थरूर के नाम पर कांग्रेस क्यों बेचैन है ?
थरूर की प्रतिभा पर कांग्रेस का असमंजस…
मुझे समझ में नहीं आता कि शशि थरूर जैसे प्रबुद्ध नेता और ओजस्वी वक्ता की महत्ता को सरकार तो समझ रही है लेकिन कांग्रेस क्यों नहीं समझ रही है? क्या कांग्रेसियों को अंदाजा है कि वे पार्टी का कितना बड़ा नुक्सान कर रहे हैं? मैं वर्षों से शशि थरूर को बेहद करीब से जानता रहा हूं और यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि शशि थरूर मौजूदा वक्त के शानदार विश्लेषणकर्ता और गहरी समझ वाले व्यक्ति हैं। कांग्रेस को तो उन्हें सिर आंखों पर बिठाना चाहिए मगर आलाकमान के आंख, नाक और कान बने कांग्रेसी लगातार उनका तिरस्कार कर रहे हैं। ताजा मामला ऑपरेशन सिंंदूर के खिलाफ दुनिया के 33 देशों को वस्तुस्थिति से अवगत कराने के लिए भारत सरकार द्वारा गठित सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों का है। संसदीय कार्य मामलों के मंत्रालय ने सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों का गठन किया है। इसका उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य देशों सहित भारत के सहयोगी राष्ट्रों के समक्ष पाकिस्तान की हरकतों का पुख्ता सबूतों के साथ पर्दाफाश करना है।
संसदीय कार्यमंत्री किरण रिजिजू ने लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से आग्रह किया कि पाकिस्तानी आतंकवाद पर भारत का रुख स्पष्ट करने के लिए विदेश भेजे जाने वाले प्रतिनिधिमंडलों के लिए कांग्रेस की ओर से 4 सांसदों के नाम चाहिए। कांग्रेस ने आनंद शर्मा, गौरव गोगोई, डॉ. सैयद नसीर हुसैन और राजा बरार के नाम भेज दिए। सरकार ने गोगोई, नसीर और बरार के नामों को दरकिनार कर दिया। कांग्रेस की सूची से केवल आनंद शर्मा को लिया। इसके अलावा कांग्रेस के शशि थरूर, मनीष तिवारी, सलमान खुर्शीद और अमर सिंह को सरकार ने प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा बनाया। थरूर को अमेरिका जाने वाले दल का नेतृत्व सौंपा गया। बाकी नामों पर तो कोई बवाल नहीं मचा लेकिन थरूर के नाम पर बहुत बेचैनी दिखी।
कांग्रेस ने कहा कि शशि थरूर का नाम तो पार्टी ने दिया ही नहीं था। सामान्य दृष्टि से देखें तो निश्चय ही सरकार ने कांग्रेस की अवहेलना की है लेकिन सवाल तो यह है कि उनका नाम क्यों नहीं दिया गया? क्या हम भूल गए कि 28 मई 2015 को ऑक्सफोर्ड यूनियन में थरूर ने ब्रिटेन को किस तरह धोया था और कहा था कि अपने उपनिवेश रहे देशों को ब्रिटेन क्षतिपूर्ति के रूप में प्रतीकात्मक राशि दे। विदेशी मामलों पर उनकी गजब की पकड़ है। वास्तव में कांग्रेस ने उनकी अवहेलना की है। यह पहली बार नहीं है जब थरूर की अवहेलना हुई है। जब उन्हें राज्यमंत्री बनाया गया था तब सबकी मान्यता थी कि वे कैबिनेट मंत्री के योग्य थे। थरूर को जब प्रतिनिधिमंडल में शामिल किया गया तो उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा कि ‘हाल की घटना पर अपने देश का नजरिया रखने के लिए भारत सरकार के निमंत्रण से सम्मानित महसूस कर रहा हूं, जब बात राष्ट्रीय हित की हो और मेरी सेवाओं की जरूरत हो तो मैं कभी पीछे नहीं हटूंगा।’ मुझे खुद का एक वाकया याद आ रहा है।
कारगिल युद्ध के समय कांग्रेस और सहयोगी दलों ने तय किया था कि तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस से कोई सवाल नहीं पूछा जाएगा। मेरा सवाल लिस्ट में अनुसूचित हो गया था। मैं सवाल करने उठा तो मुझे पहले मनमोहन सिंह और फिर प्रणब मुखर्जी ने इशारा किया कि पार्टी ने सवाल नहीं करना तय किया है। मगर मैंने सवाल पूछा कि बुलेटप्रूफ जैकेट के बावजूद हमारे सैनिक गोली लगने से क्यों शहीद हो रहे हैं? मैंने कॉफिन की गुणवत्ता को लेकर भी सवाल किए थे क्योंकि उस वक्त देश को इन दोनों ही सवालोेंं के जवाब चाहिए थे, कई बार ये निडरता जरूरी हो जाती है। शशि थरूर ने सही निर्णय लिया है। सरकार ने प्रतिनिधिमंडलों में सदस्यों का चयन भी बहुत सोच-समझ कर किया है, इनमें 51 सांसद, पूर्व मंत्री और आठ पूर्व राजनयिक शामिल हैं। ये ऐसे लोग हैं जिनमें भारत का पक्ष बहुत अच्छी तरह से रखने की अपार क्षमता है। प्रतिनिधिमंडल की यात्राएं शुरू हो चुकी हैं। जिन 33 देशों का चयन किया गया है, उनमें 15 देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी या अस्थायी सदस्य हैं। पांच देश जल्द ही सदस्य बनने वाले हैं, अन्य देश वो हैं जिनकी आवाज वैश्विक मंच पर मायने रखती है।
इस बीच राहुल गांधी ने विदेश मंत्री जयशंकर से जो तीन सवाल पूछे हैं उनकी भी बहुत चर्चा हो रही है। पहला सवाल अमेरिका को लेकर है कि भारत और पाकिस्तान को एक ही तराजू पर उसने तौलने की कोशिश क्यो की? दूसरा, ट्रम्प को मध्यस्थता करने के लिए किसने कहा और कोई भी देश खुलकर भारत के साथ खड़ा क्यों नहीं हुआ? क्या विदेश नीति ध्वस्त हो गई है? मुझे लगता है कि ये सवाल महत्वपूर्ण हैं क्योंकि मोदी जी ने दुनिया के ढेर सारे देशों के साथ दोस्ती के लिए जो बेहतरीन कोशिश की है, बहुत से देशों और भारत के बीच जो रिश्ते बेहतर हुए हैं उसमें यह उम्मीद स्वाभाविक थी कि वो देश हमारे साथ खड़े हों। मुझे यह उम्मीद है कि प्रतिनिधिमंडलों के माध्यम से जो कूटनीति प्रारंभ हुई है, वह भारत के नजरिये को और व्यापक तरीके से दुनिया के सामने रखेगी और अच्छी तरह से पाकिस्तान की पोल खोलेगी। कांग्रेस को तो गर्व होना चाहिए कि उसके पास सांसद थरूर जैसा नायाब हीरा है जिसे भारत सरकार ने अमेरिका जैसे महत्वपूर्ण देश की जिम्मेदारी सौंपी है।