सिखों के धार्मिक चिन्हों से देशवासी आज तक अंजान क्यों?
1699 की वैसाखी वाले दिन जब सिखों के दसवें गुरु गोबिन्द सिंह जी ने सिख पंथ की स्थापना की तो उन्होंने सिखों के लिए पांच ककार अनिवार्य किए जिसमें केश, कंघा, कछहरा, कड़ा और कृपाण थे। हालांकि कृपाण को हर सिख धारण नहीं कर सकता। उसे धारण करने से पूर्व अमृतपान करना अनिवार्य होता है और जब कोई सिख अमृतपान कर ले तो वह कृपाण को अपने शरीर से अलग नहीं कर सकता। अफसोस इस बात है कि सैकड़ों वर्ष बीतने के पश्चात भी आज तक सिख धर्म के लोग दूसरे लोगों को यह बताने में नाकामयाब रहे हैं। इतिहास गवाह है कि मुगल हुकूमत के दौरान भी सिखों को कृपाण धारण करने में किसी तरह की परेशानी नहीं हुई। अंग्रेजों की 100 साल की गुलामी के दौरान भी उन्होंने अमृतधारी सिखों को कभी कृपाण उतारने के लिए नहीं कहा। जब 1947 में देश आजाद हुआ और देश का संविधान लिखा गया तो उसमें भी सिखों को अनुछेद 25 के तहत कृपाण सहित सभी धार्मिक चिन्ह पहनने की इजाजत दी गई मगर समय और हालात देश के कुछ इस तरह के बन गए कि आजादी के बाद से लेकर आज तक सिखों को अपने ही देश में अपने धार्मिक चिन्हों को धारण करने हेतु कई तरह के संघर्ष करने पड़ रहे हैं। सभी इस बात से भलि भांति वाकिफ हैं कि सिखों ने जंग के मैदान में भी धार्मिक चिन्ह धारण करके रखे। देश की संसद मंे भी सिखों को धार्मिक चिन्हों के साथ प्रवेश की इजाजत है फिर ना जाने क्यों परीक्षा केन्द्रों में बार-बार सिख बच्चों को धार्मिक चिन्ह कड़ा और कृपाण पहनकर जाने से रोका जाता है। कई बार तो संघर्ष के बाद उन्हें इजाजत मिल भी जाती है मगर कई बार लम्बी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ जाती है। ताजा मामला उस समय सामने आया जब राजस्थान के जोधपुर में वकालत की परीक्षा के दौरान एक गुरसिख लड़की को रोका गया। उसने ड्यूटी अफसरों से काफी गुहार लगाई मगर उनकी एक ही जिद्द थी कि कड़ा और कृपाण सहित प्रवेश वर्जित है। इससे पूर्व भी एक मामला इसी तरह का आया था जिसमें दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के द्वारा कानूनी लड़ाई लड़कर कोर्ट केे आर्डर से दुबारा परीक्षा दिलवाई थी इस बार भी कमेटी महासचिव जगदीप सिंह काहलो साफ कर चुके हैं इस लड़की के लिए भी कानून का सहारा लेकर उसकी परीक्षा सुनिश्चित करवाई जाएगी क्यांेकि अगर अमृतधारी बच्चे कानूनी परीक्षा देंगे तभी तो उच्च पदों पर पहुंचकर कौम के मसलों का आने वाले समय में समाधान कर पाएंगे। समाज सेवी गुरमीत सिंह बेदी का मानना है कि यह गंभीर चिन्तन का विषय है। उन्होंने कहा आज सरकारों के द्वारा सरकारी स्तर पर गुरु तेग बहादुर जी का 350वां शहीदी दिवस मनाने हेतु प्रयास किए जा रहे हैं उसके साथ ही यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि भविष्य में इस तरह की दिक्कत अमृतधारी बच्चों को पेश ना आए इसके लिए सभी सम्बिधित विभागों को निर्देश जारी किए जाने चाहिए।
पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन का नाम बदलने की उठी मांग
गुरु तेग बहादुर जी की शहादत के 350वें दिवस को मुख्य रखते हुए पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन का नाम गुरु तेग बहादुर जी के नाम पर रखने हेतु पंजाब एंड सिंध बैंक के पूर्व अधिकारी कुलबीर सिंह एवं विकासपुरी गुरुद्वारा साहिब की कमेटी के द्वारा देश के प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखकर मांग की गई है। उनका मानना है कि चांदनी चौक में गुरु तेग बहादुर जी और उनके अनुयाइयों भाई मतिदास, भाई सतिदास, भाई दयाला जी को मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश पर शहीद किया गया था और स्टेशन उसी क्षेत्र में आता है इसलिए उसका नाम गुरु जी के नाम पर रखा जाना चाहिए। वहीं बिहार सिख फैडरेशन के मुखी त्रिलोक सिहं निषाद की मांग है कि लाल किला जहां से गुरु तेग बहादुर जी को शहीद करने का फरमान औरंगजेब ने सुनाया उस लाल किले का नाम बदलकर गुरु तेग बहादुर जी के नाम पर रखा जाना चाहिए। समाज