोनम वांगचुक को लेह के पयांग में 135 एकड़ भूमि 40 सालों के लिए पट्टे पर दी गई थी। जहां सोनम ने ’हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव लर्निंग’ की नींव रखी। इस संस्था का उद्देश्य शिक्षा खास कर पर्यावरणीय शिक्षा और टिकाऊ पर्वतीय जीवन को एक मॉडल के रूप में विकसित करना था। पर जब वांगचुक ने सरकार के लिए अपने सुर बदले तो मई 2019 में प्रशासन ने इसे मान्य शर्तों का उल्लंघन बताते हुए यह पट्टा रद्द कर दिया। इसके बाद ‘पांग,देवरिंग और खरनाक में ‘विंड सोलर और बैटरी सोलर प्रोजेक्ट’ के लिए 13 गीगा वाट के प्रोजैक्ट को हरी झंडी दिखयी गई है। जिसकी अनुमानित कीमत 20 हजार 700 करोड़ रुपए बताई जाती है। समझा जाता है कि यह प्रोजेक्ट सरकार के एक पसंदीदा औद्योगिक समूह के हवाले किया जा सकता है।
लालू परिवार पर ओवैसी का वार
बिहार चुनाव के मुहाने पर खड़ा है और यहां के सबसे बड़े सियासी परिवार में आपसी खींचतान परवान पर है। इस बार जब तेजस्वी यादव ने जब ’बिहार अधिकार यात्रा’ निकाली तो रथ में उनके आगे उनके सबसे प्रिय संजय यादव सवार थे, जबकि अब तक देखा गया कि आमतौर पर यह जगह लालू परिवार के ही किसी सदस्य के लिए सुरक्षित रहती थी। इस बात को लालू पुत्रियां मीसा भारती और रोहिणी आचार्य ने काफी तूल दे दिया। तेजस्वी के भाई तेज प्रताप तो पहले ही परिवार से बाहर आकर अपनी नई राजनैतिक पार्टी का गठन कर चुके हैं। अब तो एआईएमआईएम के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने भी बिना तेजस्वी का नाम लिए उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है, वे कहते हैं-’मैं हैदराबाद से आया हूं, चांद से नहीं।’ ओवैसी तंज कसते हैं कि ’अगर हरियाणा का व्यक्ति (संजय यादव) बिहार से राज्यसभा सांसद बन जाता है और किसी के पेट में दर्द नहीं होता है तो मैं तो हैदराबाद से आता हूं।’
सनद रहे कि ओवैसी अपनी चार दिवसीय सीमांचल यात्रा पर थे तो किशनगंज के एक मुस्लिम बहुल इलाके में उन्होंने यह टिप्पणी की थी। सीमांचल के चार जिलों पूर्णिया, अररिया, कटिहार और किशनगंज में मुस्लिम आबादी सबसे ज्यादा है और सीमांचल को महागठबंधन का गढ़ भी माना जाता है। पर जिस तरह ओवैसी की यात्रा में खास कर मुस्लिम युवाओं की भीड़ जुट रही है, यह एक तरह से राजद-कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी है। क्योंकि ओवैसी अपनी हर सभा में मुसलमानों से यह भी कह रहे हैं कि ’हम भी संघ व भाजपा के खिलाफ लड़ाई में महागठबंधन का साथ देना चाहते थे, हमारे बिहार अध्यक्ष अख्तुल इमान ने लालू-तेजस्वी को तीन पत्र लिख कर इंडिया ब्लॉक में शामिल होने की इच्छा जताई, पर वहां से कोई जवाब नहीं आया, सीटें भी हमने बस छह ही मांगी थी।’ सनद रहे कि 2020 के बिहार चुनाव में ओवैसी के 5 लोग चुनाव जीत गए थे।
एनडीए में भी मतभेद कम नहीं
भाजपा आने वाले बिहार चुनाव में कथित जनसंख्या विस्फोट (एक संप्रदाय विशेष में) और घुसपैठिया संकट को एक बड़ा चुनावी मुद्दा बनाना चाहती है। पर राज्य की राजनीति में उनकी सबसे बड़ी पाटर्नर यानी जदयू ही इस विचार से इत्तफाक नहीं रखती क्योंकि नीतीश की पार्टी की वैचारिक बुनियाद ही धर्मनिरपेक्ष समाजवादी राजनीति पर अवलंबित है। वहीं चिराग पासवान भी अल्पसंख्यकों को एक बड़े चैंपियन के तौर पर उभरना चाहते हैं, सो, वे अपनी निर्विवाद छवि के खातिर खुद को और अपनी पार्टी को ध्रुवीकरण की राजनीति से दूर रखना चाहते हैं। भाजपा ने पिछले साल संपन्न हुए झारखंड चुनाव में भी कथित अवैध घुसपैठ को एक बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया था, पर इससे उसे कोई खास चुनावी लाभ नहीं हुआ।
पर इस बार विपक्ष बिहार में भाजपा-संघ पर खासा हमलावर है, मतदाता सूची के ‘विशेष गहन पुनरीक्षण’ (एसआईआर) को लेकर राहुल व तेजस्वी दोनों ही नेता भाजपा पर बेहद हमलावर हैं और ये भाजपा पर वोट चोरी के भी आरोप लगा रहे हैं।
भाजपा खास कर सीमांचल में वोटों के ध्रुवीकरण पर ही सारा फोकस कर रही है, क्योंकि यहां थोकभाव में मुस्लिम वोटर हैं, जिसकी वज़ह से अबतलक महागठबंधन उन्हें बराबरी का टक्कर देता रहा है।
...और अंत में
महागठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर खूब मारा-मारी चल रही है। कांग्रेस ने तेजस्वी के समक्ष स्पष्ट कर दिया है कि ’वह 2020 चुनाव के मुकाबले (तब कांग्रेस 70 सीटों पर चुनाव लड़ी थी) कुछ कम सीटों पर ही चुनाव लड़ लेगी (55 से 60 के बीच), पर उन्हें जो भी सीट चाहिए वह जीत सकने वाली सीटें होनी चाहिए।’ वीआईपी पार्टी के मुकेश सहनी पेंडुलम की तरह डोल रहे हैं, कभी वे कम सीटों पर ही मान जाने का स्वांग भरते हैं तो कभी 50 सीटों का अपना पुराना खटराग चालू कर देते हैं। इसके साथ ही सहनी ने तेजस्वी के समक्ष एक नई शर्त रख दी है कि ’अगर इस दफे बिहार में महागठबंधन की सरकार बनती है तो उन्हें डिप्टी सीएम बनाया जाए।’ पर माना जाता है कि तेजस्वी पहले ही राहुल से वादा कर चुके हैं कि ’वे अपनी सरकार में कांग्रेस का एक उपमुख्यमंत्री बनाएंगे। साथ ही राजद की मांग है कि तेजस्वी को सीएम फेस घोषित किया जाए,’ इस पर कांग्रेस कह रही है कि ’इस बात की इतनी जल्दबाजी क्या है, पहले गठबंधन में सीटों का बंटवारा तो ठीक से हो जाए।’