क्यों मनाई जाती है छोटी दिवाली? जानें इसकी पौराणिक कथा एवं महत्व
दिवाली से ठीक एक दिन पहले छोटी दिवाई मनाई जाती है। इस दिन भी सभी लोग अपने घर के बाहर दीए जलाते हैं।
07:43 AM Oct 26, 2019 IST | Desk Team
दिवाली से ठीक एक दिन पहले छोटी दिवाई मनाई जाती है। इस दिन भी सभी लोग अपने घर के बाहर दीए जलाते हैं। छोटी दिवाली को नरक चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है इस दिन जो भी व्यक्ति मृत्यु देवता यमराज और माता लक्ष्मी का प्रसन्न कर लेता है उसे मरने के बाद नरक में नहीं जाना होता। साथ ही अनजाने में हुए पापों से छुटकारा मिल जाती है।
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छोटी दिवाली के दिन यमराज की पूजा करी जाती है। छोटी दिवाली की शाम को घर में दीपक लेकर घूमने के बाद उसे बाहर कहीं रख दिया जाता है। इसको यम का दीपक कहते हैं। इस दिन 14 दीए जलाए जाते हैं। मान्यता है कि यमराज के लिए तेल का दीपक जलाने से अकाल मृत्यु भी टल जाती है।
जानें नरक चतुर्दशी का महत्व
छोटी दिवाली के दिन लोग यम देवता की पूजा करके घर के मेन गेट के बाहर तेल का दीया जलाते हैं। क्योंकि ऐसा करने से अकाल मृत्यु कभी नहीं आती है। मान्यता यह भी है इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले शरीर पर सरसों का तेल लगाकर स्नान करने का खास महत्व है। स्नान के बाद भगवान हरि यानी विष्णु मंदिर या कृष्ण मंदिर जाकर दर्शन करना चाहिए। ऐसा करने से भी पापों से मुक्ति मिली है साथ ही खूबसूरती बढ़ती है।
छोटी दिवाली के दिन को यम चतुर्दशी रूप चतुर्दशी या रूप चौदस से भी जाना जाता है। मान्यता है कि श्राद्घ महीने में आए हुए पितर इसी दिन चंद्रलोक वापस जाते हैं। इस दिन अमावस्या होती है जिस वजह से चांद नहीं निकलता जिससे पितर भटक सकते हैं। इस वजह से उनकी सुविधा के लिए नरक चतुर्दशी के दिन एक बड़ा सा दीपक जलाना चाहिए। यमराज और पितर देवता अमावस्या तिथि के स्वामी माने जाते हैं।
छोटी दिवाली की कथा
वैसे तो नरक चतुर्दशी के महत्व को बताने के लिए बहुत सारी कथाएं प्रचलित है जिसमें से एक कथा श्री कृष्ण से भी जुड़ी हुई है। श्रीमद्भागवत पुराण के मुताबिक नरकासुर नामक असुर ने अपनी शक्ति से देवी-देवताओं और मानवों को परेशान किया हुआ था। असुर ने संतों के साथ 16 हजार औरतों को बंदी भी बनाकर रखा हुआ था। उसके बढ़ते अत्याचार को देखते हुए देवता और ऋषि-मुनियों ने भगवान श्रीकृष्ण की शरण ली और बोला कि इस नरकासुर का अंत कर पृथ्वी से पाप का भार कम करें।
इसके बाद भगवान कृष्ण ने उन्हें आश्वासन दिया परंतु नरकासुर को एक स्त्री के हाथों मरने का शाप था,इसी वजह से भगवान कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया और उनकी मदद से नरकासुर का वध कर दिया। जिस दिन नरकासुर का अंत हुआ था उसी दिन से कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी थी।
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