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कश्मीर समस्या क्यों बनी?

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09:25 AM Oct 03, 2018 IST | Desk Team

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जम्मू-कश्मीर समस्या का जन्म भारत के बंटवारे से जिस प्रकार से जुड़ा हुआ है उसका असली पक्ष यह है कि अंग्रेजों ने पाकिस्तान का निर्माण करते समय अपनी उस दुरंगी नीति को बहुत करीने से लागू किया था जिसके तहत मजहब के आधार पर इस देश को बांटा गया था मगर जम्मू-कश्मीर समस्या को अंग्रेजों ने जिस तरह पैदा किया उसकी जड़ उस संधि में छिपी हुई है जो 1846 में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने शेरे पंजाब महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र दिलीप सिंह के साथ की थी। इस संधि ने भारत का वह स्वरूप बदल डाला था जिसे देशी रियासतों का समूह कहा जाता था। अंग्रेजों ने महाराजा रणजीत सिंह की आगरा से लेकर काबुल तक फैली रियासत को महाराजा दिलीप सिंह से खरीदा था। जिसके बाद वे दिलीप सिंह को इंग्लैंड ले गए थे और उन्होंने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था लेकिन 1860 में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने भारत की पूरी सल्तनत ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया को बेची और भारत का शासन सीधे इंग्लैंड की महारानी के हुक्म से चलने लगा था। महाराजा रणजीत सिंह ने अपने शासनकाल में जम्मू के राजा गुलाब सिंह को कश्मीर में राजस्व वसूली का अधिकार देकर उनकी रियासत का विस्तार कर दिया।

गुलाब सिंह महाराजा रणजीत सिंह के शाही दरबार के जागीरदार थे और जम्मू-कश्मीर में डोगरा राजवंश की स्थापना करने वाले थे। महाराजा की मृत्यु के बाद जब उनकी पूरी रियासत ईस्ट इंडिया कम्पनी ने खरीद ली तो इतिहासकारों के अनुसार महाराजा गुलाब सिंह ने गिलगित बाल्टिस्तान के इलाके के राजस्व वसूली के अधिकार अंग्रेजों से भारी रकम की एवज में ले लिए और अपनी रियासत का विस्तार किया। अब जम्मू-कश्मीर रियासत का वजूद स्वतन्त्र रूप से अलग हो गया था क्योंकि 1846 तक यह महाराजा रणजीत सिंह की पंजाब रियासत के दायरे में आती थी। रणजीत सिंह की सल्तनत को खरीद कर अंग्रेजों ने वह दूर की कौड़ी चल डाली थी जिसकी कल्पना उस समय किसी ने नहीं की थी। शेरे पंजाब के नाम से विख्यात रणजीत सिंह की प्रजा में हिन्दू और मुसलमानों की संख्या लगभग बराबर थी। यही वजह थी कि 1836 के लगभग आज के पाकिस्तान के कबायली इलाकों से भरे हुए उत्तर-पूर्वी सीमान्त प्रदेश (अफगानिस्तान तक) में महाराजा रणजीत सिंह के शासन के खिलाफ भारत में पहली बार मुस्लिम उलेमाओं ने जेहाद छेड़ा था।

यह जेहाद असफल हो गया था क्यों​िक रणजीत सिंह के दरबार में मुस्लिम विद्वानों का भी बराबर का सम्मान होता था और उनकी फौज में फ्रांस के सैनिक अधिकारी भी अद्यतन आयुध सामग्री में पारंगत थे। एेसी मजबूत रियासत को ईस्ट इंडिया कम्पनी ने अन्य देशी रियासतों की तरह बजाय अपनी फरमानी में लेने के खरीदा और सारे मालिकाना हक अपने कब्जे में लेकर महाराजा गुलाब सिंह को जम्मू-कश्मीर के महाराजा के रूप में मान्यता दी। जम्मू-कश्मीर रियासत में डोगरा वंश की नींव डालने वाले महाराजा गुलाब सिंह की मृत्यु 1856 में हो गई और उनके बाद उनके पुत्र रणवीर सिंह गद्दी पर बैठे। उनका राज 1885 तक रहा और इस दौरान पूरे भारत की सल्तनत महारानी विक्टोरिया के पास आने के बाद जम्मू-कश्मीर रियासत इस तरह मजबूत हुई कि यहां के महाराजा के पास अन्य देशी रियासतों के मुकाबले शासन-व्यवस्था के अधिक अधिकार रहे।

यही वजह रही कि जब अंग्रेजों का बनाया हुआ भारतीय सजा जाब्ता कानून (भारतीय दंड संहिता) 1861 में लागू हुई तो जम्मू-कश्मीर में महाराजा रणवीर सिंह की लागू की गई रणवीर दंड संहिता 1860 से लागू हो चुकी थी जिसमें गोहत्या पर पूर्ण प्रतिबन्ध भी शामिल था। इसके साथ ही राज्य में जमीन-जायदाद की खरीद-फरोख्त के कानून भी महाराजा ने ही बनाए थे जो पूरी तरह जम्मू-कश्मीर रियासत केन्द्रित थे। यहां के नागरिकों के विशेष अधिकार भारतीयों के अधिकारों से अलग थे। महाराजा गुलाब सिंह ने अपनी रियासत के लिए विशेष अधिकार प्राप्त करने में अंग्रेजों से सफलता प्राप्त कर ली थी। अंग्रेजों को इस बात का सन्तोष था कि इस राज्य की दुर्गम परिस्थितियों और भौगोलिक भिन्नता के मामले में उन पर खर्च की जिम्मेदारी नहीं रहेगी और सारा खर्चा महाराजा के शासन को उठाना पड़ेगा। उधर 1889 में ब्रिटिश हुकूमत ने अफगानिस्तान के सभी उन इलाकों पर भी अपना हक छोड़ दिया जो महाराजा रणजीत सिंह की रियासत का हिस्सा थे और अफगानिस्तान को ब्रिटिश भारत से अलग कर दिया। अब पंजाब की महाराजा रणजीत सिंह की रियासत का अस्तित्व समाप्त हो चुका था और भारत में श्रीलंका व म्यांमार समेत पूरा वर्तमान पाकिस्तान व बंगलादेश का इलाका था मगर इस भारत में भी जम्मू-कश्मीर की स्थिति अलग थी, 1885 में महाराजा रणवीर सिंह की मृत्यु के बाद जब उनके पुत्र प्रताप सिंह गद्दी पर बैठे तो भारत की स्वतन्त्रता के लिए कोलकाता में कांग्रेस पार्टी की स्थापना हो चुकी थी और इसका गठन कोलकाता विश्वविद्यालय के ही कुछ बुद्धिजीवियों ने एक अंग्रेज सर ए.ओ. ह्यूम के नेतृत्व में किया था।

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