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यूसीसी पर हंगामा क्यों?

जब भी देश में यूनिवर्सल सिविल कोड यानि समान नागरिक संहिता की बात होती है तो हंगामा खड़ा हो जाता है। सियासी घमासान मच जाता है।

01:06 AM Dec 11, 2022 IST | Aditya Chopra

जब भी देश में यूनिवर्सल सिविल कोड यानि समान नागरिक संहिता की बात होती है तो हंगामा खड़ा हो जाता है। सियासी घमासान मच जाता है।

यूसीसी पर हंगामा क्यों
जब भी देश में यूनिवर्सल सिविल कोड यानि समान नागरिक संहिता की बात होती है तो हंगामा खड़ा हो जाता है। सियासी घमासान मच जाता है। राज्यसभा में भाजपा सांसद किरोड़ी लाल मीणा ने भारत में समान नागरिक संहिता विधेयक 2020 (प्राइवेट मैम्बर बिल) पेश किया तो सदन में विपक्षी सदस्यों ने जमकर हंगामा कर दिया। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, एमडीएमके, समाजवादी पार्टी, भाकपा, माकपा और राकंपा ने बिल पेश करने का जमकर विरोध किया और कहा कि यह विधेयक पारित हो जाता है तो यह देश में प्रचलित सामाजिक ताने-बाने और विविधता में एकता को नष्ट कर देगा। बिल को पेश करने के बाद इस पर मतदान हुआ जिसके पक्ष में 63 वोट पड़े जबकि विपक्ष के खाते में 23 वोट पड़े। आखिरकार बिल को पेश कर दिया गया। महत्वपूर्ण मुद्दों पर सभी दलों के सांसदों को अपनी राय रखनी चाहिए। सदस्यों के पास बिल पेश करने का अधिकार है तो बेहतर यही होता है कि सांसद खुलकर अपनी राय व्यक्त करें। एक आदर्श राज्य में नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए समान नागरिक संहिता एक आदर्श उपाय है। बदलती परिस्थितियों में आज वह समय आ गया है कि सभी नागरिकों के मौलिक और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए धर्म की परवाह किए बगैर समान नागरिक संहिता को लागू किया जाए, क्योंकि समान नागरिक संहिता द्वारा धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता को मजबूत किया जा सकता है। भारत में समस्या यह है कि यह मुद्दा सियासी औजार बन गया है।
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1840 में ब्रिटिश सरकार द्वारा ‘लेक्स लूसी’ रिपोर्ट के आधार पर अपराधों, सबूतों और अनुबंधों के लिए एक समान कानून का निर्माण किया गया था, लेकिन उन्होंने जानबूझकर हिन्दुओं और मुसलमानों के कुछ निजी कानूनों को छोड़ दिया था। दूसरी ओर ब्रिटिश भारतीय न्यायपालिका ने हिन्दू और मुस्लिमों को अंग्रेजी कानून के तहत ब्रिटिश न्यायाधीशों द्वारा आवेदन करने की सुविधा प्रदान की थी। इसके अलावा उन दिनों में विभिन्न समाज सुधारक सती प्रथा एवं धार्मिक रीति-रिवाजों के तहत महिलाओं के खिलाफ हो रहे भेदभाव को समाप्त करने के लिए कानून बनाने हेतु आवाज उठाते रहे थे। 1940 के दशक में गठित संविधान सभा में जहां एक ओर समान नागरिक संहिता को अपनाकर समाज में सुधार चाहने वाले डा. बी.आर. अम्बेडकर जैसे लोग थे वहीं धा​र्मिक रीति-रिवाजों पर आधारित निजी कानूनों को बनाए रखने के पक्षधर मुस्लिम प्रतिनिधि भी थे। जिसके कारण संविधान सभा में समान नागरिक संहिता का अल्पसंख्यक समुदायों द्वारा विरोध किया गया था। परिणामस्वरूप समान नागरिक संहिता के बारे में संविधान के भाग चार में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के रूप में अनुच्छेद 44 के तहत सिर्फ एक ही लाइन जोड़ी गई थी, जिसमें कहा गया है कि ‘‘राज्य भारत के राज्यक्षेत्र के अन्तर्गत निवास करने वाले सभी नागरिकों को सुरक्षित करने के लिए एकसमान नागरिक संहिता लागू करने का प्रयास करेगा।’’ चूंकि एकसमान नागरिक संहिता को राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के रूप में शामिल किया गया था। अतः इन कानूनों को अदालत के द्वारा लागू नहीं किया जा सकता था।
देश की राजनीतिक विसंगतियों के कारण किसी भी सरकार ने इसे लागू करने के लिए उचित इच्छा शक्ति नहीं दिखाई क्योंकि अल्पसंख्यकों मुख्य रूप से मुसलमानों का मानना था कि एकसमान नागरिक संहिता द्वारा उसके व्यक्तिगत कानूनों का उल्लंघन होगा। ऐसे में यह सवाल बार-बार उठता रहा है कि एक देश में धर्म के हिसाब से अलग-अलग कानून क्या ठीक है? मुस्लिम संगठन या विपक्षी दलों को इस पर आपत्ति क्या है? मुख्य समस्या यह भी है कि लोगों को इस बारे में सही जानकारी ही नहीं है और विभिन्न राजनीतिक दल उसे गलत जानकारी देकर भड़काते रहे हैं। मुस्लिमों को लगता है कि समान नागरिक संहिता शादियों में बाधित बनेगी। नमाज बंद हो जाएगी। कई तरह की पाबंदियां लग जाएंगी जबकि ऐसा कुछ नहीं होगा। इस कानून का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। उन्हें यह भी समझना होगा कि दुनिया के 125 देशों में एकसमान नागरिक कानून लागू है।
यह भी सोचना जरूरी है कि क्या आज के दौर में तीन-चार शादियां जायज हैं? क्या छोटी उम्र में लड़कियों की शादी जायज है? इस कानून से शादी, तलाक, जमीन-जायदाद के बंटवारे और उत्तराधिकार, गोद लेने जैसे सामाजिक मुद्दे एक कानून के अन्तर्गत आ जाएंगे। इससे समाज में एकरूपता लाने में मदद मिलेगी। देश में समय-समय पर कायदे और कानून में बदलाव होते रहे हैं। देश का कानून किसी धर्म, जाति या समुदाय से ऊपर है। जब हिन्दू कोड बिल लाया गया था तब भी इसका जमकर विरोध हुआ था। आज के समय में समान नागरिक संहिता लागू करना मील का पत्थर साबित होगा। देश की शीर्ष अदालत ने भी समान नागरिक संहिता लागू करने के पक्ष में कई बार अपनी राय व्यक्त की है। बेहतर यही होगा कि सभी राजनीतिक दल और समुदाय एकसमान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में कदम बढ़ाएं और साथ ही मुस्लिम समुदाय का भरोसा भी जीतने का अभियान छेड़ें।
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आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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