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पाक की पेशानियों पर इतने बल क्यों?

अपने नापाक इरादों के लिए दुनियाभर में कुख्यात पाक यानी पाकिस्तान अपने ही…

10:25 AM May 03, 2025 IST | त्रिदीब रमण

अपने नापाक इरादों के लिए दुनियाभर में कुख्यात पाक यानी पाकिस्तान अपने ही…

पाक की पेशानियों पर इतने बल क्यों

‘अभी-अभी तो रखा था संभल कर कदम,

उसे बचाने को एक पत्ता भी लहरों में बहाया था

पर काटना तो इसकी फितरत है, यही तो हैं

हरी-लाल चीटियां जिनको हमने बचाया था’

अपने नापाक इरादों के लिए दुनियाभर में कुख्यात पाक यानी पाकिस्तान अपने ही गुनाहों के बोझ तले तिलमिला रहा है। वहीं भारत की बात करें तो लगता है देश पहलगाम से आगे बढ़ कर अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में लौट आया है। वहीं पहलगाम हमले के दस दिनों बाद कांग्रेस ने अपनी सीडब्ल्यूसी यानी कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में बकायदा एक प्रस्ताव पास कर सरकार से पाकिस्तान को सबक सिखाने और आतंकवाद पर निर्णायक अंकुश लगाने की मांग की है। पीएम मोदी ने तो अब तक पूरे मामले में पाकिस्तान का नाम भी नहीं लिया है।

आइए अब जानते हैं कि मौजूदा हालात में आखिर पाकिस्तान की हवा क्यों खिसकी हुई है? दरअसल आने वाले इस 9 मई को आईएमएफ यानी अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की एक अहम बैठक होने वाली है, आईएमएफ के इसी कार्यकारी बैठक से संकेत मिल जाएंगे कि पाक को अब 7 अरब डॉलर का ‘बेलआउट पैकेज’ दिया जाएगा या नहीं? 37 महीनों की इस लोन डील में 6 समीक्षा बैठकें होनी हैं। अगर इस पहली समीक्षा बैठक में पाकिस्तान पास हो जाता है तो उसे एक अरब डॉलर की फौरी मदद तुरंत मिल जाएगी। पर पहलगाम के आंतकी हमले में पाकिस्तानी मूल के दो आंतकियों की ​िशनाख्त होने के बाद पाक के लिए मौके बेहद कम हो गए हैं।

समीक्षा की रिपोर्ट निगेटिव आने की संभावना ही ज्यादा है। जो आर्थिक रूप से जर्जर हाल पाकिस्तान के पेट पर एक बड़ी लात हो सकती है। पाक अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी इमेज बचाए रखने की कवायद में जुटा है, पर उसे इसमें कोई खास सफलता नहीं मिल रही। 57 देशों वाले इस्लामिक सहयोग संगठन यानी ओआईसी के मात्र 1 देश ही पाकिस्तान के बचाव में सामने आया है। वहीं भारत ने पाक पीएम शहबाज शरीफ समेत कई नामी पाकिस्तानी हस्तियों के सोशल मीडिया अकाऊंट ब्लॉक कर रणनैतिक तौर पर भी इस पड़ोसी देश को घुटने पर आने को मजबूर कर दिया है।

वसुंधरा को इतना भाव क्यों दे रहा है भाजपा आलाकमान

राजस्थान की भगवा राजनीति नई करवटें ले रही है, दिल्ली दरबार में यूं अचानक राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की पूछ बढ़ गई है। पिछले हफ्ते वसुंधरा की दिल्ली में एक बड़े नेता के साथ एक लंबी मुलाकात हुई, कहते हैं इस मुलाकात में महारानी को आश्वस्त किया गया कि पार्टी उनके सम्मान का पूरा ध्यान रखेगी और आने वाले सांगठनिक फेरबदल में उन्हें केंद्रीय संगठन में कोई अहम जिम्मेदारी भी दी जाएगी।

