कौन जीतेगा बाजी...
दिल थाम लो, अब बचपन की यादों का रिजल्ट तैयार हो रहा है।
दिल थाम लो, अब बचपन की यादों का रिजल्ट तैयार हो रहा है। जज अपना सिर पकड़ कर बैठे हैं कि किसको फर्स्ट करें, किसको सैकेंड। क्योंकि कइयों ने तो बहुत अच्छी परर्फोमेंस दी है। कइयों को कंसैप्ट समझ आया, कइयों को नहीं। सबके अपने-अपने अनूठे, अनोखे बचपन के अनुभव हैं। कोई अपनी कहानी कह रहा है, कोई बच्चा बनकर एक्शन कर रहा है। सभी एक से एक बढ़कर, कोई किसी से कम नहीं। हां सबकी बातों और एक्शन से यह तो समझ आ गया कि बचपन की यादें उन्हें आज भी झकझोरती हैं। उन सबके पास मीठी यादें हैं। किसी की ऐसी यादें हैं जो हमें तो आम लगती हैं परन्तु उनके लिए खास हैं।
कई यादें बचपन की तरह भोली-भाली हैं। कइयों ने सिर्फ बाग लेने का प्रयास किया है जो मुझे बहुत अच्छा लगा कि उन्होंने अपनी वीडियो बनाई और हिम्मत की। इसके लिए मैं विशेषकर हैदराबाद ब्रांच के सभी प्रतिभागियों को बधाई देती हूं, जिन्होंने बढ़-चढ़कर प्रयास किया। किसी ने पढ़कर बोला, किसी ने बहुत ही रुचिकर तरीके से बोला। पर सबने अपने बचपन के किस्से शेयर किए। हमेशा की तरह पंजाबी बाग, पश्चिम विहार, रोहिणी शाखा में जबरदस्त कम्पिटीशन रहा। एक से बढ़कर एक, यही नहीं इस बार ग्रीन पार्क शाखा के सदस्यों ने तो कमाल ही कर दिया, उनकी ब्रांच हैड की खुशी देखते ही बनती है। उनकी ब्रांच के सदस्यों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है। वह खुद भी बच्चों की तरह खुश हो रही हैं।
इस प्रतियोगिता को कराने के बहुत से कारण थे।
1. छुट्टियों में व्यस्त-मस्त और स्वस्थ रहने के लिए। 2. अपनी यादों को ताजा करने अल्जाझमर को दूर भगाने के लिए। 3. बचपन को याद करते खुद सभी बच्चे बन गए और बचपन में खो गए और उन्होंने नए-पुराने यानी अपने बचपन और आजकल के बचपन से तुलना भी कर की। वाक्य में आज का बचपन और पुराने बचपन में बहुत फर्क है। पुराना यानी पहले के लोगों का बचपन बहुत भोलाभाला, सीधा-साधा था। घर में कई बच्चे होते थे। कई परिवारों में कई पीढ़ियां इकठ्टी रहती थीं। अगर कई पीढ़ियां नहीं रहती थीं तो संयुक्त परिवार होता था। साधारण बी गेम्स होती, पार्क, गली-मौहल्ले में खेलना, लड़ना, झगड़ना फिर एक हो जाना नैचुरल गेम होते थे। गुल्ली-डंडा स्टापू, पिट्ठू, खो-खो, छुपन-छुपाई। कई बार मां से डांट पड़ती, फिर भी सहना और दुबारा खेलना मुझे याद है हम छह बहनें थीं। हमारे पापा हमें हमेशा हमें सुरक्षित रखते थे। हमरा भाई बाद में हुआ।
पापा जी का मानना था कि खूब खेलो पर पढ़ाई पूरी करो। जब हम बाहर ग्राउंड में खेलते थे तो मां भी कुर्सी लगाकर वहां बैठी रहतीं। हमारी छोटी-छोटी साइकिलें थीं, जो हम खूब चलाते थे। बारी-बारी एक चलाता, एक पीछे बैठता। मेरी बड़ी बहनें मेरा बहुत ख्याल रखती थीं। मुझे याद है जब 1971 की पाकिस्तान से लड़ाई हुई तो हम तीन बहनों को बड़ी तीन बहने सम्भालती थीं। तीनों के कोटों में हमारी बुआ जी जो मुरादाबाद रहती थीं, उनका एड्रेस होता था। मुझे याद है जब सायरन बजता था हम सब डाइनिंग टेबल के नीचे बैठ जाते थे और अब याद करके हंसते हैं कि वो तो इतनी मजबूत टेबल भी नहीं थी। मैंने बचपन में बेबी शो में फर्स्ट प्राइज जीता था। मुझे याद नहीं, पर मुझे बताया गया कि सब मुझे इतना प्यार करते थे कि एक पड़ोसी की लड़की को बहुत ईष्या हो गई तो उसने बाहर जलती अंगीठी पर मुझे धक्का दे दिया, परन्तु मेरी सबसे बड़ी बहन प्रेम शर्मा और वीना शर्मा ने मुझे बचा लिया, कहीं जलने नहीं दिया। मुझे बचपन से ही स्कूल में बहुत ईनाम मिलते थे और मैं बहुत सी प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेती थी।
यही नहीं अश्निनी जी मुझे अक्सर बताते थे कि उनका बचपन बड़ा दिलचस्प था। अगर वो कोई गलती करते थे उन्हें पहले अपने दादा से मार पड़ती थी, फिर पिता से, फिर चाचा से, फिर मां और चाची से। यही नहीं जब वह मार से बचने के लिए छत पर छिप जाते तो अपने तीनों भाइयों और दो बहनों अविनाश, अरविन्द, अमित, किरण, स्वीटी को बोलते कि बताना नहीं मैं कहां छिपा हूं। वो बताते तो नहीं थे कि कहां है, पर सब छत की तरफ देखने लग जाते तो उनको पता चल जाता था कि वह छत पर हैं। फिर उनकी खूब पिटाई होती। अक्सर उनके चाचा जो उन्हें मरहम पट्टी तथा इंजैक्शन लगवाने जाते। क्योंकि वह इतने शरारती थे कि उन्हें खूब चोटें लगती या वह गली के कुत्ते को छेड़ते थे तो कुत्ता काट जाता था, अक तो कुत्ता काटता था ऊपर से सबसे पिटाई होती थी। ऐसा होता था बचपन। परन्तु आज का बचपन खो गया है। बच्चे घरों में या आईपेड पर खेलते हैं।
वीडियो गेम खेलते हैं। घर में एक या दो बच्चे हैं, उनका साथी नहीं। कइयों के घरों में दादा-दादी साथ नहीं रहते। उनका असली बचपन वीडियो गेम, गूगल, नेट में खो जाता है। मुझे अभी तक ऐनक नहीं लगी, आज के बच्चों को हर वक्त कम्प्यूटर गेम के कारण जल्दी ऐनक लगती है। शेयरिंग और केयरिंग की आदत नहीं। एक या दो बच्चे होने के कारण बच्चे बहुत लाडले होते हैं। उनमें संस्कारों की कमी होने लगी है। उन पर छोटी उम्र से पढ़ाई को जोर है। कहीं-कहीं माएं इतनी टैलेंटिड हैं कि छोटे बच्चों को गायत्री मंत्र, हनुमान चालीसा भी आता है, पाठ करते हैं। बचपन, बचपन है। निर्दोष और भोला भाला होने चाहिए। बच्चे मनके सच्चे भगवान जैसे और भगवान को प्यार करने वाला बचपन होना चाहिए