आखिर क्यों बढ़ रही है भुखमरी
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दुनियाभर में अमीरों की सूची विभिन्न एजैंसियां एक वर्ष में बार-बार जारी करती हैं, यहां तक कि तिमाही और छमाही में कौन किससे आगे निकला, कौन पिछड़ा इन सूचियों में बताया जाता है लेकिन भूखे और गरीब लोगों की सूची वर्ष में एक बार ही जारी की जाती है। शापिंग मॉल और उनमें उमड़ी भीड़, बहुमंजिला इमारतों में कार्पोरेट घरानों के शानदार कार्यालय, गगनचुम्बी इमारतों में बने फ्लैट देखकर लगता है कि इन्सान ने अपनी प्रगति का मार्ग प्रशस्त कर लिया है लेकिन जमीन पर देखें तो हालात भयावह हैं। भुखमरी भारत की सबसे बड़ी समस्या है। पूरी दुनिया में अलग-अलग देशों में कितनी भुखमरी है, इसके आधिकारिक आंकड़े जारी हो गए हैं। इसे देखकर तो लगता है कि भारत की हालत लगातार खराब हो रही है।
वर्ष 2018 के ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत 119 देशों की सूची में 103वें स्थान पर है। 2014 में भारत 99वें स्थान पर था, वहीं वर्ष 2015 में थोड़े सुधार के साथ 80वेें स्थान पर जा पहुंचा था। 2016 में 97वें और साल 2017 में भारत 100वें पायदान पर पहुंच गया था। ग्लोबल हंगर इंडेक्स वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर भुखमरी का आकलन करता है।जीएचआई को भूख के खिलाफ संघर्ष की जागरूकता और समझ को बढ़ाने, देशों के बीच भूख के स्तर की तुलना के लिए एक तरीका प्रदान करने और उस जगह पर लोगों का ध्यान खींचने जहां पर भुखमरी ज्यादा है, के लिए डिजाइन किया गया है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स के मुताबिक भारत में भूख की स्थिति बेहद गम्भीर है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के 2018 के बहुआयामी वैश्विक गरीबी सूचकांक के मुताबिक 2005-06 से 2015-16 के बीच एक दशक में भारत में 27 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर निकले हैं लेकिन यह रिपोर्ट बताती है कि भारत नेपाल, बंगलादेश से भी पिछड़ा हुआ है। भारत इस बात पर संतोष कर सकता है कि पाकिस्तान उसके पीछे है।
कुल मिलाकर भारत की स्थिति अच्छी नहीं। भारत में हर रोज 20 करोड़ से अधिक लोगों को भरपेट भोजन नहीं मिलता, जो देश वैश्विक आर्थिक शक्ति बनने का सपना देख रहा हो, उसे तो सबसे पहले भूख पर विजय प्राप्त करनी होगी। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि भारत में एक भी व्यक्ति भूखा नहीं सोये। ग्लोबल हंगर इंडेक्स में दुनिया के तमाम देशों के खानपान की स्थितियों का आकलन किया जाता है, मसलन लोगों को किस तरह का खाद्य पदार्थ मिल रहा है, उसकी गुणवत्ता और मात्रा कितनी है और उसमें कमियां क्या हैं? कभी हमने सोचा है कि भारत में कुपोषण की स्थिति क्यों बिगड़ रही है? केवल सरकारों को जिम्मेदार ठहराना ठीक नहीं है, समाज को स्वयं इसके कारणों की तलाश करनी होगी। सरकारी व्यवस्थाओं में काफी खामियां हैं, लेकिन समाज को अपनी खामियों की आेर भी देखना होगा। भारत में 40 फीसदी खाना हर साल बर्बाद हो जाता है। इसे पैसों में आंकें तो यह धनराशि 50-60 हजार करोड़ के करीब बैठती है। हम रोजाना अपने आसपास ढेर सारा खाना बर्बाद होते हुए देखते हैं।
विवाह, होटल, पारिवारिक और सामाजिक कार्यक्रमों, यहां तक कि घरों में भी कितना खाना यूं ही फैंक दिया जाता है। अगर बर्बाद होने वाले खाद्यान्न को जरूरतमंदों तक पहुंचा दिया जाए तो लोगों का पेट भर सकता है। भारत में खाद्यान्न उत्पादन भरपूर है लेकिन यह जरूरतमंद तक पहुंच ही नहीं पाता। हर साल भारतीय खाद्य निगम के गोदामों या खुले में पड़ा खाद्यान्न खराब हो जाता है। इस बर्बाद होने वाले खाद्यान्न को बचा लिया जाए तो 10 वर्ष तक 6 लाख लोगों को भरपेट खाना मिल सकता है। आखिर अनाज सड़ता क्यों है? यह भी महत्वपूर्ण सवाल है। जिस देश में गरीबों को पेट भरने के लिए दो मुट्ठी अनाज नहीं मिलता हो उस देश में बीयर या शराब बनाने के लिए अनाज सड़ाना उचित नहीं। अनाज को किसी न किसी बहाने सड़ाया जाता है क्योंकि उस पर भारी सब्सिडी मिलती है और सरकार को शराब में सबसे ज्यादा राजस्व मिलता है।
अभी भी भूख से मरने वालों की खबरें आती रहती हैं। मरने वालों में अधिकांश लोग ग्रामीण आैर आदिवासी होते हैं। केन्द्र सरकार ने गरीबों को सस्ते में खाद्यान्न उपलब्ध कराने की योजनाएं तो काफी चला रखी हैं लेकिन उन तक खाद्यान्न पहुंचता ही नहीं है। इसका कारण है भ्रष्टाचार। गरीबी रेखा तय करने के लिए भोजन, स्वास्थ्य, शिक्षा पर ग्रामीण क्षेत्रों में 26 रुपए और शहरी क्षेत्रों में 32 रुपए रोजाना खर्च किए जाने को सरकार पर्याप्त मानती है, यह तो सीधे-सीधे गरीबों के मुंह पर तमाचा है। इसे गरीबी रेखा नहीं बल्कि भुखमरी रेखा माना जाना चाहिए। बढ़ती महंगाई के दौर में कोई 26 आैर 32 रुपए में एक वक्त की रोटी भी नहीं खा सकता। केन्द्र और राज्य सरकारों को अपनी योजनाओं के कार्यान्वयन पर पूरी नजर रखनी होगी अन्यथा विकसित हो रहे भारत में भूखों की संख्या सबसे ज्यादा होगी।