सूत्रों की मानें तो वसुंधरा ने साफ किया कि ‘वह चूंकि पहले से पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद पर विराजमान हैं, सो अगर उनके लिए पार्टी शीर्ष कुछ करना ही चाहता है तो उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कर किसी अहम मंत्रालय से नवाजा जाए।’ कहते हैं बड़े नेता की ओर से उन्हें भरोसा दिया गया है कि ‘इस बारे में आलाकमान से राय लेकर जल्द ही एक निर्णय पर पहुंचा जाएगा।’ दरअसल पार्टी का शीर्ष नेतृत्व प्रदेश भाजपा की आपसी गुटबाजी को लेकर बेतरह खिन्न है। राज्य के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की लोकप्रियता और उनके परफॉरमेंस को आंकने के लिए पिछले दिनों पार्टी ने एक बड़ी एजेंसी से वहां जनमत सर्वेक्षण करवाया था, इस सर्वेक्षण में सबसे हैरान करने वाला वाकया यह उभर कर सामने आया कि सर्वेक्षण में शामिल किए गए 20-25 फीसदी लोग तो अपने राज्य के मुख्यमंत्री का नाम ही नहीं जानते थे। इससे बड़ी बात जो सर्वेक्षण से बाहर निकली कि अगर आज की तारीख में राजस्थान में विधानसभा चुनाव करा दिए जाएं तो भाजपा को अपनी सरकार बचाने के लाले पड़ जाएंगे।

सर्वेक्षणकर्ताओं ने अपने निष्कर्ष में बताया है कि राज्य के मौजूदा मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की लोकप्रियता बस वहां के ब्राह्मणों के बीच ही है, जबकि वसुंधरा को कई जातियों के प्रतिनिधित्व का हुनर प्राप्त था। उनकी स्वयं की जाति ओबीसी है, वह जाटों की बहू हैं और गुर्जरों की समधिन इस नाते भी यह तीनों समुदाय उन्हें अपना मानते रहे हैं। जब बड़े नेता ने वसुंधरा से राज्य में पार्टी के गिरते ग्राफ के बारे में जानना चाहा तो कहते हैं महारानी ने राज्य के भाजपा प्रभारी राधा मोहनदास अग्रवाल के सिर इसका ठीकरा फोड़ दिया, शायद यह अग्रवाल हैं जो गुटबाजी को हवा दे रहे हैं, यहां तक कि वे राज्य के मंत्रियों को सीधे काम करवाने के लिए फोन भी करते हैं। महारानी ने अविलंब राज्य प्रभारी बदलने की जरूरत पर बल दिया है।

क्या ममता-अभिषेक में इतनी ठन गई है?

कोलकाता की आबोहवा में बगावती बारूद की गंध रच बस गई है और यह हवा सीधे तृणमूल के आंगन तक जा पहुंची है। विश्वस्त सूत्रों की मानें तो भाजपा के बंगाल से तीन भाजपा सांसद तृणमूल ज्वॉइन करने को एकदम तैयार बैठे थे, इन तीनों सांसदों को मनाने की कवायद पहले से चल रही थी। इसके सूत्रधार थे ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी और इसकी पटकथा तैयार की थी पूर्व क्विज़ मास्टर और टीएमसी के एक अहम चेहरे डेरेक ओ ब्रॉयन ने। तीनों भाजपा सांसदों की डिमांड भी अलग-अलग थी, इसमें से पहले नंबर की चाह थी कि उन्हें अगला चुनाव लड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं, पर बाबुल सुप्रियो की तर्ज पर उन्हें ममता सरकार में मंत्री बना दिया जाए, दूसरे वाले लक्ष्मी पूजन चाहते थे, वे अगला चुनाव लड़ने को भी तैयार थे, पर उनकी शर्त थी कि अगर खुदा ना खास्ते वे टीएमसी के टिकट पर चुनाव हार गए तो फिर दीदी उन्हें राज्यसभा में लेकर आ जाएं, तीसरे भाजपा सांसद भी स्वयं चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं थे, वे चाहते थे कि उनकी पत्नी को विधानसभा का चुनाव लड़वा कर राज्य सरकार में मंत्री बना दिया जाए।

