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शशि थरूर कांग्रेस से क्यों नाराज हैं?

सांसदों के अहम प्रतिनिधिमंडल के नेतृत्व का जिम्मा संभालने वाले कांग्रेस नेता शशि थरूर

04:24 AM Jun 01, 2025 IST | त्रिदीब रमण

सांसदों के अहम प्रतिनिधिमंडल के नेतृत्व का जिम्मा संभालने वाले कांग्रेस नेता शशि थरूर

शशि थरूर कांग्रेस से क्यों नाराज हैं

’तुमने तो ही छाया का वक्त मुकर्रर किया हुआ है

मैं तो चाहता हूं तुम धूप सी आओ-जाओ’

सांसदों के अहम प्रतिनिधिमंडल के नेतृत्व का जिम्मा संभालने वाले कांग्रेस नेता शशि थरूर ने विदेशों में भारत के पक्ष में एक समा सा बांध दिया है। वे आतंकवाद के मुद्दे पर भाजपा का रुख सामने रखने के लिए अमेरिका, पनामा, गुयाना, ब्राजील व कोलंबिया जैसे देशों की यात्रा पर निकले हुए हैं। पर अपनी इस विदेश यात्रा पर रवाना होने से पूर्व थरूर ने नई दिल्ली स्थित अपने आवास पर कुछ मलयाली पत्रकारों के लिए ‘मैंगो व चाट पार्टी’ रखी थी। उन्होंने इस पार्टी में अपने मुंहलगे कुछ पत्रकारों से खुल कर अपने दिल की बात की और बताया कि आखिरकार राहुल गांधी के साथ उनका लोचा क्या है। इन्हीं पत्रकारों में से एक ने खुलासा किया कि दरअसल थरूर को राहुल से उतनी दिक्कत नहीं है, जितनी उन्हें राहुल के सबसे खासमखास केसी वेणुगोपाल से है। थरूर का मानना है कि सिर्फ अगर चार-पांच लोगों को छोड़ दिया जाए तो राहुल का व्यवहार अपनी पार्टी के तमाम नेताओं से लगभग एक सा है, बेलौस, बिंदास और एक हद तक किसी की परवाह न करने वाला। इस पत्रकार महोदय का दावा है कि थरूर को असली परेशानी वेणुगोपाल से ही है जो एक तरह पार्टी के ‘फंक्शनल हेड’ की तरह आचरण करते हैं, थरूर को वे लैटिन कहावत ‘परसोना नॉन ग्राटा’ (अनामंत्रित अतिथि) का ही पात्र समझते हैं। हालांकि केरल में शशि को चाहने वालों की एक बड़ी तादाद है, पर जब अगले वर्ष केरल में विधानसभा चुनाव होंगे तो थरूर जानते हैं कि उसमें कांग्रेस उनकी भूमिका को बेहद सं​िक्षप्त रखने वाली है। थरूर केरल के तिरुवनंतपुरम से सांसद हैं, पर उनकी पार्टी के अपने विधायक ही उनसे मिलने से कतराते हैं। शशि अभी 69 वर्ष के हैं, अगर भाजपा उन्हें राज्यसभा देकर केंद्र में मंत्री बना देती है तो जब तक उनकी राज्यसभा की मियाद पूरी होगी वे 75 साल के हो जाएंगे। शायद तब वे राजनीति को अलविदा कह विदेश में बस जाएं, क्योंकि उनके दोनों बेटे अमेरिका में सेटल हैं, उनकी दोनों बहनें भी विदेश में बस गई हैं। उनकी मां की भी उम्र हो गई है, अब वह 94 साल की हैं। सो, अगर भाजपा उन्हें केरल में अपना सीएम फेस बना देती है तो वे अपने गृह राज्य में भाजपा के लिए पूरा जोर लगा देंगे। थरूर जानते हैं कि इस बार तिरुवनंतपुरम से जीतने के लिए उन्हें किस तरह एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ा था, सो अगर भाजपा यहां से फिर से राजीव चंद्रशेखर को चुनावी मैदान में उतारती है तो थरूर उनकी जीत की राह जरूर आसान कर सकते हैं।

थरूर को मंत्रालय कौन सा मिलेगा?

