क्या अब दलित नेता भाजपा के ‘ट्रंप कार्ड’ साबित होंगे
आज आजाद भारत की रूह 76वें गणतंत्र की जिस खुशबू में बेतरह नहायी हुई है…
‘तुम पलटते हो पन्ने वक्त के,
मैं इसके किरदार सजाता हूं
तुम साये में हो जिस दरख्त के,
मैं उसे धूप से बचाता हूं’
आज आजाद भारत की रूह 76वें गणतंत्र की जिस खुशबू में बेतरह नहायी हुई है, यह वक्त मुनासिब नहीं कि बात गण पर हावी होते तंत्र की कही-सुनी जाए। फिर भी नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी जिस तरह हाशिए पर खड़े लोगों खास कर दलितों के मुद्दों की खुल कर बात करते नज़र आते हैं, इसी के बैकड्राप में भगवा पार्टी को अपनी वट वृक्षीय साए में महफूज रखने का स्वांग भरने वाले संघ ने अपनी नई व ताजा चिंताओं से भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को अवगत करा दिया है।
सूत्रों की मानें तो संघ ने भाजपा नेतृत्व से कहा है कि ‘अगर वाकई भगवा पार्टी को दलित वोटों को साधना है तो मौजूदा चुनावी राजनीति में उन्हें दलितों को ज्यादा जगह देनी पड़ेगी।’ जैसा कि संघ के एक वरिष्ठ चिंतक का दावा है ‘भाजपा दलित हितों की बात भी करती है और उसकी चिंता भी, पर जब भी कोई दलित चेहरा सामने लाने की बात होती है तो ये मजमा गठबंधन दलों के नेता, मसलन चिराग पासवान, जीतन राम मांझी या रामदास अठावले जैसे लोग लूट ले जाते हैं, सो ऐसे में तो भाजपा की गठबंधन साथियों पर निर्भरता बनी रहेगी।’
संघ से जुड़े विश्वस्त सूत्रों के दावों पर अगर यकीन किया जाए तो पिछले दिनों संघ ने कोई 30 होनहार दलित नेताओं की एक लिस्ट भाजपा नेतृत्व को सौंपी है, कहते हैं इस लिस्ट में ज्यादातर वाल्मीकि, कहार या कोल जाति से ताल्लुक रखने वाले नेतागण शामिल हैं। संघ चाहता है कि ‘भाजपा इन दलित नेताओं को अपनी चुनावी राजनीति का हिस्सा बनाएं, उन्हें चुनाव लड़ने का मौका दिया जाए और इन्हें सरकार में हिस्सेदारी मिले।’ संघ का अपना आकलन है कि ‘भाजपा संगठन में जरूर दलित नेताओं को ज्यादा से ज्यादा प्रतिनिधित्व मिलता है, पर वे चुनावी व सत्ता की राजनीति को उस कदर प्रभावित नहीं कर पाते।’ सो, संघ की ओर से भाजपा को दलित वोटरों को अपने पाले में लाने के लिए जो प्रमुख सूत्र बताए गए हैं उनमें से एक है कि पार्टी ज्यादा से ज्यादा दलितों को चुनाव में टिकट दे, दूसरा एनडीए के घटक दल के जो दलित चेहरे भारतीय सियासत में धूमकेतु सा चमक रहे हैं, इन छोटे दलों का विलय भाजपा में कर इन नेताओं को पार्टी अपना चेहरा बनाए।’
महाराष्ट्र सरकार में संघ का दम
यह बात तो सब जानते हैं और मानते हैं कि इस दफे के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा की सीटों की गिनती 132 तक पहुंचाने में संघ कैडर का कितना अहम रोल रहा, 132 का यह आंकड़ा इस मायने से भी अभूतपूर्व था कि भाजपा ने महज़ 147 सीटों पर ही अपने उम्मीदवार उतारे थे। सो, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने भी संघ कैडर के उनके इस कृत्य को पुरस्कृत करने के लिए एक नायाब नुस्खा ढूंढ निकाला है, बकौल सीएम-‘संघ के साथ बेहतर समन्वय और संघ कार्यकर्ताओं को महायुति सरकार में अपनेपन की भावना से जोड़ने के लिए भाजपा के सभी 19 मंत्रियों के साथ संघ का अपना एक सहायक कार्यरत रहेगा। जो पार्टी व संघ से जुड़े मुद्दों से सरोकार रखेगा। यह खास निजी सहायक मंत्री के अपने अन्य निजी सहायकों से अलहदा होगा।’
