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किसकी आंधी किसकी चांदी

04:10 AM Sep 07, 2025 IST | त्रिदीब रमण
किसकी आंधी किसकी चांदी
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‘कभी जनाब फोन भी नहीं लेते थे मेरा, आज ख़ैर मकदम पूछ रहे हैं
जब आसमां में ही बिछा लिया है बिछौना, हम भीगने से कौन सा डर
रहे हैं’
यह बदलते सियासी मौसम की चुप दस्तकें हैं, उन दिलों पर जिन्हें अब तक नज़रअंदाज किया जा रहा था, अब उन भाजपा और एनडीए सांसदों की पूछ बढ़ने लगी है। उप राष्ट्रपति चुनाव की घड़ी करीब आ चुकी है, इसमें गुप्त मतदान होता है तो ‘क्रॉस वोटिंग’ की संभावनाएं भी उसी कदर बलवती हो जाती हैं। चर्चा है कि नई दिल्ली स्थित कांस्टीट्यूशन क्लब के मतदान में दरअसल यहां भाजपा के एक प्रत्याशी को पराजय इसलिए झेलनी पड़ी थी क्योंकि कथित रूप से क्राॅस वोटिंग हो गई थी। इसलिए भाजपा के रणनीतिकार अब उप राष्ट्रपति चुनावों में हर कदम फूंक-फूंक कर रख रहे हैं। कहा जा रहा है कि भाजपा के आउटगो​इंग अध्यक्ष नड्डा द्वारा अब उनके सम्मान में एक ​डिनर का आयोजन किया जा रहा है जिसमें एनडीए के सांसदों को समझाया जाएगा कि वोट कैसे कास्ट करना है। लिहाजा विपक्ष को बयान दागने का मौका मिल गया है।
घाटी में पनपती वंशवादी राजनीति : जम्मू-कश्मीर जैसे केंद्र शासित राज्य में जहां आज भी उप राज्यपाल ही सर्वेसर्वा हैं, वहां अपनी सियासी प्रसांगिकता बनाए रखने के लिए उमर अब्दुल्ला जैसे प्रदेश के मुख्यमंत्री को भी कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। पिछले दिनों जब जम्मू-कश्मीर के बाढ़ प्रभावित इलाकों का दौरा करने के लिए एक बड़े नेता यहां आए तब भी फोटो फ्रेम में उमर को पीछे रख दिया गया था, वहीं जम्मू-कश्मीर में एक नई वंशवादी राजनीति ने आकार लेना शुरू कर दिया है। सबसे मजे की बात तो यह कि वंशवाद की मुखर विरोधी रही भाजपा के साथ गठजोड़ करने में न तो वंशवाद की झंडाबरदार नेशनल कांफ्रेंस (अब्दुल्ला) और न ही पीडीपी (मुफ्ती) पीछे रही हैं और भाजपा ने भी मौके-बेमौके इन दोनों पार्टियों को तहेदिल से स्वीकार भी किया है। नई राजनीति के पैरोकार बन कर उभरे उमर अब्दुल्ला के दोनों बेटों जामिर और जाहिर ने इस विधानसभा चुनावों में अपने पिता के लिए प्रचार करते हुए अपनी पहली सार्वजनिक उपस्थिति दर्ज कराई थी। वहीं महबूबा मुफ्ती की दोनों बेटियां यानी इल्तिजा और इरतिका भी राजनीति के मंच पर कदम रखने की पूरी तैयारियों में हैं। इल्तिजा ने तो इस विधानसभा चुनाव में अपनी सियासी मंशाओं का शंखनाद भी कर दिया था, पर इसमें उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली, वहीं दूसरी ओर इल्तिजा की बहन इरतिका ने भी अब सोशल मीडिया में अपनी उपस्थिति दर्ज करानी शुरू कर दी है। सो, जम्मू-कश्मीर की राजनीति में वंशवाद की नई-नई बेल अच्छी-खासी पनप रही है।
संघ बैठक में उपस्थि​ित को लेकर कयासबाजी : अभी दिल्ली में संघ की तीन दिनों की एक बैठक आहूत थी, इस बैठक में ज्यूडीशियरी के कुछ गणमान्य लोगों की उपस्थिति देखी गई तो तरह-तरह के कयास भी लगाए जाने लगे। बताया जाता है कि इनमें सुप्रीम कोर्ट के कई पूर्व जस्टिस भी शामिल हुए। इसी कड़ी में यह भी चर्चा उभर कर सामने आई कि आंध्र प्रदेश के एक जज की केन्द्र में आने की चर्चा भी है जिसका केन्द्र सरकार द्वारा कालोजियम द्वारा स्वीकृत नाम का विरोध किया जा रहा है। इसी कड़ी में कई अन्य जजों की उपस्थिति को लेकर भी चर्चा है कि वे कहीं न कहीं आरएसएस के यहां भी गहरी पैठ रखते हैं।