कहते हैं अभिषेक की ओर से इस डील को हरी झंडी थी, पर ममता इस पर आगे ही नहीं बढ़ रही थीं। इधर इन तीनों भगवा सांसदों के सब्र का पैमाना टूटता जा रहा था। वहीं इनके पाला बदल की खबर भाजपा हाईकमान को भी लग गई थी, सो इन तीनों को तलब कर सख्ती से पूछा गया कि आखिर क्यों बदले-बदले से सरकार नज़र आ रहे हैं? ये सदन में भी कम दिखते हैं, पार्टी बैठकों में इनका अता-पता नहीं होता। अब तो इन सांसदों के पैरों के नीचे से जमीन निकल गई, दल बदल से पहले ही उनके लिए दुरूह सियासी दलदल तैयार था। इन्होंने आखिरी बार अभिषेक से चैक किया कि ’आखिर चल क्या रहा है, कुछ होगा कि नहीं?’ अभिषेक ने डेरेक से कहा कि वे फौरन इस बाबत दीदी से बात करें। डेरेक ने दीदी से बात की तो ममता बेतरह उखड़ गईं, बोलीं-‘तुम लोग क्या फालतू के चक्कर में पड़े हो, पहले पीके के साथ मिल कर तुम सब ने गोवा, असम व त्रिपुरा में टीएमसी की इज्जत पर बट्टा लगा दिया। अब नया गेम शुरू कर रहे हो, यह जाने बगैर कि इससे हमें हासिल क्या होगा?’ डेरेक भी चुप कर बैठ गए, अब पार्टी में दूर तलक यह बात फैल चुकी है कि ’अभिषेक की अब यहां कुछ चल नहीं पा रही।’

जाति जनगणना की घोषणा अभी क्यों?

सरकार ने भले ही जाति जनगणना कराए जाने का ऐलान उस वक्त किया हो जब देश पहलगाम हमले के दर्द में लिपटा था, पर सच पूछिए तो संघ ने इसकी इबारत सितंबर 2024 में ही लिख दी थी, जब भाजपा व संघ की तीन दिवसीय समन्वय बैठक केरल के पलक्कड़ में चल रही थी। वैसे तो संघ हमेशा से जाति जनगणना का मुखर विरोधी रहा है, संघ ऐसी जनगणना को निजी राजनैतिक लाभ के लिए समाज को बांटने का उपक्रम मानता है। इसीलिए नागपुर ने हमेशा हिंदुओं को जाति के चश्मे के बजाए अमीर व गरीब के तौर पर देखने की वकालत की है।

इसे आप ‘बंटोगे तो कटोगे’ की बैकड्रॉप पर भी देख सकते हैं, यानी अगर हिंदू वोट बैंक में जातीयता की सेंध लगेगी तो भाजपा के मुंह से यह बड़ा निवाला छिन सकता है। पर इस वाकये का एक दूसरा पहलू भी है कि संघ का कहीं यह भी मानना है कि अगर भाजपा को दक्षिण भारत की राजनीति साधनी है तो जाति जनगणना की अनदेखी नहीं हो सकती। सो तमिलनाडु हो, कर्नाटक या फिर तेलांगना वहां की डीएमके व कांग्रेस सरकार हमेशा से जातीय जनगणना का राग अलापती रही है। बिहार की नीतीश सरकार पहले ही इस जनगणना का अलख जगा चुकी है, कांग्रेस व राजद जैसे दलों ने बिहार चुनाव में इसे एक बड़ा चुनावी मुद्दा बना रखा है, सो, भाजपा भी इस बहती गंगा में हाथ धोना चाहती है, क्योंकि 27 में यूपी में भी चुनाव होने हैं।

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त्रिदीब रमण

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