तेजस्वी को मनोज झा की कमी क्यों खली?
‘तेरे शहर में किस्से कई दफ्नफ़्नहैं उनकी बदगुमानियों के,
पर अब तो बात होती है हर पल उनकी मेहरबानियों की’
बिहार चुनाव का शंखनाद हो चुका है, एनडीए और महागठबंधन दोनों के लिए यह ‘करो या मरो’ वाला चुनाव है, सच पूछिए तो 2005 के विधानसभा चुनाव के कोई दो दशक बाद इस दफे के चुनाव में चुनावी मुद्दों की बात हो रही है, उनकी पड़ताल हो रही है। नहीं तो पिछले 20 सालों में यहां चुनाव जातीय व धार्मिक ध्रुवीकरण पर ही लड़ा जाता रहा है। इस दफे नीतीश-भाजपा ने तेजस्वी के महागठबंधन के समक्ष कई अवसर उछाले हैं, पर अबतलक राजद नेता उन मौकों को लपकने में कामयाब नहीं हो पाए हैं। राहुल व सीपीआईएल नेता दीपांकर भट्टाचार्य दोनों को ऐसा लग रहा है कि ‘तेजस्वी ने 2024 लोकसभा चुनाव के दौरान जो सक्रियता व आक्रमकता दिखाई थी वह इस बार उनके चुनावी अभियानों से गायब है। क्या ऐसा महज उनके सारथी बदल जाने की वज़ह से हुआ है?’ अब से पहले राज्यसभा सांसद मनोज झा तेजस्वी के दिल-दिमाग की तरह काम करते थे, उन्हें महत्वपूर्ण राजनीतिक फैसले लेने में मदद करते थे, पर इस दफे के चुनाव में मनोज झा परिदृष्य से ओझल हैं। सूत्र बताते हैं कि उनके पिता की तबियत खराब है, जो दिल्ली के एम्स में भर्ती हैं, जहां मनोज अपने पिता को ही अपना पूरा वक्त दे रहे हैं, इन दिनों उनका पटना आना-जाना भी बेहद कम हो गया है, लिहाजा आपदा को अवसर में बदलने में सिद्दहस्त हरियाणा से ताल्लुक रखने वाले संजय यादव तेजस्वी के नए सारथी के तौर पर अवतरित हुए हैं।
तेजस्वी अभी बस उनकी सलाहों पर ही कान धर रहे हैं। मनोज झा के पिता भले ही अस्पताल में हों, पर तेजस्वी की आशावादी राजनीति को कम से कम वेंटिलेटर पर नहीं जाना चाहिए।
वसुंधरा के मन में क्या चल रहा है?
राजस्थान की महारानी वसुंधरा राजे सिंधिया को बिसराना भाजपा के केंद्रीय शीर्ष के लिए आसान नहीं रहा, एक नए नवेले भाजपा सिरमौर को वहां की गद्दी सौंपने के बाद से राज्य में भगवा आशाओं का फलक किंचित धूमिल पड़ने लगा है। सो, पिछले दिनों बांसवाड़ा की एक रैली में पीएम मंच पर मौजूद तमाम नेताओं की अनदेखी करते सीधे वसुंधरा के पास जा पहुंचे और गर्मजोशी के साथ उनका ख़ैर मकदम पूछा।
इस घटना के बाद ही वसुंधरा के सुप्तप्रायः समर्थकों में एक नए जोश का उबाल आ गया। इसके बाद वसुंधरा की सर संघचालक मोहन भागवत से भी एक लंबी और सारगर्भित मुलाकात हुई। सो, राजस्थान में वसुंधरा की राजनीति ने नए कुलांचे भरने शुरू कर दिए। इस रामनवमी के मौके पर वसुंधरा ने अपने समर्थकों के लिए एक भोज रखा था, जिसमें बड़ी संख्या में वर्तमान और पूर्व विधायक भी जुटे। इस भोज में शामिल वसुंधरा के बेहद भरोसेमंद विधायक युनूस खान ने सुझाव रखा कि ‘अब वक्त आ गया है कि मैडम पूरे राज्य का दौरा करें, हम जिलेवार इसका कार्यक्रम तय कर सकते हैं और इनके साथ कारों का एक बड़ा काफिला भी चलेगा।’ इस पर वसुंधरा ने युनूस खान को रोकते हुए कहा-’नहीं, अभी इसका वक्त नहीं आया है। वैसे तो भगवान राम के जीवन में भी वनवास आया था। देखो मेरी उम्र 72 वर्ष की हो गई है, अब मुझे अपने लिए कुछ मांगना ठीक नहीं लगता, पर अगर मैं आप लोगों के लिए कुछ मांगूंगी तो वह मिल सकता है।’ माहौल थोड़ा संजीदा हो गया, इसे हल्का करने की नियत से वसुंधरा के एक करीबी विधायक श्रीचंद कृपलानी ने उनसे पूछा- ‘मैडम, मंच पर पीएम आपसे क्या कह रहे थे?’ वसुंधरा ने कहा, ‘पीएम ने उनसे कहा-वसुंधरा जी हम-आप जैसे लोग किसी पद-प्रतिष्ठा से अब ऊपर उठ आए हैं।’
बूझो तो जाने, यह है कौन?