महाराष्ट्र सरकार के प्रशासनिक विभाग द्वारा जारी एक हालिया विज्ञप्ति के मुताबिक राज्य सरकार के मंत्रियों को अपने साथ तीन ओएसडी रखने की अनुमति है जो सरकारी कर्मचारी होंगे, इसके अलावा अब मंत्री गण अपने लिए तीन निजी सहायक भी रख सकते हैं, जिनमें से दो को सरकारी कर्मचारी होने की आवश्यकता नहीं। संघ का यह नामित व्यक्ति मंत्री का पीए रहते सरकारी सुविधाओं समेत सरकारी वेतन पाने का भी हकदार होगा। इसके अलावा भाजपा के एक वरिष्ठ नेता सुधीर देउलगांवकर को चीफ कॉआर्डिनेटर नियुक्त किया गया है जो संघ और फड़णवीस सरकार के बीच एक सेतु का काम करेंगे। सनद रहे कि एकनाथ शिंदे के मुख्यमंत्रित्व काल में शिंदे की पार्टी के कार्यकर्ताओं को जहां राज्य सचिवालय में आने-जाने की बेरोकटोक छूट थी, वहीं घोषित तौर पर संघ कार्यकर्ताओं के लिए मंत्रालय में प्रवेश पर बैन था। जाहिर है दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है, संघ व भाजपा ने अपने पूर्व के अनुभवों से अच्छा सबक सीखा है।
क्या है शरद पवार की असली चिंता?
मराठा नेता शरद पवार मीडिया से अपने अच्छे रिश्तों के लिए भी जाने जाते हैं। जब वे दिल्ली में होते हैं तो अक्सर अपने घर कुछ खास पत्रकारों को लंच, डिनर या चाय पर आमंत्रित करते हैं, फिर उनसे घंटों अनौपचारिक बातचीत करते हैं। उनका ज्यादातर वक्त मुंबई में गुजरता है सो पत्रकारों के साथ उनका यह लंच-डिनर का सिलसिला वहां भी बदस्तूर कायम रहता है। पिछले दिनों मुंबई के अपने आवास पर उन्होंने कुछ चुनिंदा पत्रकारों को बुलाया और उनके समक्ष अपनी एक खास चिंता व्यक्त की।
पवार का कहना था-‘चलो हम भाजपा के उन हैवीवेट नेताजी का यह तर्क मान लेते हैं कि अभी इस महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में दलित, मराठे व पिछड़ों ने हमें वोट नहीं दिया जिसकी वजह से हम इतनी बुरी तरह से हार गए। ठीक है मान लेते हैं अगर वे ऐसा दावा कर रहे हैं तो। पर मैं आज बात सिर्फ 2400 बूथों की करूंगा, जहां 90 से 95 फीसदी तक मुस्लिम मतदाता हैं। अगर आप इन बूथों पर पिछले 6 चुनावों का इतिहास देखें तो यहां भाजपा व शिवसेना को कभी भी 5-6 प्रतिशत से ज्यादा वोट नहीं मिले। पर मुझे आश्चर्य इस बात का है कि पिछले चुनाव में इन 2400 बूथों पर भी भाजपा 30-35 फीसदी वोट ले आई, मैं बस यह जानना चाहता हूं कि यह चमत्कार आखिर हुआ कैसे? भाजपा की नज़र में भी जो उनके ‘डी कैटेगरी’ वाले बूथ थे, वहां भला पार्टी को 30 प्रतिशत वोटों का इजाफा कैसे हो गया और हमारे अपने कैडर वोट कहां चले गए? मुझे बस यही जानना है।’
भाजपा अध्यक्ष की रेस में निर्मला सीतारमण