ताजा-ताजा भगवा रंगों में सराबोर हुए शशि थरूर की नीयत व नजरिए पर भले ही सियासी बहस छेड़ी जा सकती है, पर भाजपा हाईकमान उनके मौजूदा परफॉरमेंस से गद्-गद् बताया जाता है। थरूर सांसदों के जिस प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व वह कर रहे हैं अमेरिका, पनामा, गुयाना जैसे तमाम देशों में मीडिया व सिविल सोसाइटी तक आतंकवाद को लेकर भारत का नजरिया सामने रखने में कामयाब हो पाया है। सिर्फ इतना ही नहीं थरूर के जेहन में केरल का आने वाला चुनाव भी कहीं न कहीं धमाचौकड़ी मचा रहा है, शायद यही वज़ह है कि वे जाने-अनजाने कई लक्ष्मण रेखा का भी उल्लंघन करते जा रहे हैं, जैसे बीते दिनों 3 मई को थरूर ने अपने ’एक्स’ के एक पोस्ट में तुर्किए को 10 करोड़ की मदद देने के लिए केरल सरकार पर निशाना साधते हुए इस मामले को सीधे वायनाड से जोड़ देते हैं, सनद रहे कि प्रियंका गांधी ही वायनाड की लोकसभा सांसद हैं। पर अपने इस हमले के दौरान शायद थरूर भूल गए कि मोदी सरकार ने भी तुर्किए की मदद के लिए ’ऑपरेशन दोस्त’ चलाया था। सूत्रों की मानें तो पहले थरूर के पास एचआरडी मंत्रालय का ऑफर था, पर शायद यह आइडिया संघ को रास नहीं आया। संघ हमेशा से मानव संसाधन मंत्रालय में अपना दखल बनाए रखना चाहता है, आमतौर पर ऐसे ही नेताओं को इस मंत्रालय की बागडोर सौंपी जाती है जिन्हें संघ का विशेष स्नेह प्राप्त होता है। सूत्र बताते हैं कि अब थरूर को देने के लिए दो मंत्रालयों पर विचार चल रहा है, इसमें से एक विदेश मंत्रालय है और दूसरा कॉमर्स मिनिस्ट्री।

500 के नोट क्यों बंद करवाना चाहते हैं नायडू

अभी पिछले दिनों आंध्र प्रदेश के कडप्पा में तेलुगुदेशम पार्टी की एक अहम तीन दिवसीय बैठक आहूत थी जिसमें पार्टी के 5 लाख से भी ज्यादा कार्यकर्ता जुटे थे। इसी बैठक में टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू ने मोदी सरकार को 500 रुपए के नोट बंद करने की सलाह दी है। नायडू का कहना है कि ’अगर केंद्र सरकार वाकई भ्रष्टाचार पर पूरी तरह से अंकुश लगाना चाहती है तो उसे उच्च मूल्य के नोट (जो फिलहाल 500 रुपए है) को बंद कर उसकी जगह डिजिटल करेंसी चलानी चाहिए।’ नायडू ने वहां मौजूद अपने लाखों पार्टी कार्यकर्ताओं से अपने हाथ उठा इस बात के लिए समर्थन की गुहार लगाई। नायडू ने अपने पार्टी कार्यकर्ताओं के समक्ष दावा किया कि 2016 में हुई नोटबंदी की सलाह उन्होंने ही पीएम मोदी को दी थी। क्योंकि उस वक्त भी उनकी पार्टी एनडीए की सहयोगी पार्टी थी। नायडू को तब केंद्र द्वारा कैशलेस अर्थव्यवस्था के लिए कार्य योजना तैयार करने के लिए गठित कमेटी में नियुक्त किया गया था। सनद रहे कि कडप्पा में आहूत यह बैठक कई मायनों में अभूतपूर्व थी, 1982 में जब तेलुगुदेशम पार्टी का गठन हुआ इसके 43 वर्षों बाद पहली दफे कडप्पा में पार्टी का कोई अधिवेशन आयोजित किया गया। क्योंकि कडप्पा कांग्रेस का सबसे मजबूत गढ़ रहा है, जहां 2019 के बाद जगन की वाईएसआर कांग्रेस ने मजबूती से अपने पैर जमा लिए। चंद्रबाबू की निगाहें अभी से 2029 के चुनावों पर टिक आई है, सो उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं से आह्वाहन किया कि अगले चुनाव में यहां की सभी 10 सीटें जीतनी हैं, फिलहाल यहां टीडीपी के पास 7 सीटें हैं।