इन दिनों एक पुराना मामला जो 2006 का बताया जाता है, फिर से सुर्खियों की सवारी गांठ रहा है। पूरा सोशल मीडिया इसकी चर्चाओं से अटा पड़ा है। मोहन गुरुस्वामी का एक कथित पोस्ट ‘एक्स’ पर खूब वायरल हो रहा है, जिसमें बताया गया है कि कैसे केरल में हाईवे के ’पाटी-बेल’ प्रोजैक्ट से जुड़े मलेशियाई इंजीनियर ने खुदकुशी कर ली थी। दरअसल, यह एक विश्व बैंक पोषित प्रोजैक्ट था जिसके अंतर्गत 1600 किलोमीटर के हाईवे का निर्माण होना था। इसी ‘पाटी-बेल’ परियोजना के प्रबंधक 58 वर्षीय ली सिन बेन ने 2006 के नवंबर में एक बड़े भ्रष्टाचार से पर्दा हटाते खुदकुशी कर ली थी। उस समय केरल में वाम मोर्चा की सरकार थी और तब शासन-प्रशासन पर ये आरोप लगे थे कि बिना िरश्वत लिए वे इस कंपनी के प्रोजैक्ट के पैसे रिलीज नहीं कर रहे थे। तब मामले की जद में राज्य के तत्कालीन पीडब्ल्यूडी सचिव आ गए थे। तत्कालीन केरल सरकार ने मामला प्रकाश में आते ही फौरन उनका तबादला अन्यत्र कर दिया। लगभग 19 सालों के बाद वही सचिव महोदय आज केंद्र सरकार के सबसे लाडले अधिकारी हैं और इन पर निष्पक्ष रहते लोकतंत्र के एक बड़े संचालन की जिम्मेदारी है। अब अगर आपने बिल्ली को खीर की रखवाली सौंप ही दी है तो इस मुल्क का ऊपर वाला ही रखवाला है।
योगी की नज़र पूर्वांचली सांसदों पर
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अब सियासी नेपथ्य की आहटों को पढ़ने में सिद्धहस्त हो गए हैं। पिछले दिनों योगी पूर्वांचल के आधा दर्जन से ज्यादा भाजपा सांसदों से मिले और उनके साथ अपने मन की बातें शेयर की।
इस बैठक में शामिल होने वाले भाजपा सांसदों में दो राज्यसभा से आते हैं। ये दोनों सांसद थे नीरज शेखर और सीमा द्विवेदी। इसके अलावा इस बैठक में भाजपा के लोकसभा के 3-4 और सांसद मौजूद थे। योगी पहले भी पूर्वांचल के सांसदों की बैठकें लेते रहे हैं, आमतौर पर ऐसी बैठकों के संयोजन का जिम्मा योगी अपने भरोसेमंद नेता रविन्द्र कुशवाहा को सौंपते रहे हैं। पर इस बार कुशवाहा सलेमपुर से लोकसभा का चुनाव हार गए थे। सो, उनकी जगह इस बैठक के संयोजन का काम किया बांसगांव के एक दलित सांसद कमलेश पासवान ने जो अभी केंद्र सरकार में ग्रामीण विकास राज्य मंत्री भी हैं। इस दफे कमलेश को लोकसभा का चुनाव जितवाने के लिए योगी ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था, बमुश्किल वह कमलेश को 3150 के मामूली वोटों के अंतर से ही जिता पाए थे। पर योगी को उस वक्त जोर का झटका लगा जब पासवान चुनाव जीतते ही दिल्ली जाकर भाजपा नेता जी की परिक्रमा करने लगे, क्योंकि उन्हें सरकार में मंत्री बनना था। वे मंत्री बन भी गए, योगी विरोध की अनुकंपा पाकर। फिर