तमिलनाडु जैसे दक्षिण भारतीय राज्य में अपने तमाम प्रयासों के बावजूद भाजपा अपना मनचाहा प्रदर्शन नहीं कर पा रही है, इसको लेकर पार्टी के अंदर गहन विचार-मंथन का दौर जारी है। भाजपा ने अपने संगठन महासचिव बीएल संतोष के कहने पर ही तमिलनाडु में पार्टी की कमान एक पूर्व पुलिस अधिकारी अन्नामलाई के हाथों सौंपी थी, अन्नामलाई ने पार्टी को काफी भरोसा भी दिया था कि ‘वे तमिलनाडु में एक नई भाजपा के उत्थान की पटकथा लिखेंगे’, उनके कहने पर पार्टी ने वहां पानी की तरह पैसा भी बहाया, केंद्रीय नेताओं का आना-जाना भी वहां लगा रहा, भगवा कैडर ने भी वहां खूब पसीना बहाया, पर नतीजे आए तो बस ढाक के तीन पात।
भाजपा तमिलनाडु में डंके की चोट पर भी अपना कमल खिला नहीं पाई। उल्टे चुनावी नतीजे आने के बाद अन्नामलाई ने एक कोर्स करने के लिए विदेश जाने के लिए आवेदन भी कर दिया। अब तमिलनाडु भाजपा के अधिकांश नेता चाहते हैं कि उन्हें बतौर अध्यक्ष कोई ऐसा चेहरा मिले, जो राज्य के बाहर भी उतना ही पॉपुलर हो, इस कड़ी में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का नाम सबसे प्रमुखता से उभर कर सामने आया।
पर गृहमंत्री अमित शाह इससे भी एक बड़ी थ्योरी पर काम कर रहे हैं, वे चाहते हैं कि ‘निर्मला को जेपी नड्डा की जगह पार्टी का नया राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जाए, इससे न केवल तमिलनाडु समेत अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों में भाजपा का ग्राफ भी बढ़ेगा, बल्कि देश की महिला वोटरों पर भी इसका सकारात्मक असर दिखेगा। साथ ही निर्मला भाजपा की पहली महिला अध्यक्ष का तमगा भी हासिल कर लेंगी। सूत्र बताते हैं कि संघ अब भी अपने पूर्व प्रचारक मनोहर लाल खट्टर के पक्षधर है, और जब बात खट्टर की होगी तो यह बात पीएम मोदी को भी उतनी ही पसंद आएगी।
डुबकी गोपाल नंदी
अगर एक सामान्य ज्ञान का सवाल पूछा जाए कि इस बार के महाकुंभ में सरकार के किस मंत्री ने सबसे ज्यादा डुबकी लगाई है, तो निर्विरोध जवाब एक ही होगा-‘वे हैं योगी सरकार के एक प्रमुख मंत्री और प्रयागराज के विधायक नंद गोपाल नंदी।’ जब कोई भी वीआईपी नेता महाकुंभ में डुबकी लगाने जाता है, नंदी भी उनके साथ डुबकी लगा लेते हैं, इस कड़ी में आप राजनाथ सिंह, रामनाथ कोविंद, कुमार विश्वास, पूर्व मेयर अभिलाषा गुप्ता का नाम ले सकते हैं। वैसे भी योगी कैबिनेट के कोई भी मंत्री डुबकी लगाने महाकुंभ आए हों नंदी ने उस नायाब मौके को हाथ से जाने नहीं दिया हो ऐसा हो नहीं सकता और यह सिलसिला 26 फरवरी तक चालू रहने वाला है।
…और अंत में
झारखंड विधानसभ चुनाव में अपनी हार की पीड़ा से भाजपा अब तक उबर नहीं पाई है। हार के कारणों की पड़ताल के लिए लगातार विचार मंथन के दौर जारी हैं। सबसे हालिया रिपोर्ट भाजपा नेता व पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने भाजपा शीर्ष को सौंपी है जिसका मजमून है कि ‘अपने तीन मौजूदा सांसदों के भीतरघात की वजह से ही हम चुनाव हारे हैं।’ इनमें से एक सांसद तो दिल्ली के निज़ाम के आंखों के तारे हैं।