बिहार में कांग्रेस को 70 सीटें?: राहुल गांधी की ’वोट अधिकार यात्रा’ से जिस तरह महागठबंधन का बिहार में समां बंधा है इससे इसके नेताओं के हौसले बम-बम हैं। बिहारी युवाओं में राहुल की लोकप्रियता देख लालू परिवार भी सकते में हैं, सो अब यह माना जा रहा है कि सीटों के तालमेल को लेकर अब तेजस्वी कांग्रेस के साथ ज्यादा मोल-भाव नहीं करेंगे। वैसे भी पिछले कुछ समय से कांग्रेस की स्क्रीनिंग कमेटी के लोग पूरे बिहार में घूम-घूम कर यहां का चुनावी तापमान माप रहे थे। अभी कुछ रोज पहले कांग्रेस के स्क्रीनिंग कमेटी के चेयरमैन अजय माकन भी पटना में थे। समझा जाता है कि माकन ने 70 संभावित उम्मीदवारों की एक सूची कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे और राहुल गांधी को सौंपी है। अब तक आमतौर पर यही माना जा रहा था कि बिहार में चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस के पास योग्य उम्मीदवारों का टोटा पड़ा है, सो आनन-फानन में यह लिस्ट तैयार कर माकन इसी भ्रांति को झुठलाने में लगे हैं।
ठंडे बस्ते से जोशी बाहर: अभी पिछले दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तीन दिनों की व्याख्यानमाला आयोजित थी, इस आयोजन में संघ से जुड़े आर्थिक क्षेत्र के 6 संगठन व 80 प्रतिनिधि शिरकत कर रहे थे। इस आयोजन में सबसे हैरान करने वाली बात थी कि डॉ. मुरली मनोहर जोशी का प्रार्दुभाव।
डॉ. जोशी ने मोदी सरकार की नीतियों व इसके 11 साल के कामकाज को लेकर 70 पेज की एक वृहत रिपोर्ट पेश की और बताया कि कैसे इन ग्यारह सालों में मध्यम वर्ग की कमर टूटी है, गरीब और गरीब होता गया है और कुछ चुनींदा अमीरों की संपत्तियों में दिन दुना रात चौगुना दर से प्रगति हुई है। इसके बाद संघ प्रमुख मोहन भागवत की बोलने की बारी आई तो कहते हैं कि चुटकी लेकर उन्होंने बेखटके कह दिया- ‘जोशी जी ने सब बोल ही दिया है तो अब मेरे बोलने के लिए क्या खास
बचा है।’
सहनी के सुर बदले: राहुल गांधी की ताजा बिहार यात्राओं की गूंज ने वीआईपी पार्टी के मुकेश सहनी को भी अपना सुर बदलने पर मजबूर कर दिया है। पहले यही सहनी तेजस्वी संग सीटों को लेकर क्या मोल-भाव कर रहे थे, अपने लिए 40 से 50 सीट मांग रहे थे, अब सहनी ने अपना सुर नरम करते हुए तेजस्वी से कह दिया है कि ‘उनकी पार्टी को सम्मानजनक सीटें दे दी जाए।’ सूत्र बताते हैं कि सहनी 12-15 सीटों पर मान सकते हैं। उल्टे तेजस्वी ने सहनी को यह हिदायत दे डाली है कि ’वे यानी सहनी वीआईपी के टिकट पर केवल मल्लाह उम्मीदवारों को ही मैदान में न उतारे, बल्कि अति पिछड़ा व पिछड़ा उम्मीदवारों को भी मौका दें।’ पिछले विधानसभा चुनाव में सहनी अपनी सीट जीतने में नाकामयाब रहे थे, सो इस बार वह अपनी पुरानी गलतियों से सबक लेकर अपनी सीट पर कोई गलती नहीं करना चाहते, उल्टे वे अपनी पार्टी के टिकट पर अपनी पत्नी और अपने भाई को भी इस बार चुनाव लड़वाना चाहते हैं। वहीं तेजस्वी ने राम विलास पासवान के भाई पशुपति पारस से भी सीटों के तालमेल पर सहमति बना ली है, समझा जाता है कि चिराग के चाचा पशुपति 5-6 सीटों पर मान जाएंगे।
...और अंत में : राहुल गांधी ने भले ही अपनी ‘वोट अधिकार यात्रा’ से बिहार में समां बांध दिया हो, पर उनके साथ उनकी इस यात्रा में कहीं भी पार्टी के सीनियर नेता साथ नज़र नहीं आए। राहुल गांधी की पिछली ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के सारथी रहे दिग्विजय सिंह से जब अपनी अवहेलना सही नहीं गई तो एक दिन अचानक राहुल की बिहार यात्रा के दौरान वे भी पटना आ पहुंचे, उन्हें उम्मीद थी कि राहुल या फिर उनकी मंडली जरूर उनकी सुध लेगी, पर उनका आना किसी ने नोटिस ही नहीं किया। जब दिग्विजय को पार्टी की ओर से पटना में कोई भी रिस्पांस नहीं मिला तो वे उल्टे पैर उसी रोज दिल्ली लौट आए-बड़े बेआबरू होकर कूचे से बाहर निकल कर।
(www.parliamentarian.in)

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त्रिदीब रमण

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