से अचानक उन्होंने पाला बदल लिया और लखनऊ आकर योगी की हाजिरी बजाने लगे हैं। यह बात दिल्ली को बेहद नागवार गुजरी, पल में तोला पल में माशा, उनके इस आचरण को भाजपा के नेता जी ने भी गंभीरता से लिया और एक दिन उन्हें उनके इसी आचरण के लिए कड़ी फटकार लगाई गई, यहां तक कह दिया गया कि ‘आपके ऊपर भ्रष्टाचार के कई मुकदमें यहां तक कि जमीन हड़पने के मामले तक चल रहे थे, फिर भी हमने आपको मंत्री बनाया’ ये मंत्री महोदय फूल-माला लेकर अपने दिल्ली वाले आका की परिक्रमा कर रहे हैं, पर अंदर ही अंदर उन्हें यह डर भी खाया जा रहा है कि ‘कुछ भी हो मगर आने वाला वक्त तो योगी का ही है।’
राज्यसभा पाकर भी खुश नहीं गुप्ता जी
राजेंद्र गुप्ता पंजाब के एक बड़े कारोबारी हैं, जिन्हें इस बार आम आदमी पार्टी ने संजीव अरोड़ा द्वारा रिक्त की गई सीट से राज्यसभा में भेजा है। सूत्रों की मानें तो गुप्ता जी ने एक वक्त अकाली दल की भी काफी मदद की थी। इस दफे जब पंजाब में विधानसभा चुनाव होने थे तो माना जाता है कि आप के दो बड़े नेता भगवंत मान और संदीप पाठक उनसे मिलने पहुंचे और उनसे आग्रह किया कि ‘वे आम आदमी पार्टी की चुनावी मदद करें।’ कहते हैं गुप्ता जी मान गए और इस चुनाव में उन्होंने दिल खोल कर आप की मदद की। जब आप चुनाव जीत गई तो इन्हीं नेताओं द्वारा कथित तौर पर गुप्ता जी से वायदा हुआ कि ‘पार्टी आने वाले समय में उन्हें राज्यसभा में लेकर आएगी।’ पर जब इस दफे दिल्ली के विधानसभा चुनाव में आप मुंह के बल लुढ़क गई तो समझा जाता है कि पार्टी सुप्रीमो द्वारा गुप्ता जी से कहा गया कि ‘पार्टी गहरे संकट में है और राज्यसभा के एवज में उन्हें एक बड़ी मदद करनी होगी।’ मरता क्या नहीं करता। अब गुप्ता जी के करीबी कहते घूम रहे हैं कि ’राजनीति में िरश्ते नहीं, अंततः पैसे ही काम आते हैं।’
...और अंत में
पिछले सप्ताह केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने गृह नगर भोपाल में थे, जहां वे अपने कुछ पसंदीदा पत्रकारों के संग चाय पर चर्चा में तल्लीन थे। इसी बातचीत के क्रम में उनके एक मुंहलगे पत्रकार ने (जो इत्तफाक से शिवराज के सजातीय भी हैं) उत्साह से लबरेज होकर िशवराज से कहा- ‘बधाई हो आपको, आप मोहन भागवत जी से मिल कर आए हैं, सुना है संघ आपके नाम को ही अध्यक्ष पद के लिए आगे कर रहा है?’ सूत्र बताते हैं कि शिवराज ने उस पत्रकार से कहा-’बधाई देने के लिए बिहार चुनाव के नतीजों का इंतजार कीजिए, ये चुनावी नतीजे ही बताएंगे कि किसकी ताजपोशी होगी?’ यानी बिहार में जीत के बाद ताजपोशी का चेहरा बदल भी सकता है, शायद शिवराज यही बताना चाह रहे थे।
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