सुप्रिया देर से क्यों गईं विदेश?

’ऑपरेशन सिंदूर’ के औचित्य और आतंकवाद का भयावह चेहरा दुनिया को दिखाने के लिए सांसदों का जो प्रतिनिधिमंडल विदेश जा रहा था, इसमें से एक की नुमाइंदगी सुप्रिया सुले के पास भी थी। जब उन्हें अपने प्रतिनिधिमंडल के साथ विदेश रवाना होना था तो उनके पास एक अहम संदेश आया कि उन्हें अपने पिता शरद पवार के साथ पीएम से मिलना है। इस वज़ह से सुप्रिया की विदेश यात्रा दो दिनों के लिए टल गई। सूत्रों की मानें तो जब सुप्रिया अपने पिता के साथ पीएम से मिलने पहुंची तो इनसे कहा गया कि देशहित में एक ‘लार्जर यूनिटी’ के लिए काम करना चाहिए यानी अब वक्त आ गया है कि चाचा (शरद) व भतीजा (अजित) अपने तमाम पुराने गिले-शिकवों को मिटा कर फिर से एक हो जाएं। इस बाबत पीएम ने पहले ही अजित पवार से बात कर ली थी, जिन्होंने इस प्रस्ताव पर अपनी सहर्श सहमति भी दे दी थी। पर अजित चाहते हैं कि सुप्रिया महाराष्ट्र के बजाए दिल्ली की राजनीति पर फोकस करें। समझा जाता है कि भाजपा ने पहले ही सुप्रिया को केंद्र में मंत्री बनाने का प्रस्ताव दे रखा है। सूत्रों की मानें तो उन्हें महिला व बाल विकास मंत्री का पद ऑफर किया गया है। पर सुप्रिया चाहती है कि ’अगर वाकई भाजपा उनके भविष्य को लेकर इतनी चिंतित है तो फिर उन्हें महाराष्ट्र का सीएम बनाने पर विचार करना चाहिए।’

…और अंत में

बिहार चुनाव में कांग्रेस के समक्ष सबसे बड़े यक्ष प्रश्न बन कर उभरे हैं पप्पू यादव, जो राहुल गांधी से न निगलते बन रहे हैं और न ही उगलते। दरअसल, तेजस्वी समेत पूरा लालू परिवार पप्पू यादव के सख्त खिलाफ है, सो ऐसे में राहुल लालू परिवार को नाराज़ करने का जोखिम भी नहीं उठाना चाहते, वहीं वह और प्रियंका चाहते हैं कि इस चुनाव में पप्पू यादव को सम्मानजनक कुछ दिया जाए। समझा जाता है कि कांग्रेस ने अंदरखाने से पप्पू को यह ऑफर दिया है कि वे सीमांचल की तीन-चार सीटों पर कांग्रेस के सिंबल पर अपने उम्मीदवार उतार लें। वहीं पप्पू ने भी मन बनाया हुआ है कि अगर बात नहीं बनी तो वे पूरे सीमांचल में अपने उम्मीदवार उतार देंगे, इससे राजद-कांग्रेस को भारी झटका लग सकता है और भाजपा-जदयू इसकी लाभार्थी हो सकती है।

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त्रिदीब रमण

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