ईवीएम पर बवाल क्यों
NULL
सुप्रीम कोर्ट ने मतदान के लिए ईवीएम मशीनों का विरोध करने वालों को बड़ा झटका देते हुए आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिए बैलेट पेपर यानी मतपत्रों के जरिये मतदान कराने की याचिका खारिज कर दी है। यद्यपि मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने सुनवाई के दौरान यह कहा कि हर मशीन के दुरुपयोग की सम्भावना बनी रहती है और हर सिस्टम पर संदेह जताया जा सकता है। देश में कई राजनीतिक दलों ने ईवीएम की विश्वसनीयता पर लगातार सवाल उठाए हैं। पिछले वर्ष उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद बहुजन समाज पार्टी की मुखिया ने भी ईवीएम पर सवाल उठाए थे। कांग्रेस और अन्य दल भी ईवीएम को लेकर सवाल उठाते रहे हैं। ईवीएम से छेड़छाड़ करने को लेकर लगातार आरोपों के चलते ऐसा वातावरण सृजित हो चुका है जिससे आम लोगों का संदेह भी गहराता जा रहा है। निर्वाचन आयोग ने लगातार यह कहा है कि ईवीएम से छेड़छाड़ नहीं हो सकती। उसने तो ईवीएम से छेड़छाड़ साबित करने वालों को चुनौती भी दी थी लेकिन कोई सामने नहीं आया।
ईवीएम का आविष्कार 1980 में एम.वी. हनीफा द्वारा किया गया था। उन्होंने सबसे पहले 15 अक्तूबर 1990 को इसे पंजीकृत किया था। इसका सफर उस समय शुरू हुआ जब तमिलनाडु के 6 शहरों में आयोजित सरकारी प्रदर्शनी में जनता ने इसे पहली बार देखा। इसके बाद भारत निर्वाचन आयोग ने इसके उपयोग पर विचार किया और इलैक्ट्रोनिक्स कार्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड की सहायता से इसके बनने की प्रक्रिया शुरू हुई। भारत में पहली बार इसका उपयोग 1998 में केरल के नार्थ पारावूर विधानसभा क्षेत्र के लिए होने वाले उपचुनाव के कुछ मतदान केन्द्रों पर किया गया। केन्द्र में कांग्रेस सरकारों के दौरान भी ईवीएम मशीनों का इस्तेमाल बढ़ता गया। 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद से भारत में प्रत्येक लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों में मतदान की प्रक्रिया इलैक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन द्वारा पूरी की जाने लगी। इसके बावजूद ईवीएम की गोपनीयता और इसके हैक होने की सम्भावनाओं पर प्रश्नचिन्ह लगाए जाते रहे हैं।
ईवीएम की सुरक्षा पर सवाल उठा तो अक्तूबर 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह वीवी पैट के इस्तेमाल को सुनिश्चित करे जो ईवीएम से सीधे जुड़ा हो। अदालत ने सख्त निर्देश दिए थे कि 2019 तक चुनावों में वीवी पैट का पूरा-पूरा इस्तेमाल सुनिश्चित कर लिया जाना चाहिए। वीवी पैट को वेरिफियेबल पेपर रिकार्ड कहा जाता है। इस मशीन में प्रिंटर लगा होता है जो ईवीएम से लिंक होता है जिससे पता चलता है कि मतदाता ने जिसे अपना वोट दिया है वह उसकी इच्छानुसार सही प्रत्याशी को गया है या नहीं। कांग्रेस द्वारा ईवीएम को लेकर मचाये जाने वाले शोर का भी कोई औचित्य नजर नहीं आ रहा। राजीव गांधी शासनकाल के दौरान दिसम्बर 1988 में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में संशोधन कर नई धारा 61ए को जोड़ा गया था जिसके तहत वोटिंग मशीनों के उपयोग के लिए आयोग को अधिकार दिया गया था। संशोधित प्रावधान 15 मार्च 1989 से प्रभावी हुआ। 2001 के बाद ईवीएम में सम्भावित छेड़छाड़ के मसले को लेकर विभिन्न हाईकोर्टों में मामला पहुंचा और लगभग सभी अदालतों ने चुनावों में ईवीएम के उपयोग में निहित तकनीकी सुदृढ़ता और प्रशासनिक उपायों के समस्त पहलुओं पर गौर करने के बाद यह पाया गया कि भारत में ईवीएम विश्वसनीय और पूरी तरह छेड़छाड़ मुक्त है। भारत एक लोकतांत्रिक देश है और चुनावों को लोकतंत्र का महापर्व माना जाता है।
मतदान देश के नागरिक का मौलिक अधिकार है। मतदाता अपने मौलिक अधिकार को लेकर आशंकित रहता है लेकिन हमारे लिए यह जानना भी जरूरी है कि अमेरिका जैसे देश की प्रौद्योगिकी भी काफी आगे है, वहां भी चुनाव मतपत्रों में होते हैं। दुनिया के प्रतिष्ठित लोकतांत्रिक देशों ने ईवीएम का इस्तेमाल कर छोड़ दिया है और वहां भी मतपत्रों से चुनाव होते हैं। ईवीएम के इस्तेमाल से कागज की बचत होती है, बूथ कैप्चरिंग की सम्भावना शून्य होती है। यह सब बातें तो ठीक हैं लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि कागज की बचत के नाम पर लोकतंत्र को खतरे में डालना सही नहीं है।
कागज की बचत अन्य तरीकों से की जा सकती है। लोकतंत्र वही कामयाब होता है जिसमें मतदाता का लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास हो। अगर उसका विश्वास ही डगमगा जाए तो फिर उसकी लोकतंत्र में भागीदारी कम होती जाएगी। कभी भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण अडवानी ने भी ईवीएम मशीनों पर संदेह जताया था तो अब ईवीएम के समर्थक रहे दलों को भी इसमें खोट नजर आया है। दरअसल राजनीतिक दल अपनी सुविधा के अनुसार ईवीएम में छेड़छाड़ का आरोप लगाते हैं। जब दिल्ली विधानसभा चुनाव में अाप पार्टी को प्रचंड बहुमत मिला तो ईवीएम अच्छी थी, जब पंजाब आैर गोवा में हारे तो ईवीएम बुरी लगने लगी।
अहम सवाल यह है कि मतदाताओं में ईवीएम के प्रति विश्वास कैसे जगाया जाए? चुनावों में पूरी पारदर्शिता होना बहुत जरूरी है। अब अगले आम चुनाव में वीवी पैट मशीनों का इस्तेमाल होगा, निर्वाचन आयोग को चाहिए कि वह मतदाताओं और राजनीतिक दलों को संतुष्ट करने के लिए कुछ फीसदी पर्चियों का मिलान करके वीवी पैट की विश्वसनीयता सिद्ध करे ताकि संदेह की कोई गुंजाइश नहीं रहे। विश्वास जगाने का काम तो निर्वाचन आयोग को ही करना है।