यूपी को कब मिलेगा पूर्णकालिक डीजीपी?
पूर्णकालिक डीजीपी की नियुक्ति में आ रही रुकावटें…
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार राज्य में पूर्णकालिक पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति नहीं कर पा रही है। पिछले तीन वर्षों से उत्तर प्रदेश में केवल कार्यवाहक डीजीपी ही हैं। हाल ही में राजीव कृष्ण की नियुक्ति की गई है। वे राज्य के पांचवें कार्यवाहक डीजीपी हैं। योगी सरकार पूर्णकालिक पुलिस प्रमुख के पद के लिए सर्वसम्मति वाले उम्मीदवार नहीं खोज पा रही है और इस उलझन से बाहर निकलने का एक तरीका कार्यवाहक प्रमुख की नियुक्ति करना है, जिसे इच्छानुसार हटाया जा सकता है। पूर्णकालिक डीजीपी को हटाना एक थकाऊ प्रक्रिया है, क्योंकि सेवा नियमों के तहत नियुक्ति के लिए दो साल का निश्चित कार्यकाल होता है।
मुख्यमंत्री केंद्रीय गृह मंत्रालय के किसी नामित व्यक्ति के लिए बाधा नहीं बनना चाहते हैं और गृह मंत्रालय भी डीजीपी जैसे महत्वपूर्ण और संवेदनशील पद पर मुख्यमंत्री की पसंद के व्यक्ति को ही नियुक्त करने की योजना बना रहा है। पिछले पूर्णकालिक डीजीपी मुकुल गोयल थे, जो 2022 में सेवानिवृत्त हो गए। यूपी में विधानसभा चुनाव 2027 की पहली छमाही में होने हैं और उससे पहले ही पूर्णकालिक डीजीपी को नियुक्त करके राज्य की कानून व्यवस्था को सुधारने का काम सरकार को करना होगा। चिराग पासवान की विधानसभा चुनाव लड़ने की योजना से भाजपा चिंतित : एनडीए के सहयोगी और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान, लोजपा, ने बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने की अपनी मंशा की घोषणा के बाद से भाजपा की रातों की नींद उड़ा दी है, हालांकि पासवान लोकसभा सांसद हैं और निचले सदन में पांच सदस्यीय पार्टी का नेतृत्व करते हैं, लेकिन उन्होंने अपना ध्यान राज्य की राजनीति पर केंद्रित करने का फैसला किया है।
उनकी घोषणा को मुख्यमंत्री पद के लिए प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। नीतीश कुमार के बाद के परिदृश्य में चिराग अपने लिए जगह देख रहे हैं। जिस तरह से घटनाक्रम सामने आ रहा है, उससे भाजपा नाखुश है। वह खुद सीएम पद हासिल करने के लिए दृढ़ संकल्प है, लेकिन अगर पासवान दावा करते हैं, तो बिहार के जाति-आधारित ध्रुवीकृत राजनीतिक परिदृश्य में अनुसूचित जाति समुदाय के किसी नेता को यह पद देने से इनकार करना मुश्किल होगा। जाति के तुरुप के पत्ते को सबके सामने रखते हुए चिराग पासवान ने ऊंचे सुर में अपनी बात को रखना शुरू कर दिया है। माना जाता है कि उन्होंने बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से 45 सीटें अपनी पार्टी के लिए मांगी हैं। यह एक बड़ी संख्या है, क्योंकि इससे भाजपा, जेडी(यू) और एचएएम जैसी छोटी पार्टियों के लिए आपस में बांटने के लिए 200 से भी कम सीटें बचेंगी।
बिहार में भाजपा नेता आगामी चुनावों को लेकर दो कारणों से चिंतित हैं। जाति जनगणना कराने की केंद्र सरकार की घोषणा ने राज्य के मतदाताओं को उत्साहित नहीं किया है। हाल ही में हुए चुनाव-पूर्व सर्वेक्षण में राजद के तेजस्वी यादव को सीएम के लिए अब तक की सबसे लोकप्रिय पसंद बताया गया है। चिराग की इस योजना के सामने आने के बाद भाजपा का खेमा नई रणनीति बनाने में जुट गया है। भाजपा को उम्मीद है कि इस बार बिहार की जनता भाजपा को जनादेश देगी लेकिन चिराग के इस कदम से भाजपा को झटका लग सकता है।
आपरेशन सिंदूर और मोदी की ताबड़तोड़ रैलियां : ऑपरेशन सिंदूर को सफलता का पैमाना मानकर भाजपा देशभर में मोर्चा संभाल चुकी है। प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय संबोधन यही गवाही दे रहे हैं। उनका स्टैंड मजबूत है और पाकिस्तान बेनकाब हो रहा है, यह बात पूरा देश जान चुका है। उनके ताबड़तोड़ दौरों से यही स्पष्ट है। केवल आठ दिनों में उन्होंने छह राज्यों में नौ रैलियां की हैं। यह मोदी के मानकों के हिसाब से भी एक रिकॉर्ड है। हर रैली ऑपरेशन सिंदूर, इसकी सफलता और पाकिस्तान को चेतावनी के बारे में रही है, इसका मतलब यही है कि सीमा पार आतंकवाद पर भारत की नीति कायम है।
नेतन्याहू विरोधी पोस्टर लगाने से भारत-बेल्जियम में कूटनीतिक तनाव ? : विदेश मंत्रालय नया कूटनीतिक संकट खड़ा हो गया है। बेल्जियम दूतावास के एक कर्मचारी को नई दिल्ली के चाणक्यपुरी के विशिष्ट राजनयिक क्षेत्र में नेतन्याहू विरोधी पोस्टर लगाते हुए पकड़ा गया। पोस्टरों पर बड़े बोल्ड अक्षरों में “वांटेड” शब्द के नीचे इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की तस्वीर थी। उच्च सुरक्षा वाले इस क्षेत्र में बिजली के खंभों पर कम से कम दो पोस्टर पाए गए। इजराइल एक मित्र देश है और ऑपरेशन सिंदूर में भारत को पूर्ण समर्थन देने वाले कुछ देशों में से एक था।
यही कारण है कि मोदी सरकार ने इस घटना को गंभीरता से लिया है। राजनयिक हलकों में इस बात को लेकर हैरानी है कि बेल्जियम दूतावास का कर्मचारी पुलिस की नजर से कैसे बच गया, जो मिशन के आसपास 24 घंटे गश्त कर रही है। किसी ने पोस्टर देखे जाने के बाद ही पुलिस को सूचित किया गया। पुलिस ने उस व्यक्ति की पहचान करने से पहले 50 कैमरों के सीसीटीवी फुटेज खंगाले। चूंकि यह एक संवेदनशील कूटनीतिक मुद्दा है, इसलिए उस व्यक्ति की पहचान उजागर नहीं की गई है और इस मामले को विदेश मंत्रालय को सौंप दिया गया है।