सेवी एवं पंजाब से भाजपा नेता सुखमिंदरपाल सिहं ग्रेवाल का कहना है कि स्टेशनों यां सड़कों आदि के नाम गुरु साहिब के नाम पर रखने से कौम को कुछ हासिल होने वाला नहीं है इससे बेहतर होगा कि गुरु तेग बहादुर जी के नाम पर कोई नई यूनिवर्सिटी, मैडीकल कालेज, लॉ कालेज सरकार से कहकर खुलवाया जाए और उसमें सिख बच्चों को पहलकदमी के आधार पर दाखिला मिले जिससे सिख बच्चे शिक्षित होकर देश व कौम का नाम रोशन करे। उन्होंने कहा हमारी खुशकिस्मती है कि इस समय देश में सिखों के हित मे कार्य करने वाली सरकार है उसके आगे जो भी प्रस्ताव सिख समाज के लोग रखेंगे उसके पूरे होने की उम्मीद है। आज तक बच्चों को जुल्मी मुगल बादशाहों का इतिहास पढ़ाया जाता रहा है मगर मोदी सरकार की पहल पर अब स्कूलों और कालेजों में भी जुल्म करने वालों के बजाए जुल्म का खात्मा कर मानवता के रक्षक गुरु तेग बहादुर जी सहित अन्य सिख इतिहास पढ़ाया जाएगा।
ग्रन्थी सिंह की बेटियों पर समूची कौम गौरवान्वित
बठिंडा के एक छोटे से गांव के गुरुद्वारा में ग्रन्थी सिंह का काम करने वाले बिक्कर सिंह को आज अपनी बेटियों पर गर्व महसूस हो रहा है क्योंकि उसकी तीनों बेटियों ने ऐसा कर दिखाया है जिसका किसी ने अनुमान भी लगाया होगा। बहुत ही गरीबी में जीवन बसर करने वाले बिक्कर सिंह जो पहले गुरुद्वारा साहिब में ग्रन्थी का काम किया करता मगर तनख्वाह बहुत कम होने के चलते उसने बाहर सेवादारी आरंभ कर दी। उसकी पत्नी भी खेतों में काम करके अपने पति को आर्थिक सहयोग करती। दोनों ने अपनी बच्चियों की पढ़ाई में कमी नहीं होने दी जिसके परिणाम स्वरुप आज उनकी तीनों बेटियों ने गरीबी को मात देकर यूजीसी-नेट परीक्षा पास करके अपने माता पिता ही नहीं समूचे सिख कौम का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया। तीनों बहनें रिम्पी कौर, बंते कौर और हरदीप कौर ने नेशनल टेस्टिंग एजेंसी द्वारा आयोजित यूजीसी-नेट परीक्षा में अलग-अलग विषयों में सफलता पाकर सहायक प्रोफेसर की नौकरी तलाश रही है।
यह उन लोगों के लिए एक सबक है जो बच्चियों को इस संसार में आने से पहले ही गर्भ में ही मार दिया करते हैं। उन्हें समझ लेना चाहिए कि आज के समय में लड़कियां किसी भी सूरत में लड़कों से कम नहीं है और इसके साथ ही सिख समाज के लोगों को समझना होगा कि ग्रन्थी सेवादारों के बच्चों को भी अगर पढ़ने का मौका दिया जाए तो वह उच्च पदों पर आसीन होकर कौम का नाम रोशन कर सकते हैं। सिख समाज के लोग अपने घरों में होने वाले कार्यक्रमों में लाखों करोड़ों रुपये दिखावे के नाम पर खर्च कर देंगे मगर गुरुद्वारा साहिब से आए ग्रन्थी सेवादारों को देते समय पूरी तरह से संकोच कर लेते हैं, उन्हें इस पर विचार करना चाहिए और ग्रन्थी सेवादारों को उनका बनता हक दिया जाना चाहिए जिससे वह भी अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलवा सकें।
अमरीका के अंगद सिंह की सोच को सलाम
अमरीका में हाई स्कूल के सीनियर छात्र अंगद सिंह को प्रतिष्ठित ओरिजिनल ऑरेटरी श्रेणी में 2025 का यूएस नेशनल स्पीच एंड डिबेट चौंपियन चुना गया है। ‘लिविंग ऑन अ प्रेयर’ शीर्षक पर दिए गये 10 मिनट के भाषण ने न केवल जजों को प्रभावित किया, बल्कि राष्ट्रीय मीडिया का भी ध्यान खींचा। अंगद की जीत महीनों की कड़ी मेहनत, लेखन, संपादन और अभ्यास का प्रमाण है, लेकिन उससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि वह श्रोताओं से गहराई से जुड़ने में सक्षम हैं। उनके भाषण ने प्रार्थना की व्यक्तिगत और सामूहिक शक्ति को उजागर किया और श्रोताओं से आस्था को ठोस कर्म के साथ जोड़ने का आग्रह किया। उनके शब्दों ने न केवल भाषण और वाद-विवाद समुदाय को, बल्कि पूरे देश के लोगों को प्रभावित किया। एकता, दृढ़ता और उद्देश्यपूर्ण विश्वास पर केंद्रित उनका संदेश, ऐसा प्रभाव डालता है जो प्रतियोगिता हॉल से परे और व्यापक मानवीय भावना के साथ प्रतिध्वनित होता है। अंगद सिंह का मानना है कि अरदास सभी को जोड़ने में सहायक होती है इसलिए हर सिख को अरदास करनी चाहिए।